राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु का 74वें गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र के नाम संबोधन | President of India Speech on Republic Day - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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बुधवार, 25 जनवरी 2023

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु का 74वें गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र के नाम संबोधन | President of India Speech on Republic Day

राष्ट्रपति  द्रौपदी मुर्मु का 74वें गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र के नाम संबोधन

राष्ट्रपति  द्रौपदी मुर्मु का 74वें गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र के नाम संबोधन | President of India Speech on Republic Day



प्यारे देशवासियो,

 

नमस्कार!

 

चौहत्तरवें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर, देश और विदेश में रहने वाले आप सभी भारत के लोगों को, मैं हार्दिक बधाई देती हूं। संविधान के लागू होने के दिन से लेकर आज तक हमारी यात्रा अद्भुत रही है और इससे कई अन्य देशों को प्रेरणा मिली है। प्रत्येक नागरिक को भारत की गौरव-गाथा पर गर्व का अनुभव होता है। जब हम गणतंत्र दिवस मनाते हैं, तब एक राष्ट्र के रूप में हमने मिल-जुल कर जो उपलब्धियां प्राप्त की हैं, उनका हम उत्सव मनाते हैं। 

 

भारत, विश्व की सबसे पुरानी जीवंत सभ्यताओं में से एक है। भारत को लोकतन्त्र की जननी कहा जाता है। फिर भी, हमारा आधुनिक गणतंत्र युवा है। स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों में, हमें अनगिनत चुनौतियों और प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। लंबे विदेशी शासन के अनेक बुरे परिणामों में से दो कुप्रभाव थे - भयंकर गरीबी और निरक्षरता। फिर भी, भारत अविचलित रहा। आशा और विश्वास के साथ, हमने मानव जाति के इतिहास में एक अनूठा प्रयोग शुरू किया। इतनी बड़ी संख्‍या में इतनी विविधताओं से भरा जन-समुदाय - एक लोकतंत्र के रूप में एकजुट नहीं हुआ था। ऐसा हमने इस विश्वास के साथ किया कि हम सब एक ही हैं, और हम सभी भारतीय हैं। इतने सारे पंथों और इतनी सारी भाषाओं ने हमें विभाजित नहीं किया है बल्कि हमें जोड़ा है। इसलिए हम एक लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में सफल हुए हैं। यही भारत का सार-तत्व है। 

 

यह सार-तत्व, संविधान के केंद्र में रहा है और समय की कसौटी पर खरा उतरा है। स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों के अनुरूप हमारे गणतंत्र को आधार देने वाला संविधान बना। महात्मा गांधी के नेतृत्व में, राष्ट्रीय आंदोलन का उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्त करना भी था और भारतीय आदर्शों को फिर से स्थापित करना भी था। उन दशकों के संघर्ष और बलिदान ने, हमें न केवल विदेशी शासन से बल्कि थोपे गए मूल्यों और संकीर्ण विश्व-दृष्टिकोण से भी आजादी दिलाने में मदद की। शांति, बंधुता और समानता के हमारे सदियों पुराने मूल्यों को फिर से अपनाने में क्रांतिकारियों और सुधारकों ने दूरदर्शी और आदर्शवादी विभूतियों के साथ मिलकर काम किया। जिन लोगों ने आधुनिक भारतीय चिन्तनधारा को प्रवाह दिया, उन्होंने आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वत:अर्थात - हमारे पास सभी दिशाओं से अच्छे विचार आएं - के वैदिक उपदेश के अनुसार प्रगतिशील विचारों का भी स्वागत किया। लंबे और गहन विचार मंथन के परिणामस्वरूप हमारे संविधान की संरचना हुई। 

 

