चित्रकला की मारवाड़ स्कूल शैली विशेषताएँ प्रमुख चित्रकार । Marwaad Chitkala Shaili aur chitrakar - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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सोमवार, 20 दिसंबर 2021

चित्रकला की मारवाड़ स्कूल शैली विशेषताएँ प्रमुख चित्रकार । Marwaad Chitkala Shaili aur chitrakar

 चित्रकला  की मारवाड़ स्कूल  शैली विशेषताएँ  प्रमुख चित्रकार 

चित्रकला  की मारवाड़ स्कूल  शैली विशेषताएँ प्रमुख चित्रकार । Marwaad Chitkala Shaili aur chitrakar



चित्रकला की मारवाड़ स्कूल  शैली विशेषताएँ प्रमुख चित्रकार 

 

जोधपुर शैली की जानकारी और विशेषताएँ 

 

  • इस शैली पर मुगल शैली का प्रभाव हैं।
  • इस शैली का प्रारम्भिक विकास राव मालदेव ( 52 युद्धों का विजेता) के काल में हुआ। 
  • स्वर्णकालजसवंत सिंह प्रथम का काल रहा। 
  • यह शैली मालदेव के समय में स्वतंत्र अस्तित्व में आयीपहले इस पर मेवाड़ शैली का स्पष्ट प्रभाव था इस काल की प्रतिनिधि चित्र शैली के उदाहरण चोखे का महल व चित्रित उत्तराध्ययन सूत्र से प्राप्त होते है। 
  • जोधपुर में सूरसिंह के समय ढोला मारू प्रमुख चित्रित ग्रन्थ है.  
  • इस चित्रों में शीर्षक नागरी लिपि व गुजराती भाषा में लिखे गए.  
  • पाली का रागमाला सम्पुट मारवाड़ का प्राचीनतम तिथि युक्त कृति के रूप में महत्व रखता है। 
  • 1623 ईस्वी में वीर जी द्वारा पाली के प्रसिद्ध वीर पुरुष विठ्ठल दास चंपावत के लिये रागमाला चित्रवाली चित्रित किया गया। 
  • मुगल शैली का प्रभाव मोटा राजा उदयसिंह के समय पड़ा अन्य संरक्षक मानसिंहशूरसिंहअभय सिंह थे। 
  • चित्रित विषय राजसी ठाठ-बाटदरबारी दृश्य आदि। 
  • चित्रकार किशनदास भाटीदेवी सिंह भाटीअमर सिंह भाटी वीर सिंह भाटीदेवदास भाटीशिवदास भाटीरतन भाटीनारायण भाटीगोपालदास भाटीप्रमुख थे।
  • प्रमुख चित्र -इस चित्रकला शैली में मुख्यतः लोकगाथाओं का चित्रण किया गया। जैसे- मूमलदेनिहालदेढोला मारूउजली जेठवाकल्याण रागनीनाथ चरित्र (मानसिंह नाथ संप्रदायभगवान शंकर से प्रभावित था)सूरसागररागमालापंचतंत्र, कामसूत्र । 
  • रागमाला चित्रवालीशुद्ध राजस्थानी में अंकित है महाराज गजसिंह के शासन काल मे ढोला मारूभागवत ग्रन्थ चित्रित किये गए। 
  • महाराज अजीत सिंह के समय के चित्र मारवाड़ चित्र शैली के सबसे सुंदर चित्र माने जाते है.  
  • अभयसिंह जी का नृत्य देखते हुए चित्र डालचंद द्वारा चित्रित किया गया है। 
  • महाराज भीमसिंह के समय चित्रित दशहरा दरबार जोधपुर चित्र शैली का सुंदरतम उदाहरण है. 
  • महाराज मानसिंह के समय शिवदास द्वारा स्त्री को हुक्का पीते हुए दिखाया गया है।

 

विषय 

  • प्रेमाख्यान प्रधान रहा जैसे ढोला मारवलरूपमति बाज बहादुरकल्पना रागिनी प्रमुख 
  • प्रकृति चित्रों में मरु टीलेझाड़ एवं छोटे पौधेविद्युत रेखाओं का सर्पाकार रूप में व मेघो को गहरे काले रंग में गोलाकार दिखाया गया है।
  • पशुओ में ऊँटघोड़ाहिरन तथा श्वान को अधिक चित्रित किया है।
  • बादामी आँखेव ऊँची पाग जोधपुर शैली की अपनी देन है।

