कैप्टन लक्ष्मी सहगल | Captain Laxmi Sehgal - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

कैप्टन लक्ष्मी सहगल | Captain Laxmi Sehgal

 

कैप्टन लक्ष्मी सहगल  Captain Laxmi Sehgal

कैप्टन लक्ष्मी सहगल |


कैप्टन लक्ष्मी सहगल - एशिया की पहली महिला कर्नल (Captain Laxmi Sehgal - First Woman Colonel of Asia)

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं में भी कंधे से कंधा मिलाकर अपना योगदान दिया। इनमें से कुछ महिलाओं ने जहां गांधी जी द्वारा प्रतिपादित अहिंसा का मार्ग अपनाया वही कुछ महिलाओं ने चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारियों के हिंसक मार्ग को अपनाया। इन क्रांतिकारियों में से एक कैप्टन लक्ष्मी सहगल थी जिन्होंने ना केवल स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया बल्कि स्वतंत्रता उपरांत भी कई सामाजिक मुद्दों पर उन्होंने प्रखर रूप से अपनी सहभागिता निभाई।

लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्टूबर 1914 को मद्रास के प्रांत में हुआ था। लक्ष्मी सहगल के पिता का नाम एस. स्वामीनाथन और माता का नाम एवी अमुक्कुट्टी (अम्मू) स्वामीनाथन था। इनकी माता जी एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी थी। लक्ष्मी सहगल ने मद्रास मेडिकल कॉलेज से मेडिकल में डिग्री एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त करने के बाद गायनॉकॉलजी (महिला रोग विशेषज्ञ) में विशेषज्ञता हासिल करने के साथ उन्होंने चेन्नई के एक अस्पताल में अपनी सेवाएं देना शुरू कर दी।

लक्ष्मी सहगल को 1940 में सिंगापुर जाने का अवसर प्राप्त हुआ। यहां पर उन्होंने प्रवासी भारतीयों के लिए एक चिकित्सा शिविर लगाया और वहां के गरीब भारतीय लोगों का इलाज करने लगी। उस समय तात्कालिक सिंगापुर में बहुत सारे क्रांतिकारी सक्रिय थे जिनमें प्रमुख थे- के.पी. केशव मेनन, एस.सी. गुहा और एन. राघवन इत्यादि। सिंगापुर रहते हुए उन्होंने घायल युद्ध बंदियों की काफी सेवा की जब ब्रिटेन ने सिंगापुर को जापान के हवाले कर दिया।

इसी बीच 1943 में सिंगापुर में सुभाष चंद्र बोस का आगमन हुआ। सुभाष चंद्र बोस से मुलाकात करके बाद लक्ष्मी सहगल ने आजादी की लड़ाई में उतरने की अपनी दृढ़ इच्छा जाहिर की जिसके उपरांत सुभाष चंद्र बोस ने लक्ष्मी सहगल के नेतृत्व में रानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंटकी घोषणा कर दी। रानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंट में उन्होंने अपने अथक प्रयासों से 500 से ज्यादा महिलाओं को जोड़ लिया एवं इस रेजिमेंट की प्रमुख होने के कारण वह कैप्टननाम से जानी जाती थी। अपनी दृढ़ इच्छा एवं साहस के कारण उन्हें कर्नलका पद दिया गया जो कि संभवत एशिया में किसी महिला को पहली बार यह पद प्रदान किया गया था। हालांकि वह कैप्टन लक्ष्मीके नाम से लोकप्रिय रही।

लक्ष्मी सहगल सिंगापुर में गठित हुई अस्थाई आजाद हिंद सरकार की कैबिनेट में वह प्रथम महिला के रूप में शामिल हुई। बर्मा को आजाद कराने के क्रम में जापानी सेना के साथ कार्य करते हुए ब्रिटिश सेना ने कैप्टन लक्ष्मी सहगल को गिरफ्तार कर लिया एवं 1946 तक वह वर्मा की जेल में रही। अंततोगत्वा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के बढ़ रहे दबाव के फलस्वरुप उन्हें रिहा कर दिया गया। 1947 में उन्होंने लाहौर में प्रेम कुमार सहगल से शादी कर ली एवं यहाँ से उनके नाम के साथ सहगलजुड़ गया।

भारत की आजादी के बाद भी कैप्टन लक्ष्मी सहगल का सफर थमा नहीं एवं वह कानपूर में बस कर मेडिकल प्रैक्टिस करने के साथ विभाजन उपरांत भारत में आने वाले शरणार्थियों की सहायता करने लगी। उन्होंने 1971 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण करते हुए राज्यसभा में अपनी पार्टी का प्रतिनिधित्व किया। लक्ष्मी सहगल पूर्वी ने पाकिस्तान (बांग्लादेश) में अस्थिरता के कारण वहां से आने वाले शरणार्थियों के लिए कोलकाता में बचाव कैंप और मेडिकल कैंप का ही संचालन किया।

कैप्टन लक्ष्मी सहगल 1981 में गठित ऑल इण्डिया डेमोक्रेटिक्स वोमेन्स एसोसिएशनकी संस्थापक सदस्य थी। 1984 के भोपाल गैस त्रासदी में जहां उन्होंने राहत कार्यों में बचत भूमिका निभाई वहीं 1984 में सिख दंगों के समय कानपुर में शांति स्थापित करने में भी सक्रिय रही। स्वतंत्रता आंदोलन एवं स्वतंत्र उपरांत उनके महत्त्वपूर्ण योगदान और संघर्ष को देखते हुए उन्हें 1998 में तात्कालिक भारत के राष्ट्रपति के.आर.नारायणन द्वारा पद्म विभूषण सम्मान से नवाज़ा गया था। 2002 में राष्ट्रपति के चुनाव में एपीजे अब्दुल कलाम के खिलाफ कैप्टन लक्ष्मी सहगल को चार दलों (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया, दी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया-मार्क्सवादी, क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक) राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया हालांकि उनकी जीत नहीं हुई।

कैप्टन लक्ष्मी के समर्पण का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 92 साल की उम्र में में भी वह कानपुर के अस्पताल में मरीजो का इलाज कर रही थी। आखिरकार वर्ष में 2012 में कार्डिक अटैक के कारण इस महान वीरांगना ने अपनी अंतिम साँसें लेते हुए इस दुनिया को अलविदा कह दिया।