थंडरस्टॉर्म रिसर्च टेस्टबेड
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा ओडिशा के बालासोर में देश का पहला थंडरस्टॉर्म रिसर्च
टेस्टबेड स्थापित किया जाएगा। इस थंडरस्टॉर्म रिसर्च टेस्टबेड के गठन का प्राथमिक
उद्देश्य बिजली गिरने के कारण मानव की मृत्यु और संपत्ति के नुकसान को कम करना है।
इस अनुसंधान केंद्र को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) तथा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के सहयोग से स्थापित किया जाएगा।
इस केंद्र में आस-पास के क्षेत्रों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये वेधशालाएँ
स्थापित की जाएंगी, साथ ही यहाँ थंडरस्टॉर्म पर
अध्ययन भी किया जाएगा। ज्ञात हो कि प्रत्येक वर्ष अप्रैल से जून माह के बीच बिजली
गिरने के कारण ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड राज्यों को जान-माल के नुकसान का सामना करना पड़ता
है। इस लिहाज से यह केंद्र काफी महत्त्वपूर्ण है।
विश्व सतत् विकास शिखर सम्मेलन-2021
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 फरवरी, 2021 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के
माध्यम से विश्व सतत् विकास शिखर सम्मेलन-2021 का उद्घाटन करेंगे। इस सम्मेलन
का मुख्य विषय है - सबके लिये सुरक्षित और संरक्षित पर्यावरण तथा हमारा साझा
भविष्य। नई दिल्ली स्थित ‘द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़
इंस्टीट्यूट’ द्वारा आयोजित यह 20वाँ शिखर सम्मेलन है, जिसमें विश्व में सतत् विकास को बढ़ावा देने को लेकर चर्चा की जाएगी।
विश्व के अनेक देशों के प्रतिनिधियों के अलावा अलग-अलग देशों के विद्वान, जलवायु वैज्ञानिक, युवा और सिविल सोसाइटी के लोग भी
इस सम्मेलन में बड़ी संख्या में हिस्सा लेंगे। पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन
मंत्रालय, नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सहयोग
से आयोजित किये जा रहे इस सम्मेलन में गुयाना के राष्ट्रपति डॉक्टर मोहम्मद इरफान
अली, पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मारापे, मालदीव की पीपुल्स मजलिस के अध्यक्ष मोहम्मद नशीद, संयुक्त राष्ट्र की उप-महासचिव अमिना जे मोहम्मद भी हिस्सा लेंगे।
डॉ. ज़ाकिर हुसैन
08 फरवरी, 2021 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति भवन में पूर्व राष्ट्रपति
डॉ.जाकिर हुसैन की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। भारत के तीसरे
राष्ट्रपति जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के सह-संस्थापक डॉ. ज़ाकिर
हुसैन एक उत्साही शिक्षक और कुशल राजनीतिज्ञ थे। 8 फरवरी, 1897 को हैदराबाद में जन्मे डॉ. जाकिर हुसैन देश के पहले मुस्लिम
राष्ट्रपति भी थे। ज़ाकिर हुसैन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इटावा के इस्लामिया
हाईस्कूल से पूरी की, जिसके बाद वे आगे की पढाई के लिये
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय चले गए। वर्ष 1918 में उन्होंने ग्रेजुएशन की
डिग्री हासिल की, जिसके बाद उन्होंने मास्टर कोर्स
में दाखिला लिया, हालाँकि इसे उन्होंने बीच में छोड़
दिया। उन्होंने प्लेटो की पुस्तक ‘रिपब्लिक’ और एडविन कैनन द्वारा रचित ‘एलिमेंट्री पोलिटिकल इकॉनमी’ का उर्दू में अनुवाद भी किया। वर्ष 1920 में 23 वर्ष की आयु में ज़ाकिर हुसैन ने अलीगढ़ में राष्ट्रीय मुस्लिम
विश्वविद्यालय की स्थापना की, इस राष्ट्रीय मुस्लिम
विश्वविद्यालय को वर्ष 1925 में नई दिल्ली में स्थानांतरित
कर दिया गया और वर्ष 1935 में इसका नाम बदलकर जामिया
