आर्थिक समीक्षा 2020-21 के महत्वपूर्ण तथ्य
केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य
मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2020-21 पेश की। कोविड योद्धाओं को समर्पित इस आर्थिक समीक्षा 2020-21 के महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैः
शताब्दियों में होने
वाले संकट के दौरान जीवन और आजीविका की सुरक्षा
- कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद भारत ने
जीवन और आजीविका की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया।
- यह प्रयास उस मानवीय सिद्धांत पर आधारित है, जिसके अंतर्गत
- लोगों की जिंदगी वापस नहीं लायी जा सकती।
- महामारी के कारण जीडीपी में कमी आई। जीडीपी में रिकवरी
संभावित।
- शुरुआत में ही कड़े लॉकडाउन के कारण लोगों के जीवन की
रक्षा करने तथा आजीविका सुरक्षित करने में सहायता मिली। (मध्य और लम्बी अवधि
में आर्थिक रिकवरी)
- हैन्सेन एंड सार्जेंट (2001) की नोबेल
पुरस्कार से सम्मानित शोध से भी यह रणनीति प्रेरित थी।
- अत्यधिक अनिश्चितता की स्थिति में कम से कम नुकसान होने
की नीति अपनाई गई।
- भारत की रणनीति ने ग्राफ को संरेखीय बनाया और सबसे खराब
स्थिति आने की संभावना को सितंबर 2020 तक टाल दिया।
- सितंबर में सबसे अधिक मामलों के दर्ज होने के बाद भारत
में प्रतिदिन नए मामलों की संख्या में कमी दर्ज की गई है, जबकि आवागमन बढ़ा है।
- पहली तिमाही में जीडीपी पर 23.9 प्रतिशत की कमी, जबकि दूसरी तिमाही में जीडीपी में
7.5 प्रतिशत की कमी। यह वी-शेप रिकवरी को दर्शाती है।
- कोविड महामारी ने मांग और आपूर्ति दोनों को प्रभाविक
किया।
- भारत एक मात्र देश था जिसने आपूर्ति बढ़ाने के लिए
संरचनात्मक सुधार घोषित किए ताकि उत्पादन क्षमताओं का कम से कम नुकसान हो।
- आर्थिक गतिविधियों पर लगी रोक को हटाने के साथ मांग
बढ़ाने को लेकर नीतियां बनाई गईं।
- नेशनल इंफ्रास्ट्रकचर पाइपलाइन में सार्वजनिक निवेश ताकि
मांग में वृद्धि हो।
- महामारी संक्रमण के दूसरे दौर को रोकने में सफलता, अर्थव्यवस्था में तेजी
अर्थव्यवस्था परिदृश्य 2020-21: प्रमुख तथ्य
- कोविड-19 महामारी के कारण पूरे विश्व को
आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा। यह वैश्विक वित्तीय संकट से भी अधिक गंभीर।
- लॉकडाउन तथा एक-दूसरे से आवश्यक दूरी बनाए रखने के
नियमों के कारण वैश्विक
अर्थव्यवस्था को गंभीर मंदी का सामना करना पड़ा।
- आकलन के अनुसार वैश्विक आर्थिक उत्पादन 2020 में 3.5 प्रतिशत की कमी दर्ज की जाएगी। (आईएमएफ,
जनवरी 2021 अनुमान)
- पूरी दुनिया में सरकारों और केंद्रीय बैंकों ने विभिन्न
नीतियों के माध्यम से अर्थव्यवस्थाओं को समर्थन दिया।
- भारत ने चार आयामों वाली रणनीति को अपनाया-महामारी पर
नियंत्रण, वित्तीय नीति और लम्बी अवधि के संरचनात्मक सुधार।
- वित्तीय और मौद्रिक समर्थन दिया गया। लॉकडाउन के दौरान
कमजोर वर्ग को राहत दी गई। अनलॉक के दौरान खपत और निवेश को प्रोत्साहन।
- मौद्रिक नीति ने नकदी की उपलब्धता सुनिश्चित की। कर्ज
लेने वालों को राहत दी गई।
- एनएसओ के अग्रिम नुकसान के अनुसार भारत की जीडीपी की
विकास दर वित्त वर्ष 2021 (-) 7.7 प्रतिशत रहेगी। वित्त वर्ष 2021
की पहली छमाही की तुलना में दूसरी छमाही में 23.9 प्रतिशत की वृद्धि।
- वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की
वास्तविक जीडीपी की विकास दर 11.0 प्रतिशत रहेगी तथा
सांकेतिक जीडीपी की विकास दर 15.4 प्रतिशत रहेगी,
जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सर्वाधिक होगी।
- कोविड-19 वैक्सीन की शुरुआत के बाद से
आर्थिक गतिविधियां और भी सामान्य हुई हैं।
- सरकारी खपत और निर्यात ने विकास दर में और कमी नहीं आने
दी,
जबकि निवेश और निजी क्षेत्र खपत ने विकास दर को कम किया।
- वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी छमाही
में रिकवरी सरकारी खपत के कारण होगी। 17 प्रतिशत वृद्धि
का अनुमान लगाया गया है।
- वित्त वर्ष 2021 की दूसरी छमाही में
निर्यात में 5.8 प्रतिशत और आयात में 11.3 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है।
- वित्त वर्ष 2021 में चालू खाता
सरप्लस, जीडीपी के 2 प्रतिशत के
बराबर होने का अनुमान। 17 वर्षों के बाद ऐसी स्थिति।
- आपूर्ति में वित्त वर्ष 21 के लिए ग्रॉस
वैल्यू एडेड (जीवीए) की विकास दर -7.2 प्रतिशत रहने का
अनुमान, यह वित्त वर्ष 20 में 3.9
प्रतिशत थी।
- कोविड-19 के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को
हुए नुकसान को कम करने में कृषि महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, जिसकी विकास दर वित्त वर्ष 21 के लिए 3.4
प्रतिशत आंकी गई है।
- वित्त वर्ष 21 के दौरान उद्योग और
सेवा क्षेत्र में क्रमशः 9.6 प्रतिशत और 8.8 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है।
- सेवा क्षेत्र, विनिर्माण और निर्माण
क्षेत्रों को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा। ये क्षेत्र अब तेजी से सामान्य
होने की स्थिति में आगे बढ़ रहे हैं। कृषि क्षेत्र ने बेहतर परिणाम दिए हैं।
- वित्त वर्ष 20-21 के दौरान भारत
निवेश के लिए सबसे पसंदीदा देश रहा।
- नवम्बर 2020 में कुल एफपीआई
प्रवाह 9.8 बिलियन डॉलर रहा, जो
महीने के संदर्भ में सर्वाधिक है।
- उभरते हुए बाजारों में भारत एक मात्र देश है जिसे 2020 में इक्विटी के रूप में एफआईआई प्राप्त हुआ।
- सेंसेक्स और निफ्टी भारत के बाजार पूंजी तथा जीडीपी
अनुपात के 100 प्रतिशत को पार कर लिया, ऐसा अक्तूबर 2010 के बाद पहली बार हुआ।
- सीपीआई महंगाई दर में हाल में कमी दर्ज की गई है।
