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गुरुवार, 27 जनवरी 2022

ओंकारेश्वर दर्शनीय स्थल के सम्पूर्ण जानकारी,ओंकारेश्वर का ज्योतिर्लिंग । Omkareshwar Ki Jaankari

ओंकारेश्वर दर्शनीय स्थल के सम्पूर्ण जानकारी 

 

ओंकारेश्वर दर्शनीय स्थल के सम्पूर्ण जानकारी  । Omkareshwar Ki Jaankari


ओंकारेश्वर दर्शनीय स्थल के सम्पूर्ण जानकारी 

 

हिंदू धर्म के प्रसिद्ध प्रतीक ओम् की आकृति जैसा स्थान ओंकारेश्वर एक द्वीप के समान है। यहाँ प्रदेश की जीवन रेखा नर्मदा और कावेरी नदी के संगम पर स्थित श्री ओंकार मान्धाता के मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग धार्मिक आस्था का केंद्र है। 


ओंकारेश्वर का ज्योतिर्लिंग

भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर का ज्योतिर्लिंग है। नर्मदा के जल प्रवाह द्वारा नैसर्गिक रूप से निर्मित एक मील लंबाई तथा आधा मील चौड़ाई वाले प्रायद्वीप समान स्थान पर श्री ओंकारेश्वर मंदिर स्थित है। मंदिर के निर्माण में काम आने वाले मृदु पत्थरों से नक्काशी का कार्य बेहतर हुआ है। दीवारों पर आकृतियों की चित्रावली अत्यंत आकर्षक है। मंदिर की पाषाण छत को अच्छी लगन के साथ उकेरा गया है। मंदिर के प्रदक्षिणा पथ में स्तंभ गोलाकार बहुभुजाकार और वर्गाकार तराशे गए हैं।


ओंकारेश्वर में स्थित सिद्धनाथ मंदिर

ओंकारेश्वर दर्शनीय स्थल के सम्पूर्ण जानकारी  । Omkareshwar Ki Jaankari


ओंकारेश्वर में स्थित सिद्धनाथ मंदिर मध्यकालीन ब्राम्हण वास्तुकला का श्रेष्ठ उदाहरण है। शिलालेख में उत्कीर्ण किये गये हाथियों की श्रृंखला ध्यान आकर्षित करती हैं। निमाड़ के तीर्थ स्थल ओंकारेश्वर में चौबीस अवतार ऐसा क्षेत्र है जो हिंदुओं और जैन मंदिरों का समूह है। विविधपूर्ण स्थापत्य शैली के कुशलपूर्वक उपयोग करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।


काजल रानी गुफा

काजल रानी गुफा


ओंकारेश्वर से 6 किलोमीटर दूर सप्त मातृका मंदिर और 9 किलोमीटर दूर काजल रानी गुफा स्थल है। सूरत मातृका मंदिर दसवीं सदी के मंदिरों का समूह है। काजल रानी गुफा सुरम्य स्थल है। प्रकृति की सुंदरता से ओतप्रोत इस स्थल से आकाश ऐसा दिखाई देता है मानी धरती और आकाश का मिलन हो रहा हो।


ओंकारेश्वर तीर्थस्थल महेश्वर

राजा वीर्य अर्जुन की राजधानी ओंकारेश्वर से लगभग बीस किलोमीटर दूर स्थित है प्रसिद्ध तीर्थस्थल महेश्वर है। कभी महिष्मति के नाम से मशहूर महेश्वर पर कल्चूरी शासक का राज रहा। राजा कार्तवीर्य अर्जुन की राजधानी महिष्मति थी रामायण और महाभारत में नर्मदा तट पर बसे महेश्वर का उल्लेख मिलता है। कलचुरी वंश के शासन के बाद हॉल्कर वंश की बास नगरी की पुरातन गरिमा की पुनर्प्रतिष्ठा प्रदान की। महेश्वर के किले के नीचे बहती नर्मदा नदी की फलकल और नदी में नजर आने वाली किसे की परछाई सुंदरता में चार चांद लगा देती है।

