मंगलवार को तनिष्क की तरफ से जारी एक वक्तव्य में कहा गया कि 'एकत्वम' कैंपेन के पीछे विचार इस चुनौतीपूर्ण समय में विभिन्न क्षेत्र के लोगों, स्थानीय समुदाय और परिवारों को एक साथ लाकर जश्न मनाने के लिए प्रेरित करना था लेकिन इस फ़िल्म का जो मक़सद था उसके विपरीत, अलग और गंभीर प्रतिक्रियाएं आईं. हम जनता की भावनाओं के आहत होने से दुखी हैं और उनकी भावनाओं का आदर करते हुए और अपने कर्मचारी और भागीदारों की भलाई को ध्यान में रखते हुए इस विज्ञापन को वापस ले रहे हैं.
ये विज्ञापन अलग-अलग समुदाय के शादीशुदा जोड़े से जुड़ा था और इसमें एक मुस्लिम परिवार में हिंदू बहू की गोद भराई की रस्म को दिखाया गया था.
हालांकि 'सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज़ की महानिदेशक' और 'द एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड कॉउंसिल ऑफ़ इंडिया' (एएससीआई) की कन्ज़्यूमर कंपलेंट कॉउंसिल (सीसीसी) की सदस्य पीएन वसंती इसे बेहद ख़ूबसूरत विज्ञापन बताती हैं और कहती हैं कि इसमें कुछ भी ग़लत नहीं दिखाया गया.
उनके अनुसार ये 'मॉब बिहेवियर' यानी भीड़ वाली मानसिकता हैं. वे कहती हैं कि वास्तविक जिंदगी में और सोशल मीडिया में मॉब जैसा वातावरण बनाया जाता है जो काफ़ी डरावना और चिंतनीय है.
पीएन वसंती कहती हैं, "आजकल ये देखा जा रहा है कि सोशल मीडिया पर कोई सोच समझ कर नहीं बोलता है. धैर्य या सहिष्णुता की कमी दिखाई देती है. एक बार किसी ने कह दिया तो तुरंत एक मॉब जैसा व्यवहार होना शुरू हो जाता है. इसके पीछे मानसिकता ये होती है कि अगर वो व्यक्ति बोल सकता है तो मैं भी कुछ भी बोल सकता हूं. मैं इसकी तुलना सामाजिक मनोविज्ञान में इस्तेमाल होने वाले शब्द मॉब बिहेवियर से करना चाहूंगी जहां एक व्यक्ति का डर निकल जाता है. जो वो आमतौर पर खुलकर नहीं कह पाता, भीड़ में खुल के बोल देता है. तो ट्विटर एक तरह की आज़ादी देता है जो आप एक मॉब के तौर पर कर सकते हैं वो शायद आप अपने ड्रॉइंगरूम में न करते हों."