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शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

पर्यावरण सुरक्षा और जैव-ईंधन

 

पर्यावरण सुरक्षा और जैव-ईंधन   

पर्यावरण सुरक्षा और जैव-ईंधन


चीनी उद्योग के लिये सहायक:

भारत में इथेनॉल उत्पादन के लिये प्रयोग किया जाने वाला प्रमुख कच्चा माल गन्ना और इसके उप-उत्पाद हैं जो इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम' (Ethanol Blending Programme- EBP) के तहत 90% तेल उत्पादन के लिये उत्तरदायी है।


यह कार्यक्रम आर्थिक दबाव झेल रहे चीनी उद्योग में तरलता बढ़ाने के साथ किसानों को आय का एक वैकल्पिक साधन उपलब्ध कराता है।


कृषि बाज़ारों का विविधीकरण:

भारतीय खाद्य निगम के तहत भंडारित अधिशेष चावल और मक्के को इथेनॉल उत्पादन हेतु प्रयोग किये जाने के हालिया निर्णय का अर्थ है कि इससे किसानों को अपने उत्पाद के लिये एक वैकल्पिक बाज़ार मिल सकेगा।

बंजर भूमि से आय: जैव-ईंधन के संदर्भ में राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति-2018के तहत वर्ष 2030 तक पारंपरिक डीज़ल में 5% जैव-ईंधन मिश्रण का लक्ष्य रखा गया है।

यह नीति गैर-खाद्य तिलहनों, प्रयुक्त कुकिंग ऑयल और लघु अवधि वाली फसलों से बायोडीज़ल उत्पादन के लिये आपूर्ति शृंखला तंत्र की स्थापना को प्रोत्साहित करती है।   

इन फसलों को विभिन्न राज्यों के उन क्षेत्रों में भी आसानी से उगाया जा सकता है, जो या तो बंजर हैं या खाद्य फसलों के लिये उपयुक्त नहीं हैं। इस प्रकार जैव-ईंधन के लिये चिह्नित फसलों का उत्पादन कृषि आय को बढ़ावा देता है।   


पर्यावरण सुरक्षा और जैव-ईंधन:   


वायु प्रदूषण को कम करना: देश के विभिन्न अपशिष्ट बायोमास स्रोतों से संपीड़ित जैव-गैस’ (Compressed Bio-Gas-CBG) उत्पादन के लिये एक पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने हेतु अक्तूबर 2018 में किफायती परिवहन के लिये टिकाऊ विकल्पया सतत’ (Sustainable Alternative towards Affordable Transportation-SATAT) नामक योजना की शुरुआत की गई थी।

सतत योजना के तहत प्रस्तावित संयंत्रों (विशेषकर हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश) में संपीड़ित जैव-गैस के उत्पादन के लिये कच्चे माल के रूप में फसलों के अवशेष जैसे- धान का पुआल और बायोमास का उपयोग किया जाएगा।

सतत योजना न सिर्फ ग्रीनहॉउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने में सहायक होगी बल्कि यह कृषि क्षेत्र में फसलों के अवशेषों जैसे-पराली आदि को जलाने की घटनाओं को कम करने में सहायक होगी, जो कि दिल्ली जैसे शहरों में वायु प्रदूषण की वृद्धि का एक प्रमुख कारण है।   

संपीड़ित जैव-गैस  संयंत्रों  से निकलने वाले उपोत्पादों में से एक जैव खाद है, जिसका उपयोग खेती में किया जा सकता है। 

इसके अतिरिक्त यह ग्रामीण और अपशिष्ट प्रबंधन क्षेत्र में रोज़गार के अवसरों का विकास करने के साथ किसानों के अनुपयोगी जैव-कचरे के सदुपयोग के माध्यम से उनकी आय में वृद्धि करने में सहायक होगा।


ऊर्जा सुरक्षा और जैव-ईंधन:

 

तेल आयात में कमी:  

वर्तमान में भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये देश में  खनिज तेल और गैस की कुल मांग का क्रमशः 84% तथा  56% अन्य देशों से आयात करता है, खनिज तेल की कुछ मात्रा को जैव-ईंधन से प्रतिस्थापित कर आयात पर निर्भरता को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।