आपूर्ति में अवरोधों को समाप्त किया गया है।
- निवेश में 0.8 प्रतिशत की मामूली
कमी आने का अनुमान। पहली छमाही में 29 प्रतिशत की
गिरावट।
- राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच आवागमन में बढ़ोतरी
से जीएसटी संग्रह रिकॉर्ड स्तर पर। औद्योगिक और वाणिज्यिक गतिविधियां को
अनलॉक किया गया।
- वित्त वर्ष 2021 की पहली छमाही में
चालू खाता खाता सरप्लस जीडीपी का 3.1 प्रतिशत।
- सेवा क्षेत्र के निर्यात में तेजी और मांग में कमी से
निर्यात (वाणिज्यिक निर्यात में 21.2 प्रतिशत की कमी) की
तुलना में आयात (वाणिज्यिक आयात में 39.7 प्रतिशत की
कमी) में कमी आई।
- दिसंबर 2020 में विदेशी मुद्रा
भंडार अगले 18 महीनों के आयात के लिए पर्याप्त।
- जीडीपी के अनुपात में विदेशी कर्ज मार्च 2020 के 20.6 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2020 में 21.6 प्रतिशत हुआ।
- विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि से विदेशी मुद्रा और कुल
एवं लघु अवधि कर्ज का अनुपात बेहतर हुआ।
- वी (V) आकार में सुधार
जारी है, जैसा कि बिजली की मांग, इस्पात
की खपत ई-वे बिल, जीएसटी संग्रह आदि तेज उतार-चढ़ाव
वाले संकेतकों में निरंतर बढ़ोतरी के रूप में प्रदर्शित हुआ है।
- भारत 6 दिन में सबसे तेजी से 10 लाख टीके लगाने वाला
देश बन गया है और साथ ही अपने पड़ोसी देशों और ब्राजील को टीकों के अग्रणी
आपूर्तिकर्ता के रूप में भी उभरा है।
- व्यापक
टीकाकरण अभियान की शुरुआत के साथ अर्थव्यवस्था सामान्य स्थिति की ओर लौट रही
है :
- सेवा
क्षेत्र, खपत और निवेश में मजबूती के साथ सुधार की उम्मीद
बढ़ी
- भारत
को अपनी विकास की संभावनाओं के अहसास में सक्षम बनाने और महामारी के विपरीत
प्रभाव को खत्म करने तक सुधार जारी रहने चाहिए
- ‘सदी के पहले’ संकट से निपटने
के लिए भारत की परिपक्व नीतिगत प्रतिक्रिया से लोकतंत्रों को सीमित नीतिगत
निर्माण से बचने और दीर्घकालिक लाभों पर ध्यान केंद्रित करने के फायदों के
प्रदर्शन के लिए अहम सबक मिले हैं।
क्या विकास से कर्ज स्थायित्व को बढ़ावा
मिलता है? हां, लेकिन
कर्ज स्थायित्व से विकास को मजबूती नहीं मिलती है!
- भारतीय
संदर्भ में विकास से कर्ज स्थायित्व को बढ़ावा मिलता है, लेकिन कर्ज स्थायित्व से इससे विकास को गति मिलना जरूरी नहीं है :
- कर्ज
स्थायित्व ‘ब्याज
दर विकास दर का अंतर’ (आईआरजीडी) पर निर्भर करता है, अर्थात् – ब्याज दर और विकास दर
के बीच का अंतर
- भारत
में,
कर्ज पर ब्याज दर, विकास दर से कम है- यह
नियम है, लेकिन अपवाद अलग हैं
- भारत में
नकारात्मक आईआरजीडी- ब्याज दरों के कारण नहीं बल्कि काफी ज्यादा विकास दर के
कारण- विशेष रूप से विकास दर में सुस्ती और आर्थिक संकट के दौरान, राजकोषीय नीतियों को लेकर बहस शुरू हो जाती है।
- विकास
के चलते ऊंची विकास दर वाले देशों में कर्ज में स्थायित्व आता है; अंतर्निहित
दिशा को लेकर इतनी स्पष्टता कम विकास दर वाले देशों में देखने को नहीं मिली
है
- अर्थव्यवस्था
में तेजी की तुलना में आर्थिक संकट के दौरान राजकोषीय गुणकों में असमानता
ज्यादा होती है
- सक्रिय
राजकोषीय नीति से सुनिश्चित हो सकता है कि उत्पादन क्षमता को होने वाले संभावित
नुकसान को सीमित करके सुधारों का पूर्ण लाभ मिले
- विकास
को गति देने वाली राजकोषीय नीति से जीडीपी की कर्ज के अनुपात में कमी को
बढ़ावा मिलने की संभावना है
- आर्थिक
सुस्ती के दौरान विकास को सक्षम बनाने के लिए चक्रीय-रोधी राजकोषीय नीति का
उपयोग वांछनीय है
- सक्रिय, चक्रीय-रोधी राजकोषीय नीति- राजकोषीय सतर्कता के लिए नहीं, बल्कि उन बौद्धिक सीमाओं से बाहर निकलना है, जिनके चलते राजकोषीय नीति की तुलना में असमान पूर्वाग्रह की स्थिति
पैदा हो गई हो।
क्या भारत की सम्प्रभु क्रेडिट रेटिंग से उसके आधारभूत तत्वों का पता चलता है? नहीं!
- दुनिया
की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था को सम्प्रभु क्रेडिट रेटिंग में कभी भी सबसे कम
निवेश ग्रेड (बीबीबी-/बीएए3) नहीं दिया गया है :
- इससे अर्थव्यवस्था
के आकार और उसकी कर्ज चुकाने की क्षमता प्रदर्शित करते हुए, दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था को मुख्य रूप से एएए रेटिंग दी गई है
- चीन
और भारत ही सिर्फ इस नियम में अपवाद हैं- चीन को 2005 में ए-/ए2 रेटिंग दी गई थी और अब भारत को
बीबीबी-/बीएए3 रेटिंग दी गई है
- भारत
की सम्प्रभु क्रेडिट रेटिंग से उसके आधारभूत तत्व प्रदर्शित नहीं होते हैं :
- एसएंडपी/मूडीज के लिए
ए+/ए1 के बीच रेटिंग वाले देशों के बीच कई मानदंडों पर स्पष्ट अंतर हैं
- सम्प्रभु
रेटिंग के मानदंड पर प्रभाव के चलते रेटिंग काफी कम दी गई है
- कर्ज चुकाने
में चूक की संभावना के आधार पर क्रेडिट रेटिंग दी जाती है और इस प्रकार, कर्ज लेने वाले की अपनी बाध्यताएं बूरी करने की इच्छा और क्षमता का पता
चलता है :
- शून्य
सम्प्रभु डिफॉल्ट की पृष्ठभूमि के माध्यम से निस्संदेह रूप से भारत की भुगतान
की इच्छा का पता चलता है
- कम
विदेशी मुद्रा बहुल कर्ज और विदेशी मुद्रा भंडार के द्वारा भारत की भुगतान की
क्षमता का आकलन किया जा सकता है
- भारत
के लिए सम्प्रभु
क्रेडिट रेटिंग में बदलाव का बाह्य आर्थिक संकेतकों से कोई या कमजोरी वाला
संबंध नहीं है
- भारत
की राजकोषीय नीति से गुरुदेव रबिंद्रनाथ टैगोर की ‘एक निर्भय मन’ धारणा स्पष्ट
होती है
- सम्प्रभु
क्रेडिट रेटिंग की विधि को अर्थव्यवस्थाओं के आधारभूत तत्वों का प्रदर्शन करते
हुए ज्यादा पारदर्शी, कम पक्षपातपूर्ण और ज्यादा व्यवस्थित
होना चाहिए
असमानता और विकास : गतिरोध या सम्मिलन?