मिलिया इस्लामिया कर दिया गया। उन्होंने तकरीबन 21 वर्ष तक जामिया मिलिया इस्लामिया
के प्रमुख के रूप में कार्य किया। वर्ष 1962 में उन्होंने भारत के दूसरे
उप-राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली और वर्ष 1967 में भारत के पहले मुस्लिम
राष्ट्रपति बने। देश के लिये उनकी सेवाओं के मद्देनज़र उन्हें वर्ष 1954 में पद्म विभूषण और वर्ष 1963 में भारत रत्न से सम्मानित किया
गया था।
भारत की पहली भू-तापीय बिजली परियोजना
पूर्वी लद्दाख के पूगा गाँव में
भारत की पहली भू-तापीय बिजली परियोजना शुरू की जाएगी। वैज्ञानिकों ने पूगा की
पहचान देश में भू-तापीय ऊर्जा के हॉटस्पॉट के रूप में की है। इस परियोजना के पहले
चरण में तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड (ONGC) द्वारा एक मेगावाट की क्षमता वाले
बिजली संयंत्र चलाने के लिये 500 मीटर तक की खुदाई की जाएगी। चीन
की सीमा के करीब और लेह से पूर्व में 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस
परियोजना के दूसरे चरण में भू-तापीय जलाशय की क्षमता का पता लगाने के लिये और अधिक
गहरी खुदाई की जाएगी। वहीं इस परियोजना के तीसरे चरण में एक वाणिज्यिक पावर प्लांट
भी स्थापित किया जाएगा। अनुमान के मुताबिक, इस क्षेत्र से तकरीबन 250 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। शुरुआती चरणों में इस
प्लांट की मदद से पास के ही तिब्बती शरणार्थी बस्तियों में बिजली पहुँचाने की
योजना बनाई गई है। लद्दाख के पूगा और चुमाथांग को भारत में सबसे महत्त्वपूर्ण
भू-तापीय क्षेत्रों में से एक माना जाता है। इन क्षेत्रों की पहचान सर्वप्रथम 1970 के दशक में की गई थी।
कुरुबा समुदाय: कर्नाटक
हाल
ही में कर्नाटक में कुरुबा समुदाय द्वारा एक विशाल रैली का आयोजन किया गया था। इस
रैली में समुदाय के लोगों द्वारा राज्य सरकार से मांग की गई कि राज्य सरकार कुरुबा
समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में शामिल करने हेतु केंद्र सरकार को
अपनी संस्तुति भेजे।
पृष्ठभूमि:
देश
की स्वतंत्रता के बाद से ही कुरुबा समुदाय को एसटी का दर्जा प्राप्त था। परंतु
वर्ष 1977 में
पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एल.जी. हावनूर ने कुरुबा समुदाय को
एसटी सूची से 'अति पिछड़ा वर्ग' की श्रेणी शामिल कर दिया।
हालाँकि
आयोग ने इसमें एक क्षेत्र विशेष की शर्त भी जोड़ दी और कहा कि बीदर, यादगीर, कालाबुरागी तथा मदिकेरी क्षेत्र में कुरुबा समानार्थी शब्द के साथ
रहने वाले लोग एसटी श्रेणी का लाभ उठा सकते हैं।
कुरुबा समुदाय का संक्षिप्त परिचय:
- वर्तमान में कुरुबा समुदाय की जनसंख्या राज्य की कुल आबादी का 9.3% है और ये पिछड़े वर्ग की श्रेणी में आते हैं।
- कुरुबा कर्नाटक में लिंगायत, वोक्कालिगा और मुसलमानों के बाद चौथी सबसे बड़ी जाति है।
- अन्य राज्यों में कुरुबा को अलग-अलग नामों से जाना जाता है - जैसे महाराष्ट्र में धनगर, गुजरात में रबारी या राईका, राजस्थान में देवासी और हरियाणा में गडरिया।
संबंधित
मुद्दे:
- लिंगायत उप-पंथ पंचमासाली से जुड़े लोगों ने भी अपने समुदाय को पिछड़ा वर्ग की 2A श्रेणी में शामिल किये जाने की मांग की है, जिसके तहत पिछड़ी जातियों को वर्तमान में 15% आरक्षण प्रदान किया जाता है।
न्यायमूर्ति एच.एन. नागमोहन दास आयोग:
- न्यायमूर्ति एच.एन. नागमोहन दास आयोग का गठन एससी समुदाय के लिये मौजूदा आरक्षण को 15% से बढ़ाकर 17% करने और एसटी के लिये इसे 3% से 7% तक किये जाने की प्रक्रिया की निगरानी के लिये किया गया था जिससे उच्चतम न्यायालय के वर्ष 1992 के निर्णय के अनुसार, यह कुल 50% आरक्षण कोटे से अधिक न होने पाए।
