राजस्थान का पर्यावरण एवं भूगोल
- राजस्थान प्रदेश 23°03 से 30°12 उत्तरी अक्षांश एवं 60°30 से 78°17 पूर्वी देशान्तर रेखाओं के मध्य स्थित है।
- राज्य का कुल क्षेत्रफल 3,42,274 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में स्थित यह भू-भाग अपनी अनेकता मे एकता समेटे हुए है। इसके 66000 वर्ग मील रेतीले क्षेत्र के अतिरिक्त 430 मील लम्बे अरावली पर्वत शृंखला ने भौगोलिक दृष्टि से इसे विभाजित कर रखा है।
- अरावली पर्वत की श्रृंखला आबू पर्वत के गुरु शिखर से प्रारम्भ होकर अलवर के सिंघाना तक विस्तृत है ।
- विश्व की इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला का उत्तर-पश्चिमी भाग वर्षा के अभाव में सूखा रह गया है, यह क्षेत्र अरावली पर्वत की सूखी ढाल पर है, उत्तर-पश्चिमी भाग विशेषकर जोधपुर, जैसलमेर व बीकानेर का भू-भाग आता है।
- राजस्थान की जलवायु शुष्क है। यहां पर विशाल एवं उच्च बालू रेत के टीलों की प्रधानता है इस क्षेत्र में वर्षा के अभाव के कारण प्रागैतिहासिककाल मे बसावट की गहनता का अभाव दिखाई देता है।
- इस क्षेत्र मे बहने वाली प्रमुख नदियों में लूनी नदी महत्वपूर्ण है। यह अजमेर के आनासागर से निकल कर जोधपुर, बाड़मेर व जालौर जिलो का सिंचन कर कच्छ की खाड़ी मे जा समाप्ती हैं। सूकडी, जोजरी, बांडी सरस्वती, मीठडी आदि इसकी सहायक नदियां है।
- अरावली पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी पूर्वी भाग में अच्छी वर्षा होती है तथा यहां कई नदियों बहती है इसलिए राजस्थान का यह भाग अत्यन्त उपजाऊ हैं । इस क्षेत्र में रहने वाली प्रमुख नदियों में चम्बल बनास, बेडच, बनास की सहायक कोठारी कालिसिंध, माही, साबरमती आदि नदियां हैं ।
- सामाजिक विकास के प्रारंभिक स्तर पर प्रागैतिहासिक मानव के इतिहास का स्वरूप ज्यादा इस पर निर्भर था कि वह किस प्रकार वहां तत्कालीन पर्यावरण के साथ परस्पर सम्पर्क करता था । बिना भूगोल के इतिहास अधूरा रहता है और अपने एक प्रमुख तत्व से वंचित हो जाता हैं। यही कारण है कि इतिहास को मानव जाति के इतिहास और पर्यावरण का इतिहास दोनो ही परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। मिट्टी, वर्षा, वनस्पति, जलवायु और पर्यावरण मानव संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है ।
प्रागैतिहासिक काल में राजस्थान की जलवायु
- राजस्थान की जलवायु का प्रागैतिहासिक काल में अपना महत्व रहा है 1960 के दशक में पुरावनस्पति शास्त्रियों पुरातत्ववेत्ताओं ने इस क्षेत्र का सर्वेक्षण किया जिसमें अमलानन्द घोष, गुरूदीपसिंह अल्चिन, गोढी, हेगडे, धीर, वी. एन. मिश्रा, सिन्हा आदि विद्वान सम्मिलित थे इन्होने सर्वप्रथम लूनी बेसीन मे सर्वेक्षण के दौरान पाया कि यहां 10,000 वर्ष पूर्व सांभर, डीडवाना, पुष्कर और लूणकरणसर क्षेत्र का जलवायु मनुष्यों के रहने के अनुकूल था ।
- इस प्रदेश की मिट्टी रेतीली थी यहां पर उष्णकटिबंधीय क्षेत्र अधिक होने से वर्षा का अभाव था जबकि दक्षिणी-पूर्वी भाग में मिट्टी अधिक उपजाऊ थी इसलिए यहां सिचाई के अभाव के बावजूद अच्छी फसलें हों जाती थी। इस भू-भाग मे ताम्रपाषाण युगीन बस्तियां काफी संख्या में फैली हुई है। । इसकी भौगोलिक अवस्थाओं को देखते हुए प्रतीत होता है कि प्रागैतिहासिककालीन संस्कृति का विस्तार इस भू-भाग में जलवायु के अनुकूल रहने के कारण हुआ होगा ।