- विकसित
अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में असमानता और सामाजिक-आर्थिक परिणामों के
साथ ही आर्थिक विकास और सामाजिक-आर्थिक परिणामों के बीच संबंध अलग हैं।
- विकसित
अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत भारत में असमानता और प्रति व्यक्ति आय (विकास) का
सामाजिक-आर्थिक संकेतकों के साथ समान संबंध हैं
- असमानता
की तुलना में गरीबी उन्मूलन पर आर्थिक विकास का ज्यादा प्रभाव होता है
- गरीबों
को गरीबी से उबारने के लिए भारत को जोर आर्थिक विकास पर बना रहना चाहिए
- समग्र
आकार का विस्तार – विकासशील अर्थव्यवस्था में पुनर्वितरण सिर्फ तभी व्यवहार्य है,
यदि अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ता रहे
आर्थिक समीक्षा 2020-2021 के बारे में
आखिरकार, स्वास्थ्य पर हो मुख्य ध्यान!
- कोविड-19 महामारी ने स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र के महत्व और उसके अन्य
क्षेत्रों के साथ अंतर-संबंधों को रेखांकित किया है- जिससे पता चलता है कि
कैसे एक स्वास्थ्य संकट एक आर्थिक और सामाजिक संकट में परिवर्तित हो सकता है
- भारत
की स्वास्थ अवसंरचना कुशल होनी चाहिए, जिससे महामारियों की
स्थिति में त्वरित प्रतिक्रिया दी जा सके- स्वास्थ्य नीति ‘पक्षपातपूर्ण
दृष्टिकोण’ पर आधारित नहीं होनी चाहिए
- राष्ट्रीय
स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) ने गरीबों तक पूर्व उपचार और उपचार बाद देखभाल की पहुंच
के रूप में असमानता को दूर करने में अहम भूमिका निभाई है और संस्थागति
डिलिवरी में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है
- आयुष्मान
भारत के साथ सामंजस्य से एनएचएम को जारी रखने पर दिया गया जोर
- सार्वजनिक
खर्च जीडीपी के 1 प्रतिशत से बढ़कर 2.5-3 प्रतिशत होने से स्वास्थ्य देखभाल पर लोगों द्वारा किए जाने वाले
खर्च 65 प्रतिशत से घटकर 35 प्रतिशत
होने का अनुमान।
- असमान
सूचना के चलते होने वाली बाजार विफलताओं को देखते हुए स्वास्थ्य क्षेत्र के
लिए एक नियामक के गठन पर विचार किया जाना चाहिए
- सही
सूचना उपलब्धता से बीमा प्रीमियम में कमी आएगी। बेहतर उत्पादों की पेशकश संभव
होगी और बीमा की पहुंच में बढ़ोतरी होगी
- स्वास्थ्य
क्षेत्र में असमान सूचना की समस्या दूर करने में सहायक सूचना इकाइयां समग्र
कल्याण के विस्तार में सहायक होंगी
- इंटरनेट
संपर्क और स्वास्थ्य अवसंरचना में निवेश के द्वारा दूरस्थ चिकित्सा के पूर्ण
दोहन की जरूरत है
प्रक्रियागत सुधार
- भारत में
अर्थव्यवस्था के ज्यादा विनियमन के चलते तुलनात्मक रूप से प्रक्रिया के साथ
बेहतर अनुपालन के बावजूद नियम निष्प्रभावी हो जाते हैं
- अत्यधिक
विनियमन की समस्या की मुख्य वजह वह दृष्टिकोण है, जो हर संभावित निष्कर्ष के लिए प्रयास करता है
- विवेकाधिकार
घटाने से नियमों की जटिलता बढ़ने से गैर पारदर्शी विवेकाधिकार में वृद्धि
होती है
- नियमों
को सरल बनाया जाना चाहिए और निरीक्षण पर ज्यादा जोर दिया जाना चाहिए। इसके
फिर से अधिक विवेकाधिकार की आवश्यकता है
- हालांकि, विवेकाधिकार को पारदर्शिता, भविष्य की घटनाओं
की विश्वसनीयता और बाद में होने वाले समाधान के साथ संतुलित किया जाना चाहिए
- श्रम
संहिताओं से लेकर बीपीओ क्षेत्र में लागू अत्यधिक नियमों को हटाने तक कई
सुधार लागू कर दिए गए हैं
नियामकीय राहत एक उपचार है, कोई स्थायी उपाय नहीं!
- वैश्विक
वित्तीय संकट के दौरान, नियामक राहत सहायता से कर्ज लेने
वालों को अस्थायी सुविधा मिली
- आर्थिक
सुधार के बाद राहत सहायता लंबे समय तक जारी रही, जिससे अर्थव्यवस्था पर अवांछित नकारात्मक असर हुए
- बैंकों
ने अपने बहीखातों को दुरुस्त करने के लिए इस राहत सुविधा का उपयोग किया और कर्ज
का गलत आवंटन किया, जिससे अर्थव्यवस्था में निवेश की
गुणवत्ता को नुकसान हुआ
- राहत सहायता
एक तात्कालिक उपचार है, जिसे अर्थव्यवस्था के सुधार
प्रदर्शित करने के पहले अवसर पर बंद कर देना चाहिए, न
कि स्थायी खुराक के रूप में इसे वर्षों तक जारी रखना चाहिए
- अनिश्चितता
के बीच निर्णय को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से, छिपे पूर्वाग्रह पता लगाने के लिए घटना से पहले जांच की जानी चाहिए
और विपरीत परिणामों को खराब फैसलों या गलत इरादों से नहीं जोड़ना चाहिए
- राहत
सहायता वापस लिए जाने के तुरंत बाद एक परिसंपत्ति गुणवत्ता जांच अवश्य करानी
चाहिए
- कर्जों
की वसूली के लिए कानूनी अवसंरचना को मजबूत बनाए जाने की जरूरत है
नवोन्मेष : बढ़
रहा है, लेकिन
खासतौर से निजी क्षेत्र से अधिक समर्थन जरूरी
- भारत ने, वैश्विक नवोन्मेष
इंडैक्स की 2007 में शुरूआत के बाद से 2020 में पहली बार शीर्ष-50 नवोन्मेषी देशों के क्लब
में प्रवेश किया। मध्य और दक्षिण एशिया में इस संदर्भ में वह पहले नंबर पर
है और निम्न-मध्य-आय वर्ग की अर्थव्यवस्थाओं में वह तीसरे नंबर पर है।
- अनुसंधान एवं विकास पर भारत का सकल घरेलू व्यय
(जीईआरडी) दस शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में सबसे कम है।
- भारत की महत्वाकांक्षा होनी चाहिए कि वह नवोन्मेष के
मामले में शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं से प्रतिस्पर्धा
करे।
- अनुसंधान एवं विकास पर कुल सकल घरेलू व्यय (जीईआरडी)
में सरकारी क्षेत्र की भागीदारी गैर-समानुपातिक रूप से काफी ज्यादा है और यह
दस शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं के औसत से तीन गुना ज्यादा है।
- जीईआरडी तथा समस्त अनुसंधान एवं विकास अधिकारियों और
अनुसंधानकर्ताओं में व्यावसायिक क्षेत्र का योगदान सबसे कम है जब उसकी तुलना
दस शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं से की जाए।
- नवोन्मेष के लिए घोषित उच्च कर लाभों और इक्विटी पूंजी
तक पहुंच के बावजूद यह स्थिति बनी हुई है।
- भारत के व्यवसाय क्षेत्र को अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में
