15 Feb Current Affairs in Hindi
जगन्नाथ मंदिर विरासत उपविधि
- हाल ही में केंद्र सरकार ने ओडिशा के पुरी में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर के लिये राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (National Monuments Authority- NMA) द्वारा जारी की गई विरासत उपविधि को वापस ले लिया है।
- ओडिशा सरकार द्वारा भुवनेश्वर के ‘एकमारा क्षेत्र’ (Ekamra Kshetra) के मंदिरों के लिये भी उपनियमों को वापस लिये जाने की मांग की जा रही है।
पृष्ठभूमि:
- केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2010 में प्राचीन स्मारक, पुरातत्त्व स्थल और अवशेष (संशोधन और मान्यता) अधिनियम, 2010 के तहत राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (NMA) का गठन किया गया था।
- NMA की प्राथमिक भूमिका भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा सूचीबद्ध संरचनाओं के लिये विरासत उपविधि तैयार करना था।
संरक्षण
और उपविधि:
- प्राचीन स्मारक, पुरातात्त्विक स्थल और अवशेष (संशोधन और सत्यापन) अधिनियम, 2010 में यह प्रावधान किया गया है कि एएसआई-संरक्षित स्मारकों के समीप निर्माण गतिविधि को विनियमित करने के लिये स्मारक-विशिष्ट विरासत उपविधि तैयार की जानी चाहिये।
- विरासत उपविधि के मसौदे को संसद द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक है।
ओडिशा
का मामला:
राज्य
सरकार के मतानुसार, 'इस उपविधि से पुरी स्थित 12वीं शताब्दी के श्री जगन्नाथ मंदिर के
आसपास योजनाबद्ध अवसंरचना विकास में बाधा उत्पन्न होगी।'
इसी
तरह का विरासत उपविधि मसौदा भुवनेश्वर स्थित दो मंदिरों के लिये भी तैयार किया गया
है-
- पहला: 13वीं शताब्दी में बना अनंत बसुदेव का वैष्णव मंदिर और
- दूसरा: ब्रह्मेश्वर का शिव मंदिर। ये दोनों मंदिर एकमारा क्षेत्र में स्थित हैं।
- वर्ष 2020 में राज्य सरकार ने 1,126 एकड़ में फैले इस क्षेत्र के आसपास एक सौंदर्यीकरण परियोजना के कार्यान्वयन के साथ इसे एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना बनाई थी।
जगन्नाथ मंदिर:
- ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में पूर्वी गंग राजवंश (Eastern Ganga Dynasty) के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा किया गया था।
- जगन्नाथ पुरी मंदिर को ‘यमनिका तीर्थ’ भी कहा जाता है, जहाँ हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पुरी में भगवान जगन्नाथ की उपस्थिति के कारण मृत्यु के देवता ‘यम’ की शक्ति समाप्त हो गई है।
- इस मंदिर को "सफेद पैगोडा" कहा जाता था और यह चारधाम तीर्थयात्रा (बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी, रामेश्वरम) का एक हिस्सा है।
- मंदिर के चार (पूर्व में ‘सिंह द्वार’, दक्षिण में 'अश्व द्वार’, पश्चिम में 'व्याघरा द्वार' और उत्तर में 'हस्ति द्वार’) मुख्य द्वार हैं। प्रत्येक द्वार पर नक्काशी की गई है।
- इसके प्रवेश द्वार के सामने अरुण स्तंभ या सूर्य स्तंभ स्थित है, जो मूल रूप से कोणार्क के सूर्य मंदिर में स्थापित था।
- विश्व प्रसिद्ध जगन्राथ रथ यात्रा और बहुड़ा यात्रा।
ओडिशा
स्थित अन्य महत्त्वपूर्ण स्मारक:
- कोणार्क सूर्य मंदिर (यूनेस्को विश्व विरासत स्थल)।
- तारा तारिणी मंदिर।
- लिंगराज मंदिर।
- उदयगिरि और खंडगिरि गुफाएँ।
प्राचीन
स्मारक, पुरातत्त्व स्थल और अवशेष (संशोधन और
मान्यता) अधिनियम, 2010
उद्देश्य:
- राष्ट्रीय महत्त्व के रूप में घोषित सभी प्राचीन स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों व अवशेषों और आसपास की सभी दिशाओं में 300 मीटर (या कुछ मामलों में इससे अधिक) तक के क्षेत्रों का बचाव, संरक्षण एवं सुरक्षा करना।
