राग "बसंत मुखारी" में अभय रूस्तम ने बाँधा समां - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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रविवार, 27 दिसंबर 2020

राग "बसंत मुखारी" में अभय रूस्तम ने बाँधा समां


तनासेन समारोह के दूसरे दिन की प्रात:कालीन सभा में भारतीय शास्त्रीय संगीत की अदभुत छटा बिखरी


मप्र शासन के प्रतिष्ठापूर्ण आयोजन तानसेन समारोह के दूसरे दिन की प्रात:कालीन सभा में शास्त्रीय संगीत के मुख्तलिफ रंग देखने को मिले। इस सभा में अभय रुस्तम सोपोरी और मोहम्मद अमान से लेकर अन्य कलाकारों ने एक से बढ़कर एक बेहतरीन प्रस्तुतियां दी।


सभा का शुभारंभ स्थानीय शंकर गंधर्व संगीत महाविद्यालय के विद्यार्थियों के ध्रुपद गायन से हुआ। राग भैरव के सुरों में पगी बंदिश के बोल थे - ‘‘गणपति गणनायक।’’ चौताल में निबद्ध इस बंदिश को विद्यार्थियों ने उत्साह से पेश किया। प्रस्तुति में पखावज पर मुन्नालाल भट्ट ने संगत की।

राग "बसंत मुखारी" में अभय रूस्तम ने बाँधा समां


सभा के पहले कलाकार थे युवा संतूर वादक अभय रुस्तम सोपोरी। पं. भजन सोपोरी के सुपुत्र अभय ने बहुत कम समय में देश के कलाकारों के बीच जगह बनाई है। उन्होंने राग ‘बसंत मुखारी’ में अपना वादन पेश किया। आलाप जोड़ से राग का स्वरुप खड़ा करते हुए उन्होंने 11 मात्रा की ताल में बिलंवित गत पेश की। उन्होंने बड़ी ही सहजता के साथ राग की बढ़त कर विविध लयकारियों का बखूबी प्रदर्शन किया। इसके बाद तीन ताल में निबद्ध बंदिश - ‘उठत जिया हूक, सुनत कोयल कूक’ को गाते हुए वादन किया। तबले के साथ लडंत का भी बखूबी प्रदर्शन उन्होंने किया। उन्होंने अंत में तीन ताल में दु्रत गत बजाकर वादन का समापन किया। लयकारी व गमकदार तानों के साथ गायकी व तंगकारी अंग का संतुलन आपके वादन की विशेषता रही। उनके साथ तबले पर उस्ताद अकरम खाँ, घटम् पर वरुण राजशेखर व पखावज पर अंकित पारिख ने बेजोड़ संगत का प्रदर्शन किया।

सभा के दूसरे कलाकार थे जयपुर के जवां साल मोहम्मद अमान खां। जीटीवी सारेगामा फेम मोहम्मद अमान नई पीढ़ी के संभावनाशील गायक हैं। रेडियो व दूरदर्शन के ‘ए’ ग्रेड कलाकार मो. अमान की गायकी अलग ही तरह की है। जो यूथ को काफी लुभाती है। उन्होंने मियां की तोड़ी से गायन की शुरुआत की। एक ताल में विलंवित बंदिश के बोल थे- ‘‘सगुन विचारो बमना’’ जबकि तीन ताल में द्रुत बंदिश के बोल थे - ‘‘अब मोरी नैया पार करो।’’ उन्होंने अति द्रुत तीन ताल में भी एक बंदिश ‘‘अब तो नजर करिये’’ । पेश की और द्रुत एक ताल में तराना भी पेश किया। गायन का समापन उन्होंने बड़े गुलाम अली खां की प्रसिद्ध ठुमरी ‘‘याद पिया की आए’’ से किया। उनके साथ तबले पर मुजफ्फर रहमान एवं हारमोनियम पर जमीर हुसैन खां ने बेहतरीन संगत की।

हमीद-मजीद खाँ भ्राताद्वय की सारंगी पर जुगलबंदी


सभा में अगली प्रस्तुति सारंगी पर जुगलबंदी की थी। ग्वालियर के सुपरिचित सारंगी वादक अब्दुल मजीद खान एवं अब्दुल हमीद खां ने ये जुगलबंदी पेश की। दोनों भाई हैं। उन्होंने राग शुद्ध सारंग में अपना वादन पेश किया। एक ताल में गायकी अंग से विलंबित बंदिश बजाते हुए उन्होंने अपने कौशल का बखूबी परिचय दिया। द्रुत गत तीन ताल में निबद्ध थी। वादन का समापन उन्होंने ठुमरी याद पिया की आए बजाकर किया। उनके साथ तबले पर हनीफ खां एवं शाहरुख खां ने संगत की।

सभा का समापन मुंबई के देवानंद यादव के ध्रुपद गायन से हुआ। उन्होंने अपने गायन के लिए राग मधुवंती का चयन किया। विलंबित, मध्य,और द्रुत लय की आलापचारी में उन्होंने मींड और गमक का बखूबी इस्तेमाल किया। इसके बाद तीव्रा ताल में निबद्ध बंदिश पेश की जिसके बोल थे- जगवंदन गौरी नंदन। उनके साथ गायन में उनके पुत्र ने भी साथ दिया। पखावज पर संजय पंत आगले ने मीठी संगत का प्रदर्शन किया।