चित्रकला की ढूंढाड़ स्कूल शैली विशेषताएँ प्रमुख चित्रकार।Chitra Kala Ki Dhudhan Shaili Chitrakar aur Visehshtaayen - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

चित्रकला की ढूंढाड़ स्कूल शैली विशेषताएँ प्रमुख चित्रकार।Chitra Kala Ki Dhudhan Shaili Chitrakar aur Visehshtaayen

चित्रकला की ढूंढाड़ स्कूल शैली विशेषताएँ प्रमुख चित्रकार 

चित्रकला की ढूंढाड़ स्कूल शैली विशेषताएँ प्रमुख चित्रकार।Chitra Kala Ki Dhudhan Shaili Chitrakar aur Visehshtaayen

अलवर शैली की विशेषताएँ प्रमुख चित्रकार

 

  • यह शैली सन् 1775 ई. मे जयपुर से अलग होकर 'राव राजा प्रतापसिंहके राजत्व मे स्वंत्रत अस्तित्व प्राप्त कर सकी। 
  • अलवर कलम जयपुर चित्रकला की एक उपशैली मानी जाती हैं।  
  • उनके राजकाल मे शिवकुमार और डालूरामनामक जयपुर से अलवर आये।
  • डालूराम भिति चित्रण मे दक्ष थे। राजगढ़ के किले दो चित्रकार के शीशमहल मे भितिचित्र अंकित सुन्दर कलात्मक हैं। महल की छत विभिन्न रंगों के शीशो से जुड़ी हुई हैं तथा बीच-बीच मे अनेक चित्र हैं। 
  • अलवर शैली पर ईरानीमुगल तथा जयपुर शैली का प्रभाव है। 
  • महाराजा विनय सिंह का काल इस शैली का स्वर्णकाल माना जाता है। 
  • रावराजा प्रतापसिंह जी के उपरांत उनके सुपुत्र राव राजा बख्तावरसिंह जी (1790-1814 ई.) ने राज्य की बागडोर संभाली।
  • चंद्रसखी एवं बख्तेश के नाम से वे काव्य रचा करते थे। 
  • दानलीला उनका महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं। बलदेवडालूरामसालगा एवं सालिगराम उनके राज्य के प्रमुख चितेरे थे। 
  • बलदेव मुगल शैली मे और डालूराम राजपूत शैली में काम करते थे। यही कारण है कि उन्होंने 'गुलामअलीजैसे सिद्ध कलाकारों आगामिर्जा देहलवी जैसे सुलेखकों एवं नत्थासिंह दरबेश जैसे जिल्दसाजो को राजकीय सम्मान से दिल्ली से बुलाया। 
  • बलवन्तसिंह1827-1866 ई ने 23 वर्ष के राजकाल में कला की जितनी सेवा कीवह अलवर के इतिहास में अविस्मरणीय रहेंगी। वे कला प्रेमी शासक थे। 
  • इनके दरबार में सालिगराम जमनादासछोटेलालबकसारामनन्दराम आदि कलाकारों ने जमकर पोथी चित्रोलघुचित्रों एवं लिपटवाँ पटचित्रो का चित्रांकन किया महाराजा मंगलसिंह 1874-1892 ई. के राजकाल में पारम्परिक कलाकार नानकरामबुद्धरामउदयरामरामगोपाल कार्यरत थे महाराजा मंगलसिंह की मृत्यु के बाद उनके एकमात्र पुत्र जयसिंह 1892-1937 ई. गद्दी पर बैठे। वे रामगोपालजगमोहनरामसहाय नेपालियाजैसे कलाकारों ने अलवर शैली की कला को अंतिम समय तक बनाये रखा।

 

  • महाराजा शिवदान के समय इस शैली में वैश्या या गणिकाओं पर आधारित चित्र बनाए गएअर्थात कामशास्त्र पर आधारित चित्र इस शैली की निजी विशेषता है। 
  • इस शैली में हाथी दांत की प्लेटों पर चित्रकारी का कार्य चित्रकार मूलचंद के द्वारा किया गया। 
  • बसलो चित्रण अर्थात् बार्डर पर सुक्ष्म चित्रण तथा योगासन इस शैली के प्रमुख विषय है। 
  • अलवर शैली के चित्रों की पृष्ठभूमि में शुभ्र आकाश का तथा • सफेद बादलों का दृश्य दिखाया गया है। 
  • प्रमुख चित्रकार मुस्लिम संत शेख सादी द्वारा रचित ग्रन्थ गुलिस्ताँ पर आधारित चित्र गुलाम अली तथा बलदेव नामक चित्रकारों द्वारा तैयार किए गए। डालचंदसहदेव व बुद्धाराम अन्य प्रमुख चित्रकार है।