- अगर कुरुबा को उनकी मांग के अनुसार एसटी घोषित किया जाता है, तो एसटी कोटे को भी आनुपातिक रूप से बढ़ाना होगा।
कर्नाटक
में वर्तमान आरक्षण कोटा:
कर्नाटक
ने सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 1992
के आदेश का पालन करते हुए आरक्षण को 50% तक सीमित कर दिया है, इसके तहत पिछड़े वर्गों के लिये 32% आरक्षण निर्धारित है, जिनमें मुस्लिम, ईसाई
और जैन शामिल हैं, एससी के लिये 15% और एसटी के लिये 3% आरक्षण निर्धारित है।
इस
आरक्षण कोटे को आगे कई श्रेणियों में विभाजित किया गया है: श्रेणी 1 (4%), श्रेणी 2 ए (15%), श्रेणी 2 बी (4%), श्रेणी 3 ए (4%), श्रेणी 3 बी (5%), एससी (15%) और एसटी (3%)।
अनुसूचित
जनजाति:
- अनुच्छेद 366 (25): अनुसूचित जनजातियों का अर्थ ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदायों के कुछ हिस्सों या समूहों से है, जिन्हें भारतीय संविधान के प्रयोजन के लिये अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति माना जाता है।”
- अनुच्छेद 342 के अनुसार, अनुसूचित जनजातियाँ वे समुदाय हैं जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा एक सार्वजनिक अधिसूचना या संसद द्वारा विधायी प्रक्रिया के माध्यम से अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित किया गया है।
- अनुसूचित जनजातियों की सूची राज्य/केंद्रशासित प्रदेश से संबंधित होती है, ऐसे में एक राज्य में अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित एक समुदाय को दूसरे राज्य में भी यह दर्जा प्राप्त होना अनिवार्य नहीं है।
मौलिक
विशेषताएँ:
- पिछड़ापन/आदिमता
(Primitiveness)
- भौगोलिक
अलगाव (Geographical
Isolation)
- संकोची
स्वभाव (Shyness)
- सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ापन।
- विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह
(Particularly
Vulnerable Tribal Groups -PVTG)
- देश में कुछ ऐसी जनजातियाँ (कुल ज्ञात 75) हैं जिन्हें ‘विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (Particularly Vulnerable Tribal Groups -PVTG) के रूप में जाना जाता है, इन समूहों को (i) पूर्व-कृषि स्तर की प्रौद्योगिकी, (ii) स्थिर या घटती जनसंख्या, (iii) बेहद कम साक्षरता और (iv) आर्थिक निर्वाह स्तर के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
उत्तराखंड में फ्लैश फ्लड
हाल
ही में उत्तराखंड के चमोली ज़िले के तपोवन-रैनी क्षेत्र में एक ग्लेशियर के टूटने
से धौली गंगा और अलकनंदा नदियों में बड़े पैमाने पर फ्लैश फ्लड (Flash Flood) की घटना देखी गई, जिससे ऋषिगंगा बिजली परियोजना को काफी
नुकसान पहुँचा है।
उत्तराखंड
में जून 2013 में आई बाढ़ के कारण अत्यधिक जान-माल
की हानि हुई थी।
प्रमुख
बिंदु
उत्तराखंड
में बाढ़ आने का कारण:
- ऋषि गंगा रैनी के पास धौली गंगा से मिलती है। इसी कारण से धौली गंगा में भी बाढ़ आ गई।
प्रमुख
विद्युत परियोजनाएँ प्रभावित:
- यह 130MW की एक निजी स्वामित्व वाली परियोजना है।
- धौलीगंगा पर तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना:
- यह धौलीगंगा नदी पर निर्मित 520 मेगावॉट की पनबिजली परियोजना थी।
- उत्तर-पश्चिमी उत्तराखंड में अलकनंदा और भागीरथी नदी घाटियों की कई अन्य परियोजनाएँ भी बाढ़ के कारण प्रभावित हुई हैं।
फ्लैश
फ्लड:
फ्लैश
फ्लड के विषय में:
- यह घटना बारिश के दौरान या उसके बाद जल स्तर में हुई अचानक वृद्धि को संदर्भित करती है।
