कान्हा नेशनल पार्क के बारे में जानकारी |कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के दर्शनीय स्थल | Kanha National Park - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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बुधवार, 8 सितंबर 2021

कान्हा नेशनल पार्क के बारे में जानकारी |कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के दर्शनीय स्थल | Kanha National Park

कान्हा नेशनल पार्क के बारे में जानकारी 

कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के दर्शनीय स्थल

कान्हा नेशनल पार्क के बारे में जानकारी |कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के दर्शनीय स्थल  | Kanha National Park


मध्य प्रदेश में स्थापित नेशनल पार्कों के प्रति देशी पर्यटकों के साथ विदेशी पर्यटक बहुत तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। इनमें से एक है कान्हा नेशनल पार्क। यह पार्क वन सम्पदा, वन्य जीवों की प्रचुरता और जैविकी विविधताओं से लबरेज है।

 

कान्हा नेशनल पार्क के बारे में जानकारी 

  • कान्हा नेशनल पार्क विलक्षण और अद्वितीय प्राकृतिक आवास के लिए जाना जाता है। कान्हा का संपूर्ण वन क्षेत्र वैभवशाली अतीत को आज भी संजोए हुए है, जिसकी वजह से यह पार्क देशी-विदेशी पर्यटकों को बरबस अपनी ओर खींचता है।

 

  • मण्डला और बालाघाट जिले की सीमा से लगा यह पार्क प्राकृतिक और पर्यावरणीय गौरव के लिए जाना जाता है। क्षेत्रफल के लिहाज से इसका देश के सबसे बड़े राष्ट्रीय पार्कों में शुमार है। कोर वन मण्डल (राष्ट्रीय उद्यान) एवं बफर जोन वन मण्डल कान्हा टाईगर रिजर्व के अन्तर्गत आते हैं। इन दोनों वन मण्डल का क्षेत्रफल क्रमश: 940 और 1134 वर्ग कि.मी. है। 

  • कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में 91 हजार 743 वर्ग कि.मी. का क्षेत्रफल क्रिटिकल टाईगर हेबीटेट के रूप में अधिसूचित है। इसके अलावा टाइगर रिजर्व के अधीन एक वन्य-प्राणी अभयारण्य सेटेलाइट मिनी कोर-फेन अभयारण्य है, जो 110.74 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला है।

 

कान्हा राष्ट्रीय उद्यान 118 बाघ और 146 तेंदुए सहित अनेक वन्य-जीव है मौजूद

 

  • टाइगर रिजर्व में वन्य- प्राणी गणना आकलन 2020 के अनुसार 118 बाघ और 146 तेंदुए मौजूद हैं। बाघों में 83 वयस्क और 35 शावक बाघ हैं। इसके अलावा जंगली कुत्ता, लकड़ बग्घा, सियार,भेड़िया, भालू (रीछ), लोमड़ी, जंगली बिल्ली, जंगली सुअर, गौर, चीतल, बारासिंघा, सांभर, मेड़क-मेड़की, चौसिंघा, नीलगाय, नेवला, पानी कुत्ता (उद बिलाव), सेही, लंगूर, बंदर, मोर प्रजाति के वन्य-जीव उपलब्ध हैं। साथ ही स्तनधारियों की तकरीबन 43 प्रजाति, पक्षियों की 325, सरी सृप की 39, कीट की 500, मकड़ी की 114 और पतंगों और तितलियों की भी अनेक प्रजाति पर्यटकों को अपनी ओर खींचती हैं।

 

कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के दर्शनीय स्थल 

 

फेन अभयारण्य – 

  • टाइगर रिजर्व की विशेष इकाई फेन अभयारण्य है। वर्ष 1983 में 110 वर्ग कि.मी. का क्षेत्र फेन अभयारण्य घोषित हुआ। यह क्षेत्र वन्य-जीव के आवासीय स्थल के रूप में पिछले वर्षों से, काफी विकसित हुआ हैं। इस क्षेत्र में पूर्व में 38 मवेशी गाय, भैंस रहकर वन क्षेत्र को नष्ट किया करती थी। वर्ष 1997-98 के मध्य यहाँ से सभी शिवरों को विशेष मुहिम से हटा दिया, तब से यहाँ के वन काफी अच्छे हो गए हैं जिससे अब यहाँ बाघ, तेंदुआ, बायसन, चीतल, सांभर, जंगली कुत्ता आदि विचरण करते दिखाई देते है।

 

श्रवणताल - 

  • कान्हा से 4 कि.मी. की दूरी पर श्रवणताल है। पौराणिक मान्यता अनुसार राजा दशरथ के तीर से मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार की मृत्यु इसी स्थान पर होना माना जाता है। यहाँ कई साल पहले तक मकर संक्राति का मेला लगता था। श्रवणताल में वर्ष भर पानी रहता है, जिसके कारण नीचे स्थित मेन्हरनाला और देशीनाला क्षेत्र में पानी रिसने से हमेशा नमी बनी रहती है, जो बाघ के लिए उपयुक्त आवास है। बारासिंघा पानी में घुसकर यहाँ जलीय पौधों को अपना भोजन बनाते हैं।