निवेश में पर्याप्त वृद्धि करने की जरूरत है।
- देश में किए जाने वाले कुल पेटेंट आवेदनों में भारतीयों
की भागीदारी को मौजूदा 36 प्रतिशत से बढ़ाकर अधिक करना
चाहिए, जबकि
यह दस शीर्ष बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के 62 प्रतिशत के औसत से
बहुत कम है।
- नवोन्मेष के क्षेत्र में अधिक सुधार लाने के लिए भारत
को संस्थानों और व्यवसाय अनुकूल नवोन्मेषी पहलों के प्रदर्शन को बेहतर
बनाने पर ध्यान देना चाहिए।
जय हो ‘पीएम-जेएवाई’ की शुरूआत और स्वास्थ्य संबंधी निष्कर्ष
- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) – भारत सरकार
द्वारा 2018 में शुरू की गई एक महत्वाकांक्षी योजना है,
जिसका उद्देश्य सबसे कमजोर तबके के लोगों को स्वास्थ्य
देखभाल उपलब्ध कराना है। इस योजना ने बहुत कम समय में स्वास्थ्य देखभाल
के क्षेत्र में दृढ़ और सकारात्मक असर दिखाया है।
- पीएमजेएवाई का इस्तेमाल डायलिसिस जैसे बार-बार किए
जाने वाले किफायती उपचार के लिए किया गया और यह कोविड महामारी और लॉकडाउन के
दौरान भी जारी रहा।
- स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में पीएमजेएवाई के
प्रभाव का आकलन राष्ट्रीय परिवार देखभाल सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-4 (2015-16) और (एनएफएचएस)-5 (2019-20) के आधार पर
भेद-विभेद विश्लेषण के जरिए किया गया। यह इस प्रकार हैं :-
- स्वास्थ्य बीमा कवरेज को बढ़ाया जाना : स्वास्थ्य
बीमा कराने वाले परिवारों की संख्या बिहार, असम और
सिक्किम में 2015-16 से 2019-20
तक 89 प्रतिशत रही, जबकि पश्चिम
बंगाल में इसी अवधि में 12 प्रतिशत की गिरावट आई।
- शिशु मृत्यु दर में गिरावट : 2015-16 से 2019-20 के दौरान शिशु मृत्यु दर गिरकर
पश्चिम बंगाल में 20 प्रतिशत पर, जबकि तीन पड़ोसी राज्यों में 28 प्रतिशत पर आ
गई।
- पांच साल से कम आयु के बच्चों की मृत्यु
दर में गिरावट : पश्चिम बंगाल में इसमें 20 प्रतिशत की
गिरावट आई, जबकि पड़ोसी राज्यों में 27 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली।
- गर्भनिरोध के आधुनिक तरीके, महिलाओं का
गर्भाधान रोकने के उपाय और गोलियों का इस्तेमाल तीन पड़ोसी राज्यों -
बिहार, असम और सिक्किम में क्रमश: 36 प्रतिशत, 22 प्रतिशत और 28 प्रतिशत रहा, जबकि पश्चिम बंगाल में यह बहुत
मामूली रहा।
- जहां पश्चिम बंगाल में दो बच्चों के बीच
में अंतर रखने के मामलों में काफी कम गिरावट दर्ज की गई, वहीं उक्त तीन
राज्यों में यह 37 प्रतिशत रही।
- उक्त तीन राज्यों में पश्चिम बंगाल की
तुलना में माता और शिशु की देखभाल के मामलों में काफी सुधार दर्ज किया गया।
- जब हम
पीएमजेएवाई लागू करने वाले सभी राज्यों की तुलना उन राज्यों से करते हैं, जिन्होंने
इसे लागू नहीं किया, तो हम पाते है कि सभी स्वास्थ्य उपाय
समान रूप से प्रभावी हुये हैं।
- कुल मिलाकर
इस तुलना से यह निष्कर्ष निकलता है कि जिन राज्यों में पीएमजेएवाई लागू
किया गया, उनमें विभिन्न स्वास्थ्य निष्कर्षों में महत्वपूर्ण
सुधार आया।
बुनियादी आवश्यकताएं
- 2012 के मुकाबले 2018 में देश के
सभी राज्यों में बुनियादी आवश्यकताओं तक लोगों की पहुंच में पर्याप्त
सुधार दर्ज किया गया है।
- केरल, पंजाब, हरियाणा और
गुजरात में यह सर्वोच्च स्तर पर पाया गया, जबकि
ओडिसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल और
त्रिपुरा में यह सबसे कम रहा।
- पानी, आवास, स्वच्छता, सूक्ष्म-पर्यावरण और अन्य
सुविधाओं जैसे पांच क्षेत्रों में काफी सुधार दिखाई दिया।
- देश के सभी राज्यों के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों
में असमानता कम हुई है, क्योंकि 2012 से 2018 के दौरान पिछड़े राज्यों को काफी
लाभ मिला है।
- देश के सभी ग्रामीण और शहरी इलाकों के गरीब
परिवारों की स्थिति में अमीर परिवारों की तुलना में काफी सुधार आया है।
- बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुंच में सुधार से स्वास्थ्य
संकेतकों में भी सुधार आया है और शिशु मृत्यु दर तथा पांच साल से कम उम्र के
बच्चों की मृत्युदर में कमी आई है तथा इससे भविष्य में शिक्षा संबंधी
संकेतकों में भी सुधार की आशा जगी है।
- देश के सभी राज्यों के ग्रामीण और शहरी इलाकों तथा
अलग-अलग आय वर्गों की बुनियादी आवश्यकताओं पर पहुंच में विभेद कम करने पर ध्यान
दिया जाना जरूरी है।
- जल जीवन मिशन, एसबीएम-जी, पीएमएवाई-जी आदि जैसी योजनाएं इस अंतर को कम करने के लिए उपयुक्त
रणनीति तैयार कर सकती हैं।
- उचित संकेतकों और तौर-तरीकों का इस्तेमाल कर जिला स्तर
पर सभी लक्षित जिलों का बेस नैसेसिटीज इनडेक्स (बीएनआई) आधारित एक व्यापक
वार्षिक परिवार सर्वेक्षण आंकड़ा तैयार किया जा सकता है, जिसमें बुनियादी आवश्यकताओं तक लोगों की पहुंच का आंकलन किया गया
हो।
वित्तीय घटनाक्रम
:
- भारत ने कोविड-19 महामारी के असर से
अपनी अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए एक विशिष्ट और उपयुक्त दृष्टिकोण
अपनाया, जबकि बहुत से देशों ने इसके लिए बड़े-बड़े
प्रोत्साहन पैकेज अपनाए थे।
- 2020-21 में हमारी व्यय नीति का प्रारम्भिक लक्ष्य
कमजोर तबकों को सहयोग और समर्थन उपलब्ध कराना था, लेकिन
लॉकडाउन समाप्त होने के बाद इसमें बदलाव कर सकल मांग को बढ़ाने और पूंजीगत
व्यय के अनुरूप बनाया गया।
- जीएसटी की शुरूआत के बाद से लेकर पिछले तीन महीने में, मासिक जीएसटी संग्रह, एक लाख करोड़ के आंकड़े
को पार कर गया है और दिसम्बर 2020 में यह उच्चतम स्तर
पर पहुंच गया।
- कर प्रशासन में सुधारों ने पारदर्शिता और जवाबदेही की
प्रक्रिया को शुरू किया है और कर अदा करने पर लाभों के प्रस्ताव से ईमानदार
करदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई है।
- केन्द्र सरकार ने राज्यों को महामारी के समय में उत्पन्न
चुनौतियों का सामना करने के लिए समर्थन देने के पर्याप्त कदम उठाए हैं।