- यह बहुत ही उच्च स्थानों पर छोटी अवधि में घटित होने वाली घटना है, आमतौर पर वर्षा और फ्लैश फ्लड के बीच छह घंटे से कम का अंतर होता है।
- फ्लैश फ्लड, खराब जल निकासी लाइनों या पानी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करने वाले अतिक्रमण के कारण भयानक हो जाती है।
कारण:
- यह घटना भारी बारिश की वजह से तेज़ आँधी, तूफान, उष्णकटिबंधीय तूफान, बर्फ का पिघलना आदि के कारण हो सकती है।
- फ्लैश फ्लड की घटना बाँध टूटने और/या मलबा प्रवाह के कारण भी हो सकती।
- फ्लैश फ्लड के लिये ज्वालामुखी उद्गार भी उत्तरदायी है, क्योंकि ज्वालामुखी उद्गार के बाद आस-पास के क्षेत्रों के तापमान में तेज़ी से वृद्धि होती है जिससे इन क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर पिघलने लगते हैं।
- फ्लैश फ्लड के स्वरूप को वर्षा की तीव्रता, वर्षा का वितरण, भूमि उपयोग का प्रकार तथा स्थलाकृति, वनस्पति प्रकार एवं विकास/घनत्व, मिट्टी का प्रकार आदि सभी बिंदु निर्धारित करते हैं।
ग्लेशियर
- ये आमतौर पर बर्फ के मैदानों के रूप में देखे जाते हैं।
- ये मीठे पानी के सबसे बड़े बेसिन हैं जो पृथ्वी की लगभग 10% भूसतह को कवर करते हैं।
- ग्लेशियर की स्थलाकृति और अवस्थिति के अनुसार इन्हें माउंटेन ग्लेशियर (अल्पाइन ग्लेशियर) या महाद्वीपीय ग्लेशियर (आइस शीट्स) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- महाद्वीपीय ग्लेशियर सभी दिशाओं में बाहर की ओर, जबकि माउंटेन ग्लेशियर उच्च ऊँचाई से कम ऊँचाई की ओर गति करते हैं।
ग्लेशियर झील:
हिमालय
में ग्लेशियरों के पीछे हटने से झील का निर्माण होता है, जिन्हें अग्रहिमनदीय झील (Proglacial Lake) कहा जाता है जो तलछट और बड़े पत्थरों से
बँधी होती है।
बाढ़:
जब
इन झीलों पर बने बाँध टूटते हैं तो इनका पानी प्रवाहित होकर अचानक बड़ी मात्रा में
पास की नदियों में मिल जाता है, जिससे
निचले क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है।
जलवायु
परिवर्तन का प्रभाव:
- जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम पैटर्न में अनियमितता देखी जाती है, जिससे बर्फबारी, बारिश और बर्फ पिघलने की घटना में वृद्धि हुई है।
- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर-सरकारी पैनल की नवीनतम मूल्यांकन रिपोर्टों के अनुसार, ग्लेशियरों के पीछे हटने और पर्माफ्रॉस्ट के गलने से पहाड़ी ढलानों की स्थिरता प्रभावित होने एवं ग्लेशियर क्षेत्र में झीलों की संख्या व क्षेत्र में वृद्धि होने का अनुमान है।
धौलीगंगा
इसकी उत्पत्ति उत्तराखंड की सबसे बड़ी हिमनद झील वसुधारा ताल (Vasudhara Tal) से होती है।
धौलीगंगा:
- धौलीगंगा, रैनी नदी में ऋषिगंगा के पास मिलती है।
- यह अलकनंदा के साथ विष्णुप्रयाग में विलीन हो जाती है।
- यह यहाँ अपनी पहचान खो देती है और अलकनंदा चमोली, मैथन, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग से होकर दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती हुई मंदाकिनी नदी से मिलती है।
- यह श्रीनगर होती हुई देवनाग के पास गंगा में मिल जाती है।
- अलकनंदा, गंगा में मिलने के बाद गायब हो जाती है। गंगा यहाँ से दक्षिण और फिर पश्चिम की ओर बहती हुई ऋषिकेश, हरिद्वार होकर उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है।
नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान
यह राष्ट्रीय उद्यान भारत के दूसरे सबसे ऊंचे पर्वत नंदा देवी के 7,817 मीटर ऊँचाई क्षेत्र पर विस्तृत है।
नंदा
देवी राष्ट्रीय उद्यान:
स्थापना:
इसे
वर्ष 1988 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत
स्थल के रूप में दर्ज किया गया।