 

अलवर शैली की विशेषताएं

 

  • अलवर शैली मे ईरानीमुगल और राजस्थानी विशेषत: जयपुर शैली का आशचर्यजनक संतुलित समन्वयक देखने को मिलता है।
  • पुरुषों एवं स्त्रियों के पहनावे मे राजपूत एवं मुगलई वेशभूषा का प्रभाव लक्षित होता हैं 
  • अलवर  का प्राकृतिक परिवेश इस शैली के चित्रों मे वनउपवन कुंजविहारमहलआटारी आदि के चित्रांकन में देखा जा सकता हैं। 
  • रंगो का चुनाव भी अलवर शैली का अपना निजी हैं चिकने और उज्जवल रंगो के प्रयोग ने इन चित्रो को आकर्षित  बना दिया। 


आमेर शैली विशेषताएँ प्रमुख चित्रकार

 

  • इस शैली में प्राकृतिक रंगों की प्रधानता है। 
  • इस शैली का प्रारम्भिक विकास मानसिंह प्रथम के काल में हुआ। 
  • मिर्जा राजा जयसिंह का काल आमेर चित्रकला शैली का  स्वर्णकाल माना जाता है।
  • आमेर चित्रकला शैली का प्रयोग आमेर के महलों में भिति चित्रण के रूप में किया गया है। इस शैली पर मुगल शैली का सर्वाधिक प्रभाव रहा।


प्रमुख चित्र 

  • 1. बिहारी सतसई ( जगन्नाथ चित्रकार) 
  • 2. आदि पुराण (पुश्दत्त चित्रकार) 


  • जयपुर के विकासक्रम मे राजधानी आमेर की चित्र शैली की उपेक्षा के नही की जा सकती हैंजयपुर की चित्रण परम्परा उसी का क्रमिक विकास हैं। 
  • प्रथम प्रारंभिक काल जब जयपुर रियासत के नरेशों की राजधानी आमेर मे थी तथा द्वितीय सवाई जयसिंह द्वारा जयपुर नगर की स्थापना के बाद परिपक्व चित्रकला का काल । 
  • 1589 से 1614ई. तक राजा मानसिंह के समय मे मुगल साम्राज्य मे से कछवाहा वंश के संबंध बड़े गहन थे। आमेर शैली के प्रारंभिक काल के चित्रित ग्रंथों में यशोधरा चरित्र (1591 ई) नामक ग्रंथ आमेर मे चित्रित हुआ। 
  • महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय संग्रहालय में सुरक्षित रज्मनामा (1588 ई) की प्रति अकबर के लिए जयपुर सूरतखाने मे ही तैयार की गई थी। 
  • इसमें 169 बड़े आकार के चित्र हैं एवं जयपुर के चित्रकारों का भी उल्लेख हैं। सन् 1606 ई.मे निर्मित आदिपुराण भी जयपुर शैली की चित्रकला का तिथियुक्त क्रमिक विकास बतलाती हैं।  
  • 17वीं शताब्दी दो दशक के आस-पास आमेर-शाहपुरा मार्ग पर राजकीय शमशान स्थली में मानसिंह की छतरी मे बने भित्तिचित्र (कालियादमनमल्लयोद्राशिकारगणेशसरस्वती आदि) 
  • भाऊपुरा रैनवाल की छतरी (1684 ई)राजा मानसिंह के जन्म स्थान मौजमाबाद के किले (लड़ते हुए हाथी)बैराठ में स्थित मुगल गार्डन 'मे बनी छतरी मे सुन्दर भितिचित्र हैं। 
  • शैली का दूसरा महत्वपूर्ण चरण मिर्जा राजा जयसिंह (1621 1667 ई) के राज्य काल से प्रारम्भ होता हैं।  
  • बिहारी सतसई ने अनेक चित्रकारों को उस पर चित्र बनाने के लिये प्रोत्साहित किया। रसिकप्रिया और कृष्ण रुक्मिणी वेलि नामक ग्रंथ मिर्जा राजा जयसिंह ने अपनी रानी चन्द्रावती के लिए सन् 1639 ई. मे बनवाया था। इस लोक शैली मै कृष्ण और गोपियों का स्वरूप प्रसिद्ध था।

 

जयपुर शैली विशेषताएँ प्रमुख चित्रकार

 