बाहरी क्षेत्र
- कोविड-19 महामारी के चलते वैश्विक व्यापार
में तीव्र गिरावट आई, उपभोक्ता वस्तुओं के दाम कम हुए
और बाहरी वित्तीय स्थितियों में संकुचन आया, जिसके कारण
चालू खाता संतुलन और विभिन्न देशों की मुद्रा पर असर पड़ा।
- भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 08 जनवरी, 2021 को अब तक के सर्वोच्च 586.1
बिलियन अमरीकी डॉलर आंकड़े को छू गया। इसमें करीब 18 महीने में किया गया आयात भी शामिल है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था में चालू खाता अतिरेक के साथ ही
तीव्र पूंजी प्रवाह के चलते वित्त वर्ष 2019-20 की चौथी तिमाही
में बीओपी अतिरेक दर्ज किया गया।
- तीव्र एफडीआई और एफपीआई प्रवाह के चलते पूंजी खाते में
संतुलन आया :
- अप्रैल-अक्टूबर 2020 के दौरान 27.5 बिलियन अमरीकी डॉलर का कुल एफडीआई आया, जोकि
वित्त वर्ष 2019-20 के पहले सात महीने की तुलना में 14.8
प्रतिशत अधिक है।
- अप्रैल-दिसम्बर 2020 के दौरान 28.5
बिलियन अमरीकी डॉलर का कुल एफपीआई आया, जबकि
पिछले साल की इसी अवधि में 12.3 बिलियन अमरीकी डॉलर
था।
- वित्त वर्ष 2021 के एच-1 में वस्तुओं के आयात में तीव्र संकुचन आया और यात्रा सेवाओं में
गिरावट के कारण :
- चालू भुगतान में 30.8 प्रतिशत की
तीव्र गिरावट और चालू प्राप्तियों में 15.1 प्रतिशत की
तीव्र गिरावट आई।
- चालू खाता अतिरेक 34.7 बिलियन
अमरीकी डॉलर (सकल घरेलू उत्पाद का 3.1 प्रतिशत) रहा।
- 17 साल की अवधि के बाद भारत का वार्षिक चालू खाता
अतिरेक समाप्त हुआ।
- भारत का वस्तु व्यापार घाटा कम होकर अप्रैल-दिसम्बर 2020 में 57.5 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में यह 125.9 बिलियन
अमरीकी डॉलर था।
- वस्तुओं का निर्यात अप्रैल-दिसम्बर 2020 में 15.7 प्रतिशत घटकर 200.8 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया, जबकि यह
अप्रैल-दिसम्बर 2019 में 238.3
बिलियन अमरीकी डॉलर था।
- पेट्रोलियम, तेल और लुब्रिकेंट्स
(पीओएल) निर्यात ने समीक्षाधीन अवधि के दौरान हमारे निर्यात प्रदर्शन में
नकारात्मक योगदान किया।
- गैर-पीओएल निर्यात सकारात्मक रहे और उन्होंने
वित्तीय वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में निर्यात
प्रदर्शन में सुधार करने में मदद की।
- गैर-पीओएल निर्यात, कृषि और
संबद्ध उत्पादों, औषधि एवं फार्मास्युटिकल्स और
खनिज तथा अयस्क में वृद्धि दर्ज की गई।
- वस्तुओं का कुल आयात अप्रैल-दिसम्बर 2020 में (-) 29.1
प्रतिशत से घटकर 258.3 बिलियन अमरीकी
डॉलर हो गया, जबकि यह पिछले वर्ष की इसी अवधि में 364.2
बिलियन अमरीकी डॉलर था।
- पीओएल आयात में तीव्र गिरावट के कारण
आयात वृद्धि में भी गिरावट आई।
- 2020-21 की पहली तिमाही में आयातों में तीव्र
संकुचन आया; लेकिन अगली तिमाही में संकुचन की गति कुछ
कम हुई। यह सोने और चांदी के आयात में आई सकारात्मक वृद्धि और गैर-पीओएल,
गैर-सोना और गैर-चांदी आयातों में संकुचन कम होने के चलते
हुआ।
- उर्वरकों, खाद्य तेल,
औषधि और फार्मास्युटिकल्स, कम्प्यूटर,
हार्डवेयर और उससे जुड़े साजो-सामान में गैर-पीओएल, गैर-सोना और गैर-चांदी आयातों की वृद्धि में सकारात्मक योगदान
दिया।
- आयात की दर कम होने पर, चीन और अमरीका के
साथ व्यापार संतुलन ने इसमें सुधार किया।
- अप्रैल-सितम्बर 2020 के दौरान सकल
सेवा प्राप्तियां 41.7 बिलियन अमरीकी डॉलर के आंकड़े पर
कायम रहीं, जबकि पिछले साल की इसी अवधि में यह 40.5
बिलियन अमरीकी डॉलर थीं।
- सेवा क्षेत्र का लचीलापन मुख्य रूप से सॉफ्टवेयर सेवाओं के
चलते बना रहा। कुल सेवा निर्यात में इसका योगदान 49 प्रतिशत रहा।
- वित्त वर्ष 2021 के एच-1 में सकल निजी हस्तांतरण प्राप्तियां, (वे
भारतीय, जोकि मुख्य रूप से समुद्रपारीय देशों में
नौकरी कर धन भारत भेजते हैं) 35.8 बिलियन अमरीकी डॉलर
रहीं, जोकि पिछले साल की इसी अवधि से 6.7 प्रतिशत कम हैं।
- सितम्बर 2020 के अंत में भारत का
बाहरी ऋण 556.2 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा, जोकि मार्च, 2020 के अंत की तुलना में 2.0
बिलियन अमरीकी डॉलर (0.4 प्रतिशत) कम है।
- ऋण प्रभाव संकेतकों में सुधार :
- विदेशी मुद्रा भंडार का कुल अनुपात और कम
अवधि का ऋण (मूल और ब्याज सहित)।
- कम अवधि का ऋण अनुपात (मूल पूरा होने पर) कुल
बाहरी ऋण के संदर्भ में।
- ऋण सेवा अनुपात (मूल भुगतान तथा ब्याज अदायगी)
बढ़कर सितम्बर, 2020 के अंत में 9.7 प्रतिशत रहा, जोकि मार्च 2020 के अंत में 6.5 प्रतिशत था।
रुपये का अधिमूल्यन एवं अवमूल्यन :
- 6- मौद्रिक सामान्य प्रभावी विनिमय दर (एनईईआर)
(व्यापार आधारित भार) के संदर्भ में मार्च 2020 की
तुलना में दिसम्बर 2020 में रुपये का 4.1 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ; वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर)के
सन्दर्भ में 2.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
- 36- मौद्रिक सामान्य प्रभावी विनिमय दर (एनईईआर)
(व्यापार आधारित भार) के संदर्भ में मार्च 2020 की
तुलना में दिसम्बर 2020 में रुपये का 2.9 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ; वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर)के
सन्दर्भ में 2.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
- मुद्रा बाज़ार में भारतीय रिज़र्व बैंक के हस्तक्षेप से
वित्तीय स्थिरता और सामान्य स्थिति सुनिश्चित हुई, रुपये की एकतरफा वृद्धि और अनिश्चितता पर नियंत्रण हुआ।
- निर्यात को बढ़ावा देने के लिये की गई पहल
- उत्पाद सम्बंधित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना
- निर्यात किये जाने वाले उत्पादो से करों और शुल्कों में
छूट (आरओडीटीईपी)
- आवागमन ढांचे और डिजिटल पहल में सुधार
धन प्रबंधन और
वित्तीय अंतर हस्तक्षेप
- 2020 के दौरान सुविधाजनक मौद्रिक नीति : रेपो दर में 115
