अहो दुरन्ता बलवद्विरोधिता का अर्थ एवं व्याख्या
अहो दुरन्ता बलवद्विरोधिता का अर्थ एवं व्याख्या
'अहो
दुरन्ता बलवद्विरोधिता। "
द्रौपदी युधिष्ठिर से कहती है कि जो व्यक्ति सफल क्रोधवाला होता है, उसके
सभी व्यक्ति स्वतः वशवर्ती हो जाते हैं, किन्तु
जो व्यक्ति क्रोधरहित होता है, उसका
आत्मीयजन आदर नहीं करते और शत्रु उससे भयभीत नहीं होते अर्थात् क्रोध शून्य
व्यक्ति का कहीं भी सम्मान नहीं होता.
“ अमर्षशून्येन
जनस्य जन्तुना ।
न जातहार्देन न विद्विषादरः ॥
क्रोध यद्यपि अरिषड्वर्ग में होने के कारण निन्दनीय है, किन्तु राजाओं को समयानुकूल उसे अपनाना
ही चाहिए, यह भाव व्यक्त है। इसी प्रकार द्रौपदी “शान्ति से सफलता का मार्ग मुनियों का है, राजाओं का नहीं। ” इस बात का उल्लेख करती हुई युधिष्ठिर से कहती है आप शान्ति का मार्ग का
त्याग कर शत्रुओं के वध हेतु अपने उसी पूर्व तेज धारण करने के लिए प्रसन्न हो
जाएँ, क्योंकि इच्छा रहित मुनिजन काम, क्रोध आदि छः शत्रुओं पर कान्ति से विजय प्राप्त करने में सफल होते हैं, राजा लोग नहीं ।