अंटार्कटिक के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी
अंटार्कटिक
यह पृथ्वी के
दक्षिणतम भाग पर स्थित एक महाद्वीप है जोकि बर्फ से ढका हुआ है। लगभग 140 लाख वर्ग किमी
में फैला यह महाद्वीप विश्व का पांचवा महाद्वीप है। जैसा कि सर्वविदित है कि सूर्य
की किरण न तो उत्तरी ध्रुव पर और न ही दक्षिणी ध्रुव पर सीधी पहुँच पाती है जिससे
यह क्षेत्र अत्यंत ठंडा होता है। यहाँ पर न तो ज्यादा मानवीय आवागमन हो पाता है और
न ही कोई रहन सहन। यह क्षेत्र दुनिया के लिए साफ पानी का केंद्र है एवं कई दुर्लभ
जीव-जंतुओं का निवास भी। हालांकि पिछले कुछ समय से रिसर्च के लिए और पर्यटन के
उद्देश्य से लोग आने लगे हैं जिससे यहाँ के पर्यावरण को नुकसान हो रहा है।
अंटार्कटिक की प्रमुख विशेषताएँ:
वैज्ञानिक
अनुसंधान के लिये भारत सहित कई देशों द्वारा स्थापित लगभग 40 स्थायी स्टेशनों
को छोड़कर अंटार्कटिक निर्जन है।
अंटार्कटिक
महाद्वीप पर भारत के दो अनुसंधान केंद्र हैं- 'मैत्री' (1989 में स्थापित) शिरमाकर हिल्स में तथा 'भारती' (2012 में स्थापित)
लारसेमैन हिल्स में।
भारत द्वारा
अंटार्कटिक कार्यक्रम के तहत अब तक यहाँ 40 वैज्ञानिक अभियान पूरे किये जा चुके हैं। आर्कटिक सर्कल के
ऊपर स्वालबार्ड में 'हिमाद्री' स्टेशन के साथ
भारत ध्रुवीय क्षेत्रों में शोध करने वाले देशों के एक विशिष्ट समूह में शामिल है।
अंटार्कटिका
पृथ्वी का सबसे दक्षिणतम महाद्वीप है। इसमें भौगोलिक रूप से दक्षिणी ध्रुव शामिल
है और यह दक्षिणी गोलार्द्ध के अंटार्कटिक क्षेत्र में स्थित है।
14,0 लाख वर्ग
किलोमीटर (5,4 लाख वर्ग मील)
में विस्तृत यह विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा महाद्वीप है।
भारतीय
अंटार्कटिक कार्यक्रम एक बहु-अनुशासनात्मक, बहु-संस्थागत कार्यक्रम है, जो पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के ‘नेशनल सेंटर फॉर
अंटार्कटिक एंड ओशियन रिसर्च’ (National Centre for Antarctic and Ocean Research) के नियंत्रण में
है।
भारत ने आधिकारिक
रूप से अगस्त 1983 में अंटार्कटिक
संधि प्रणाली को स्वीकार किया।
अंटार्कटिका संधि
इस महाद्वीप में बढ़ते हुए मानवीय गतिविधि को देखते हुए सन 1959 ई. में 12 देशों ने मिलकर एक संधि पर हस्ताक्षर किया जिसे अंटार्कटिक संधि कहा गया। इसका उद्देश्य पर्यावरण को क्षति होने से रोकना, यहाँ के संसाधनों का प्रयोग शोध कार्य के लिए करना और यहाँ पर सैन्य गतिविधि को रोकना शामिल था। वर्तमान समय में संधिकर्ता देशों की संख्या बढ़कर 50 से अधिक हो गयी है। भारत ने भी सन 1983 ई. में हस्ताक्षर किया परन्तु इस पर विधेयक लाने में 4 दशक लग गए। अब तक भारत 40 से अधिक वैज्ञानिक मिशन को यहां भेज चुका है। भारत के स्थायी तीन शिविर हैं जिसमें दक्षिणी गंगोत्री, मैत्री और भारती शामिल है जो क्रमशः 1983, 1989 और 2012 में भेजे गए थे। मैत्री और भारती अभी भी सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं।