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शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

2020 और भारत में शिक्षा

 

2020 और भारत में शिक्षा 



शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (Annual Status of Education Report- ASER) सर्वेक्षण के अनुसार, देश भर में COVID-19 के मद्देनज़र स्कूल बंद होने के कारण लगभग 20% ग्रामीण बच्चों को कोई पाठ्य-पुस्तक प्राप्त नहीं हुई।   

प्रमुख बिंदु:

§  पाठ्य-पुस्तकों तक पहुँच: आंध्र प्रदेश में 35% से कम बच्चों के पास पाठ्य-पुस्तकें थीं, जबकि राजस्थान में केवल 60% बच्चों के पास पाठ्य पुस्तकें थीं। पश्चिम बंगाल, नगालैंड और असम में 98% से अधिक बच्चों के पास पाठ्य पुस्तकें थीं।

§  लर्निंग सामग्री तक पहुँच: सर्वेक्षण सप्ताह के अनुसार, लगभग तीन ग्रामीण बच्चों में से एक ने किसी भी प्रकार की सीखने की गतिविधि में भाग नहीं लिया।

o    उनके स्कूल द्वारा प्रदान की गई किसी भी प्रकार की लर्निंग सामग्री या गतिविधि तीन में से दो बच्चों के पास उपलब्ध नहीं थी और दस में से केवल एक बच्चे की पहुँच ऑनलाइन कक्षाओं तक थी।

o    वर्ष 2018 के ASER सर्वेक्षण की तुलना में स्मार्टफोन उपयोग करने वालों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है  किंतु स्मार्टफोन तक पहुँच वाले एक-तिहाई बच्चों को अभी भी कोई सीखने की सामग्री नहीं प्राप्त हुई।

§  हालाँकि देश भर में दो-तिहाई ग्रामीण बच्चों ने बताया कि उन्हें कोई भी शिक्षण सामग्री नहीं मिली। 

o    बिहार में 8% से कम बच्चों को जबकि पश्चिम बंगाल, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में 20% बच्चों को उनके स्कूलों से लर्निंग सामग्री प्राप्त हुई।

o    वहीँ दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश, पंजाब, केरल और गुजरात में 80% से अधिक ग्रामीण बच्चों को इस तरह का इनपुट प्राप्त हुआ है।

§  वर्ष 2018 में ASER के सर्वेक्षणकर्त्ताओं ने पाया कि लगभग 36% ग्रामीण परिवार जिनके बच्चे स्कूल जा रहे थे, के पास स्मार्टफोन था। वर्ष 2020 तक यह आँकड़ा बढ़कर 62% हो गया था। लगभग 11% परिवारों ने लॉकडाउन के बाद एक नया स्मार्टफोन खरीदा।

§  75% छात्र जिन्हें मैसेजिंग एप के माध्यम से कुछ लर्निंग इनपुट मिले हैं, से यह संकेत मिल सकता है कि क्यों WhatsApp छात्रों के लिये लर्निंग सामग्री संचरणका अब तक का सबसे लोकप्रिय साधन हो सकता है। 

o    इनपुट प्राप्त करने वालों में से लगभग एक-चौथाई बच्चों का शिक्षक के साथ व्यक्तिगत संपर्क था।

§  स्कूलों में नए सिरे से नामांकन प्रक्रिया: सर्वेक्षण में यह देखा गया है कि वर्ष 2018 में 6-10 वर्ष की आयु के सिर्फ 1.8% ग्रामीण बच्चों की तुलना में 5.3% ग्रामीण बच्चों ने इस वर्ष (2020) अभी भी स्कूल में दाखिला नहीं लिया है।

o    यह इंगित करता है कि COVID-19 महामारी के मद्देनज़र व्यवधानों के कारण ग्रामीण परिवार बच्चों को दाखिला कराने के लिये पहले की तरह स्कूलों के खुलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। परिणामतः 6 वर्ष तक के लगभग 10% बच्चे अभी भी स्कूल में दाखिला नहीं ले पाए हैं।

o    हालाँकि 15-16 वर्ष के बच्चों का नामांकन स्तर वर्ष 2018 की तुलना में थोड़ा अधिक है। 

o    नामांकन पैटर्न में भी बदलाव देखा गया है। सरकारी स्कूलों में नामांकन स्तर बढ़ा है।

COVID-19 के दौरान बच्चों की शिक्षा को लेकर माता-पिता की भूमिका:

§  COVID-19 महामारी के दौरान बच्चों की शिक्षा एवं संसाधनों को लेकर माता-पिता ने मुख्य भूमिका निभाई है।

§  छोटी कक्षाओं के बच्चे बड़ी कक्षाओं के बच्चों की तुलना में अधिक मदद पा रहे हैं। इसी तरह अधिक पढ़े-लिखे माता-पिता के बच्चों को कम पढ़े-लिखे माता-पिता के मुकाबले अधिक मदद मिल रही है। उदाहरण के लिये 89.4% बच्चे जिनके माता-पिता कक्षा 9 या इससे अधिक शिक्षित थे, की तुलना में 54.8% बच्चे जिनके माता-पिता कक्षा 5 या उससे कम शिक्षित थे, की तरफ से लर्निंग सामग्री से संबंधित अधिक पारिवारिक समर्थन प्राप्त हुआ है।  