आधार अंकों की मार्च 2020 से कमी की गई।
- वित्त वर्ष 2020-21 में क्रमबद्ध
तरलता में अधिकता बनी रही। भारतीय रिजर्व बैंक ने कई तरह के परम्परागत और
गैर-परम्परागत उपाय किये, इनमें
- मुक्त बाजार संचालन
- दीर्घावधि रेपो संचालन
- लक्षित दीर्घावधि रेपो संचालन
- अनुसूचित व्यावसायिक बैंकों की कुल डूबी हुई
परिसंपत्तियों में मार्च 2020 के अंत तक 8.21 प्रतिशत से सितंबर 2020 के अंत में 7.49
प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गई।
- वित्त वर्ष 2020-21 में जमा और
उधारी की निचली नीतिगत दरों से मौद्रिक प्रचलन में सुधार आया।
- 20 जनवरी, 2021 में निफ्टी 50 ने अपने उच्चतम स्तर 14,644.7 अंक और बंबई शेयर बाजार का
संवेदी सूचकांक 49,792.12 अंक के उच्चतम स्तर तक
पहुंचा।
- अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की आईबीसी के माध्यम से
रिकवरी दर 45 प्रतिशत से ऊपर रही।
मूल्य और मुद्रास्फीति
- प्रमुख उपभोक्ता मूल्य सूचकांक महंगाई दर
अप्रैल से दिसंबर, 2020 के दौरान औसतन 6.6 प्रतिशत पर रही, मुख्य रूप से खाद्य महंगाई दर में वृद्धि के कारण दिसंबर, 2020 में 4.6 पर आ गई। (2019-20 में 6.7 प्रतिशत से अप्रैल से दिसंबर 2020 में सब्जियों के दामों में वृद्धि से 9.1 प्रतिशत पर पहुंची)।
- उपभोक्ता
मूल्य सूचकांक (सीपीआई) हेडलाइन और उसके उप-समूहों में अप्रैल-अक्टूबर, 2020 के दौरान मुद्रा स्फीति देखी गई, जो कोविड-19
लॉकडाउन के दौरान बाधित गतिविधियों के कारण कीमतों में बढ़ोतरी
के कारण महसूस की गई।
- नवंबर, 2020 तक अधिकतर उप-समूहों के लिए कीमतों में बढ़ोतरी कम की गई तथा सकारात्मक
उपायों से मुद्रा स्फीति को कम करने में मदद मिली।
- वर्ष 2020 में सीपीआई मुद्रा स्फीति में ग्रामीण-शहरी अंतर में कमी दर्ज की गईः
- नवंबर, 2019 में सीपीआई शहरी मुद्रा स्फीति ने सीपीआई ग्रामीण मुद्रा स्फीति के
अंतर की भरपाई की है।
- खाद्य
मुद्रा स्फीति अब लगभग समायोजित की जा चुकी है।
- ग्रामीण-शहरी
मुद्रा स्फीति में अंतर अन्य घटकों जैसे ईंधन और बिजली, परिधान तथा फुटवियर और अन्य वस्तुओं में देखा गया।
- अप्रैल-दिसंबर, 2019 तथा अप्रैल-दिसंबर, 2020-21 के दौरान सीपीआई
मुद्रा स्फीति का सबसे बड़ा कारक खाद्य एवं पेय समूह हैः
- अप्रैल-दिसंबर, 2019 के 53.7 प्रतिशत की तुलना में इसका योगदान
अप्रैल-दिसंबर, 2020 में बढ़कर 59 प्रतिशत हो गया।
- जून, 2020 से नवंबर, 2020 की अवधि में भोजन की थाली में
शामिल वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी हुई हालांकि दिसंबर के महीने में इनकी
कीमतों में आई तीव्र गिरावट कई आवश्यक खाद्य वस्तुओं की कीमतों में गिरावट को
दर्शाती है
- राज्यवार
रुझानः
- मौजूदा
वर्ष में अधिकतर राज्यों में सीपीआईसी-सी मुद्रा स्फीति में बढ़ोतरी हुई।
- क्षेत्रीय
भिन्नताएं व्याप्त।
- जून से
दिसंबर के दौरान राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में मुद्रा स्फीति की दर 3.2 प्रतिशत से 11 प्रतिशत रही, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में 0.3 प्रतिशत से 7.6
प्रतिशत थी।
- सूचकांक
में भोजन संबंधी मदों पर भारी खर्च के कारण सीपीआई-सी मुद्रा स्फीति में इनका
अहम भूमिका है।
- भोजन
मदों की कीमतों को स्थिर करने के लिए उठाए गए कदमः
- प्याज
के निर्यात पर प्रतिबंध
- प्याज
के भंडारण की स्टॉक सीमा का निर्धारण
- दालों
के आयात पर प्रतिबंधों में कमी
- स्वर्ण
कीमतें:
- कोविड-19 के दौरान सोने में अधिक निवेश करने से इसकी कीमतों में जबरदस्त
बढ़ोतरी हुई और इससे आर्थिक अनिश्चिताएं सामने आई।
- अन्य
संपत्तियों के मुकाबले वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान सोने
में निवेश से अधिक लाभ हुआ।
- आयात
नीति में समरूपता पर विशेष ध्यानः
- खाद्य
तेलों के आयात पर अधिक निर्भरता से आयात कीमतों में उतार-चढ़ाव का अधिक
जोखिम।
- दालों
और खाद्य तेलों की आयात नीति में बार-बार किए जाने वाले बदलाव, आयात से उत्पादन और घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों के
प्रभावित होने से किसानों/उत्पादकों में भ्रम पैदा होता है और आयात में देरी
होती है।
सतत विकास एवं जलवायु परिवर्तन
- भारत
ने सतत विकास के उद्देश्यों को नीतियों, योजनाओं और
कार्यक्रमों में क्रियान्वित करने के लिए अनेक सक्रिय कदम उठाए है।
- स्वैच्छिक
राष्ट्रीय समीक्षा (वीएनआर) – सतत विकास पर संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (एचएलपीएफ)
को स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा की पेशकश की गई।
- वर्ष 2030 के एजेंडे में शामिल उद्देश्यों को हासिल करने के लिए किसी भी रणनीति
में इन उद्देश्यों को स्थानीय स्तर पर लागू करना बहुत जरूरी है।
- अनेक राज्यों/संघ
शासित प्रदेशों ने सतत विकास के उद्देश्यों के क्रियान्वयन के लिए संस्थागत
ढांचों का निर्माण किया है और इनमें बेहतर समन्वय एवं समायोजन के लिए जिला
स्तर पर प्रत्येक विभाग में एक नोडल प्रक्रिया भी स्थापित की है।
- अप्रत्याशित
कोविड-19 महामारी संकंट के बावजूद सतत विकास अभी भी विकासात्मक
रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- जलवायु
परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) के तहत 8 राष्ट्रीय मिशनों की स्थापना की गई और इनका मुख्य उद्देश्य जलवायु
परिवर्तन के संकंटों से निपटने और इनसे सम्बद्ध तैयारी करने पर है।
- भारत
की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता योगदान (एनडीसी) का कहना है कि जलवायु परिवर्तन
कार्य योजना के लिए वित्त की अहम भूमिका है।
- इन
उद्देश्यों को हासिल करने के लिए जिस प्रकार आवश्यक कदम उठाए गए है उनके लिए
वित्तीय पहलू काफी महत्वपूर्ण होंगे।
- विकसित
देशों की ओर से जलवायु वित्त पोषण के लिए वर्ष 2020 तक एक वर्ष में 100 अरब अमेरिकी डॉलर की धनराशि
को संयुक्त रूप से प्रदान किया जाना अभी भी एक सपना बना हुआ है।