प्रावधान:
- निषिद्ध क्षेत्र (किसी भी राष्ट्रीय महत्त्व के रूप में घोषित स्मारक या आस-पास के संरक्षित क्षेत्र से निकटतम संरक्षित सीमा से सभी दिशाओं में 100 मीटर की दूरी तक का क्षेत्र) में किसी भी निर्माण या पुनर्निर्माण की अनुमति नहीं है, परंतु मरम्मत या नवीनीकरण पर विचार किया जा सकता है।
- विनियमित क्षेत्र (किसी भी राष्ट्रीय महत्त्व के रूप में घोषित संरक्षित स्मारक और संरक्षित क्षेत्र से सभी दिशाओं में 200 मीटर की दूरी तक का क्षेत्र) में मरम्मत/नवीनीकरण/निर्माण/पुनर्निर्माण पर विचार किया जा सकता है।
- निषिद्ध और विनियमित क्षेत्रों में निर्माण संबंधी कार्यों के लिये सभी आवेदन सक्षम अधिकारियों (Competent Authorities- CA) और फिर राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण ( National Monuments Authority- NMA) के समक्ष विचार के लिये प्रस्तुत किये जाने चाहिये।
- राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (NMA) केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के तहत कार्य करता है।
विश्व
सतत् विकास शिखर सम्मेलन 2021
- हाल ही में ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (TERI) के प्रमुख वार्षिक कार्यक्रम विश्व सतत् विकास शिखर सम्मेलन (World Sustainable Development Summit) का आयोजन किया गया।
- वर्ष 2021 के शिखर सम्मेलन का विषय: अपने साझा भविष्य को पुनर्परिभाषित करना: सभी के लिये संरक्षित और सुरक्षित वातावरण’ (Redefining our common future: Safe and Secure Environment for All) था।
- TERI वर्ष 1974 में स्थापित एक गैर-लाभकारी अनुसंधान संस्थान है। यह भारत और ग्लोबल साउथ के लिये ऊर्जा, पर्यावरण तथा सतत् विकास के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य करता है।
सम्मेलन
में भारत का रुख:
जलवायु
न्याय पर ज़ोर:
- "जलवायु न्याय" एक शब्द से अधिक एक आंदोलन है जो यह स्वीकार करता है कि वंचित वर्ग पर जलवायु परिवर्तन का सामाजिक, आर्थिक, सार्वजनिक स्वास्थ्य और अन्य प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- भारत के अनुसार, 'जलवायु न्याय' ट्रस्टीशिप के दृष्टिकोण से प्रेरित है, जिसके तहत विकास से साथ-साथ वंचित वर्ग के प्रति सहानुभूति का उत्तरदायित्त्व भी बढ़ जाता है।
जलवायु
शमन प्रयासों के लिये आश्वासन:
- भारत ने पेरिस समझौते के तहत अपने लक्ष्यों के लिये की गई प्रतिबद्धताओं को दोहराया है, जिसके तहत भारत के सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर से 33-35 प्रतिशत तक कम करने की बात कही गई है।
- इस दौरान भूमि क्षरण तटस्थता के लिये भारत की प्रतिबद्धता और वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित करने के लिये भारत की निरंतर प्रगति पर भी प्रकाश डाला गया।
- इस सम्मेलन के दौरान अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) के तहत भारत की पहल पर भी चर्चा की गई।
आपदा
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिये प्रतिबद्धता:
- आपदा प्रबंधन क्षमता को बढ़ाने के लिये भारत ने आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) हेतु प्रतिबद्धता का आश्वासन दिया था।
- CDRI: यह राष्ट्रीय सरकारों, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों, बहुपक्षीय बैंकों, निजी क्षेत्र और ज्ञान संस्थानों की एक बहु-हितधारक वैश्विक साझेदारी है जिसका उद्देश्य सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिये बुनियादी ढाँचा प्रणालियों की प्रतिरोधक क्षमता का विकास करना है।