 

किसली मैदान (चुप्पे मैदान) 

  • पार्क का यह मुख्य प्रवेश द्वार है। वर्ष 1986-87 में यहाँ बसे लोगों को पार्क के बाहर कपोट बहरा में विस्थापित किया गया था। ढ़ाई दशक पहले यहाँ आरा मिल का ऑफिस लगा करता था।

 

डिगडोला - 

  • किसली परिक्षेत्र के उत्तर पूर्व पहाड़ी में एक बैलेंसिंग रॉक संतुलित चट्टान पर अपना संतुलन बनाये रखी है। इस क्षेत्र को डिगडोला कहते हैं। आदिवासियों के लिए यह पूजा स्थल के रूप में विख्यात है।

 

कान्हा मैदान

  • कान्हा के चारों ओर घास के मैदान स्थित हैं। यहाँ पहले खेती हुआ करती थी। विस्थापन में 26 परिवारों को वर्ष 1998-99 में मानेगाँव में बसाया गया। इसके बाद खेत घास के मैदान में परिवर्तित हो गये, जिसके कारण शाकाहारी वन्य-प्राणियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई।

 

कान्हा एनीकट 

  • देशीनाला में बना एनीकट जल संवर्धन के साथ वन्य जीवों के लिये बहु-उपयोगी माना जाता है। इस एनीकट का निर्माण 72 साल पहले हुआ था।

 

चुहरी 

  • कान्हा से 3 कि.मी. की दूरी पर चुहरी क्षेत्र है। पानी वाली जगह का चुहरी कहा जाता है। यह क्षेत्र बाघों के आवास के लिए उपयुक्त माना जाता है।

 

बारासिंघा फेंसिंग

  • इसका निर्माण पचास साल पहले हुआ था। बारासिंघा का संवर्धन इसी क्षेत्र में ही किया जाता है। इनके संबंध में अनुसंधान/अनुश्रवण आदि के कार्नीवोरस प्रूफ फेंसिंग के अंदर कुछ बारासिंघा को आवश्यकतानुसार यहाँ पर रखा जाता है। बारासिंघा की संख्या में वृद्धि होने पर उन्हें बाद में मुक्त कर दिया जाता है।

 

बिसनपुरा

  • कान्हा-मुक्की मार्ग में बिसनपुरा मैदान स्थित है। पहले इस स्थान में छोटा गाँव हुआ करता था। वर्ष 1974-76 के मध्य यहाँ से 13 परिवारों को विस्थापित करके भिलवानी वनग्राम समूह में बसाया गया। वर्तमान में इस स्थान में काफी अच्छे चारागाह विकसित हो जाने से, काफी संख्या में पर्णभक्षी आते हैं। पानी की प्रचुर मात्रा रहने से कान्हा की तरफ से पहाड़ पार से वन्य-जीव का इधर आवागमन काफी अच्छा रहता है। इस इलाके में बारहसिंगा, चीतल, बायसन, जंगली सुअर, भालू और गिद्ध दिखाई देते हैं।

 

सोंढर एवं सोंढर तालाब 

  • कान्हा-मुक्की मार्ग पर सोढर मैदान स्थित है। पहले इस जगह गाँव हुआ करता था। वर्ष 1974-76 के बीच यहाँ 11 परिवारों को विस्थापित कर अन्यत्र बसाया गया। सोंढर तालाब काफी पुराना है। खेतों की जगह चारागाह विकसित हुए जो बारासिंघा के लिये उपयुक्त है। इस क्षेत्र में एक ही क्रम में पाँच तालाब है, जो ऊपर से नीचे घटते क्रम में है। इसके कारण जल संवर्धन का उचित उपयोग होने से क्षेत्र बारहसिंगा, वाइल्ड बोर, चीतल और वायसन के लिये यह उपयुक्त है।

 

घोरेला 

  • सोंढर से कुछ दूरी पर घोरेला मैदान है। वर्ष 1974-76 के पहले यहाँ गाँव था जिसमें से 22 परिवारों को विस्थापित करके मुक्की एवं धनियाझोर में बसाया गया। यहाँ बारासिंघा काफी दिखाई देते हैं।

 

लपसी कबर

  • बिसनपुरा से कुछ दूरी पर मुक्की की तरफ खापा तिराहे पर, मार्ग के किनारे लपसी कबर है। लपसी वन्य-जीवों का ज्ञाता था। पूर्व में जब शिकार की अनुमति थी तब वह शिकारियों का सहयोगी था। ऐसी किवदंती है, कि लपसी, बाघ के शिकार के समय अपनी पत्नी को गारे के रूप में प्रयोग किया करता था। एक दिन शिकार के समय बाघ द्वारा उसकी पत्नी पर हमला बोलने पर वह स्वयं बाघ से भिड़ गया जिससे दोनों की मृत्यु हो गई। मान्यता यह भी है कि लपसी की कब्र में पत्थर चढ़ाने पर बाघ दिखाई देता है।