§  सर्वेक्षण में यह देखा गया है कि जैसे-जैसे बच्चे बड़ी कक्षाओं में पहुँच रहे हैं माता-पिता से मिलने वाली मदद घट रही है। उदाहरण के लिये कक्षा 1-2  के बच्चों की माताएँ उनकी मदद कर पा रही हैं, जबकि कक्षा 9 और ऊपर के 15% बच्चों को ही अपनी माताओं से मदद मिल पा रही है।         

लॉकडाउन खुलने के बाद की स्थिति:  

§  यद्यपि केंद्र सरकार ने COVID-19 सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करते हुए राज्यों को स्कूलों को फिर से खोलने की अनुमति दी है, इसके बावजूद देश के 25 करोड़ छात्रों में से अधिकांश छात्र 7 महीनों के बाद भी घर पर हैं।

शिक्षा में डिजिटल विभाजन:

§  ASER सर्वेक्षण में सीखने में नुकसानकी भी एक झलक मिलती है जिससे सबसे अधिक प्रभावित ग्रामीण भारत के छात्र हैं। 

o    सर्वेक्षण में बताया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न स्तरों पर स्कूल एवं परिवारों की संसाधनों (जैसे- प्रौद्योगिकी) तक सीमित पहुँच के कारण शिक्षा क्षेत्र में डिजिटल विभाजन बढ़ा है।

डिजिटल विभाजन: 

§  सरलतम रूप में डिजिटल विभाजनका अर्थ समाज में सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (ICT) के उपयोग तथा प्रभाव के संबंध में एक आर्थिक और सामाजिक असमानता से है।

§  डिजिटल विभाजन की परिभाषा में प्रायः सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (ICT) तक आसान पहुँच के साथ-साथ उस प्रौद्योगिकी के उपयोग हेतु आवश्यक कौशल को भी शामिल किया जाता है।

§  इसके तहत मुख्यतः इंटरनेट और अन्य प्रौद्योगिकियों के उपयोग को लेकर विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्तरों या अन्य जनसांख्यिकीय श्रेणियों में व्यक्तियों, घरों, व्यवसायों या भौगोलिक क्षेत्रों के बीच असमानता का उल्लेख किया जाता है।

डिजिटल विभाजन का शिक्षा पर प्रभाव:

§  इंटरनेट ज्ञान और सूचना का एक समृद्ध भंडार उपलब्ध कराता है, कई विशेषज्ञ मानते हैं कि सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (ICT) की पहुँच और उपलब्धता अकादमिक सफलता तथा मज़बूत अनुसंधान गतिविधियों से जुड़ी हुई है, क्योंकि इंटरनेट के माध्यम से किसी भी सूचना तक काफी जल्दी पहुँचा जा सकता है।

§  शिक्षा एक बहुत ही गतिशील क्षेत्र है और नवीनतम सूचना एवं ज्ञान प्राप्त करना इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।

§  सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) उपकरणों की अपर्याप्तता ने विकासशील देशों में पहले से ही कमज़ोर शिक्षा प्रणाली को और अधिक अप्रभावी बना दिया है। इस प्रकार देश के विद्यालयों के शिक्षा मानकों में सुधार करने के लिये आवश्यक है कि वहाँ कंप्यूटर और इंटरनेट जैसी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ। 

शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट सर्वेक्षण:

(Annual Status of Education Report- ASER) 

§  शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (Annual Status of Education Report-ASER) एक वार्षिक सर्वेक्षण है जिसका उद्देश्य भारत में प्रत्येक राज्य और ग्रामीण ज़िले के बच्चों की स्कूली शिक्षा की स्थिति और बुनियादी शिक्षा के स्तर का विश्वसनीय वार्षिक अनुमान प्रदान करना है।

§  ASER सर्वेक्षण ग्रामीण शिक्षा एवं सीखने के परिणामों पर आधारित एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण है जिसमें पढ़ने एवं अंकगणितीय कौशल को शामिल किया गया है। 

§  इसे पिछले 15 वर्षों से एनजीओ प्रथम’ (NGO Pratham) द्वारा आयोजित किया जा रहा है।

§  इस वर्ष ASER सर्वेक्षण को फोन कॉल के माध्यम से आयोजित किया गया है जिसमें 30 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के 5-16 आयु वर्ग के 59,251 स्कूली बच्चों के साथ 52,227 परिवारों को शामिल किया गया।

§  यह आम लोगों द्वारा किया जाने वाला देश का सबसे बड़ा सर्वेक्षण है, साथ ही यह देश में बच्चों की शिक्षा संबंधी परिणामों के बारे में जानकारी का एकमात्र उपलब्ध वार्षिक स्रोत भी है।