राजस्थान में प्रगैतिहासिक चरण उच्च पुरापाषाणकाल
उच्च पुरापाषाणकाल
- 1970 से पूर्व तक यह माना जाता था कि भारत में उच्च पुरापाषाण काल का अभाव रहा हैं परन्तु बीसवीं शताब्दी के सातवें एवं आठ्वे दशक में पुरातत्व वेत्ताओं ने इस काल की संस्कृति के अध्ययन हेतु सर्वेक्षण कर इस ओर शोधकार्य आरंभ किया।
- जिसमें उत्तर प्रदेश तथा बिहार के दक्षिणी पठारी क्षेत्र मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान से इस काल की संस्कृति के प्रमाण अस्तित्व में आयें।
- उच्च पुरापाषाणकाल के प्रस्तर उपकरणों की मुख्य विशेषता ब्लेड उपकरणों की प्रधानता रही ब्लेड सामान्यतः पतले और संकरे आकार के लगभग समानान्तर पार्श वाले उन पाषाण फलकों को कहते हैं, जिनकी लम्बाई उनकी चौड़ाई की कम से कम दुगुनी होती हैं ।
- उच्च पुरापाषाणकाल में मनुष्यों ने अपने प्रत्येक कार्यों के लिए विशिष्ट प्रकार के उपकरण बनाने की तकनीकी विकसित कर ली थी।
- इस काल की संस्कृति का प्रधान उपकरण ब्यूरीन (burin) था। इससे तात्पर्य ऐसे उपकरण से हैं जो छिलने अथवा नक्काशी करने के काम में प्रयुक्त होता था दूसरे शब्दों में तक्षणी भी कहा जा सकता हैं।
- इसका प्रयोग हड्डी, हाथीदाँत, सींग आदि की नक्काशी करने के काम में लिया जाता था इस काल की संगति की दूसरी विशेषता यह रही कि आधुनिक मानव जिसे जीव विज्ञान की भाषा में होमोसेपियन्स (Homo Sapines) कहते है। इसी काल मे पृथ्वी पर अवतरित हुआ था।