 

प्रमुख चित्रकार 

  • शिवदास भाटीनारायण दासबिशन दासकिशनदासअमरदासरामूनाथोडालूफेज अलीउदयरामकालूछज्जू भाटीजीतमल प्रमुख चित्रकार रहे है।
  • रंग- लाल व पीले रंग का बाहुल्य हैजो स्थानीय विशेषता है।

 

किशनगढ़ शैली जानकारी और विशेषताएँ 

 

  • उदयसिंह के 9वें पुत्र किशनसिंह ने सन् 1609 ई. मे अलग राज्य किशनगढ़ की नीवं डाली। 
  • यहां के राजा वल्लभ सम्प्रदाय मे दीक्षित रहेइसलिए राधा कृष्ण की लीलाओं का साकार स्वरूप चित्रण के माध्यम से  बहुलता से हुआ। 
  • (1643-1748 ई) काव्य और चित्रकला का क्रमिक विकास हुआ। 
  • भंवरलालसूरध्वज आदि चित्रकारों ने इसे खूब बढ़ाया। 
  • किशनगढ़ शैली अपनी धार्मिकता के कारण विश्वप्रसिद्ध हुई। 
  • राजसिंह ने चित्रकार निहालचंद को चित्रशाला प्रबंधक बनाया। 
  • राजा सावन्तसिहं का काल (17481764 ई.) किशनगढ़ शैली का स्वर्णयुग कहा जा सकता हैं।
  • राजा सावन्तसिहं स्वयं एक अच्छा चित्रकार था एवं धार्मिक प्रकृति का व्यक्ति था। अपनी विमाता द्वारा दिल्ली के अन्तःपुर से लाई हुई सेविका उसके मन मे समा गई। इस सुन्दरी का नाम बणी-ठणी था। शीघ्र ही यह उसकी पासवान बन गई 
  • महाराजा सांवत सिंह के समय इस शैली का सर्वश्रेष्ठ चित्र बणी ठणी को सांवत सिंह के चित्रकार मोरध्वज निहाल चन्द द्वारा चित्रित किया गया। 
  • किशनगढ़ शैली के चित्र बणी-ठणी पर सरकार द्वारा 1973 ई. में 20 पैसें का डाक टिकट जारी किया जा चुका
  • किशनगढ़ शैली के प्रसिद्ध चित्र बणी-ठणी इस का भारत की मोनालिसाकहा जाता है । 
  • इस शैली को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर दिलाने का श्रेय एरिक डिक्सन तथा फैयाज अली को दिया जाता है। 
  • नागरीदास की प्रेमिका बणी-ठणी को राधा के रूप में अंकित किया जाता है । 
  • यह कांगड़ा शैली से प्रभावित है । 
  • नागरीदास जी के काव्य प्रेमगायनबणी-ठणी के संगीत प्रेम और कलाकार मोरध्वज निहालचंद के चित्रकार ने किशनगढ़ की चित्रकला को सर्वोच्च स्थान पर पहुंचा दिया।
  • किशनगढ़ शैली की अलौकिकता धीरे-धीरे विलीन होने लगी और  विकृत स्वरूप सामने आने लगा। 
  • 19वीं शती मे पृथ्वीसिंह के समय (1840-1880ई.) के चित्रो में दिखाई पड़ता हैं। 
  • यह शैली कांगड़ा शैलीसे प्रभावित रही है। 
  • वेसरि किशनगढ़ शैली में प्रयुक्त नाक का प्रमुख आभूषण।

 

किशनगढ़ शैली की विशेषताएं - 

 