 

सौंफ

  • औरई मार्ग पर स्थित सौंफ क्षेत्र पहले गाँव था। आज से 52 साल पहले इस गाँव के 29 परिवारों को भानपुर खेड़ा ग्राम में विस्थापित किया गया था। वर्तमान में अच्छे खासे-घास के मैदान हैं। यह क्षेत्र बारासिंघा के लिये मुरीद माना जाता है। जल संवर्धन के लिए कई तालाब तथा डेम हैं। क्षेत्र में बारासिंघा और चीतल मुख्य रूप से है। वर्ष 1993 के जुलाई माह में वनरक्षक स्व. श्री चंदन लाल वाकट शिकारियों के साथ लड़ते हुए, यहीं पर शहीद हुए थे। तब से इस सर्किल का नाम चंदन सर्किलहै। सौंफ क्षेत्र बारासिंघा के लिए सर्वश्रेष्ठ आवास स्थल है।

 

रौंदा

  • सौंफ से 4 कि.मी. दूरी पर रौंदाक्षेत्र स्थित है। यह क्षेत्र भी पहले गाँव था। वर्ष 1974-76 के मध्य यहाँ से 53 परिवारों को प्रेमनगर, विजयनगर और कारीवाह में बसाया गया। इस क्षेत्र में स्थानों पर चारागाह ही है। यह बारहसिंघा का आवास है।

 

दरबारी पत्थर-नसेनी पत्थर 

  • चिमटा कैम्प के पीछे एक बड़े आकार का पत्थर है, जो लगभग 20 मीटर चौड़ा और 35 फीट ऊँचा है। इस पत्थर को नसेनी पत्थरभी बोला जाता है। इसके ऊपर छोटे-छोटे पत्थर कुर्सीनुमा रखे हैं। किवदंती है, कि दानव लोग यहाँ बैठकर दरबार करते थे।

 

कान्हा नेशनल पार्क ऐसे पहुँचे

 

  • कान्हा नेशनल पार्क पहुँचने के लिए पर्यटक वायु मार्ग से निकटतम जबलपुर 100 कि.मी., रायपुर 250 कि.मी. और नागपुर 300 कि.मी. है। इसी तरह निकटतम रेलवे स्टेशन नैनपुर, गोंदिया एवं जबलपुर है। नैनपुर से मंडला जिले के खटिया एवं सरही गेट पहुँचा जा सकता है।

 

कान्हा  नेशनल पार्क में वन्य-प्राणियों की सुरक्षा में 962 अमला है तैनात

 

  • केटीआर में वन्य-प्राणियों के सुरक्षा के लिए सहायक वन संरक्षक, वन क्षेत्रपाल, उपवन क्षेत्रपाल, वनपाल, वनरक्षक, स्थायीकर्मी, सुरक्षा या समिति श्रमिक और भूतपूर्व सैनिक सहित 962 व्यक्ति तैनात हैं। इसके अलावा रिजर्व क्षेत्र के लिए 162 पुरूष और 13 महिलाएँ गाईड का दायित्व निभाती हैं।

 

 कान्हा नेशनल पार्क में पर्यटक संख्या

 

  • राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक नियमित रूप से "कान्हा टाइगर रिजर्व" पहुँचते हैं। यह सामान्यतः अक्टूबर से 30 जून तक खुला रहा करता है। नेशनल पार्क में प्रवेश के लिए खटिया, किसली, सरही एवं मुक्की 4 गेट हैं। इसी प्रकार मध्यप्रदेश टूरिज्म सहित अन्य बड़े घरानों के होटल भी हैं। वर्ष 2019-2020 में कोर जोन में 90 हजार 135 देशी, 13 हजार 875 विदेशी और बफर जोन में 13 हजार 928 देशी तथा 305 विदेशी पर्यटकों ने पर्यटन किया। वर्ष 2020-2021 में कोर जोन में डेढ़ लाख से ज्यादा देशी और 109 विदेशी पर्यटक आए। बफर जोन में 19 हजार 395 देशी तथा 6 विदेशी पर्यटकों ने पर्यटन किया। वर्ष 2020-21 में कोर जोन में कुल डेढ़ लाख से ज्यादा तथा बफर जोन में 19 हजार 401 पर्यटक आए।

 

कान्हा  नेशनल पार्क प्रबंधन को मिला सम्मान

 

  • वर्ष 2019 में अंग्रेजी भाषा में सर्वश्रेष्ठ प्रकाशनश्रेणी के तहत कान्हा कॉफी टेबल बुक को भारत सरकार की ओर से पार्क प्रबंधन के लिए "भारत पर्यटन पुरस्कार" से सम्मानित किया गया। वर्ष 2020 में पार्क को अनुभूति कार्यक्रमके उत्कृष्ट संचालन के लिए राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया है।