मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के बारे में जानकारी
(M. Visvesvaraya Short Biography in Hindi)
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के बारे में जानकारी
- जन्म 15 सितम्बर 1860
- मृत्यु 14 अप्रैल 1962
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जीवन परिचय (M. Visvesvaraya)
उनका जन्म वर्ष 1861 में कर्नाटक में
हुआ, उन्होंने मैसूर
विश्वविद्यालय से कला स्नातक (BA) की पढ़ाई की और फिर पुणे में विज्ञान कॉलेज से सिविल
इंजीनियरिंग की पढ़ाई की तथा देश के सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरों में से एक बन गए।
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया भारत के एक
अग्रणी इंजीनियर थे जिनकी प्रतिभा जल संसाधनों के दोहन और देश भर में बाँधों के
निर्माण और समेकन में परिलक्षित होती थी।
उनका काम की
लोकप्रियता को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1906-07 में जल आपूर्ति और जल निकासी व्यवस्था का
अध्ययन करने के लिये अदन (यमन) भेजा।
उन्होंने अपने
अध्ययन के आधार पर एक परियोजना तैयार की जिसे अदन में लागू किया गया।
उन्होंने वर्ष 1909 में मैसूर राज्य
के मुख्य अभियंता और 1912 में मैसूर
रियासत के दीवान के रूप में कार्य किया, इस पद पर वे सात वर्षों तक रहे।
दीवान के रूप में
उन्होंने राज्य के समग्र विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया।
वर्ष 1915 में जनता की
भलाई में उनके योगदान के लिये किंग जॉर्ज पंचम द्वारा उन्हें ब्रिटिश भारतीय
साम्राज्य के नाइट कमांडर के रूप में नाइट की उपाधि दी गई थी।
वह एक इंजीनियर
थे जिन्होंने वर्ष 1934 में भारतीय
अर्थव्यवस्था की योजना बनाई थी।
उन्हें 50 वर्षों के लिये
लंदन इंस्टीट्यूशन ऑफ सिविल इंजीनियर्स की मानद सदस्यता से सम्मानित किया गया।
उन्हें वर्ष 1955 में भारत के
सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
वर्ष 1962 में बंगलूरू, कर्नाटक में उनका
निधन हो गया।
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया M. Visvesvaraya द्वारा लिखित पुस्तकें:
रिकंस्ट्रक्टिंग
इंडिया' और प्लान्ड
इकॉनमी फॉर इंडिया।
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का प्रमुख योगदान:
अपने व्यावसायिक जीवन (Professional
Life) के दौरान मैसूर, हैदराबाद, ओडिशा और
महाराष्ट्र में कई उल्लेखनीय निर्माण परियोजनाओं का हिस्सा बनकर उन्होंने समाज के
प्रति बहुत योगदान दिया है।
वह मैसूर में
कृष्णा राजा सागर बाँध के निर्माण के लिये मुख्य कार्यकारी अभियंता (Engineer) थे।
इससे बंजर भूमि
को खेती के लिये उपजाऊ भूमि में परिवर्तित करने में सहायता मिली।
वर्ष 1903 में पुणे में
खड़कवासला जलाशय में स्वचालित वियर फ्लडगेट (Automatic Weir Floodgates) की एक प्रणाली को
डिज़ाइन और पेटेंट कराने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था।
वर्ष 1908 में हैदराबाद
में आई विनाशकारी बाढ़ (मुसी नदी) के बाद उन्होंने भविष्य में शहर को बाढ़ से
बचाने के लिये एक जल निकासी व्यवस्था तैयार की।
उन्होंने ही
तिरुमाला और तिरुपति के बीच सड़क निर्माण की योजना तैयार की थी।
विशाखापत्तनम
बंदरगाह को समुद्री कटाव से बचाने के लिये उन्होंने एक प्रणाली विकसित करने में
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मैसूर राज्य में
कई नई रेलवे लाइनों को भी उन्होंने चालू किया।
उन्होंने 1895 में सुक्कुर नगर
पालिका के लिये वाटरवर्क्स का डिज़ाइन और संचालन किया था।
उन्हें बाँधों
में अवरोधक प्रणाली (Block
System) के विकास का भी श्रेय दिया जाता है जो बाँधों में पानी के
व्यर्थ प्रवाह को रोकता है।
उन्होंने मैसूर
साबुन कारखाना, मैसूर आयरन एंड
स्टील वर्क्स (भद्रावती),
श्री जयचामाराजेंद्र
(Jayachamarajendra) पॉलिटेक्निक
संस्थान, बैंगलोर
(बंगलूरू) कृषि विश्वविद्यालय और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर की स्थापना की ज़िम्मेदारी भी
निभाई।