अश्वगंधा क्या होती है सामान्य जानकारी
दरअसल
अश्वगंधा एक जड़ी-बूटी है। अश्वगंधा का प्रयोग कई रोगों में किया जाता है। क्या
आप जानते हैं कि मोटापा घटाने, बल
और वीर्य विकार को ठीक करने के लिए अश्वगंधा का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा
अश्वगंधा के फायदे और भी हैं। अश्वगंधा के अनगिनत फायदों के अलावा अत्यधिक मात्रा
में सेवन करने से अश्वगंधा के नुकसान से सेहत के लिए असुविधा उत्पन्न हो सकता है।
अश्वगंधा के कुछ खास औषधीय गुणों के कारण यह
बहुत तेजी से प्रचलित हुआ है। आइए आपको बताते हैं आप अश्वगंधा का प्रयोग किन-किन
बीमारियों में और कैसे कर सकते हैं
अश्वगंधा की पहचान
अलग-अलग देशों में अश्वगंधा कई प्रकार की होती है, लेकिन असली अश्वगंधा की पहचान करने के लिए इसके पौधों को मसलने पर घोड़े के पेशाब जैसी गंध आती है। अश्वगंधा की ताजी जड़ में यह गंध अधिक तेज होती है। वन में पाए जाने वाले पौधों की तुलना में खेती के माध्यम से उगाए जाने वाले अश्वगंधा की गुणवत्ता अच्छी होती है। तेल निकालने के लिए वनों में पाया जाने वाला अश्वगंधा का पौधा ही अच्छा माना जाता है।
अश्वगंधा के प्रकार
इसके दो
प्रकार हैं-
इसकी झाड़ी छोटी होने से यह छोटी असगंध कहलाती
है, लेकिन इसकी जड़ बड़ी होती है। राजस्थान
के नागौर में यह बहुत अधिक पाई जाती है और वहां के जलवायु के प्रभाव से यह विशेष
प्रभावशाली होती है। इसीलिए इसको नागौरी असगंध भी कहते हैं।
बड़ी या देशी असगंध (अश्वगंधा)
इसकी झाड़ी बड़ी होती है, लेकिन जड़ें छोटी और पतली होती हैं। यह
बाग-बगीचों, खेतों और पहाड़ी स्थानों में सामान्य
रूप में पाई जाती है। असगंध में कब्ज गुणों की प्रधानता होने से और उसकी गंध कुछ
घोड़े के पेशाब जैसी होने से संस्कृत में इसकी बाजी या घोड़े से संबंधित नाम रखे
गए हैं।
अश्वगंधा की प्रजातियां
अश्वगंधा की दो प्रजातियां मिलती
हैंः-
अश्वगंधा आम बोलचाल भाषा में
अश्वगंधा को लोग आम बोलचाल में असगंध के तौर
पर जानते हैं, लेकिन देश-विदेश में इसको कई नाम से
जाना जाता है। अश्वगंधा का का वानस्पतिक नाम (Botanical name) Withania somnifera (L.) Dunal (विथेनिआ सॉम्नीफेरा) Syn-Physalis somnifera Linn. है और इसके अन्य नाम ये हैंः-
हिन्दी में – असगन्ध, अश्वगन्धा, पुनीर, नागोरी असगन्ध
अँग्रेजी में - (विंटर
चेरी), पॉयजनस गूज्बेर्री (Poisonous gooseberry)
संस्कृत में - – वराहकर्णी, वरदा, बलदा, कुष्ठगन्धिनी, अश्वगंधा
अश्वगंधा खाने के फायदे क्या हैं
आयुर्वेद में अश्वगंधा का इस्तेमाल अश्वगंधा
के पत्ते, अश्वगंधा चूर्ण (Ashwagandha Powder) के रुप में किया जाता है। अश्वगंधा के फायदे जितने अनगिनत हैं उतने ही अश्वगंधा के
नुकसान भी है क्योंकि चिकित्सक के बिना सलाह के सेवन करने से शारीरिक अवस्था खराब
हो सकती है। कई रोगों में आश्चर्यजनक रूप से लाभकारी अश्वगंधा का औषधीय इस्तेमाल
करना चाहिए, चलिये इसके बारे में विस्तार से जानते
हैं-
सफेद बाल की समस्या में अश्वगंधा के फायदे
2-4 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण (Ashgandha Churn benefits) का सेवन करें। अश्वगंधा के फायदे के वजह से समय से पहले बालों के सफेद
होने की समस्या ठीक होती है।
आंखों की ज्योति बढ़ाए अश्वगंधा
2 ग्राम अश्वगंधा, 2 ग्राम आंवला (धात्री फल) और 1 ग्राम मुलेठी को आपस में मिलाकर, पीसकर अश्वगंधा चूर्ण कर लें। एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण को सबह और शाम पानी के साथ सेवन करने से आंखों की रौशनी बढ़ती है।
