हाड़ौती स्कूल चित्रकला शैली प्रकार विशेषताएँ
हाड़ौती स्कूल चित्रकला शैली प्रकार विशेषताएँ
बूंदी शैली
- इस शैली पर मेवाड़ चित्र शैली का प्रभाव स्प्ष्ट नजर आता है ।
- बूंदी शैली का स्वर्णकाल सुर्जन सिंह हाड़ा का काल माना जाता है।
- बूंदी शैली को राजस्थानी विचारधारा की शैली या प्राचीन विचारधारा की शैली कहा जाता है।
- बूंदी शैली, किशनगढ़ शैली के बाद राज्य की सर्वश्रेष्ठ शैली है।
- बूंदी शैली में दक्षिण शैली, ईरानी शैली, मुगल शैल / व मराठा शैली का समन्वय देखने को मिलता है।
- बूंदी शैली के अन्तर्गत यहां स्थित चित्रशाला का निर्माण राव उम्मेद सिंह हाड़ा ने करवाया। जिसे भित्ति चित्रों का स्वर्ग कहते हैं। रंगमहल के चित्र राव शत्रुशाल हाड़ा के समय तैयार किए गए ।
- पशु-पक्षियों का चित्रण बूंदी शैली की प्रमुख विशेषताएं है इस शैली में सुनहरे तथा भड़कीले रंगों का प्रयोग बहुतायत किया गया है।
- इस शैली के प्रमुख चित्रकार अहमद अली, सुर्जन, अहमदली, रामलाल, श्री किशन ओर साधुराम इस शैली के प्रमुख कलाकार हुए है।
शत्रुशाल (छत्रशाल)
- रंगमहल का निर्माण करवाया जो अपने सुंदर भित्ति चित्रण के कारण विश्व प्रसिद्ध है।
- अनिरुद्ध सिंह के समय हाड़ोती चित्र शैली में, साउथ शेली का प्रभाव भी आया
- बूंदी चित्रशैली की विशेषता प्रधान रंग- नारंगी व हरा
बूंदी शैली के विषय
- नायिक-नायिका, बारहमासा, ऋतु चित्रण, भागवत पुराण पर आधारित कवियों की रचनाओं से सम्बंधित चित्र मिले।
- दरबारी दृश्य, अन्तःपुर या रनिवास के भोग विलास युक्त जीवन, शिकार, होली, युद्ध के चित्र मिले।
- पशु-पक्षी अर्थात बूंदी चित्र शैली को पशु-पक्षियों वाली चित्र शैली भी कहा जाता है।
- प्रकृति-आकाश में उमड़ते हुये काले बादल, बिजली की कौंध, घनघोर वर्षा, हरे भरे पेड़।
कोटा शैली चित्रकला शैली
- इस शैली का स्वतंत्र विकास महाराजा रामसिंह के समय हुआ कोटा शैली में महाराजा उम्मेद सिंह हाड़ा के समय सर्वाधिक चित्र चित्रित किए गए।
- शिकारी दृश्यों का चित्रण इस शैली की मुख्य विशेषता है
- राज्य की एकमात्र शैली जिसमें नारियों को शिकार करते हुए दर्शाया गया है।
- कोटा शैली का सबसे बड़ा चित्र रागमाला सैट 1768 ई. में महाराजा गुमानसिंह के समय डालू नामक चित्रकार द्वारा तैयार किया गया ।
- कोटा चित्रशैली काफी हद बूंदी शैली के निकट ही नजर आती है कोटा चित्र शैली में बूंदी व मुगल शैली का समन्वय पाया जाता है।
- कोटा कलम में मुगलिया प्रभाव राव जगतसिंह के समय से देखनो को मिलता है।
- कोटा चित्र शेली महाराव उम्मेद सिंह के समय अपने चर्मोत्कर्ष पर थी
- मुख्य विशेषता जगलो में शिकार करने के चित्र यहाँ अधिक मिले है यहां शासको के साथ रानियो व स्त्रियों को भी शिकार करते हुए दिखाया गया है।
- रामसिंह (1828 ) में, ये कला प्रेमी थे इनको हाथी व घोड़े की सवारी अधिक प्रिय थी। अत: उनको चित्रों में राजसी वेशभूषा पहले हुये, हाथी व घोड़े पर बैठे अधिक अंकन किया गया है।
- इनके समय के चित्रों में कुछ चमत्कारी चित्र भी मिलते है जैसे, हाथी की सूंड पर नारी का नृत्य, छतरी पर हाथी की सवारी आदि-आदि।
- 1857 के समर के बाद इस शैली पर कम्पनी की कलम का प्रभाव भी आने लगा। शत्रुशाल द्वितीय के बाद ये शैली अपने पतन की ओर उन्मुख (पतनोन्मुख) हो गई
कोटा चित्रकला शैली की विशेषताएं
नारी सौंदर्य
- इस शैली में नारी का चित्रण अधिक सुंदर मिलता नासिका, पतली कमर, उन्नत उरोज, कपोल अलकावली नारी आकृति की जीवंतता प्रदान करती है।
पुरुष आकृति
- मुख्यतः बृषभ कंधे, उन्नत भौहे, माँसल देह, मुख पर भरी भरी दाढ़ी और मुछे, तलवार कतार आदि हथियारों से युक्त वेशभुषा । मोतियों के जड़े आभूषण विशेष।
