पापी (बुरे) व्यक्तियों (लोगों) से कैसा व्यहार करना चाहिए
पापी (बुरे) व्यक्तियों (लोगों) से कैसा व्यहार करना चाहिए
अपुण्यशीलेषूपेक्षाम् एवमस्य भावयतः शुक्लो धर्म उपजायते।'
महर्षि पतंजलि के सूत्र के चौथे आयाम, में बताया गया है की पापी (बुरे) व्यक्तियों (लोगों) से कैसा व्यहार करना चाहिए , इनके अनसार पापी व्यक्ति से उपेक्षा का भाव रखना चाहिए।
योग व्यास भाष्य के अनुसार-
अपुण्यशीलेषूपेक्षाम् एवमस्य भावयतः शुक्लो धर्म उपजायते।'
अर्थात्
पापियो के साथ उपेक्षा अर्थात न उनके साथ प्रीति रखना ना ही बैर का भाव । इस प्रकार के भाव रखने से योगी की आत्मा में सत्य का ज्ञान का प्रकाश होता है, और उसका मन स्थिर हो जाता है। स्थिर व निर्मल मन ही साधना में समर्थ्य होता है। अन्तः में प्रिय विद्यार्थियो जैसा कि योग व्यास भाष्य में कहा गया है
महर्षि पतंजलि के सूत्र का तीसरा आयाम है मुदिता की भावना पुण्यात्मा व सफल व्यक्तियों के प्रति प्रायः
देखा जाता कि सफल व पुण्यात्मा व्यक्ति केवल ईर्ष्या के पात्र बनते है। बाहरी
रूप से सभी उनकी प्रशंसा करते रहते है। परन्तु परोक्ष रूप से उन्हें नीचा
दिखाने का उपाय सोचते है, या उनके प्रति
ईर्ष्या करते है। महर्षि कहते है कि
किसी की सफलता को देखकर हमे उससे प्रेरणा लेनी चाहिए, प्रसन्न होना चाहिए।
उनके पुण्य कर्मो से प्ररित हो, सफल होने का मूल
मन्त्र सिखना चाहिए। क्योकि पुण्य कर्मों के द्वारा ही मनुष्य सफलता प्राप्त
करता है। योग व्यास भाष्य के अनुसार पुण्यात्मकेषु मुदिताम्' अर्थात् पुण्यात्माओ
के साथ हर्ष की भावना रखनी चाहिए। किसी भी पुण्यात्मा महात्मा के पुण्य कर्म
की ओर दृष्टि डालकर उससे प्रेरणा लेनी चाहिए। इसलिए महात्मा पुण्यात्मा
(अच्छे कार्य करने वाले)
की सफलता के पीछे उसके द्वारा किये गये पुण्य कार्यो से हमे प्रसन्न होकर
उसकी प्रशंसा करके उसे आगे बड़ाने का प्रयास करना चाहिए।