तारा पार्कर पोप. चीन में कोविड 19 मरीजों के डेटा को समझ रहे शोधकर्ताओं को एक अजीब चीज मिली। उन्होंने पाया कि ऐसे मरीज बहुत ही कम थे, जो नियमित चश्मा लगाते थे। वैज्ञानिक इस बात को लेकर हैरान हैं कि क्या चश्मा किसी व्यक्ति को संक्रमित होने से बचा सकता है। हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस रिसर्च से कोई भी निष्कर्ष निकालना बहुत जल्दी होगी।
चीन के अस्पताल में 47 दिनों के अंतराल में 276 मरीज भर्ती हुए, लेकिन इनमें से केवल 16 मरीज ऐसे थे, जिन्हें मायोपिया या दूर का देखने में परेशानी होती थी। आंखों की इन परेशानियों से जूझ रहा व्यक्ति दिन में 8 घंटे से ज्यादा चश्मा लगाता है। तुलना की जाए तो इस इलाके के 30% से ज्यादा समान उम्र के लोगों को दूरी का देखने में मुश्किल के कारण चश्मे की जरूरत थी। ऐसा पहले की रिसर्च से पता चला है।
चश्मा पहनने वालों को कोविड 19 का जोखिम कम हो सकता है
- स्टडी के लेखकों ने लिखा कि नजर का चश्मा पहनना हर उम्र के चीनी लोगों के बीच आम है। हालांकि, दिसंबर 2019 में वुहान में आए कोविड 19 संक्रमण से अब तक हमने पाया है कि चश्मा लगाने वाले कम लोग अस्पताल में भर्ती हुए हैं।
- स्टडी के लेखकों ने अनुमान लगाया कि यह प्राप्तियां इस बात का शुरुआती सबूत हो सकती हैं कि चश्मा लगाने वालों को कोविड 19 का जोखिम कम हो सकता है।
स्टडी से मिली जानकारियों के पीछे हो सकते हैं कई कारण
- हो सकता है कि चश्मा, खांसी या छींक से निकले ड्रॉपलेट्स के खिलाफ बैरियर का काम करते हैं। इसका एक और कारण यह भी हो सकता है कि चश्मा पहनने वाले लोग अपने गंदे हाथों से आंखों को कम छूते हैं।
- चेहरे को छूने को लेकर 2015 में आई एक रिपोर्ट बताती है कि लेक्चर ले रहे छात्र एक घंटे में करीब 10 बार अपनी आंख, नाक या मुंह को छूते हैं। हालांकि, शोधकर्ताओं ने इस बात को नहीं देखा कि चश्मा पहनने से कोई फर्क पड़ा था।
स्टडी को लेकर एक्सपर्ट्स ने चेताया
इन्फेक्शियस डिसीज स्पेशलिस्ट और जॉन्स हॉप्किन्स स्कूल ऑफ मेडिसिन में मेडिसिन की एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर लीसा मरगाकिस स्टडी के परिणामों पर चेतावनी देती हैं। यह स्टडी छोटी थी, जिसमें कोविड 19 के 300 से कम मामले शामिल थे। इसके अलावा चिंता की एक और बात यह है कि दूर की नजर के मरीजों का डेटा दशकों पुरानी स्टडी से लिया गया था।
डॉक्टर लीसा ने पाया कि कई फैक्टर्स डेटा को भ्रमित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए हो सकता है कि जो लोग चश्मा पहनते हैं, उनकी उम्र ज्यादा हो और वे घर से कम बाहर निकले हों। या शायद जो लोग चश्मा पहनने की हैसियत रखते हैं, उन्हें भीड़ जैसे किसी कारण से संक्रमित होने की संभावना कम हो।
डॉक्टर लीसा ने कहा "अभी यह जांच करना बाकी है कि आंखों सुरक्षा के लिए पहनी गई चीजें मास्क और फिजिकल डिस्टेंसिंग के ऊपर और ज्यादा सुरक्षा दे सकती हैं। मैं सोचती हूं कि यह अभी साफ नहीं है।" डॉक्टर ने पाया कि चश्मा पहनने से जोखिम बढ़ने की संभावना भी है। हो सकता है कि जब लोग चश्मा पहनेंगे तो चेहरा ज्यादा छुएंगे।
सभी को चश्मा पहनने की जरूरत नहीं है
अमेरिकन एकेडमी ऑफ ऑप्थेल्मोलॉजी के प्रवक्ता और क्लीवलैंड में मेट्रो हेल्थ मेडिकल सेंटर में ऑप्थेल्मोलॉजी के प्रोफेसर डॉक्टर थॉमस स्टेनमैन ने पाया कि इस स्टडी से उन लोगों को चिंतित नहीं होना चाहिए, जो चश्मा नहीं पहनते हैं। उन्होंने कहा "चश्मा पहनने से शायद किसी को परेशानी नहीं होती, लेकिन क्या यह सभी को करना चाहिए। शायद नहीं।"
स्टेनमैन ने कहा, "मुझे लगता है कि आपको आई प्रोटेक्शन या फेस शील्ड पहनने की व्यवहारिकता पर विचार करना चाहिए। कुछ खास काम करने वाले लोग, बीमारों की देखभाल करने वालों को खास ध्यान देना चाहिए।"
काफी कम है आंखों से जुड़े लक्षणों से जूझ रहे मरीजों की संख्या
यह काफी समय से पता है कि वायरस और दूसरे जर्म्स आंख, नाक और मुंह के फेशियल म्यूकस मेंब्रेन्स के जरिए शरीर तक पहुंच सकते हैं, लेकिन नाक कोरोनावायरस के प्रवेश का मुख्य रास्ता माना जा रहा है। डॉक्टर्स को भी कंजक्टिवाइटिस या गुलाबी आंखों जैसे लक्षण के कम ही मरीज नजर आए हैं। इससे पता चलता है कि हो सकता है वायरस आंखों के जरिए भी शरीर में घुस रहा हो। हालांकि, आंखों के लक्षण दूसरे लक्षणों, जैसे- बुखार, खांसी से अलग होते हैं। कई स्टडीज बताती हैं कि आंखों की परेशानी कोविड 19 संक्रमण की निशानी हो सकती है।
बीते महीने वुहान में शोधकर्ताओं ने कोविड 19 के 216 मरीज बच्चों की स्टडी की। इन मरीजों में 49 बच्चों को कंजक्टिवाइटल डिस्चार्ज, आंखों का रगड़ना और कंजक्टिवाइटल कंजेशन समेत कई आंखों से जुड़े लक्षण नजर आ रहे थे।
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