 

महेश्वर के किले की राजगद्दी और राजवाड़ा देखने योग्य है। किले परिसर में होल्कर वंश की महारानी अहिल्याबाई की प्रतिमा आसीन है। महेश्वर के किले के अंदर हॉस्कर राजवंश के आकर्षण स्मृति चिन्ह और खानदानी वस्तुएं अनेक कक्षा में सूर्यात है। किले के परिसर में एक मंदिर है। इस मंदिर से ही विजयादशमी की शोभायात्रा का प्रस्थान किया जाता था। यह परंपरा आज भी कायम है। विजयादशमी के दिन देखी प्रतिमा की सुंदर पालकी में सजाकर श्रद्धा के साथ दुर्ग से नगर में शोभायात्रा निकलती है। महेश्वर के नगरवासी वर्षों पुरानी इस धार्मिक परंपरा का पालन कर रहे हैं।

 

महेश्वर में नर्मदा नदी के तट पर पेशवा घाट, फलसे घाट, अहिल्या पाट शोभा बढ़ाते हैं। इन घाटों पर संत महात्मा अपनी तपस्या के लिए धूनी रमाए रहते हैं। ग्रामीण अंचलों से आने वाले सैकड़ों तीर्थयात्री रंग बिरंगे परिवेश में घूमते हुए इंद्रधनुष छटा बिखेर देते हैं। नगर की ग्रामीण महिलाएं जलपात्र लेकर नर्मदा से जल भरने आती हैं तो प्रतीत होता है कि किसी चित्रकार ने अपने चित्र में रंग भरने के लिए कुची चलाई हो। राजा राममोहन राय द्वारा बंद कराई गई सती प्रथा की जीवंत बानगी भी यहां मौजूद पाषाण शिलाओं को देखकर मिलती है। जो महिलाओं के सती होने का प्रतीक है।

 

महेश्वर में कालेश्वर, राजराजेश्वर, बिट्ठलेश्वर और अहिलेश्वर मंदिरों की शृंखला अपनी प्राचीन वैभव की ध्वजा फहरा रहे हैं। वह बहुमंजिले मंदिर प्राचीन संस्कृति के जीवंत गवाह हैं। भारतीय हिंदू शासकों ने अपनी धार्मिक जागरूकता का प्रमाण देवस्थलों को वैभवशाली बनाकर दिया है। इन मंदिरों की नक्काशी और कल्पना और कुशलता के साक्षी हैं। महेश्वर को एक और विशेषता महेश्वरी साड़ियां हैं। महेश्वरी साड़ियों की शुरुआत रानी अहिल्या बाई द्वारा 250 साल पहले किया गया था। सूती कपास से बनी साड़ियां अपनी कारीगरी के कारण पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं। महेश्वरी साड़ियों के किनारों पर बहुरंगी पत्तियां और फूलों के नमूने काढ़े जाते हैं। महेश्वरी साड़ियों के पल्लू में तीन रंगीन, दो सफेद पट्टियां होती हैं । साड़ियों के किनारे विपरीत होने के कारण स्थानीय भाषा में बुगड़ी कहा जाता है।

 

महेश्वर एवं ओंकारेश्वर पहुंचने के लिए मुंबई, दिल्ली, भोपाल एवं ग्वालियर से इंदौर तक विमान सेवा उपलब्ध है। इंदौर से ओंकारेश्वर 77 किलोमीटर तथा महेश्वर की दूरी 91 किलोमीटर है। इंदौर से इन दोनों स्थानों पर सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। ओंकारेश्वर के लिए पश्चिम रेलवे के रतलाम-खंडवा रेल लाइन पर ओंकारेश्वर रोड है। महेश्वर के लिए पश्चिम रेलवे का बड़वाह रेलवे स्टेशन है।