- सीओपी26 सम्मेलन को 2021 तक स्थगित करने से
विचार-विमर्श और 2025 के उद्देश्यों के बारे में
जानकारी देने के लिए कम समय मिला है।
- वैश्विक
बॉंन्ड बाजारों में कुल वृद्धि के बावजूद वर्ष 2019 से 2020 की पहली छमाही में हरित बॉन्ड को जारी
किए जाने की प्रक्रिया धीमी हुई है और यह संभवतः कोविड-19 महामारी का ही नतीजा है।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए)
ने दो नई पहल शुरू की है- ‘विश्व सौर
बैंक’ और ‘एक सूर्य, एक
विश्व, एक ग्रिड’ – इनका
मकसद वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति लाना है।
कृषि और खाद्य
प्रबंधन
- भारत के कृषि (और सहायक कार्य) क्षेत्र में कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच लचीलापन
देखने को मिला, जहां 2020-21 के दौरान
स्थिर मूल्यों पर 3.4 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली
(पहला अग्रिम अनुमान)।
- देश के सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में कृषि और सहायक
क्षेत्रों की हिस्सेदारी वर्ष 2019-20 के लिए स्थिर
मूल्यों पर 17.8 प्रतिशत रही (राष्ट्रीय आय के सीएसओ-अनंतिम
अनुमान, 29 मई,2020)।
- जीवीए से जुड़े सकल पूंजीगत निर्माण (जीसीएफ) में
उतार-चढ़ाव की प्रवृत्ति देखने को मिली, जो 2015-16 में 14.7 प्रतिशत की गिरावट के साथ 2013-14
में 17.7 प्रतिशत से 2018-19 में 16.4 प्रतिशत पर आ गई।
- कृषि वर्ष 2019-20 में देश में कुल
खाद्यान्न उत्पादन (चौथे अग्रिम अनुमानों के अनुसार) 11.44 मिलियन टन रहा, जो 2018-19 से अधिक है।
- वर्ष 2019-20 में 13,50,000 करोड़ रुपये के लक्ष्य के विपरीत वास्तविक कृषि ऋण प्रवाह 13,92,469.81 करोड़ रुपये था। वर्ष 2020-21 के लिए लक्ष्य
15,00,000 करोड़ रुपये था और 30 नवम्बर,
2020 तक 9,73,517.80 करोड़ रुपये दिये
गये।
- फरवरी, 2020 की बजट घोषणा के बाद
प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी)
प्रदान करने के लिए दुग्ध सहाकारिता और दुग्ध उत्पादन कंपनियों के 1.5 करोड़ डेयरी किसानों को लक्षित किया गया।
- जनवरी, 2021 के मध्य तक मछुआरों और मत्स्य
पालकों को 44,673 किसान क्रेडिट कार्ड जारी किये गये और
मुछआरों और मत्स्य पालकों के 4.04 लाख अतिरिक्त आवेदन
जारी करने के विभिन्न चरणों में बैंकों के पास हैं।
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में वर्ष-दर-वर्ष 5.5 करोड़ किसानों के आवेदनों को शामिल किया गया है।
- 12 जनवरी, 2021 तक 90,000
करोड़ रुपये की राशि के दावों का भुगतान किया गया।
- आधार को जोड़कर किसानों के खातों में तेजी से सीधे दावों
का निपटारा किया गया।
- 70 लाख किसानों को लाभ मिला और कोविड-19 लॉकडाउन अवधि के दौरान 8741.30 करोड़ रुपये की
धनराशि का हस्तांतरण किया गया।
- प्रधानमंत्री-किसान योजना के अंतर्गत वित्तीय लाभ की 7वीं किस्त में दिसंबर, 2020 में देश के 9
करोड़ किसान परिवारों के बैंक खातों में 18000 करोड़ रुपये की राशि सीधे जमा की गई।
- वर्ष 2019-20 के दौरान मत्स्य उत्पादन
सबसे अधिक 14.16 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुंच गया।
- मत्स्य पालन क्षेत्र से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में
सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) 2,12,915 करोड़ रुपये रहा, जो कुल राष्ट्रीय जीवीए का 1.24 प्रतिशत और कृषि
जीवीए का 7.28 प्रतिशत है।
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (एफपीआई) क्षेत्र करीब 9.99 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर (एएजीआर) पर बढ़ रहा है, जो 2018-19 को समाप्त पिछले पांच वर्षों के
दौरान 2011-12 के मूल्य पर कृषि में करीब 3.12 प्रतिशत और विनिर्माण में 8.25 प्रतिशत के
आस-पास रहा।
- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना :
- एनएफएसए आदेश की जरूरत से ऊपर नवम्बर, 2020 तक 80.96 करोड़ लाभार्थियों को मुफ्त अनाज
प्रदान किया गया। 200 एलएमटी से अधिक खाद्यान्न प्रदान
किया गया, जो 75000 करोड़ रुपये
से अधिक मूल्य के हैं।
- आत्मनिर्भर भारत पैकेज : करीब 8 करोड़ प्रवासियों (एनएफएसए अथवा राज्य राशन कार्ड वाले शामिल नहीं)
को करीब 3109 करोड़ रुपये की सब्सिडी के साथ चार महीने
(मई से अगस्त) की अवधि के लिए प्रति माह प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम अनाज दिया गया।
उद्योग और बुनियादी ढांचा
- आईआईपी आंकड़ों द्वारा एक मजबूत तेजी से उभरती आर्थिक
गतिविधियों की पुष्टि की गई है।
- आईआईपी और 8 करोड़ का सूचकांक
कोविड पूर्व स्तर से बढ़ा है।
- आईआईपी में विस्तृत आधार वाले सुधार के परिणामस्वरूप
नवम्बर, 2020 में (-) 1.9 प्रतिशत की
वृद्धि हुई, जो नवम्बर, 2019 में
2.1 प्रतिशत और अप्रैल, 2020 में
(-) 57.3 प्रतिशत रही।
- टीकाकरण अभियान और लम्बित सुधार उपायों को आगे बढ़ाने की
प्रतिबद्धता के साथ सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय बढ़ाने के साथ औद्योगिक
गतिविधियों में सुधार और मजबूती देखने को मिली।
- भारत के जीडीपी का 15 प्रतिशत प्रोत्साहन
पैकेज के साथ आत्मनिर्भर भारत अभियान घोषित किया गया।
- वर्ष 2019 के लिए ईज ऑफ डूइंग बिजनेस
(ईओडीबी) सूचकांक में भारत का रैंक ऊपर उठकर 2020 में 63वें स्थान पर आ गया, जो 2018 में डूइंग बिजनेस रिपोर्ट के अनुसार 77वें स्थान
पर था।
- भारत ने 10 संकेतकों में से 7
में अपनी स्थिति में सुधार किया।
- रिपोर्ट के अनुसार भारत को शीर्ष 10 सुधारकों में से एक के रूप में स्वीकृति मिली, 3 वर्षों में 67वें रैंक में सुधार के साथ ऐसा
तीसरी बार हुआ है।
- वर्ष 2011 के बाद किसी बड़े देश की यह
सबसे ऊंची छलांग है।
- वित्त वर्ष 20 में एफडीआई इक्विटी
अंतर्वाह 49.98 बिलियन अमरीकी डॉलर था, जो वित्त वर्ष 19 के दौरान 44.37 बिलियन अमरीकी डॉलर था :
- यह वित्त वर्ष 21 (सितंबर,
2020) तक 30 बिलियन अमरीकी डॉलर है।
- एफडीआई इक्विटी प्रवाह का अधिकांश हिस्सा गैर-विनिर्माण
क्षेत्र में है।
- विनिर्माण क्षेत्र के भीतर ऑटोमोबिल, दूरसंचार, धातु, गैर-परम्परागत
ऊर्जा, रसायन (उर्वरक के अलावा),
खाद्य प्रसंस्करण तथा पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस को अधिकांश
एफडीआई इक्विटी प्रवाह मिला।
- सरकार ने भारत की विनिर्माण क्षमताओं और निर्यात को
बढ़ाने के लिए आत्मनिर्भर भारत के अंतर्गत 10 प्रमुख
क्षेत्रों में उत्पादक से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई)
योजना की घोषणा की है।
- सम्बद्ध मंत्रालयों द्वारा कुल 1.46 लाख करोड़ रुपये के अनुमानित खर्च और क्षेत्र विशेष वित्तीय सीमाओं
के साथ इन्हें लागू किया जाएगा।
सेवा क्षेत्र
- भारत का सेवा क्षेत्र कोविड-19 महामारी के बाद लागू लॉकडाउन के दौरान एच1: वित्त
वर्ष 2020-21 के दौरान करीब 16
प्रतिशत रहा, ऐसा इसकी सघन संपर्क प्रकृति के कारण हुआ।
- प्रमुख संकेतकों जैसे सेवा खरीद प्रबंधक सूचकांक, रेल माल यातायात और बंदरगाह यातायात सभी में लॉकडाउन के दौरान भारी
गिरावट के बाद तेजी देखने को मिली।
- वैश्विक स्तर पर बाधाओं के बावजूद भारत के सेवा क्षेत्र
में एफडीआई अंतर्वाह 23.6 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंचने के लिए
अप्रैल-सितम्बर 2020 के दौरान वर्ष दर वर्ष तेजी से
बढ़कर 34 प्रतिशत हो गया।
- सेवा क्षेत्र भारत के जीवीए का 54 प्रतिशत से अधिक है और भारत में एफडीआई के कुल अंतर्वाह का
चार-पांचवां हिस्सा है।
- जीवीए में क्षेत्र की हिस्सेदारी 33 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में से 15 में
50 प्रतिशत से अधिक हो गई है और दिल्ली और चंडीगढ़ में
अधिक की भविष्यवाणी (85 प्रतिशत से अधिक) की गई है।
- सेवा क्षेत्र कुल निर्यात का 48 प्रतिशत है, हाल के वर्षों में वस्तुओं के
निर्यात से अधिक है।
- बंदरगाहों में जहाजों के आगमन और उनके रवाना होने का समय
2010-11
में 4.67 दिन था जो 2019-20 में घटकर 2.62 दिन हो गया।
- कोविड-19 महामारी के बीच भारतीय स्टार्ट
अप इकोसिस्टम अच्छी प्रगति कर रहा है, 38 स्टार्ट अप
के साथ पिछले वर्ष इस सूची में 12 स्टार्ट अप जुड़े
हैं।
- भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र पिछले छह दशकों में काफी तेजी
से आगे बढ़ा है :
- वर्ष 2019-20 में अंतरिक्ष कार्यक्रम पर
करीब 1.8 बिलियन अमरीकी डॉलर खर्च किए गए।
- निजी उद्यमियों को शामिल करने के लिए स्पेस इकोसिस्टम
अनेक नीतिगत सुधार कर रहा है और नवोन्मेष तथा निवेश को आकर्षित किया है।
सामाजिक बुनियादी ढांचा, रोजगार और मानव विकास
- जीडीपी के प्रतिशत के रूप में सामाजिक क्षेत्र का
मिला-जुला (केन्द्र और राज्यों) का खर्च पिछले वर्ष की तुलना में 2020-21 में बढ़ा। यह वृद्धि बजटीय व्यय के अनुपात के रूप में दिखाई देती
है।
- एचडीआई 2019 में कुल 189
देशों में से भारत का रेंक 131 दर्ज किया
गया।
- भारत का प्रति व्यक्ति जीएनआई (2017 पीपीपी डॉलर) 2018 के 6,427 अमरीकी डॉलर
के मुकाबले 2019 में बढ़कर 6,681 अमरीकी डॉलर
हो गया।
- जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 2018 के क्रमशः 69.4 से बढ़कर 2019 के 69.7 वर्ष हो गई।
- महामारी के दौरान ऑनलाइन अध्ययन और रिमोट वर्किंग के
कारण डेटा नेटवर्क, इलेक्ट्रॉनिक
उपकरणों जैसे कम्प्यूटर, लैपटॉप, स्मार्ट
फोन आदि तक पहुंच का महत्व बढ़ गया।
- जनवरी 2019- मार्च 2020 (पीएलएफएस के तिमाही सर्वेक्षण) की अवधि के दौरान शहरी क्षेत्र में नियमित
मजदूरी/वेतन के रूप में लगे कार्यबल का अधिकतर हिस्सा।
- आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना के जरिये रोजगार को
बढ़ावा देने का सरकार का प्रोत्साहन और वर्तमान श्रम कोडों को 4 कोडों में युक्तिसंगत और सरल बनाना।
- भारतीय महिलाओं में महिला एलएफपीआर का निम्न स्तर
- परिवार के सदस्यों को देखरेख सेवाएं देने वाली और
अवैतनिक घरेलू नौकरानियों का अपने पुरूष साथियों की तुलना में असमानुपातिक
तरीके से अधिक समय खर्च करना (टाइम यूज सर्वे, 2019)
- महिला कर्मचारियों के लिए कार्यस्थलों में
गैर-भेदभावपूर्ण कार्य प्रणाली को बढ़ावा देने की आवश्यकता जैसे चिकित्सा
और सामाजिक सुरक्षा लाभों सहित वेतन और करियर में प्रगति, कार्य प्रोत्साहन
में सुधार।
- राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) के तहत
वृद्धों, विधवाओं
और दिव्यांग लाभाथियों को मार्च 2020 में घोषित
पीएमजीकेपी के अंतर्गत 1000 रुपये तक का नकद हस्तांतरण
किया गया।
- प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत महिला लाभार्थियों के
बैंक खातों में तीन महीने तक 500 रुपये की राशि का
सीधे हस्तांतरण किया गया, जिसके लिए कुल 20.64 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च की गई।
- 3 महीने तक करीब 8 करोड़
परिवारों को मुफ्त गैस सिलेंडर वितरित किये गये।
- 63 लाख महिला स्व-सहायता समूहों के लिए कोलेटलर मुक्त
ऋण की सीमा 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दी गई, जिससे 6.85 करोड़ परिवारों को लाभ मिलेगा।
- महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत मजदूरी 20 रुपये बढ़ाकर 1 अप्रैल, 2020 से 182 रुपये से 202
रुपये कर दी गई।
देश की कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई :
- सामाजिक दूरी बनाकर रखने, यात्रा संबंधी
परामर्श जारी करने, हाथ धोने की आदत डालने, मास्क पहनने जैसे लॉकडाउन के आरंभिक उपायों के कारण बीमारी को फैलने
से रोका जा सका।
- देश ने आवश्यक दवाओं, हैंड सेनिटाइजर,
मास्क, पीपीई किट, वेंटिलेटरों, कोविड-19
जांच और इलाज सुविधाओं सहित रक्षात्मक उपकरणों में आत्मनिर्भरता हासिल की।
देश में निर्मित दो टीकों के जरिए 16 जनवरी,
2021 को दुनिया के सबसे बड़े कोविड-19 टीकाकरण
कार्यक्रम की शुरुआत की गई।