आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह दोहे का हिन्दी अर्थ
तुलसीदास के विचारों ने समय -समय पर देश के लोगों को नई ऊर्जा और सोच का अनुभव कराया है। तुलसीदास की दूरदर्शिता और ऊर्जावान विचार आज भी लोगों को एक नई राह दिखाने का सामर्थ्य रखते हैं।
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।
अर्थ -
जिस समूह में शिरकत होने से वहां के लोग आपसे खुश नहीं होते और वहां लोगों की नजरों में आपके लिए प्रेम या स्नेह नहीं है, तो ऐसे स्थान या समूह में हमें कभी शिरकत नहीं करना चाहिए, भले ही वहां स्वर्ण बरस रहा हो।