  • जयपुर शैली का प्रारम्भिक विकास सवाई जयसिह के समय हुआ हुआ। 
  • जयपुर शैली का स्वर्णकाल सवाई प्रताप सिंह का काल माना जाता है (1699-1743 ई) का युग महाराजा सवाई जयसिंह प्रथम का आता हैं। 
  • सवाई जयसिंह ने अपने राजचिन्होंकोषोरोजमर्रा की वस्तुएं कला का खजानासाज-समान आदि को सही ढंग से रखने या संचालित करने लिये छतुस कारखानो की स्थापना की। 
  • सूरतखाना भी एक था उसमे चित्रकार चित्रों का निर्माण करते थे। 
  •  इस समय मे रसिकप्रियाकविप्रियागीत- गोविन्द बारहमासानवरसऔर रागमाला चित्रो का निर्माण हुआ था। 
  • ये सभी चित्र मुगलिया प्रभाव लिये थे। दरबारी चित्रकार मोहम्मद शाह व साहिबराम थे। जयसिंह के दरबारी कवि शिवदास राय द्वारा ब्रज भाषा मे तैयार की गई सचित्र पांडुलिपि सरस रस ग्रंथ (1737 ई.) हैंजिसमे कृष्ण विषयक चित्र 39पृष्ठो पर अंकित हैं। 
  • सवाई जयसिंह के बाद पुत्र महाराजा सवाई ईशवरी सिंह (1743 1750 ई. तक) गद्दी पर बैठे। चित्र सृजन का केंद्र (सूरतखाना) आमेर से हट कर जयपुर आ गया। 
  • महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम (1750-1767 ई.) के समर कलाकारों ने चित्रण के स्थान पर रंगों को न भरकर मोतीलाख तथा लकड़ी की मणियों को चिपकाकर रीतिकालीन प्रवृत्ति को बढ़ाया।
  • लाल चितेरा सवाई जयसिंह तथा सवाई माधोसिंह का एक प्रमुख चित्रकार था। 
  • सवाई माधोसिंह को ही विभिन्न मुद्राओं में चित्रित किया गया हैं। जैसे दरबार मे जननी मजलिसशिकारघुड़सवारीहाथियों की लडाई देखतेउत्सवों व त्यौहारों में होते है। अन्य चित्रकारो मे रामजीदास व गोविंदा ने भी चित्र बनायें। 
  • माधोसिंह के पुत्र सवाई पृथ्वीसिंह जो 1767-1779 ई. गद्दी पर बैठा। इनके शासन काल में मंगलहीरानंद और त्रिलोका नामक चित्रकारो ने महाराज के चित्र बनाये। 
  • सवाई प्रतापसिंह के समय पचास से भी अधिक कलाकार सूरतखाने मे चित्र बनाते थे जिनमे-रामसेवकगोपालहुकमाचिमनासालिगरामलक्ष्मणघासी बेटा सीतारामहीरासीता-राम राजू शिवदासगोविंद राम आदि। 
  • शैली की विशेषताएं व साहिबराम कलाकार द्वारा बने चित्र राधाकृष्ण का नृत्य व महाराजा सवाई प्रतापसिंह का आदमकद व्यक्ति चित्रदेवी भागवत् संवत 1856 (1799 ई.)भागवत दशम स्कद (1792)रामायण। कृष्णलीला आदि की पाण्डुलिपि पर चित्र श्रृंखला तैयार की। 
  • रागमाला (1785-90) छतीस राग-रागनियों पर आधारित) का सम्पूर्ण सैटजिसमे 34 चित्र उपलब्ध हैं। इन चत्रो को जीवन, (नवला, ' और 'शिवदासनामक कलाकारों ने मिलकर बनाया। कला की मौलिकता महाराजा सवाई जगतसिंह 1803-1818 ई. तक चलती रही. 
  • महाराजा जयसिंह द्वितीय व महाराजा रामसिंह के समय सन् 1835 ई. मे प्राचीन पद्धति का ह्रास अपनी चरमसीमा पर पहुँचा । 
  • इस समय के तिथि युक्त चित्रों में 1838 ई. का संजीवनी1846 ई. का श्री सीलवृद्धि साहित्य1848 ई. का महाभारत सैट1850 ई. की भागवत गीता हैं 4) इस समय में आचार्य की हवेली (गलता)दुसाद की हवेली, सामोद की हवेली व प्रताप नारायण पुरोहित जी हवेलियां मे सुन्दर चित्र का निर्माण हुआ है।  
  • महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय (1880-1922 ई.) के शासन तक चित्रकार पूर्ण रूप से यूरोपियन प्रभाव मे ढल चुके थे। 
  • इस समय मे दश महाविधा का जवाहर सैट 1920 ई.प्रमुख है।


 विशेषताएं

 

