शिक्षक बंधुओ!
शिक्षक दिवस पर विशेष
देखिए
जो पीढ़ी तैयार हुई है-
क्या वह-
आपके सुनहरे सपनों की चैतन्य पीढ़ी ही है?
जागृत जीवन्त और बलिदानी पीढ़ी ही है?
यदि हां!
तो फिर जो भूखी है, नंगी है, अनुशासनहीन उच्छृंखल पीढ़ी है वह कहां से आई है?
तैयार पीढ़ी हिंसा को चुनकर, आपके उस स्वप्न को चूरा क्यों कर रही है जिसमें आपने उसके रोम रोम में विशाल शैल-खंडों को बांधकर अनाचार पर टूट पढ़ने के लिए पवन पुत्र बनाने का सपना संजोया था?
राष्ट्र-रथ के धंसे पहिए को निकालने में आपके युवा कर्ण आत्महत्या के पसीने से लथपथ क्यों हो रहे हैं?
आप इसे तो जानते ही हैं
जब भी किसी राष्ट्र पर कोई संकट आया है तो उसे उबारने में कोई युवक ही आगे आया है।
लेकिन जिस देश में मूढ़ताएं चल रही हो, भ्रष्टाचार चल रहे हों, अनाचार और व्यभिचार चल रहे हों, आतंक और हत्या से धरती लाल होती जा रही हो, फिर भी प्रतिकार को कोई आवाज न उठे!
तो फिर कैसे माना जा सकता है कि वहां युवा पीढ़ी मौजूद है।
वह युवा पीढ़ी कैसी कि सामने गलत सलत होता रहे और वह झुकी झुकी सब कुछ स्वीकार करती चली जाए। जिस पीढ़ी पर आप गर्व करते हैं कैसी हैं वह? जिसमें अपने अधिकार के लिए किंचित भी विद्रोह नहीं है।
आप जिसे जीना सिखा रहे हैं वे जिएं, इसके पहले ही जीवन से उदास हो जाते हैं, यदि युवा पीढ़ी गढ़ी गई होती तो देश में इतनी गंदगी, इतनी सड़ांद जीवित रह पाती।
साथियो!
निराश मत होना अभी कुछ बिगड़ा नहीं है वह जगह तो आपके पास ही है जहां पूरा का पूरा हिंदुस्तान रोज रोज इकट्ठा होता है। उसे संभालना वह जगह आपकी गोद में है, विद्या मंदिरों में है जहां से राष्ट्र विकट की जड़ें रस ग्रहण करती हैं। जहां आप बाल प्रभुओं के लिए नित नई आराधना में जुटे हैं सो जुटे रहना।
कितने ही विवाद आएं, आलोचनाओं के भी कितने ही ज्वार आएं, अपने स्वरूप से विचलित नहीं होना। स्वयं को शुरुचि संपन्न बनाए रखना।
शिक्षा के नाम पर जड़ हुई किसी भी धारणा पर आंख बंद करके मत चलना। पुनर्व्याख्या और पुनर्मूल्यांकन करने से कभी मत हिचकिचाना। तथ्य सामने आएंगे जो सहायक बनेंगे। यदि परिस्थितियों संदर्भों और कार्यों पर निष्पक्ष दृष्टि जमा कर चले तो यही आपको व्यापकता प्रदान करने में अधिक संगत सिद्ध होंगे
तुमने भी बीते समय में बहुत कुछ खोया है जो इतिहास में दर्ज है। विदेशी सत्ता ने आधिकारिक रूप से प्रत्यक्ष और परोक्ष अपनी नीतियों द्वारा हमारे सामाजिक और शैक्षणिक संस्थानों को, हमारी मौलिक व पारमार्थिक धारणाओं को मीठा जहर देकर जहरीला बना दिया था।
यदि पतन शील पूर्वाग्रहों से प्रेरित क्रियाकलाप शोषित दलित और अपमानित वातावरण पैदा करें तो इन्हें वांछनीय कतई मत मानना। अपनी कला और व्यक्तित्व में ऐसा कुछ मत जोड़ना जो आरोप को गुंजाइश देने वाला सिद्ध हो
युग जीवन को नई दृष्टि देना। इसके लिए खुद को परिमार्जित संस्कारों और अनुभव की पूर्णता के साथ प्रस्तुत करना। मौलिक अलंकरण विधानों का सृजन, परंपराओं का परिशोधन और प्रगति के नए अर्थों की स्थापना में जुटे रहना। वास्तविकता को तटस्थ दृष्टि से प्रस्तुत करना। परिवेश को युगबोध से जोड़ने में सक्रिय रहना।
युग चेतना की श्रंखला में प्रबुद्ध कड़ी बनकर जुड़ना। अभिव्यक्ति के जितने भी कोंण हो सकते हैं हर कोण से व्यक्त होना।
मस्तिष्क को हृदय से दूर नहीं होने देना अन्यथा बच्चों और आपके बीच आलंबन के रिश्ते टूट जाएंगे।
अंत:स्पर्श बिखर जाएगा। जीवन की ललक एवं संवेदना की ऑकुलता को बच्चे के प्रति किए जाने वाले अर्पण में बचा कर रखने का लालच मत करना।
ध्यान रखना सृजन शताब्दियों में पनपता है-
इस दिशा में सतर्क और चैतन्य बने रहना।
इतिहास बताता आया है कि सच्चे मन से किए गए प्रयास निष्फल नहीं जाते। भोर का सुहाना सपना संजोए अपने नन्हें दिए को बुझने मत देना।
कभी तो आएगा उसका पिता सूरज जिसे अंधेरों को लील जाने में क्षण भर भी नहीं लगेगा।
शिक्षक दिवस। धन्यवाद।