सतत्
विकास की दिशा में भारत के प्रयास:
- मार्च 2019 में भारत ने स्थायी प्रौद्योगिकियों और अभिनव मॉडलों के माध्यम से लगभग 100% विद्युतीकरण का लक्ष्य प्राप्त किया।
- उजाला कार्यक्रम के माध्यम से 367 मिलियन एलईडी बल्ब वितरित किये गए जिसने प्रतिवर्ष 38 मिलियन टन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम किया है।
- पीएम उज्जवला योजना के माध्यम से गरीबी रेखा से नीचे रह रहे 80 मिलियन से अधिक परिवारों को भोजन पकाने के लिये स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराया गया। भारत अपने ऊर्जा बास्केट में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी 6% से बढ़ाकर 15% करने की दिशा में काम कर रहा है।
- जल जीवन मिशन के तहत 18 महीनों में 34 मिलियन से अधिक परिवारों को नल कनेक्शन से जोड़ा गया है।
- संरक्षण प्रयासों के परिणामस्वरूप शेर, बाघ, तेंदुए और गंगा नदी डॉल्फ़िन की आबादी में वृद्धि हुई है।
विश्व सतत् विकास शिखर सम्मेलन
- विश्व सतत् विकास शिखर सम्मेलन (World Sustainable Development Summit) ऊर्जा और संसाधन संस्थान (TERI) का प्रमुख वार्षिक कार्यक्रम है।
- इसे पहले दिल्ली सतत् विकास शिखर सम्मेलन के रूप में जाना जाता था।
- इसकी अवधारणा सतत् विकास और जलवायु परिवर्तन की दिशा में लक्षित कार्रवाई में तेज़ी लाने के लिये एकल मंच के रूप में की गई है।
- इसका उद्देश्य सतत् विकास, ऊर्जा और पर्यावरण क्षेत्र से संबंधित वैश्विक नेताओं और विद्वानों को एक साझा मंच उपलब्ध कराना है।
सतत्
विकास:
- "सतत् विकास का अर्थ है कि भविष्य की पीढ़ियों की ज़रूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता किये बगैर वर्तमान की ज़रूरतों को पूरा करना"। सतत् विकास की व्यापक रूप से स्वीकृत यह परिभाषा ब्रुन्डलैंड कमीशन (Brundtland Commission) ने अपनी रिपोर्ट ‘हमारा साझा भविष्य’ या 'अवर कॉमन फ्यूचर (Our Common Future), 1987 में दी थी।
जलवायु
परिवर्तन:
- यह पृथ्वी के स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक जलवायु को परिभाषित करने वाले मौसम के औसत पैटर्न में एक दीर्घकालिक बदलाव है।
- जलवायु डेटा रिकॉर्ड जलवायु परिवर्तन के प्रमुख संकेतकों का प्रमाण प्रदान करते हैं, जैसे कि वैश्विक भू और समुद्र तापमान का बढ़ना, समुद्री जल स्तर में वृद्धि, पृथ्वी के ध्रुवों और पहाड़ी ग्लेशियरों में बर्फ का ह्रास, तूफान, लू, वनाग्नि, सूखा, बाढ़ और वर्षा जैसे चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति और गंभीरता में वृद्धि तथा बादल एवं वनस्पति आवरण में परिवर्तन आदि।
प्रशासनिक सेवाओं में पार्श्व प्रवेश
हाल
ही में संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission- UPSC) द्वारा पार्श्व प्रवेश/लेटरल एंट्री के
माध्यम से केंद्रीय प्रशासन में संयुक्त सचिव और निदेशक स्तर पर 30 व्यक्तियों की भर्ती हेतु एक विज्ञापन
जारी किया गया है।
लेटरल एंट्री के बारे में:
- पार्श्व प्रवेश शब्द का संबंध मुख्य रूप से निजी क्षेत्र से सरकारी संगठनों में विशेषज्ञों की नियुक्ति से है।
- सरकार राजस्व, वित्तीय सेवाओं, आर्थिक मामलों, कृषि, सहयोग एवं किसानों का कल्याण, सड़क परिवहन और राजमार्ग, शिपिंग, पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा, नागरिक उड्डयन व वाणिज्य में विशेषज्ञता के साथ उत्कृष्ट व्यक्तियों की तलाश कर रही है।
लेटरल
एंट्री के लाभ:
जटिलता
को संबोधित करना:
- वर्तमान समय की प्रशासनिक चुनौतियों को नेविगेट (Navigate) करने के उद्देश्य से सरकार को विशेषज्ञता और अपने क्षेत्र में विशेष ज्ञान वाले लोगों की आवश्यक है।
