वरं वनं व्याघ्रगजेन्द्रसेवितं द्रुमालयः अर्थ (शब्दार्थ भावार्थ) | Varam vanm Vyaghrajendra Savitam - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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सोमवार, 12 सितंबर 2022

वरं वनं व्याघ्रगजेन्द्रसेवितं द्रुमालयः अर्थ (शब्दार्थ भावार्थ) | Varam vanm Vyaghrajendra Savitam

वरं वनं व्याघ्रगजेन्द्रसेवितं द्रुमालयः अर्थ (शब्दार्थ भावार्थ) 

वरं वनं व्याघ्रगजेन्द्रसेवितं द्रुमालयः अर्थ (शब्दार्थ भावार्थ) | Varam vanm Vyaghrajendra Savitam

वरं वनं व्याघ्रगजेन्द्रसेवितं द्रुमालयः अर्थ (शब्दार्थ भावार्थ) 

 


वरं वनं व्याघ्रगजेन्द्रसेवितं द्रुमालयः पत्रफलाम्बुभोजनम्। 
तृणेषु शय्या शतजीर्णवल्कलं न बन्धुमध्ये धनहीनजीवनम्॥



शब्दार्थ - 

जिस वन में वृक्ष ही घर हैंपत्ते और फलों का भोजन तथा नदी का जल पीकर ही निर्वाह करना होता हैघास पर सोना हैसौ स्थानों से फटे ह वस्त्रों को पहनना हैऐसे बाघ और गजराजों से सेवित वन में रहना उत्तम है परन्तु अपने बन्धुबान्धवों के बीच में धन से रहित जीवन अच्छा नहीं । 

'भावार्थ-

 जिस वन में वृक्ष ही घर हैपत्ते और फलों का भोजन तथा नदी-जल पीकर ही निर्वाह करना हैघास पर ही सोना है और सौ स्थानों से फटे हुए वल्कल वस्त्रों को पहनना है ऐसे बाघ और गजराओं से भरे वन में रहना अच्छा हैपरन्तु अपने बन्धु बान्धवों के मध्य में धनहीन जीवन अच्छा नहीं है । 

विमर्श - 

निर्धन होना कितना बड़ा पाप हैइसी बात को आचार्य चाणक्य ने भली प्रकार से यहाँ स्पष्ट किया है। उनका कहना है कि निर्धन व्यक्ति को अपने सगे-सम्बन्धियों से भी अपमान सहना पड़ता है ।