दुनिया का पहला म्यूजियम जहां पुरानी चीजें नहीं, बल्कि खुशियां मिलती हैं; 8 कमरों में खुशियों के इतिहास से लेकर भविष्य तक की बात - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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सोमवार, 7 सितंबर 2020

दुनिया का पहला म्यूजियम जहां पुरानी चीजें नहीं, बल्कि खुशियां मिलती हैं; 8 कमरों में खुशियों के इतिहास से लेकर भविष्य तक की बात

म्यूजियम! एक ऐसी जगह जहां इतिहास, संस्कृति, विज्ञान को सहेज कर रखा जाता है, लेकिन, आज एक बेहद खास म्यूजियम की बात। बात ‘दि हैप्पीनेस म्यूजियम’ की। एक ऐसा म्यूजियम जिसका उद्देश्य लोगों को खुश करना है। साथ ही यहां आने वाले दर्शकों को प्रेरित करते हुए कुछ नया बताना भी। ये म्यूजियम खुला है डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में। वो भी कोरोनाकाल के दौरान। आइए जानते हैं खुशियां देने वाले इस म्यूजियम को...

सबसे पहले बात इसे बनाने वालों की। कोपेनहेगन के हैप्पीनेस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने इसे बनाया है। जिन लोगों का आइडिया है उनमें माइक विकिंग शामिल हैं। माइक हैप्पीनेस रिसर्च इंस्टिट्यूट के सीईओ हैं। वो खुशी से जुड़ी तीन किताबें लिख चुके हैं। तीनों ही बेस्ट सेलर रहीं हैं। इनके नाम हैं दि लिटिल बुक ऑफ लेगे (लेगे यानी हैप्पीनेस), दि लिटिल बुक ऑफ ह्यूगे (ह्यूगे यानी फन) और दि आर्ट ऑफ मेकिंग मेमोरीस

दुनिया में अपनी तरह का पहला म्यूजियम
बात अगर इसके आकार-प्रकार की करें तो आठ कमरों का ये म्यूजियम 2,585 वर्ग फीट (यानी 240 वर्गमीटर) में फैला है। सीएनएन के मुताबिक, अपनी तरह का ये दुनिया का पहला म्यूजियम है। इसे 18वीं शताब्दी में बनी एक ऐतिहासिक इमारत के बेसमेंट में बनाया गया है।

मोनालिसा की मुस्कुराहट को अलग-अलग एंगल से देखने की सुविधा

आइये अब इस म्यूजियम के अंदर चलते हैं। म्यूजियम का हर कमरा बेहद खास है। हर कमरे में आप खुशी के अलग-अलग नजरियों से रूबरू होते हैं। साथ ही कुछ प्रयोगों से भी गुजरते हैं। जैसे- एक कमरे के बीच में पैसों से भरा एक पर्स रखा है। यहां आने वालों से हैप्पीनेस रिसर्च इंस्टिट्यूट के रिसर्चर रास्ते में पर्स खोने के बारे में बात करते हैं। और देखते हैं कितनी बार ये पर्स वापस मिलता है।

इसके एक सेक्शन में हैप्पीनेस के साइंस के बारे में बात की जाती है, तो एक में इसके 2000 साल के इतिहास के बारे में बताया जाता है। एक सेक्शन ऐसा है जहां हैप्पीनेस के फ्यूचर के बारे में बताया जाता है। यहां तक कि एक सेक्शन सिर्फ मुस्कुराहट के लिए बना है। इसमें मोनालिसा की मुस्कुराहट को आप अलग-अलग एंगल से देख सकते हैं। ये आपके चेहरे पर मुस्कान जरूर लाती है।

एक सेक्शन सिर्फ मुस्कुराहट के लिए बना है। इसमें मोनालिसा की मुस्कुराहट को आप अलग-अलग एंगल से देख सकते हैं।

एक कमरा ऐसा भी जहां लोगों की खुशियों के पल सहेज कर रखे गए हैं
म्यूजियम में एक कमरा ऐसा है जो दुनिया में खुशी के भूगोल को बताता है। इसमें 2020 की वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट को रखा गया है। फिनलैंड दुनिया का सबसे खुशहाल देश है। स्वीडन दूसरे नंबर पर है। भूटान दुनिया में इकलौता देश है, जो 1970 से जीडीपी से ऊपर जीएनएच यानी ग्रास नेशनल हैप्पीनेस को रैंक करता है। इन सभी बातों का यहां जिक्र है।

इसके साथ ही एक कमरा ऐसा भी है, जहां दुनियाभर के लोगों को खुशी देने वाले पलों को सहेजकर रखा गया है। ये पल लोगों ने खुद इस म्यूजियम से साझा किए हैं। एक सेक्शन में हैप्पीनेस लैब भी बनी है। जहां ये बताया जाता है कि हमारे दिमाग में अच्छी फीलिंग कैसे आती है। उम्र के साथ क्या इस फीलिंग में बदलाव होता?

चलते-चलते आपको थोड़ा म्यूजियम के इतिहास से भी रूबरू करता चलता हूं। ये म्यूजियम इस साल मई में खुलने वाला था। कोरोना के चलते ऐसा नहीं हो सका। माइक विकिंग और उनकी टीम के प्रयासों से इसे 14 जुलाई को लोगों के लिए पहली बार खोला गया। कोरोना को देखते हुए कड़े प्रोटोकॉल बनाए गए। एक बार में 50 से ज्यादा गेस्ट को अंदर जाने की अनुमति नहीं है। पहले महीने में ही 600 से ज्यादा लोग इस म्यूजियम में खुशी तलाशने पहुंचे।

दि हैप्पीनेस म्यूजियम जिन लोगों का आइडिया है उनमें माइक विकिंग शामिल हैं। माइक हैप्पीनेस रिसर्च इंस्टिट्यूट के सीईओ हैं। वो खुशी से जुड़ी तीन किताबें लिख चुके हैं।


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कोपेनहेगन के हैप्पीनेस रिसर्च इंस्टिट्यूट ने इस म्यूजियम को बनाया है। इसमें हैप्पीनेस के दो हजार साल के इतिहास के बारे में बताया गया है।


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