आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह दोहे का हिन्दी अर्थ | Aavat Hi Harshe Nahi Dohe Ka Hindi Arth - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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गुरुवार, 16 सितंबर 2021

आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह दोहे का हिन्दी अर्थ | Aavat Hi Harshe Nahi Dohe Ka Hindi Arth

आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह दोहे का हिन्दी अर्थ

आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह दोहे का हिन्दी अर्थ | Aavat Hi Harshe Nahi Dohe Ka Hindi Arth



तुलसीदास के विचारों ने समय -समय पर देश के लोगों को नई ऊर्जा और सोच का अनुभव कराया है। तुलसीदास की दूरदर्शिता और ऊर्जावान विचार आज भी लोगों को एक नई राह दिखाने का सामर्थ्य रखते हैं।


आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह। 

तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।

अर्थ -


जिस समूह में शिरकत होने से वहां के लोग आपसे खुश नहीं होते और वहां लोगों की नजरों में आपके लिए प्रेम या स्नेह नहीं हैतो ऐसे स्थान या समूह में हमें कभी शिरकत नहीं करना चाहिएभले ही वहां स्वर्ण बरस रहा हो।