हमारा यह बुनियादी दस्तावेज, दुनिया की सबसे प्राचीन जीवंत सभ्यता के मानवतावादी दर्शन के साथ-साथ आधुनिक विचारों से भी प्रेरित है। हमारा देश, बाबासाहब भीमराव आम्बेडकर का सदैव ऋणी रहेगा, जिन्होंने प्रारूप समिति की अध्यक्षता की और संविधान को अंतिम रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज के दिन हमें संविधान का प्रारंभिक मसौदा तैयार करने वाले विधिवेत्ता श्री बी.एन. राव तथा अन्य विशेषज्ञों और अधिकारियों को भी स्मरण करना चाहिए जिन्होंने संविधान निर्माण में सहायता की थी।  हमें इस बात का गर्व है कि उस संविधान सभा के सदस्यों ने भारत के सभी क्षेत्रों और समुदायों का प्रतिनिधित्व किया। संविधान निर्माण में सभा की 15 महिला सदस्यों ने भी योगदान दिया। 

 

संविधान में निहित आदर्शों ने निरंतर हमारे गणतंत्र को राह दिखाई है। इस अवधि के दौरान, भारत एक गरीब और निरक्षर राष्ट्र की स्थिति से आगे बढ़ते हुए विश्व-मंच पर एक आत्मविश्वास से भरे राष्ट्र का स्थान ले चुका है। संविधान-निर्माताओं की सामूहिक बुद्धिमत्ता से मिले मार्गदर्शन के बिना यह प्रगति संभव नहीं थी। 

 

बाबासाहब आम्बेडकर और अन्य विभूतियों ने हमें एक मानचित्र तथा एक नैतिक आधार प्रदान किया। उस राह पर चलने की जिम्मेदारी हम सब की है। हम काफी हद तक उनकी उम्मीदों पर खरे उतरे भी हैं, लेकिन हम यह महसूस करते हैं कि गांधीजी के 'सर्वोदय' के आदर्शों को प्राप्त करना अर्थात सभी का उत्थान किया जाना अभी बाकी है। फिर भी, हमने सभी क्षेत्रों में उत्साहजनक प्रगति हासिल की है।

 

प्यारे देशवासियो, 

 

सर्वोदय के हमारे मिशन में आर्थिक मंच पर हुई प्रगति सबसे अधिक उत्साहजनक रही है। पिछले साल भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। यह उल्लेख करना जरूरी है कि यह उपलब्धि, आर्थिक अनिश्चितता से भरी वैश्विक पृष्ठभूमि में प्राप्त की गई है। वैश्विक महामारी चौथे वर्ष में प्रवेश कर चुकी है और दुनिया के अधिकांश हिस्सों में आर्थिक विकास पर, इसका प्रभाव पड़ रहा है। शुरुआती दौर में कोविड-19 से भारत की अर्थव्यवस्था को भी काफी क्षति पहुंची। फिर भी, सक्षम नेतृत्व और प्रभावी संघर्षशीलता के बल पर हम शीघ्र ही मंदी से बाहर आ गए, और अपनी विकास यात्रा को फिर से शुरू किया। अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्र अब महामारी के प्रभाव से बाहर आ गए हैं। भारत सबसे तेजी से बढ़ती हुई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। यह सरकार द्वारा समय पर किए गए सक्रिय प्रयासों द्वारा ही संभव हो पाया है। इस संदर्भ में 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान के प्रति जनसामान्य के बीच विशेष उत्साह देखा जा रहा है। इसके अलावा, विभिन्न क्षेत्रों के लिए विशेष प्रोत्साहन योजनाएं भी लागू की गई हैं। 

 

यह बड़े ही संतोष का विषय है कि जो लोग हाशिए पर रह गए थे, उनका भी योजनाओं और कार्यक्रमों में समावेश किया गया है तथा कठिनाई में उनकी मदद की गई है। मार्च 2020 में घोषित प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजनापर अमल करते हुए, सरकार ने उस समय गरीब परिवारों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जब हमारे देशवासी कोविड-19 की महामारी के कारण अकस्मात उत्पन्न हुए आर्थिक व्यवधान का सामना कर रहे थे। इस सहायता की वजह से किसी को भी खाली पेट नहीं सोना पड़ा। गरीब परिवारों के हित को सर्वोपरि रखते हुए इस योजना की अवधि को बार-बार बढ़ाया गया तथा लगभग 81 करोड़ देशवासी लाभान्वित होते रहे। इस सहायता को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने घोषणा की है कि वर्ष 2023 के दौरान भी लाभार्थियों को उनका मासिक राशन मुफ्त में मिलेगा। इस ऐतिहासिक कदम से, सरकार ने, कमजोर वर्गों को आर्थिक विकास में शामिल करने के साथ-साथ, उनकी देखभाल की ज़िम्मेदारी भी ली है।

 

हमारी अर्थव्यवस्था का आधार सुदृढ़ होने के कारण, हम उपयोगी प्रयासों का सिलसिला शुरू करने और उसे आगे बढ़ाने में सक्षम हो सके हैं। हमारा अंतिम लक्ष्य एक ऐसा वातावरण बनाना है जिससे सभी नागरिक व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से, अपनी वास्तविक क्षमताओं का पूरा उपयोग करें और उनका जीवन फले-फूले। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए शिक्षा ही आधारशिला तैयार करती है, इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीतिमें महत्वाकांक्षी परिवर्तन किए गए हैं। शिक्षा के दो प्रमुख उद्देश्य कहे जा सकते हैं। पहला, आर्थिक और सामाजिक सशक्तीकरण और दूसरा, सत्य की खोज। राष्ट्रीय शिक्षा नीति इन दोनों लक्ष्यों को प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करती है। यह नीति शिक्षार्थियों को इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों के लिए तैयार करते हुए हमारी सभ्यता पर आधारित ज्ञान को समकालीन जीवन के लिए प्रासंगिक बनाती है। इस नीति में, शिक्षा प्रक्रिया को विस्तार और गहराई प्रदान करने के लिए प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया गया है। 

 

हमें कोविड-19 के शुरुआती दौर में यह देखने को मिला कि प्रौद्योगिकी में जीवन को बदलने की संभावनाएं होती हैं। डिजिटल इंडिया मिशनके तहत गांव और शहर की दूरी को समाप्त करके, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी को समावेशी बनाने का प्रयास किया जा रहा है। दूर-दराज के स्थानों में अधिक से अधिक लोग इंटरनेट का लाभ उठा रहे हैं। बुनियादी ढांचे में हुए विस्तार की सहायता से सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही विभिन्न प्रकार की सेवाएं लोगों को प्राप्त हो रही हैं। हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियों पर गर्व का अनुभव कर सकते हैं। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में, भारत गिने-चुने अग्रणी देशों में से एक रहा है। इस क्षेत्र में काफी समय से लंबित सुधार किए जा रहे हैं, और अब निजी उद्यमों को इस विकास-यात्रा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है। भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने के लिए गगनयानकार्यक्रम प्रगति पर है। यह भारत की पहली मानव-युक्त अंतरिक्ष-उड़ान होगी। हम सितारों तक पहुंचकर भी अपने पांव ज़मीन पर रखते हैं।

 

भारत का मंगल मिशनअसाधारण महिलाओं की एक टीम द्वारा संचालित किया गया था, और अन्य क्षेत्रों में भी बहनें-बेटियां अब पीछे नहीं हैं। महिला सशक्तीकरण तथा महिला और पुरुष के बीच समानता अब केवल नारे नहीं रह गए हैं। हमने हाल के वर्षों में इन आदर्शों तक पहुँचने की दिशा में काफी प्रगति की है। 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान में लोगों की भागीदारी के बल पर हर कार्य-क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है। राज्यों की अपनी यात्राओं, शिक्षण-संस्थानों के कार्यक्रमों और professionals के विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों से मिलने के दौरान, मैं युवतियों के आत्मविश्वास से बहुत प्रभावित होती हूं। मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि महिलाएं ही आने वाले कल के भारत को स्वरूप देने के लिए अधिकतम योगदान देंगी। यदि आधी आबादी को राष्ट्र-निर्माण में अपनी श्रेष्ठतम क्षमता के अनुसार योगदान करने के अवसर दिए जाएं, तथा उन्हें प्रोत्साहित किया जाए, तो ऐसे कौन से चमत्कार हैं जो नहीं किए जा सकते हैं? 

 

सशक्तीकरण की यही दृष्टि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों सहित, कमजोर वर्गों के लोगों के लिए सरकार की कार्य-प्रणाली का मार्गदर्शन करती है। वास्तव में, हमारा उद्देश्य न केवल उन लोगों के जीवन की बाधाओं को दूर करना और उनके विकास में मदद करना है, बल्कि उन समुदायों से सीखना भी है। विशेष रूप से जनजातीय समुदाय के लोग, पर्यावरण की रक्षा से लेकर समाज को और अधिक एकजुट बनाने तक, कई क्षेत्रों में, सीख दे सकते हैं। 

 

प्यारे देशवासियो,

 

शासन के सभी पहलुओं में बदलाव लाने और लोगों की रचनात्मक ऊर्जा को उजागर करने के लिए हाल के वर्षों में किए गए प्रयासों की श्रृंखला के परिणामस्वरूप, अब विश्व-समुदाय भारत को सम्मान की नई दृष्टि से देखता है। विश्व के विभिन्न मंचों पर हमारी सक्रियता से सकारात्मक बदलाव आने शुरू हो गए हैं। विश्व-मंच पर भारत ने जो सम्मान अर्जित किया है, उसके फलस्वरूप देश को नए अवसर और जिम्मेदारियां भी मिली हैं। जैसा कि आप सब जानते हैं, इस वर्ष भारत G-20 देशों के समूह की अध्यक्षता कर रहा है। विश्व-बंधुत्व के अपने आदर्श के अनुरूप, हम सभी की शांति और समृद्धि के पक्षधर हैं। G-20 की अध्यक्षता एक बेहतर विश्व के निर्माण में योगदान हेतु भारत को अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करती है। इस प्रकार, G-20 की अध्यक्षता, लोकतंत्र और multilateralism को बढ़ावा देने का अच्छा अवसर भी है, और साथ ही, एक बेहतर विश्व और बेहतर भविष्य को स्वरूप देने के लिए उचित मंच भी है। मुझे विश्वास है कि भारत के नेतृत्व में, G-20, अधिक न्यायपरक और स्थिरतापूर्ण विश्व-व्यवस्था के निर्माण के अपने प्रयासों को और आगे बढ़ाने में सफल होगा।

 

G-20 के सदस्य देशों का कुल मिलाकर विश्व की आबादी में लगभग दो-तिहाई और global GDP में लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा है, इसलिए यह वैश्विक चुनौतियों पर चर्चा करने और उनके समाधान के लिए एक आदर्श मंच है। मेरे विचार से, global warming और जलवायु परिवर्तन ऐसी चुनौतियां हैं जिनका सामना शीघ्रता से करना है। वैश्विक तापमान बढ़ रहा है और मौसम में बदलाव के चरम रूप दिखाई पड़ रहे हैं। हमारे सामने एक गंभीर दुविधा है: अधिक से अधिक लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के लिए आर्थिक विकास जरूरी है, लेकिन इस विकास के लिए fossil fuel का प्रयोग भी करना पड़ता है। दुर्भाग्य से, global warming का सबसे अधिक कष्ट गरीब तबके के लोगों को सहन करना पड़ता है। ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों को विकसित करना और लोकप्रिय बनाना भी एक समाधान है। भारत ने सौर-ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों को नीतिगत प्रोत्साहन देकर इस दिशा में सराहनीय कदम उठाया है। हालांकि, वैश्विक स्तर पर, विकसित देशों द्वारा technology transfer और वित्तीय सहायता के जरिए, उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है।

 

विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए हमें प्राचीन परम्पराओं को नई दृष्टि से देखना होगा। हमें अपनी मूलभूत प्राथमिकताओं पर भी पुनर्विचार करना होगा। परंपरागत जीवन-मूल्यों के वैज्ञानिक आयामों को समझना होगा। हमें एक बार फिर प्रकृति के प्रति सम्मान का भाव और अनंत ब्रह्मांड के सम्मुख विनम्रता का भाव जाग्रत करना होगा। मैं इस बात पर ध्यान आकर्षित करना चाहूंगी कि महात्मा गांधी आधुनिक युग के सच्चे भविष्यद्रष्टा थे, क्योंकि उन्होंने अनियंत्रित औद्योगीकरण से होने वाली आपदाओं को पहले ही भांप लिया था और दुनिया को अपने तौर-तरीकों को सुधारने के लिए सचेत कर दिया था।