कार्मिक
आवश्यकता की पूर्ति:
- केंद्र में IAS अधिकारियों की कमी को दूर करने में लेटरल एंट्री मददगार साबित होगी।
संगठनात्मक
संस्कृति:
- यह सरकारी क्षेत्र में आर्थिक, दक्षतापूर्ण और प्रभावी मूल्यों को स्थापित करने में मदद करेगी।
- इससे सरकारी क्षेत्र में प्रदर्शनात्मक संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा है।
सहभागी
शासन:
- वर्तमान समय में शासन में सहभागिता का विस्तार होने के साथ-साथ प्रशासनिक भूमिका भी विस्तारित हो रही है, इस प्रकार लेटरल एंट्री निजी क्षेत्र और गैर-लाभकारी क्षेत्र के हितधारकों को शासन प्रक्रिया में शामिल करती है।
पारदर्शी
प्रक्रिया की आवश्यकता:
- इस योजना की सफलता की कुंजी सही लोगों को चुनने में पारदर्शी एवं स्पष्ट प्रक्रिया में निहित होगी।
संगठनात्मक
मूल्यों में अंतर:
- सरकार और निजी क्षेत्र के मूल्यों में काफी भिन्नता विद्यमान है।
- इस बात को सुनिश्चित करना आवश्यक है कि जो लोग इस प्रणाली के माध्यम से चुनकर आते हैं, वे पूर्ण रूप से कार्य प्रणाली को समायोजित करने में कुशल एवं सक्षम हों। ऐसा इसलिये है क्योंकि सरकार द्वारा अपनी सीमाओं का निर्धारण स्वयं किया जाता है।
लाभ
का उद्देश्य बनाम सार्वजनिक सेवा:
- निजी क्षेत्र का दृष्टिकोण लाभोन्मुखी होता है। दूसरी ओर, सरकार का उद्देश्य सार्वजनिक सेवा है। यह एक मौलिक या आधारभूत संक्रमण (Fundamental Transition) है जिसमें एक निजी क्षेत्र के व्यक्ति को सरकार के साथ कार्य करते समय संक्रमण से गुज़रना पड़ता है।
आंतरिक
प्रतिरोध:
- लेटरल एंट्री को सर्विस सिविल सर्वेंट्स (Service Civil Servants) और उनके संघों द्वारा प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है। यह मौजूदा अधिकारों को समाप्त भी कर सकता है।
हितों
के टकराव का मुद्दा:
- निजी क्षेत्र के लोगों को शामिल करने से हितों में संभावित टकराव के मुद्दे उत्पन्न हो सकते हैं। इस प्रकार प्रवेशकों हेतु एक कठोर आचार संहिता की आवश्यकता है।
सीमित
क्षेत्र:
- लेटरल एंट्री की भूमिका शीर्ष स्तर पर क्षेत्रीय नीति बनाने में अधिक है जबकि ज़मीनी या निचले स्तर पर एक पद सोपान क्रम में इसका प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में कम देखा जाता है।
कर विवादों को कम करने हेतु योजनाएँ
हाल
ही में वित्त सचिव ने कहा है कि फेसलेस मूल्यांकन और अपील (faceless Assessment and Appeal) की नई प्रणाली से कर विवादों को काफी
हद तक कम करने में मदद मिलेगी।
कर विवाद (डेटा):
- आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, कर विवादों से संबंधित कुल राशि वित्त वर्ष 2019 के अंत में 11 लाख करोड़ रुपए से अधिक थी, जो एक साल पहले 23% थी।
- भारत में कर मुकदमों की संख्या, समाधान में लगने वाला समय और लागत बहुत अधिक है।
कर
विवादों को कम करने हेतु पहलें:
विवाद
समाधान समिति:
- वित्त मंत्री ने बजट 2021 में करदाताओं को कर विवादों के मामले में त्वरित राहत प्रदान करने के लिये एक विवाद समाधान समिति (DRC) के गठन का प्रस्ताव किया है।
- इस समिति का गठन आयकर अधिनियम (Income Tax Act) के एक नए खंड 245MA के तहत किया जाएगा।
- डीआरसी द्वारा छोटे करदाताओं के 50 लाख रुपए तक की कर योग्य आय और 10 लाख रुपए तक की विवादित आय का समाधान किया जाएगा।
- इस समिति के पास आयकर अधिनियम के तहत किसी भी दंड को कम करने और माफ करने की शक्ति होगी।
- डीआरसी के तहत उपलब्ध कराए गए वैकल्पिक तंत्र द्वारा करदाताओं के नए विवादों को रोकने और इन मुद्दों को शुरुआती चरण में ही सुलझाने में मदद मिलेगी।
- भारत को वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र उपलब्ध कराने के मामले में विश्व नियम कानून सूचकांक (World Rule of Law Index), 2020 में 88वें स्थान पर रखा गया है।
फेसलेस
मूल्यांकन और अपील:
- प्रधानमंत्री ने अगस्त 2020 में पारदर्शी कराधान - ईमानदार का सम्मान (Transparent Taxation – Honoring the Honest) के तहत तीन महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक कर सुधारों (फेसलेस मूल्यांकन, फेसलेस अपील और करदाता चार्टर) की घोषणा की।
- अधिकारियों के समक्ष करदाताओं की भौतिक रूप में उपस्थिति की आवश्यकता को दूर करने के लिये फेसलेस मूल्यांकन प्रणाली (faceless Assessment System) की शुरुआत की गई थी।
- फेसलेस रैंडम मूल्यांकन की शुरुआत के बाद से अब तक 50,000 से अधिक विवादों का निपटारा किया जा चुका है।
- फेसलेस अपील प्रणाली का उद्देश्य करदाता की विवेकाधीन शक्तियों को समाप्त करना, भ्रष्ट प्रथाओं पर अंकुश लगाना और करदाताओं को अनुपालन में सहूलियत प्रदान करना है।
- आयकर अपील को गंभीर धोखाधड़ी, प्रमुख कर चोरी, जाँच मामलों, अंतर्राष्ट्रीय कर मुद्दों और काले धन से संबंधित अपीलों के अपवाद के साथ एक स्पष्ट तरीके से अंतिम रूप दिया जाएगा।
- करदाताओं को आयकर संग्रहण की पूरी प्रक्रिया से परिचित कराने में मदद के लिये उनके अधिकारों और ज़िम्मेदारियों को लेकर कर चार्टर का विस्तार।
- राष्ट्रीय फेसलेस इनकम टैक्स अपीलीय न्यायाधिकरण केंद्र (National Faceless Income Tax Appellate Tribunal Centre) की स्थापना के लिये प्रयास जारी है, जो वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से व्यक्तिगत सुनवाई करेगा।
विवाद
से विश्वास योजना:
- इस योजना के अंतर्गत करदाताओं के विवादित कर, विवादित ब्याज, विवादित जुर्माना या विवादित शुल्क का निस्तारण किया जाता है, इसके तहत विवादित राशि के भुगतान पर 100% कर छूट और विवादित दंड, विवादित ब्याज या विवादित शुल्क के भुगतान पर 25% कर छूट प्राप्त होगी।
- प्रत्यक्ष कर विवादों को विभिन्न अपीलीय मंचों में निपटाने के लिये प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास अधिनियम (Direct Tax Vivad se Vishwas Act) को मार्च 2020 में लागू किया गया था।
- विवाद से विश्वास योजना का विकल्प प्रत्यक्ष विवादों के एक-चौथाई हिस्से के समाधान के लिये चुना गया, जिसमें 97,000 करोड़ रुपए के विवादों का निपटान किया गया।
खाद्य
प्रणाली और पोषण पर दिशा-निर्देश: CFS
- विश्व खाद्य सुरक्षा समिति (CFS) ने खाद्य प्रणालियों और पोषण पर स्वैच्छिक दिशा-निर्देशों (VGFSyN) का समर्थन किया है, जिसका उद्देश्य खाद्य प्रणाली दृष्टिकोण का उपयोग कर भूख और कुपोषण के सभी रूपों को समाप्त करने के लिये देशों की सहायता करना है।
- विश्व खाद्य सुरक्षा समिति (CFS) द्वारा यह समर्थन उसके 47वें सत्र के दौरान किया गया।
प्रमुख
बिंदु
दिशा-निर्देश
- ये दिशा-निर्देश स्थायी खाद्य प्रणालियों और स्वस्थ आहारों के बीच जटिल एवं बहुआयामी अंतर-संबद्धता को दर्शाते हैं।
- खाद्य प्रणाली उत्पादन, प्रसंस्करण, हैंडलिंग, भंडारण, वितरण, विपणन, खरीद, खपत, खाद्य हानि और अपशिष्ट के साथ-साथ इन गतिविधियों के आउटपुट, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय परिणाम शामिल हैं, का एक जटिल तंत्र होती है।
सात
नीतिगत क्षेत्र
- पारदर्शी, लोकतांत्रिक और जवाबदेह शासन।
- स्वस्थ आहार और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में सतत् खाद्य आपूर्ति शृंखलाएँ।
- स्वस्थ आहार तक समान और न्यायोचित पहुँच।\
- खाद्य सुरक्षा।