वर्तमान में पेट्रोल में इथेनॉल समिश्रण वर्ष 2022 तक 10% और वर्ष 2030 तक 20%  करने का लक्ष्य रखा गया है, जो वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को काम करने में सहायक होगा। 

ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत :

खनिज तेल, जो कि एक क्षयशील संसाधन है, के विपरीत जैव-ईंधन का उत्पादन अक्षय स्रोतों से किया जाता है। ऐसे में सैद्धांतिक रूप से जैव-ईंधन के उत्पादन और इसके उपयोग को अनंत काल तक स्थायी रूप से जारी रखा जा सकता है।


खाद्य सुरक्षा और खाद्य पदार्थों के मूल्य में वृद्धि:

जैव-ईंधन उत्पादन में कच्चे माल के रूप में अधिकांशतः कई ऐसी फसलों का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें लोगों द्वारा प्रत्यक्ष रूप (जैसे-मानव आहार) या अप्रत्यक्ष रूप (जैसे-पशुओं के आहार के रूप में) से दैनिक जीवन में प्रयोग किया जाता है।

इन फसलों का प्रयोग जैव-ईंधन के लिये किये जाने से कृषि भूमि के क्षेत्रफल और इन फसलों के उत्पादन को बढ़ाने हेतु प्रदूषणकारी कीटनाशकों तथा उर्वरकों के प्रयोग में वृद्धि होगी।

इसके साथ ही ऐसे कृषि उत्पादों की मांग बढ़ने के कारण खाद्य पदार्थों के मूल्य में भी वृद्धि हो सकती है।


तकनीकी सीमाएँ: 

जैव-ईंधन के प्रयोग में कई अन्य प्रकार की तकनीकी समस्याएँ भी जुड़ी हुई हैं, जैसे- लंबे समय तक संचालन के लिये वाहन के इंजन की क्षमता आदि।   

वनोन्मूलन और कृषि क्षेत्र में वृद्धि: जैव-ईंधन के उत्पादन के लिये आवश्यक कच्चे माल के रूप में प्रयोग की जाने वाली फसलों को उष्णकटिबंधीय जंगलों से साफ की गई भूमि पर उगाया जाता है, भूमि उपयोग के पैटर्न में इस प्रकार का बदलाव स्थलीय कार्बन स्टॉक को वातावरण में मुक्त कर ग्रीनहॉउस गैसों के उत्सर्जन को बढ़ा सकता है।


सहयोगात्मक प्रयास: 

जैव-ईंधन की व्यापक बदलावकारी क्षमता का सदुपयोग केवल छात्रों, अध्यापकों, वैज्ञानिकों, उद्यमियों और अन्य हितधारकों के साझा सहयोग के माध्यम से ही किया जा सकता है।

जैव-रिफाइनरियों को मंज़ूरी देने में तेज़ी: सतत योजना का पूरा लाभ प्राप्त करने के लिये जैव-रिफाइनरियों की स्थापना हेतु आवश्यक सरकारी मंज़ूरी की प्रक्रिया को आसान और तेज़ बनाना बहुत ही आवश्यक है।

इस संदर्भ में परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंज़ूरी देने के लिये परिवेश पोर्टल की स्थापना एक सकारात्मक कदम है।


तकनीकी हस्तक्षेप: 

बायोडीज़ल के व्यावसायीकरण के लिये  डेडीकेटेड बायोडीज़ल इंजन के विकास को बढ़ावा देना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।

इस संदर्भ में भारत को ब्राज़ील से सीख लेनी चाहिये,  क्योंकि उसने लचीले ईंधन वाले वाहनों (FFV) के विकास में वृद्धि कर अपने जैव-एथेनॉल विपणन को सफलतापूर्वक बढ़ाया, इन वाहनों में इथेनॉल और गैसोलीन दोनों के लिये एक डेडीकेटेड इंजन होता है।  

इसके अलावा, जैव-ईंधन की दूसरी और तीसरी पीढ़ी के अनुसंधान और विकास में निवेश किए जाने की भी आवश्यकता है।