गले के रोग (गलगंड) में अश्वगंधा के पत्ते के फायदे
अश्वगंधा के फायदे के कारण और औषधीय गुणों के
वजह से अश्वगंधा गले के रोग में लाभकारी सिद्ध होता है।
टीबी रोग में अश्वगंधा चूर्ण के उपयोग
अश्वगंधा चूर्ण की 2 ग्राम मात्रा को असगंधा
के ही 20 मिलीग्राम काढ़े के साथ सेवन करें। इससे टीबी में लाभ होता है। अश्वगंधा
की जड़ से चूर्ण बना लें। इस चूर्ण की 2 ग्राम लें और इसमें 1 ग्राम बड़ी पीपल का
चूर्ण, 5 ग्राम घी और 5 ग्राम शहद मिला लें।
इसका सेवन करने से टीबी (क्षय रोग) में लाभ होता है। अश्वगंधा के फायदे (ashwagandha benefits in hindi) टीबी के लिए उपचारस्वरुप
अश्वगंधा के इस्तेमाल से खांसी का इलाज
असगंधा की 10 ग्राम जड़ों को कूट लें। इसमें 10
ग्राम मिश्री मिलाकर 400 मिलीग्राम पानी में पकाएं। जब इसका आठवां हिस्सा रह जाए
तो आंच बंद कर दें। इसे थोड़ा-थोड़ा पिलाने से कुकुर खांसी या वात से होने वाले कफ
की समस्या में विशेष लाभ होता है।
असगंधा के पत्तों से तैयार 40 मिलीग्राम गाढ़ा
काढ़ा लें। इसमें 20 ग्राम बहेड़े का चूर्ण, 10
ग्राम कत्था चूर्ण, 5 ग्राम काली मिर्च तथा ढाई ग्राम
सैंधा नमक मिला लें। इसकी 500 मिलीग्राम की गोलियां बना लें। इन गोलियों को चूसने
से सब प्रकार की खांसी दूर होती है। टीबी के कारण से होने वाली खांसी में भी यह
विशेष लाभदायक है। अश्वगंधा के फायदे खांसी से आराम दिलाने में उपचारस्वरुप काम
करता है।
छाती के दर्द में अश्वगंधा के लाभ
अश्वगंधा की जड़ का चूर्ण 2 ग्राम की मात्रा
का जल के साथ सेवन करें। इससे सीने के दर्द में लाभ होता है।
पेट की बीमारी में अश्वगंधा चूर्ण के उपयोग
अश्वगंधा चूर्ण के फायदे आप पेट के रोग में भी ले सकते हैं। पेट की बीमारी में आप अश्वगंधा चूर्ण का प्रयोग कर सकते हैं। अश्वगंधा चूर्ण में बराबर मात्रा में बहेड़ा चूर्ण मिला लें। इसे 2-4 ग्राम की मात्रा में गुड़ के साथ सेवन करने से पेट के कीड़े खत्म होते हैं।
अश्वगंधा चूर्ण में बराबर भाग में गिलोय का
चूर्ण मिला लें। इसे 5-10 ग्राम शहद के साथ नियमित सेवन करें। इससे पेट के कीड़ों
का उपचार होता है।
अश्वगंधा चूर्ण के उपयोग से कब्ज की समस्या का इलाज
अश्वगंधा चूर्ण या अश्वगंधा पाउडर की 2 ग्राम मात्रा को गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से कब्ज की परेशानी से छुटकारा मिलता है।
अश्वगंधा का गुम गठिया के इलाज के लिए फायदेमंद
2 ग्राम अश्वगंधा पाउडर को सुबह और शाम गर्म दूध या पानी या फिर गाय के घी या शक्कर के साथ खाने से गठिया में फायदा होता है।
कमर दर्द और नींद न आने की समसया में भी लाभ होता है।
असगंधा के 30 ग्राम ताजा पत्तों को, 250 मिलीग्राम पानी में उबाल लें। जब
पानी आधा रह जाए तो छानकर पी लें। एक सप्ताह तक पीने से कफ से होने वाले वात तथा
गठिया रोग में विशेष लाभ होता है। इसका लेप भी लाभदायक है।
चोट लगने पर करें अश्वगंधा का सेवन
अश्वगंधा पाउडर में गुड़ या घी मिला लें। इसे
दूध के साथ सेवन करने से शस्त्र के चोट से होने वाले दर्द में आराम मिलता है।
अश्वगंधा के प्रयोग से त्वचा रोग का इलाज
अश्वगंधा के पत्तों का पेस्ट तैयार लें।
इसका लेप या पत्तों के काढ़े से धोने से त्वचा में लगने वाले कीड़े ठीक होते है।
इससे मधुमेह से होने वाले घाव तथा अन्य प्रकार के घावों का इलाज होता है। यह सूजन
को दूर करने में लाभप्रद होता है।
अश्वगंधा की जड़ को पीसकर, गुनगुना करके लेप करने से विसर्प रोग की समस्या में लाभ होता है।
अश्वगंधा के सेवन से दूर होती है शारीरिक कमजोरी
2-4 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को एक वर्ष तक बताई
गई विधि से सेवन करने से शरीर रोग मुक्त तथा बलवान हो जाता है।
10-10 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण, तिल व घी लें। इसमें तीन ग्राम शहर
मिलाकर जाड़े के दिनों में रोजाना 1-2 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से शरीर
मजबूत बनता है।
6 ग्राम असगंधा चूर्ण में उतने ही भाग मिश्री
और शहद मिला लें। इसमें 10 ग्राम गाय का घी मिलाएं। इस मिश्रण को 2-4 ग्राम की
मात्रा में सुबह-शाम शीतकाल में 4 महीने तक सेवन करने से शरीर का पोषण होता है।
3 ग्राम असगंधा मूल चूर्ण को पित्त प्रकृति
वाला व्यक्ति ताजे दूध (कच्चा/धारोष्ण) के साथ सेवन करें। वात प्रकृति वाला शुद्ध
तिल के साथ सेवन करें और कफ प्रकृति का व्यक्ति गुनगुने जल के साथ एक साल तक सेवन
करें। इससे शारीरिक कमोजरी दूर (ashwagandha ke fayde) होती है और सभी रोगों से मुक्ति मिलती है।
20 ग्राम असगंधा चूर्ण, तिल 40 ग्राम और उड़द 160 ग्राम लें।
इन तीनों को महीन पीसकर इसके बड़े बनाकर ताजे-ताजे एक महीने तक सेवन करने से शरीर
की दुर्बलता खत्म हो जाती है।
असगंधा की जड़ और चिरायता को बराबर भाग में
लेकर अच्छी तरह से कूट कर मिला लें। इस चूर्ण को 2-4 ग्राम की मात्रा में
सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से शरीर की दुर्बलता खत्म हो जाती है।
एक ग्राम असगंधा चूर्ण में 125 मिग्रा मिश्री
डालकर, गुनगुने दूध के साथ सेवन करने से वीर्य
विकार दूर होकर वीर्य मजबूत होता है तथा बल बढ़ता है।
रक्त विकार में अश्वगंधा के चूर्ण से लाभ
अश्वगंधा पाउडर में बराबर मात्रा में चोपचीनी
चूर्ण या चिरायता का चूर्ण मिला लें। इसे 3-5 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम
सेवन करने से खून में होने वाली समस्याएं ठीक होती हैं।
बुखार उतारने के लिए करें अश्वगंधा का प्रयोग
2 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण तथा 1 ग्राम गिलोय सत्
(जूस) को मिला लें। इसे हर दिन शाम को गुनगुने पानी या शहद के साथ खाने से पुराना
बुखार ठीक होता है।
इस्तेमाल के लिए अश्वगंधा के उपयोगी हिस्से
पत्ते
जड़
फल
बीज
अश्वगंधा से जुड़ी विशेष जानकारी – बाजारों में जो असगंधा बिकती है उसमें
काकनज की जड़े मिली हुई होती हैं। कुछ लोग इसे देशी असगंध भी कहते हैं। काकनज की
जड़ें असगंधा से कम गुण वाली होती हैं। जंगली अश्वगंधा का बाहरी प्रयोग ज्यादा
होता है।
अश्वगंधा का सेवन कैसे करें
अश्वगंधा का सही लाभ पाने के लिए अश्वगंधा का
सेवन कैसे करें ये पता होना ज़रूरी होता है। अश्वगंधा के सही फायदा पाने और नुकसान
से बचने के लिए चिकित्सक के परामर्श के अनुसार सेवन करना चाहिए-
जड़ का चूर्ण – 2-4 ग्राम
काढ़ा – 10-30
मिलीग्राम
अश्वगंधा से नुकसान
गर्म प्रकृति वाले व्यक्ति के लिए अश्वगंधा
का प्रयोग नुकसानदेह होता है।
अश्वगंधा कहां पाया या उगाया जाता है
पूरे भारत में और खासकर सूखे प्रदेशों में अश्वगंधा
का पौधा पाए जाते हैं। ये अपने आप उगते हैं। इसकी खेती भी की जाती है। ये वनों में
मिल जाते हैं। अश्वगंघा के पौधे 2000-2500 मीटर की ऊंचाई तक पाए जाते हैं।