आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक 2021 आज पारित
रक्षा कंपनियों में हड़ताल, तालाबंदी, छंटनी पर रोक वाला विधेयक पारित
लोकसभा में विपक्ष के भारी विरोध और हंगामे के बीच आवश्यक रक्षा
सेवा विधेयक 2021 आज पारित हो गया जिसमें जिसमें रक्षा
सेवाओं में संलग्न इकाइयों में असैन्य कर्मचारियों की हड़ताल, तालाबंदी और छंटनी पर प्रतिबंध लगाने
के प्रावधान किये गये हैं।
दो बार के स्थगन के बाद सदन के समवेत होने पर
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, वामदल, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी
पार्टी, शिरोमणि अकाली दल आदि विपक्षी दलों के
सदस्य सदन के बीचोंबीच आ कर पेगासस जासूसी कांड, किसानों की समस्याओं एवं महंगाई को लेकर नारेबाजी करने लगे।
अध्यक्ष ओम बिरला ने सदस्यों से आग्रह किया कि
वे अपने स्थान पर बैठें और सदन की कार्यवाही चलने दें। वह हर सदस्य को बोलने का
पूरा अवसर देंगे लेकिन शोरशराबा नहीं थमा। अध्यक्ष के कहने पर रक्षा राज्य मंत्री
अजय भट्ट ने आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक 2021 को
सदन में चर्चा और पारित करने के लिए पेश किया। इस मौके पर रक्षा मंत्री राजनाथ
सिंह उपस्थित थे।
श्री भट्ट ने विधेयक के बारे में सदन को
आश्वस्त किया कि इसमें किसी भी श्रमिक अधिकारों एवं सुविधाओं का हनन नहीं किया गया
है। सात रक्षा उपक्रमों में निगमीकरण के विरोध में कर्मचारियों के हड़ताल करने की
नोटिस दिये जाने के बाद देश की उत्तरी सीमाओं की स्थिति को देखते हुए ऐहतियात के
रूप में सरकार को जून में अध्यादेश लाना पड़ा और उसके स्थान पर ये विधेयक लाया गया
है जिसे केवल तब ही इस्तेमाल किया जायेगा जब ऐसी स्थिति निर्मित हाेगी। देश की
रक्षा एवं सुरक्षा को ध्यान में रखकर यह विधेयक लाया गया है क्योंकि कोई नहीं
चाहेगा कि देश की सीमाओं पर गोलाबारूद हथियारों एवं अन्य साजोसामान की आपूर्ति में
कोई व्यवधान हो।
उन्होंने कहा कि आवश्यक सेवा रखरखाव अधिनियम
(एस्मा) के समाप्त होने के कारण इस विधेयक को लाने की जरूरत पड़ी। उन्होंने कहा कि
यदि कर्मचारी हड़ताल की नोटिस नहीं देते तो इस अध्यादेश या विधेयक की जरूरत नहीं
पड़ती। उन्होंने सदन को आश्वस्त किया कि इस विधेयक से किसी के लोकतांत्रिक
अधिकारों का कोई संकट नहीं है।
शोरशराबे के बीच रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी
के श्री एन के प्रेमचंद्रन ने इस विधेयक पर संशोधन प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि
इस विधेयक से रक्षा इकाइयों में करीब 84
हजार असैन्य कर्मचारियों के लोकतांत्रिक अधिकारों और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन
(आईएलओ) की शर्ताें का हनन होता है। उन्होंने हंगामे के बीच इतने महत्वपूर्ण
विधेयक को पारित कराने की सरकार की कोशिश का पुरजोर विरोध किया और कहा कि यह तरीका
कतई उचित नहीं है। सरकार को इसे पारित नहीं कराना चाहिए।
कांग्रेस के नेता अधीररंजन चौधरी ने इस विधेयक
को क्रूर कानून बताते हुए कहा कि यह कर्मचारियों के लोकतांत्रिक अधिकारों का गला
घोंटने वाला विधेयक है। उन्होंने कहा कि इससे कर्मचारियों के हितों को रौंदा जा
रहा है। उन्होंने कहा कि हम हर मुद्दे पर चर्चा करना चाहते हैं और यह भी चाहते हैं
कि इसकी शुरुआत पेगासस जासूसी मामले पर चर्चा से हो। लेकिन इस हंगामे की स्थिति
में यह विधेयक पारित नहीं किया जाए।
तृणमूल कांग्रेस के प्रो. सौगत राय ने भी इसे
गैरलोकतांत्रिक और श्रमिक विरोधी विधेयक बताते हुए इसका विरोध किया। बसपा के नेता
कुंवर दानिश अली ने भी विधेयक के विरोध में नारे लगाये।
इसबीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि
ऑर्डिनेंस फैक्टरी बोर्ड के कर्मचारियों की यूनियन के प्रतिनिधियों के साथ
सौहार्द्रपूर्ण बातचीत में सहमति बनने के बाद ही इस विधेयक को लाया गया है। यह तभी
प्रभावी होगा जब इसकी जरूरत होगी और यह देश की सुरक्षा जरूरतों को ध्यान में रखकर
एक वर्ष के लिए बनाया गया है।
अध्यक्ष श्री बिरला ने हंगामे के बीच ही विधेयक
को पारित करने की प्रक्रिया पूरी की और विधेयक के पारित होने के बाद विपक्षी
सदस्यों से पुन: अपील की कि वे अपने स्थान पर बैठ कर चर्चा में भाग लें लेकिन
हंगामा जारी रहने पर सदन की कार्यवाही चार बजे तक के लिए स्थगित कर दी।
इस विधेयक में रक्षा संबंधी उद्देश्यों के लिए
जरूरी वस्तुओं या उपकरणों का निर्माण करने वाले उपक्रम, सशस्त्र बलों या उसने जुड़ा हुआ कोई
विभाग, रक्षा संबंधी कोई संगठन जिनकी सेवाएं
रुकने से उक्त विभाग या उनके कर्मचारियों की सुरक्षा, रक्षा उपकरण या वस्तुओं का निर्माण, ऐसी इकाइयों का संचालन या रखरखाव अथवा
रक्षा से जुड़े उत्पादों की मरम्मत या रखरखाव पर असर हो, को शामिल किया गया है। सरकार उपरोक्त
सेवाओं से जुड़ी इकाइयों में हड़तालों, तालाबंदी
और छंटनियों पर प्रतिबंध लगा सकती है। प्रतिबंध के आदेश छह महीने तक लागू रहेंगे
और छह महीने के लिए बढ़ाए जा सकते हैं।
नियोक्ता गैरकानूनी तालाबंदी या छंटनियों के
जरिए प्रतिबंध के आदेश का उल्लंघन करते हैं तो उन्हें एक वर्ष तक की कैद की सजा हो
सकती है या 10,000 रुपए का जुर्माना हो सकता है, या दोनों सजाएं भुगतनी पड़ सकती हैं।
अवैध हड़तालों के लिए भड़काने, उकसाने
या उसे जारी रखने की कार्रवाई करने, या
ऐसे उद्देश्यों के लिए धन मुहैय्या कराने वाले लोगों को दो वर्ष तक की कैद की सजा
हो सकती है या 15,000 रुपए का जुर्माना हो सकता है, या दोनों सजाएं भुगतनी पड़ सकती हैं।
इसके अतिरिक्त ऐसे कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। इस
कार्रवाई में सेवा की शर्तों के अनुसार नौकरी से बर्खास्तगी शामिल है। विधेयक के
अंतर्गत सभी अपराध संज्ञेय और गैरजमानती हैं।