इस
पार्क की वनस्पतियाँ:
जीव-जंतु:
श्रीलंका में चीन की नई परियोजना
हाल
ही में एक चीनी कंपनी ने तमिलनाडु के रामेश्वरम से 45 किमी. दूर उत्तरी जाफना प्रायद्वीप के तीन श्रीलंकाई द्वीपों पर
हाइब्रिड पवन और सौर ऊर्जा परियोजनाओं को स्थापित करने के लिये एक अनुबंध प्राप्त
कर लिया है।
पाक
जलडमरूमध्य (Palk Strait)
में तीन द्वीपों
डेल्फ्ट, नैनातिवु और अनलातिवु में स्थित इस
परियोजना का वित्तपोषण एशियाई विकास बैंक (ADB) द्वारा किया जाएगा।
द्वीपों के बारे में
- डेल्फ्ट, तीन द्वीपों में से सबसे बड़ा है और रामेश्वरम, तमिलनाडु के सबसे करीब है, यह श्रीलंका के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।
- यहाँ दोनों के बीच कच्छतिवु नाम का एक छोटा द्वीप भी स्थित है, जिसे भारत ने वर्ष 1974 में श्रीलंका को सौंप दिया था।
- इन द्वीपों के आसपास का जलीय क्षेत्र तमिलनाडु और जाफना के मछुआरों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- यह विषय दशकों से दोनों देशों के द्विपक्षीय एजेंडे में शामिल है।
- भारत और श्रीलंका ने वर्ष 2016 में मछुआरों के मुद्दों को हल करने के लिये एक स्थायी तंत्र के रूप में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और श्रीलंका के मत्स्य एवं जलीय संसाधन विकास मंत्रालय के बीच मत्स्य पालन पर एक संयुक्त कार्यकारी समूह (JWG) की स्थापना की थी।
श्रीलंका
का पक्ष
भारत
की चिंताएँ
- भारतीय जलीय क्षेत्र में चीन की उपस्थिति भारत के लिये चिंता का विषय मानी जा सकती है, खासतौर पर ऐसे समय में जब भारत-चीन सीमा पर पहले से गतिरोध और तनाव जारी है।
- यह समझौता ऐसे समय में किया जा रहा है जब लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर जारी गतिरोध का स्थायी समाधान प्राप्त होना शेष है।
- ज्ञात हो कि हाल ही में श्रीलंका की सरकार ने पूर्वी कंटेनर टर्मिनल (ECT) के लिये भारत और जापान के साथ किये गए अनुबंध को रद्द कर दिया है।
- भारत, श्रीलंका और जापान द्वारा हस्ताक्षरित इस त्रिपक्षीय समझौते के तहत पूर्वी कंटेनर टर्मिनल (ECT) को विकसित करने की बात की गई थी, जो कि कोलंबो बंदरगाह के नव विस्तारित दक्षिणी भाग में स्थित है।
- भारत के लिये पूर्वी कंटेनर टर्मिनल (ECT) सौदा इस लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण था कि इसके माध्यम से होने वाले लगभग 70 प्रतिशत ट्रांसशिपमेंट भारत से जुड़े हुए थे। कोलंबो पोर्ट में किसी भी अन्य टर्मिनल की तुलना में पूर्वी कंटेनर टर्मिनल को रणनीतिक दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
भारत
का पक्ष
- वर्ष 2018 में भारत ने युद्ध प्रभावित क्षेत्रों के लिये चीन की 300 मिलियन डॉलर की आवासीय परियोजना पर चिंता व्यक्त की थी, जिसमें श्रीलंका की पूर्व सरकार ने पुनर्वास मंत्रालय पर ‘अपारदर्शी’ तरीके से बोली प्रक्रिया को संपन्न करने का आरोप लगाया था।
- इस परियोजना को अंततः बंद कर दिया गया था।
- दक्षिण एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव
पोंग बाँध झील वन्यजीव अभयारण्य
वर्ष
2020-21 की सर्दियों में हिमाचल प्रदेश के
पोंग बाँध झील वन्यजीव अभयारण्य में एक लाख से अधिक प्रवासी जल पक्षी पहुँचे।
अवस्थिति:
कांगड़ा ज़िला, हिमाचल प्रदेश।
निर्माण:
पोंग
बाँध को वर्ष 1975 में ब्यास नदी पर बनाया गया था। इसे
पोंग जलाशय या महाराणा प्रताप सागर भी कहा जाता है।
वर्ष
1983 में हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा पूरे
जलाशय को वन्यजीव अभयारण्य घोषित कर दिया गया था।
वर्ष
1994 में भारत सरकार ने इसे
"राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि" घोषित किया।
पोंग
बाँध झील को नवंबर 2002 में रामसर स्थल के रूप में घोषित किया
गया था।
प्रवासी
पक्षियों के लिये गंतव्य:
यह
अभयारण्य 54 कुलों के पक्षियों की लगभग 220 प्रजातियों की मेज़बानी करता है।
सर्दियों के दौरान प्रवासी पक्षी हिंदुकुश हिमालय से, यहाँ तक कि साइबेरिया से इस अभयारण्य में
आते हैं।
नदियाँ:
इस
झील को ब्यास नदी और इसकी कई बारहमासी सहायक नदियों जैसे कि गज, नियोगल, बिनवा, उहल, बंगाणा और बानर से जल प्राप्त होता है।
यह
झील मछलियों की लगभग 22 प्रजातियों को आश्रय देती है, जिसमें दुर्लभ मछलियाँ जैसे- सैल और
गैड शामिल हैं। झील का पर्याप्त जल स्तर इसे वाटर स्पोर्ट्स के लिये एक आदर्श
गंतव्य स्थल बनाता है।
वनस्पति:
यह
अभयारण्य क्षेत्र उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जंगलों से आच्छादित है, जो बड़ी संख्या में भारतीय वन्यजीवों
को आश्रय देता है।
वनस्पति
जगत:
यूकेलिप्टस, कीकर, जामुन, शीशम, आम, शहतूत, गूलर, कचनार तथा आँवला आदि।
प्राणी
जगत:
काकड़
(बार्किंग डियर), सांभर, जंगली सूअर,
नीलगाय, तेंदुआ तथा छोटे पंजे वाले ऊदबिलाव
आदि।
पक्षी
वर्ग:
ब्लैक
हेडेड गुल, लाल गर्दन वाले ग्रीब, टिटिहरी (Plovers) टर्न, बत्तख, जल मुर्गी, बगुला इत्यादि।
हिमाचल प्रदेश स्थित राष्ट्रीय उद्यान
ग्रेट
हिमालयन नेशनल पार्क (Great
Himalayan National Park):
- कुल्लू ज़िले के बंजार उप-प्रभाग में स्थित ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को आधिकारिक रूप से वर्ष 1999 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
- वर्ष 2014 में ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को जैव विविधता संरक्षण में अद्भुत योगदान के लिये यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया।
- यहाँ पाई जाने वाली प्रजातियों में ग्रेटर ब्लू शीप, भारतीय पिका, रीसस बंदर, हिमालयन काले भालू, हिमालयन भूरे भालू, लाल लोमड़ी आदि शामिल हैं।
पिन
घाटी राष्ट्रीय उद्यान (Pin
Valley National Park):
- पिन घाटी राष्ट्रीय उद्यान, लाहौल और स्पीति ज़िले में स्थित है। इसकी स्थापना वर्ष 1987 में की गई थी।
- यहाँ विभिन्न संकटग्रस्त प्रजातियाँ अपने प्राकृतिक आवास में पाई जाती है जिसमें हिम तेंदुआ तथा साइबेरियाई आइबेक्स भी शामिल हैं।
इंदरकिला
राष्ट्रीय उद्यान (Inderkilla
National Park):
- इंदरकिला राष्ट्रीय उद्यान हिमाचल प्रदेश के कुल्लू ज़िले में अवस्थित है तथा इसकी स्थापना वर्ष 2010 में की गई थी।
- यहाँ तेंदुए और हिरण जैसे हिमालयी क्षेत्र के जंतु और विभिन्न पक्षी जिनमें ग्रीष्म ऋतु वाले दुर्लभ पक्षी भी शामिल हैं के साथ-साथ कीटों की विविध प्रजातियाँ भी देखी जा सकती हैं।
खीरगंगा
राष्ट्रीय उद्यान (Khirganga
National Park):
- खीरगंगा राष्ट्रीय उद्यान कुल्लू में अवस्थित है तथा इसकी स्थापना वर्ष 2010 में की गई थी।
- यह राष्ट्रीय उद्यान लगभग 5,500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है तथा 710 वर्ग किमी. क्षेत्रफल में फैला हुआ है।
सिम्बलबारा
राष्ट्रीय उद्यान (Simbalbara
National Park):
- सिम्बलबारा राष्ट्रीय उद्यान सिरमौर ज़िले की पांवटा घाटी (Paonta Valley) में अवस्थित है।
- इस राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना वर्ष 1958 में सिम्बलबारा वन्यजीव अभयारण्य (9.03 वर्ग किमी. क्षेत्रफल) के रूप में की गई थी।
- वर्ष 2010 में 8.88 वर्ग किमी. अतिरिक्त क्षेत्रफल को शामिल करते हुए इसे एक राष्ट्रीय उद्यान में परिवर्तित किया गया।