बिरसा मुंडा कौन थे उनकी जानकारी
बिरसा मुंडा कौन थे उनकी जानकारी
बिरसा मुंडा
जिनका जन्म 15 नवंबर, 1875 को हुआ, वे छोटा नागपुर
पठार की मुंडा जनजाति से संबंधित थे। 9 जून वर्ष 1900 में जहर देने के कारण उनकी मृत्यु हो गयी थी ।
वह भारतीय
स्वतंत्रता सेनानी, धार्मिक नेता और
लोक नायक थे।
उन्होंने 19वीं शताब्दी के
अंत में ब्रिटिश शासन के दौरान आधुनिक झारखंड और बिहार के आदिवासी क्षेत्र में
भारतीय जनजातीय धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया।
बिरसा वर्ष 1880 के दशक में इस
क्षेत्र में सरदारी लड़ाई आंदोलन के करीबी पर्यवेक्षक थे, जिसने अहिंसक
माध्यमों जैसे कि ब्रिटिश सरकार को याचिका देने के आदिवासियों के अधिकारों को बहाल
करने की मांग की थी। हालाँकि इन मांगों को कठोर औपनिवेशिक सत्ता ने नज़रअंदाज कर
दिया।
ज़मींदारी प्रथा
के तहत आदिवासियों को ज़मींदारों से मज़दूरों में पदावनत कर दिया गया, जिसके
परिणामस्वरूप बिरसा ने आदिवासियों के मुद्दे को उठाया।
बिरसा मुंडा ने
एक नया धर्म बिरसैत बनाया।
धर्म ने एक ही
ईश्वर में विश्वास का प्रचार किया और लोगों से अपने पुराने धार्मिक विश्वासों पर
लौटने का आग्रह किया। लोगों ने उन्हें प्रभावी धार्मिक उपासक, चमत्कारी
कार्यकर्त्ता और एक उपदेशक के रूप में संदर्भित करना शुरू कर दिया।
उरांव और मुंडा
के लोग बिरसा के प्रति आश्वस्त हो गए और कई लोगों ने उन्हें 'धरती अब्बा, जिसका अर्थ है
पृथ्वी का पिता' कहना शुरू कर
दिया। उन्होंने धार्मिक क्षेत्र में एक नए दृष्टिकोण का प्रवेश कराया।
बिरसा मुंडा ने
विद्रोह का नेतृत्व किया जिसे ब्रिटिश सरकार द्वारा थोपी गई सामंती राज्यव्यवस्था
के खिलाफ उल्गुलान (विद्रोह) या मुंडा विद्रोह के रूप में जाना जाने लगा।
उन्होंने जनता को
जागृत किया और ज़मींदारों के साथ-साथ अंग्रेज़ों के खिलाफ उनमें विद्रोह के बीज बोए।
आदिवासियों के
खिलाफ शोषण और भेदभाव के खिलाफ उनके संघर्ष के कारण 1908 में छोटानागपुर
किरायेदारी अधिनियम पारित हुआ, जिसने आदिवासी लोगों से गैर-आदिवासियों को भूमि देने पर
प्रतिबंध लगा दिया