सर्वनाशे च संजाते प्राणानामपि संशये का हिंदी अर्थ एवं व्याख्या | Sarvnashe Cha Sanjate - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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गुरुवार, 14 जुलाई 2022

सर्वनाशे च संजाते प्राणानामपि संशये का हिंदी अर्थ एवं व्याख्या | Sarvnashe Cha Sanjate

सर्वनाशे च संजाते प्राणानामपि संशये का हिंदी अर्थ एवं व्याख्या 

सर्वनाशे च संजाते प्राणानामपि संशये का हिंदी अर्थ एवं व्याख्या  | Sarvnashe Cha Sanjate


सर्वनाशे च संजाते प्राणानामपि संशये । 

अपि शत्रुं प्रणम्यपि रक्षेत् प्राणान् धनानि च ॥ 


यदि मनुष्य का आलस्य बढ़ता रहे और वह अपने शत्रु और रोग की उपेक्षा कर देता है, तो ये शनै-शनै बड़े प्रभावपूर्ण हो जाते हैं और अंत में वह इनके द्वारा मारा जाता है । कहने का तात्पर्य यह है कि यदि मनुष्य आलस्य करेगा तो उसके शत्रु उत्पन्न होंगे यदि उसका रोग बढ़ता रहेगा तो अंत में उसकी मृत्यु निश्चय है । 

कथाकार विष्णुशर्मा ने कथामुख में राजा अमरशक्ति के तीनों पुत्रों को ज्ञानवान बनाने के लिए इस ग्रंथकी रचना की, विष्णुशर्मा के अनुसार संसार में जो लेशमात्र (अल्पमात्र) भी ज्ञान रखते हैं यह ग्रन्थ उन सभी के लिए कल्याणकारी व प्रेरणादायक रहेगा इससे प्रमाणित हो ही जाता है कि कथाकार विष्णुशर्मा ने सामान्य जन के कल्याण की भावना से प्रेरित होकर इसकी रचना की ।