- प्रमुख रंग हल्का हरा, पीला व नीला रंग अन्य रंगों की अपेक्षा अधिक प्रयोग हुआ है।
- प्रमुख कलाकार- रघुनाथ, गोविंदराम, डालू, लच्छीराम, नूरमोहम्मद
अजमेर चित्रकला शैली
- राजस्थान की अन्य चित्र-शैलियों की भांति अजमेर भी चित्रकला का प्रमुख केन्द्र रहा। अन्य रियासतों के विपरीत राजनैतिक उथल पुथल तथा धार्मिक प्रभावो के कारण यहां चित्रण के आयाम बदलते रहे । )
- अजमेर मे जहां दरबारी एवं सामंती संस्कृति का अधिक प्रभाव रहा, वही ग्रामों में लोक-संस्कृति तथा ठिकाणों मे राजपूत संस्कृति का वर्चस्व बना रहा।
- प्रारंभिक चित्रो मे राजस्थानी और जैन -शैली का प्रचलित रुप दर्शनीय हैं व मुगलों के आगमन के बाद मुगल स्कूल का प्रभाव देखने को मिलता हैं।
- 1707 मे महाराजा अजीतसिंह के समय से अजमेर कलम पर जोधपुर शैली का प्रभाव पड़ने लगा।
- भिणाय, सावर, मसूदा, जूनियाँ जैसे ठिकाणों में चित्रण की परम्परा ने अजमेर शैली के विकास और संर्वधून मे विशेष योगदान दिया।
- ठिकाणों मे चित्रकार कलाकार करते थे जो जूनियाँ का चाँद, सावर का तैय्यब, नाँद का रामसिंह भाटी, जालजी एवं नारायण भाटी खरवे से, मसूदा से माधोजी एवं राम तथा अजमेर के अल्लाबक्स, उस्ना और साहिबा स्त्री चित्रकार विशेष उल्लेखनीय हैं।
अजमेर शैली के चित्रो की विशेषता
- पुरुषाकृति लंबी, सुन्दर, संभ्रांत एवं ओज को अभिव्यक्ति करने वाली। कानों मे कुंडल, बाली, गले मे मोतियों का हार, माथे पर वैष्णवी तिलक, हाथ मे तलवार, पैरों मे मोचड़ी धारण किये अजमेर शैली के सांमत कला के उदाहरण हैं।
- 1698 का निर्मित व्यक्तिचित्र इस कथन का सुन्दर उदाहरण हैं।
- यही एक ऐसी कलम रही जिसको हिन्दू, मुस्लिम और क्रिश्चियन धर्म का समान प्रश्रय मिला।
- सन् 1700-1750 ई. के मध्य के सभी चित्र नागौर से मिले हैं। इस द्रष्टि से नागौर शैली का विकास भी 18वीं शताब्दी के प्रारंभ से माना जाता हैं।
- नागौर शैली के चित्रों में बीकानेर, अजमेर, जोधपुर, मुगल और दक्षिण चित्र शैली का मिलाजुला प्रभाव है। नागौर शैली मे बुझे हुये रंगों का अधिक प्रयोग हुआ हैं।
- 1700-1750 ई. का ठाकुर इन्द्र सिंह का चित्र इस शैली का उत्कृष्ट चित्र हैं। वृद्धावस्था के चित्रों को नागौर के चित्रकारों ने अत्यंत कुशलतापूर्वक चित्रित किया है।
- नागौर शैली की अपनी पारदर्शी वेशभूषा की विशेषता है।
- शबीहों का चित्रण मुख्य रूप से नागौर मे हुआ है।
चित्रकला की प्रमुख संस्थाऐं
- जोधपुर- चितेरा, धोरा
- उदयपुर-ढखमल, तुलिका कला परिश्द
- जयपुर- कलावृत, आयाम, पैंग, क्रिएटिव संस्थाऐं, जवाहर कला केन्द्र 1993 में
- भीलवाड़ा- अंकन
- राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स एवं क्राफ्ट्स- महाराजा रामसिंह के 1857 (1866) में जयपुर में स्थापित पुराना नाम मदरसा-ए हुनरी
- राजस्थान ललित कला अकादमी 24 नवम्बर 1957 (1956) - में जयपुर में स्थापित है।
प्रमुख चित्रकला संग्रहालय
1. पोथी खाना- जयपुर
2. जैन भण्डार जैसलमेर
3 पुस्तक / मान प्रकाश - जोधपुर
4. सरस्वती भण्डार उदयपुर
5. अलवर भण्डार - अलवर
6. कोटा भण्डार कोटा
प्रमुख चित्रकार
रामगोपाल विजयवर्गीय
- जन्म- बालेर ( सवाईमाधोपुर) में हुआ।
- राजस्थान में एकल चित्रण प्रणाली की परम्परा प्रारम्भ करने वाले प्रथम चित्रकार थे ।
- नारी चित्रण इनका प्रमुख विषय था।
- इन्हें राजस्थान की आधुनिक चित्रकला का जनक कहते है
गोवर्धन लालबाबा
- जन्म कांकरोली (राजसमंद) में हुआ।
- भीली जीवन का चित्रण इनका प्रमुख विषय था।
- इन्हें भीलों का चितेरा भी कहा जात है।
- इनका प्रमुख / प्रसिद्ध चित्र बारात है।