- व्यक्ति-केंद्रित पोषण ज्ञान, शिक्षा और सूचना।
- खाद्य प्रणाली में लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण।
- मानवीय संदर्भ में लचीली खाद्य प्रणाली।
महत्त्व
- इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय निकायों के कार्य और जनादेश जैसे- ‘यूएन डिकोड ऑफ एक्शन ऑन न्यूट्रिशन’ (2016-2025) और ‘ज़ीरो हंगर’ सतत् विकास लक्ष्य- 2 आदि को आगे बढ़ाना और उनके पूरक के रूप में कार्य करना है।
- ये दिशा-निर्देश सभी के लिये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में पर्याप्त भोजन के अधिकार की वकालत करते हैं, विशेष तौर पर कमज़ोर और संवेदनशील समूहों के लिये।
- ये निर्देश नीति नियोजन और शासन पर ध्यान केंद्रित करते हैं, ताकि खाद्य प्रणालियों को अधिक लचीला और उत्तरदायी बनाया जा सके एवं वे उपभोक्ताओं और उत्पादकों की ज़रूरतों विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों की ज़रूरतों के अनुसार हों।
विश्व खाद्य सुरक्षा समिति (CFS)
- सभी हितधारकों की खाद्य सुरक्षा और पोषण सुनिश्चित करने हेतु एक साथ काम करने के लिये यह सबसे महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय और अंतर-सरकारी मंच है।
- यह समिति आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ECOSOC) के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र (UN) महासभा को और खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) सम्मेलन को रिपोर्ट करती है।
- विश्व खाद्य सुरक्षा समिति (CFS) द्वारा ‘खाद्य और कृषि संगठन’ के रोम स्थित मुख्यालय में प्रत्येक वर्ष अक्तूबर माह में एक वार्षिक सत्र का आयोजन किया जाता है।
- विश्व खाद्य सुरक्षा समिति को ‘खाद्य और कृषि संगठन’, ‘इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट’ (IFAD) और ‘वर्ल्ड फूड प्रोग्राम’ (WFP) द्वारा समान रूप से वित्तपोषित किया जाता है।
भारतीय
परिदृश्य
भारत में भूख और कुपोषण की स्थिति
- खाद्य
एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा जारी 'विश्व में खाद्य सुरक्षा एवं पोषण की
स्थिति, 2020' नामक रिपोर्ट के मुताबिक,
- भारत में 189.2 मिलियन लोग कुपोषित हैं यानी तकरीबन 14 प्रतिशत आबादी कुपोषण का सामना कर रही है।
- 15 से 49 वर्ष की प्रजनन आयु की 51.4 प्रतिशत महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं।
- पाँच वर्ष से कम आयु के 34.7 प्रतिशत बच्चे ‘स्टंटिंग’ (उम्र की तुलना में कम वज़न) से, जबकि 20 प्रतिशत बच्चे ‘वेस्टिंग’ (ऊँचाई की तुलना में कम वज़न) से पीड़ित हैं।
- इसके अलावा ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2020 में भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर है।
इस
संबंध में किये गए प्रयास
- वर्ष 2017-18 में शुरू किये गए ‘पोषण अभियान’ का उद्देश्य विभिन्न कार्यक्रमों के बीच तालमेल, बेहतर निगरानी और सामुदायिक लामबंदी के माध्यम से स्टंटिंग, अल्प-पोषण, और एनीमिया से संबंधित मामलों में कमी लाना है।
- अंत्योदय अन्न योजना (AAY) का उद्देश्य गरीब परिवारों को रियायती मूल्य पर भोजन उपलब्ध कराना है।
- वर्ष 1975 में शुरू की गई एकीकृत बाल विकास योजना (ICDS) का उद्देश्य 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों का सर्वांगीण विकास (स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा) करना, साथ ही शिशु मृत्यु दर, बाल कुपोषण को कम करना और पूर्व-विद्यालय शिक्षा प्रदान करना है।
