परस्परस्य मर्माणि थे भाषन्ते का अर्थ (शब्दार्थ विमर्श), Chankya Niti Hindi Explanation
परस्परस्य मर्माणि थे भाषन्ते नराधमाः ।
तएव विलयं यान्ति वल्मीकोदरसर्पवत् ॥ ॥ अध्याय 9 श्लोक - 21
शब्दार्थ -
जो नीच मनुष्य एक-दूसरे के मर्मों को विदीर्ण करने वाले, अन्तरात्मा को दुःखदायक वचनों को बौलते हैं, वे निश्चय ही ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे बांबी में फँसकर सांप नष्ट हो जाता है। भावार्थ-जो नीच पुरुष एक-दूसरे के प्रति अन्तरात्मा को दुःखदायक, मर्मों को आहत पीड़ित) करने वाले वचन बोलते हैं, वे ऐसे ही नष्ट हो जाते हैं, जैसे बांबी में फँसकर सांप मारा जाता है ।
विमर्श -
वाणी का घाव वाण के घाव से भी भयंकर होता है।