  • शैली मे पुरुषाकृति मे लम्बा छरहरा नील छवियुक्त शरीरजटाजूट की भांति ऊपर उठी हुई मोती की लड़ियों से युक्त शवेत या मूँगिया पगड़ीसमुन्नत ललाटलम्बी नासिकामधुरपतली आदि निजी विशेषताएं हैं। 
  • सारे मुखमंडल मे नेत्र इतने प्रमुख रहते हैं कि दर्शक की प्रथम द्रष्टि वही पर मँडराने लगती हैं। 
  • अलंकारों ओर फूलो से आवेष्टित सारा शरीर किशनगढ़ शैली मे अनोखा हैं। 
  • किशनगढ़ शहर तथा रुपनगढ़ का प्राकृतिक परिवेश जिस प्रकार झीलोंपहाड़ोंउपवनों और विभिन्न पशु-पक्षियों से युक्त रहा है।
  • यही चित्रण बूँदी शैली में सीमित क्षेत्र में हुआ हैं। चाँदनी रात मे राधाकृष्ण की की क्रीड़ाएंप्रातः कालीन और सांध्यकालीन बादलों का सिन्दूरी चित्रण शैली मे विशेष हुआ हैं। 
  • किशनगढ़ शैली के चित्रों में कई जगह ताम्बूल सेवन का वर्णन मिलता हैं।
  • शैली के अन्य प्रमुख चित्र- दीपावलीसांझी लीलानौका विहार (दा बोट ऑफ लव)राधा / बणीठणी (1760 ई)गोवर्धन धारण (1755) ई. इनके चित्रकार निहालचंद थे।
  • चांदनी रात की संगीत गोष्ठी चित्रकार अमरचंद द्वारा सावंत सिंह के समय बनाया गया। 
  • लाल बजरा (1735-1757 ई.) 
  • राजा सावंत सिहं की पूजा और बणीठणी (1740 ई) 
  • ताम्बूल सेवा (1780 ई) 
  • दा डिवाईन कपल (1780ई.) भी उल्लेखनीय चित्र हैं।

 

चित्रकार

 

  • किशनगढ़ शैली के चित्रकारों मे अमीरचंद', धन्नाभंवरलालछोटूसूरतरामसूरध्वजबदन सिंहमोरध्वजनिहालचंदनानकरामसीताराम रामनाथतुलसीदास आदि नाम उल्लेखनीय हैं। 
  • किशनगढ के शासक सांवत सिंह अन्तिम समय में राजपाट छोड़कर वृदांवन चले गए और कृष्ण भक्ति में लीन हो गए। उन्होंने अपना नाम नागरीदास रखा तथा नागर समुच्चय नाम से काव्यरचना करने लगे। 


बीकानेर शैली शेषताएँ प्रमुख चित्रकार

  • यह शैली मुगल शैलीसे प्रभावित रही ।  
  • बीकानेर शैली का प्रादुर्भाव 16 वी शती के अन्त में माना जाता हैं। 
  • राव रायसिंह के समय चित्रित भागवत पुराण प्रारंभिक चित्र माना जाता हैं।  
  • इस समय यह शैली चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई। बीकानेर शैली के चित्रों में कलाकार का नाम उसके पिता का नाम ओर सवंत उपलब्ध होता हैं। 
  • इस शैली का प्रारम्भिक विकास रायसिंह राठौड़ के समय हुआ महाराज अनूपसिंह के काल मे विशुद्ध बीकानेर शैली के दर्शन होते हैं।
  • इस शैली का स्वर्णकाल महाराजा अनूपसिंह का काल माना जाता है । 
  • मुगल शैली का प्रभाव राजा कल्याणमल के समय पड़ा। 
  • बीकानेर नरेश रायसिंह (1574-1612ई.) मुगल कलाकारों की दक्षता से प्रभावित होकर वे उनमें से कुछ को अपने साथ ले आये। इनमें उस्ता अली रजा व उस्ता हामिद रुकनुद्दीन थे। इन दोनों कलाकारों की कला की कलाकृतियों से चित्रकारिता की बीकानेर शैली का उद्भव हुआ।
  • बीकानेर के प्रारंभिक चित्रो मे जैन स्कूल का प्रभाव जैन पति मथैरणों के कारण रहा। 
  • यहां दो परिवारों का ही प्रभाव चित्रकला पर विशेष रहा मथैरण परिवार जैन मिश्रित शैलीमुगल दरबार मुगल शैली मे कुशल था।
  • इस शैली का प्रयोग आला गिल्ला कारीगरी (नम दीवार पर किया गया चूने के माध्यम से भीत्ती चित्रण आला गिला कारीगरी कहलाता हैइस कला को मुग़ल सम्राट अकबर के काल में इटली से लाया गया)काष्ठ चित्रांकनमथैरण तथा उस्ता कला में किया गया।
  • इस शैली के अन्तर्गत महाराजा राय सिंह के समय प्रसिद्ध चित्रकार हामित रूकनुद्दीन थे।
  • महाराजा गज के समय शाह मोहम्मद (लाहौर से लाए गए) महाराजा अनूपसिंह के प्रमुख दरबारी चित्रकार हसनअल्लीरज्जा और रामलाल थे।  

अन्य चित्रकार 

  • मुन्नालाल व मस्तलाल अन्य प्रमुख चित्रकार थे 
  • इस शैली में चित्रण का विषय दरबारी दृश्यबादल दृश्य थे।
  • इस शैली में पुरूष आकृति दाड़ी मूंह युक्त तथा उग्रस्वभाव वाली दर्शाई गई। 
  • इस शैली का सबसे प्राचीन चित्र भागवत पुराण महाराजा रायसिंह के समय चित्रित किया गया। 
  • चित्रकार चित्र के नीचे अपने हस्ताक्षर व तिथि अंकित करते थे ऊँची मारवाड़ी पगड़ियांऊँटहरिनबीकानेर रहन-सहन और राजपूती संस्कृति की छाप प्रमुखता देखने को मिलती हैं। 
  • भागवत कथा आदि पर भी चित्र बने।

 

बीकानेर शैली प्रमुख चित्रकार

  • मथैरण परिवार के चित्रकारों ने अपनी परम्परा को कायम रखा उन्होंने जैन-ग्रंथ अनुकृतिधर्मग्रंथ का लेखन एवं तीज-त्यौहार व राजा व्यक्तिचित्र उन्हें भेट किये। 
  • मुन्ना लालमुकुंद (1668)रामकिशन (1170)जयकिशन मथेरणचन्दूलाल (1678)शिवराम (1788)जोशी मेघराज (1797) आदि चित्रकारों के नाम एवं संवत् अंकित चित्र आज भी देखने को मिलता हैं। 
  • चित्रकारों में उस्ता परिवार के उस्ता कायमकासिमअबुहमीद  शाह मोहम्मदअहमद अलीशाहबदीनजीवन आदि प्रमुख हैं। 
  • इन्होंने रसिकप्रियाबारहमासारागरागिनीकृष्ण लीलाशिकारमहफिल तथा सामन्ती वैभव का चित्रण किया था। 


बीकानेर शैली की विशेषताएं - 

  • बीकानेर राज्य का मुगल दरबार से गहन सम्बन्ध होने के कारण मुगल शैली की सभी विशेषताएं बीकानेर की प्रारंभिक चित्रकला मे द्रष्टव्य हैं। 
  • दक्षिणी शैली का प्रभाव बीकानेर शैली पर सर्वाधिक हैं। 
  • इस शैली मे आकाश को सुनहरे छल्लो से यक्त मेघाच्छादित दिखाया गया है। 
  • बरसते बादलों मे से सारस-मिथुनों की नयनाभिराम आकृतिया भी इसी शैली की विशेषता है यहां फव्वारोंदरबार के दिखाओं आदि मे दक्षिण शैली का प्रभाव दिखाई देता हैं।

 

जैसलमेर शैली विशेषताएँ प्रमुख चित्रकार

 

  • राज्य की एकमात्र शैली है जिस पर किसी अन्य शैली का प्रभाव नहीं है। 
  • इस शैली में रंगों की अधिकता देखने को मिलती है। 
  •  इस शैली का प्रसिद्ध चित्र मूमल है।
  • मूमल को मांड की मोनालिसा कहा जाता है। 
  • इस शैली का प्रारम्भिक विकास हरराय भाटी के काल में हुआ 
  • इस शैली का स्वर्णकाल अखैराज भाटी का काल माना जाता है। 

 

नागौर शैली विशेषताएँ प्रमुख चित्रकार

 

  • नागौर किले की दीवारों पर इस शैली के चित्र बने हुए हैं। 
  • इस शैली में धार्मिक चित्रण किया गया है। 
  • नागौर शैली में हल्के / बुझे हुए रंगों का प्रयोग किया गया है।

 

अजमेर  शैली विशेषताएँ प्रमुख चित्रकार

 

  • सभी रंगों का संयोजन 
  • गरीबों के घरों में भी इस शैली के चित्र बने।