- ‘मिड-डे मील’ (MDM) योजना का उद्देश्य स्कूली बच्चों के बीच पोषण स्तर में सुधार करना है, साथ ही इस योजना का स्कूलों में नामांकन, प्रतिधारण और उपस्थिति के स्तर पर भी प्रत्यक्ष और सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- ‘प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना’ (PMMVY) के तहत गर्भवती महिलाओं को सीधे उनके बैंक खाते में नकद 6000 रुपए प्रदान किये जाते हैं, ताकि बढ़ी हुई पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा किया जा सके और वेतन हानि की आंशिक क्षतिपूर्ति की जा सके।
- ‘नेशनल मिशन ऑन एग्रीकल्चर एक्सटेंशन एंड टेक्नोलॉजी’ किसानों के लिये उपयुक्त प्रौद्योगिकियों और उन्नत कृषि प्रथाओं के वितरण को सक्षम बनाती है।
- ‘नेशनल मिशन ऑन सस्टेनेबल एग्रीकल्चर’ का उद्देश्य कृषि उत्पादकता को बढ़ाना है, और ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’ (PMKSY) का उद्देश्य जल-उपयोग दक्षता में सुधार करना है।
थोलपावाकुथु: केरल
Tholpavakkoothu:
Kerala
- हाल ही में एक रोबोट द्वारा केरल की प्रसिद्ध मंदिर कला थोलपावाकुथु में एक चमड़े की छाया कठपुतली तैयार की गई है।
- यह केरल की एक पारंपरिक मंदिर कला है जो पलक्कड़ और इसके पड़ोसी क्षेत्रों से संबंधित है।
- यह कला काफी हद तक पलक्कड़ ज़िले के शोरानूर क्षेत्र के पुलवार परिवारों तक ही सीमित है।
- केरल की प्राचीन कलाकृतियों में थोलपावाकुथु या छाया कठपुतली नाटक का प्रमुख स्थान है। यह आर्य और द्रविड़ संस्कृतियों के एकीकरण का एक अच्छा उदाहरण है।
- यह पलक्कड़ ज़िले के काली मंदिरों में वार्षिक उत्सवों के दौरान निभाई जाने वाली एक रस्म है।
- इसे निज़लकुथु (Nizhalkkoothu) और ओलाकुथू (Olakkoothu) के रूप में भी जाना जाता है।
- नाटक का विषय ‘कंब रामायण’ (महाकाव्य का तमिल संस्करण) पर आधारित है।
उदय:
- मलयालम में ‘थोल’ का अर्थ है चमड़ा, पावा का अर्थ है गुड़िया और कुथु का नाटक। हालाँकि इस पारंपरिक कला की उत्पत्ति की सही जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन कुछ लोग इसे 1200 वर्ष पुराना मानते हैं।
- इसका प्रदर्शन पलक्कड़ के भद्रकाली मंदिरों में रामायण की कहानियों को सुनाते हुए किया जाता था।
प्रदर्शन:
- इस मनोरंजक कला को एक विशेष मंच पर प्रदर्शित किया जाता है जिसे मंदिर प्रांगण में ‘कुथूमदम’ (koothumadam) कहा जाता है।
- इस कला को लैंप के प्रकाश और अग्नि के साथ-साथ पौराणिक आकृतियों का उपयोग करके प्रदर्शित किया जाता है।
- मुख्य कठपुतली को 'पुलावन' के रूप में जाना जाता है।
- प्रयुक्त संगीत वाद्ययंत्र:
- एज़ुपारा, चेंदा और मैडलम आदि।
भारत
में छाया कठपुतली के क्षेत्रीय नाम
आंध्र
प्रदेश थोलू बोम्मलता
कर्नाटक तोगलु गोमेयाता
महाराष्ट्र चर्मा बहुली नाट्य
ओडिशा रावनछाया
केरल थोलपावाकुथु
तमिलनाडु थोल बोम्मलता
मांडू
महोत्सव-2021
- मध्य प्रदेश में धार ज़िले के ऐतिहासिक शहर मांडू में तीन दिवसीय मांडू महोत्सव की शुरुआत हो गई है। महोत्सव में ‘वोकल फॉर लोकल’ के विचार को साकार करने के लिये स्थानीय हस्तनिर्मित उत्पादों को प्रदर्शित किया जा रहा है। इस उत्सव का आयोजन मध्य प्रदेश सरकार और राज्य पर्यटन बोर्ड द्वारा संयुक्त तौर पर किया जा रहा है। मांडू उत्सव के दौरान योग सत्र, साइकिल यात्रा, हेरिटेज वॉक और ग्रामीण भ्रमण आदि शामिल हैं, जिसके पश्चात् स्थानीय कलाकारों द्वारा संगीत समारोह का भी आयोजन किया जाएगा। महोत्सव में मध्य प्रदेश की प्राचीन कला और शिल्प का प्रदर्शन होगा। मांडू, मध्य प्रदेश स्थित एक प्राचीन शहर है। मांडू, पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के धार ज़िले में स्थित है। इस ऐतिहासिक शहर को परमार राजवंश के राजा भोज द्वारा स्थापित किया गया था, जिसके बाद 1304 ईस्वी में दिल्ली के मुस्लिम शासकों द्वारा इस पर कब्ज़ा कर लिया गया।