 

अगर हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे इस धरती पर सुखमय जीवन बिताएं तो हमें अपनी जीवन-शैली को बदलने की जरूरत है। इस संदर्भ में सुझाए गए परिवर्तनों में से एक बदलाव भोजन से संबंधित है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि संयुक्त राष्ट्र ने भारत के सुझाव को स्वीकार किया है और वर्ष 2023 को The International Year of Millets घोषित किया है। बाजरा जैसे मोटे अनाज हमारे आहार के मुख्य तत्व हुआ करते थे। समाज के सभी वर्ग उन्हें फिर से पसंद करने लगे हैं। ऐसे अनाज पर्यावरण के अनुकूल हैं क्योंकि उनकी उपज कम पानी में ही हो जाती है। ये अनाज उच्च-स्तर का पोषण भी प्रदान करते हैं। यदि अधिक से अधिक लोग मोटे अनाज को भोजन में शामिल करेंगे, तो पर्यावरण-संरक्षण में सहायता होगी और लोगों के स्वास्थ्य में भी सुधार होगा। 

गणतंत्र का एक और वर्ष बीत चुका है और एक नया वर्ष शुरू हो रहा है। यह अभूतपूर्व परिवर्तन का दौर रहा है। महामारी के प्रकोप से दुनिया कुछ ही दिनों में बदल गई थी। पिछले तीन वर्षों के दौरान, जब भी हमें लगा है कि हमने वायरस पर काबू पा लिया है, तो वायरस फिर किसी विकृत रूप में वापस आ जाता है। लेकिन, अब इससे घबराने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि हमने यह समझ लिया है कि हमारा नेतृत्व, हमारे वैज्ञानिक और डॉक्टर, हमारे प्रशासक और 'कोरोना योद्धा' किसी भी स्थिति से निपटने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। साथ ही, हमने यह भी सीखा है कि हम अपनी सुरक्षा में कमी नहीं आने देंगे और सतर्क भी रहेंगे।

 

प्यारे देशवासियो,

 

विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत कई पीढ़ियों के लोग हमारे गणतंत्र की अब तक की विकास-गाथा में अमूल्य योगदान के लिए प्रशंसा के पात्र हैं। मैं किसानों, मजदूरों, वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की भूमिकाओं की सराहना करती हूं जिनकी सामूहिक शक्ति हमारे देश को "जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान" की भावना के अनुरूप आगे बढ़ने में सक्षम बनाती है। मैं देश की प्रगति में योगदान देने वाले प्रत्येक नागरिक की सराहना करती हूं। भारत की संस्कृति और सभ्यता के अग्रदूत, प्रवासी भारतीयों का भी मैं अभिवादन करती हूं। 

इस अवसर पर, मैं उन बहादुर जवानों की विशेष रूप से, सराहना करती हूं, जो हमारी सीमाओं की रक्षा करते हैं और किसी भी त्याग तथा बलिदान के लिए सदैव तैयार रहते हैं। देशवासियों को आंतरिक सुरक्षा प्रदान करने वाले समस्त अर्धसैनिक बलों तथा पुलिस-बलों के बहादुर जवानों की भी मैं सराहना करती हूं। हमारी सेनाओं, अर्धसैनिक बलों तथा पुलिस-बलों के जिन वीरों ने कर्तव्य निभाते हुए अपने प्राणों की आहुति दी है उन सब को मैं सादर नमन करती हूं। मैं सभी प्यारे बच्चों को उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए हृदय से आशीर्वाद देती हूं। आप सभी देशवासियों के लिए एक बार फिर मैं गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं व्यक्त करती हूं।

 

धन्यवाद,

जय हिन्द! 

जय भारत!