सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को शिक्षा और नौकरियों में मराठों को आरक्षण देने वाले 2018 के महाराष्ट्र कानून को लागू करने पर रोक लगा दी। जस्टिस एल एन राव की अध्यक्षता वाली तीन-जजों की बेंच ने यह मामला बड़ी संविधान पीठ को सौंप दिया। अब चीफ जस्टिस एसए बोबडे नई बेंच का गठन करेंगे।
शिक्षा और नौकरियों में मराठों को आरक्षण देने वाले कानून की वैधता को कई याचिकाओं में चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन्होंने 2018 के कानून का पहले लाभ लिया है, उन्हें परेशान नहीं किया जाएगा।
रोजगार में 12% और एडमिशन में 13% से ज्यादा कोटा नहीं होना चाहिए
महाराष्ट्र में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) अधिनियम, 2018 मराठा समुदाय के लोगों को नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण देने के लिए लागू किया गया था। बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले साल जून में कानून को बरकरार रखते हुए कहा था कि 16% आरक्षण उचित नहीं है। रोजगार में कोटा 12% और एडमिशन में 13% से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
27 जुलाई को महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिया था कि वह विभागों, जनस्वास्थ्य और मेडिकल शिक्षा और रिसर्च को छोड़कर 12% मराठा आरक्षण के आधार पर भर्ती प्रक्रिया 15 सितंबर तक आगे नहीं बढ़ाएगा। एक याचिकाकर्ता के वकील अमित आनंद तिवारी और विवेक सिंह ने पूर्व में सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि पीजी मेडिकल कोर्स में एडमिशन की अंतिम तिथि टाल दी जानी चाहिए।
आरक्षण 16% घटाकर 12-13% करना चाहिए: हाईकोर्ट
हाईकोर्ट ने पिछले साल 27 जून के अपने आदेश में कहा था कि इंदिरा साहनी फैसले के मुताबिक, विशेष परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए 50% की सीमा से ज्यादा आरक्षण दिया जा सकता है। साथ ही महाराष्ट्र सरकार के इस तर्क को भी स्वीकार कर लिया था कि मराठा समुदाय सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा है और उनके विकास के लिए यह कदम उठाना जरूरी है।
हाईकोर्ट ने कहा था कि मराठा कम्युनिटी को 16% आरक्षण वाजिब नहीं है और ये स्टेट बैकवार्ड कमीशन के मुताबिक रोजगार में 12% और शैक्षणिक संस्थानों में 13% से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
30 नवंबर 2018 को मराठाओं को 16% आरक्षण देने के लिए विधेयक पारित
संविधान के 102वें संशोधन के मुताबिक, राष्ट्रपति द्वारा तैयार की गई सूची में किसी विशेष समुदाय का नाम होने पर ही आरक्षण दिया जा सकता है। महाराष्ट्र की विधानसभा ने 30 नवंबर 2018 को मराठों को 16% आरक्षण देने के लिए एक विधेयक पारित किया था। इसमें उन्हें सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 16% आरक्षण देने की व्यवस्था की गई थी।
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