स्थायी
उत्पादन प्रणाली को लेकर समझौता
- भारत सरकार, छत्तीसगढ़ सरकार और विश्व बैंक ने छत्तीसगढ़ में स्थायी उत्पादन प्रणाली विकसित करने के लिये 10 करोड़ डॉलर की ऋण परियोजना पर हस्ताक्षर किये हैं, यह राज्य के दूरदराज़ के क्षेत्रों में आदिवासी परिवारों को पूरे वर्ष विविध एवं पौष्टिक खाद्य का उत्पादन करने की अनुमति देगा। इस समझौते के तहत ‘छत्तीसगढ़ समावेशी ग्रामीण और त्वरित कृषि विकास’ परियोजना यानी ‘चिराग’ को राज्य के दक्षिणी आदिवासी बहुल उस क्षेत्र में जल्द-से-जल्द लागू किया जाएगा, जहाँ एक बड़ी आबादी कुपोषण और गरीबी से प्रभावित है। इस परियोजना से छत्तीसगढ़ के आठ ज़िलों के लगभग एक लाख 80 हज़ार से अधिक परिवारों को लाभ मिलेगा। ज्ञात हो कि कृषि भारत में आजीविका का एक प्रमुख साधन है और यह समझौता केंद्र सरकार के वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को भी पूरा करेगा। छत्तीसगढ़ की ‘चिराग’ परियोजना विविध और पौष्टिक भोजन तथा सतत् कृषि प्रणाली की नींव रखेगी। यह छोटे किसानों को किसान उत्पादक संगठनों से जोड़ेगा और लाभदायक बाज़ारों तक उनकी पहुँच में सुधार कर आमदनी बढ़ाएगा।
मध्य प्रदेश में डाकुओं पर आधारित संग्रहालय
- जल्द ही मध्य प्रदेश के भिंड में स्थित पुलिस मुख्यालय में डाकुओं पर एक अनूठा संग्रहालय स्थापित किया जाएगा। मध्य प्रदेश के इस संग्रहालय में कई अनोखी वस्तुओं का प्रदर्शन किया जाएगा, जिसमें फूलन देवी और निर्भय गुज्जर आदि से संबंधित वस्तुएँ शामिल हैं। इस संग्रहालय का उद्देश्य डाकुओं का सम्मान करना अथवा उनकी प्रशंसा करना नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य डाकुओं के अपराधों को प्रमुखता से प्रदर्शित करना और अपराधों को रोकने के लिये पुलिस द्वारा किये गए बलिदानों को उजागर करना है। इस संग्रहालय में कुख्यात डाकुओं द्वारा की गई हत्याओं, लूट और अपहरण के मामलों में पिछले पाँच दशकों में पुलिस द्वारा एकत्र किये गए कम-से-कम 2,000 डिजिटल रिकॉर्ड और सामग्री को संकलित किया जाएगा।
विज्ञान ज्योति कार्यक्रम
- हाल ही में ‘विज्ञान ज्योति कार्यक्रम’ के दूसरे चरण की शुरुआत करते हुए इस कार्यक्रम का विस्तार देश के 50 और ज़िलों तक कर दिया गया है। लड़कियों की विज्ञान के प्रति रुचि बढ़ाने और उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में कॅरियर बनाने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा ‘विज्ञान ज्योति कार्यक्रम’ की शुरुआत की गई थी। दिसंबर 2019 से यह कार्यक्रम 50 जवाहर नवोदय विद्यालयों में सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है और अब इसे वर्ष 2021-22 के लिये 50 और विद्यालयों में शुरु कर दिया गया है। यह कार्यक्रम स्टेम (STEM- Science, Technology, Engineering and Mathematics) क्षेत्रों में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व की समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है। इस योजना का उद्देश्य स्टेम शिक्षा में महिलाओं का प्रतिशत बढ़ाना है। इस योजना के अंतर्गत छात्राओं के लिये भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों और राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में विज्ञान शिविर का आयोजन किया जाएगा, साथ ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, कॉर्पोरेट, विश्वविद्यालयों तथा डीआरडीओ जैसे शीर्ष संस्थानों में कार्यरत सफल महिलाओं से शिविर के माध्यम से संपर्क स्थापित कराया जाएगा।