  • सैकड़ों व्यक्ति चित्र और समूह - चित्र जयपुर - शैली की अपनी विशेष दाय हैं। हाशिये बनाने मे गहरे लाल रंग का प्रयोग किया। 
  • चाँदी सोने का प्रयोग भी उन्होनें चित्रो मे किया। 
  • इस शैली के चित्रों में पुरुष तथा महिलाओं के कद अनुपातिक हैं। 
  • पुरुष पात्रो के चेहरे साफ तथा आँखें खंजनाकार हैं। नारी पात्रो का अंकन स्वस्थआँखें बड़ीलम्बी केशराशिभरा हुआ शरीर तथा सुहावनी मुद्रा में हुआ हैं। 


प्रकृति चित्रण

 

  • नीले बादलो मे सफेद रुईदार बादल तैरते हुए बनाने की परम्परा रही है। 
  • उद्यान मे आम्रकेलापीपलकदम्ब के वृक्ष बनाये गए हैं। 
  • जयपुर के शासक ईश्वरी सिंह के समय इस शैली में राजा महाराजाओं के बड़े-बड़े आदमकद चित्र अर्थात पोट्रेट चित्र दरबारी चित्रकार साहिब राम के द्वारा तैयार किए गए। 


उनियारा शैली विशेषताएँ प्रमुख चित्रकार

 

  • उनियारा जयपुर और बूँदी रियासतों की सीमा पर बसा है। बूँदी एवं उनियारा के रक्त संबंध अथवा वैवाहिक संबंधों के कारण उनियारा पर उसका प्रभाव भी पड़ा शनैः शनै: एक नयी शैली का प्रादुर्भाव हुआ, जिसे उनियारा शैली के नाम से जाना गया।

 

  • आमेर के कछवाहों मे नरुजी के वंशज नरुका कहलाते थे। इन्ही की वंश परम्परा मे राव चन्द्रभान 1586- 1660 ई. ने मुगल पक्ष मे कान्धार युद्ध 1660 ई. में अत्यधिक शौर्य प्रदर्शित किया। इससे प्रसन्न होकर मुगल बादशाह ने इनको उनियारा, नगर, ककोड़ और बनेठा के चार परगने जागीर मे दिये।
 
  • चन्द्रभान की पाँचवीं पीढ़ी मे रावराजा सरदारसिंह ने धीमा, मीरबक्स, काशी, भीम आदि कलाकारों को आश्रय प्रदान किया।
  • उनियार के नगर और रंगमहल के भितिचित्रों के अवलोकन से ज्ञात होत हैं कि इन पर बूँदी ओर जयपुर का समन्वित प्रभाव हैं अनेक पोथी चित्रो तथा लघुचित्रों के माध्यम से भी उनियारा  ज्ञान होता हैं।' 
  • राम-सीता, लक्ष्मण व हनुमान मीरबक्स लाकार द्वारा चित्रित उनियारा शैली का उत्कृष्ट चित्र हैं। 
  • रावराजा सरदारसिंह की जनानी महफिल व मर्दानी महफिल के चित्र विशेष हैं। 
  • इस शैली का प्रमुख विषय रसिक प्रिया है। रसिक प्रिया रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि केशव द्वारा लिखा गया ग्रंथ है। 

 

विशेषताएं

 

  •  आकृति - चित्रो मे नारी के चेहरे कोमल भावों को व्यन्जित करते है। 
  • मीनाकारी नेत्र, लम्बी पुष्ट नासिका, धनुषाकार भौहें, सोन्दर्यात्मक ढंग से निरुपण हुआ हैं। ऊँट, शेर, घोडा, हाथी प्रमुखता से चित्रित हैं। 
  • रंग - प्राकृतिक उपादानो से प्राप्त शुद्ध रंगो, स्वर्ण रंग, सफेद एवं काले रंग के मिश्रण से का प्रयोग किया गया था।

 

शेखावाटी शैली विशेषताएँ प्रमुख चित्रकार

 

  • इस शैली का विकास सार्दुल सिंह शेखावत के काल में हुआ। में हुआ है। 
  • इस शैली का प्रयोग हवेलियों में भित्ति चित्रण के रूप यह शैली हवेलियों में भिति चित्रण की दृष्टि से समृद्ध शैली है। 
  • इस शैली में भित्ति चित्रण करने वाले चित्रकार चेजारे कहलाते है 
  • शेखावटी शैली के भित्ति चित्रकार अपने चित्रों पर अपना नाम  तथा तिथि अंकित करते थे। 
  • बल खाती बालों की लट का एक ओर अंकन शैखावटी शैली का प्रमुख चित्र है। 
  • लोक जीवन की झांकी इस शैली का प्रमुख चित्रण विषय रहा। 
  • प्रमुख चित्रकार- बालूराम, तनसुख, जयदेव ।