चाहमान या चौहान वंश का इतिहास
चाहमान या चौहान वंश का इतिहास
इस वंश का उदय शाकंभरी (साम्भर अजमेर के आस-पास का क्षेत्र) में हुआ। चाहमान वंश के प्रारम्भिक राजाओं में वासुदेव और गूवक के नाम उल्लेखनीय हैं। इस वंश का सर्वप्रथम लेख वि0सं0 1030-973 ई0 का दुर्लभ हर्षलेख है, जिसमें गूवक प्रथम तक वंशावली दी गई है। दूसरा प्रसिद्ध लेख बिजौलिया शिलालेख-पूरी वंशावली देता है।
चाहमानों की शक्ति का विशेष विकास अर्णोराज के पुत्र चतुर्थ विग्रहराज बीसलदेव (1153-1164 ई0) के समय हुआ। उसने सबसे बड़ा कार्य मध्य देश से मुसलमान आक्रमणकारियों को समाप्त करके किया जो पंजाब को जीतने के बाद धीरे-धीरे मध्य देश में आकर बस गये थे। गहड़वाल भी उसके हाथों पराजित हुए। बीसलदेव के पुत्र अपर गांगेय को बीसल के ही भतीजे पृथ्वीराज द्वितीय ने राज्य का मौका नहीं दिया। पृथ्वीराज का उत्तराधिकारी बीसल का छोटा भाई सोमेश्वर हुआ।
सोमेश्वर का पुत्र और उत्तराधिकारी चाहमान वंश का सबसे प्रसिद्ध और अंतिम शक्तिमान राजा पृथ्वीराज तृतीय (1179-1193 ई0) था। इसके राजकवि चंद्रबरदाई ने पृथ्वीराज रासो नामक अपभ्रंश महाकाव्य और जयनिक ने पृथ्वीराज वियज नामक संस्कृत काव्य की रचना की। लगभग 1182 ई0 में उसने उत्तर भारत के प्रसिद्ध राजा परमर्दिदेव चंदेल को पराजित किया। बीसलदेव के काल से ही चाहमानों और गहड़वालों की प्रतिद्वंदिता चल रही थी। दुर्भाग्य से यह आंतरिक कलह उस समय चल रही थी जब भारत के द्वार पर मुहम्मद गौरी दस्तक दे रहा था। यद्यपि वह एक बार पृथ्वीराज के हाथों पराजित हो चुका था, किन्तु 1193 ई0 में तराईन के द्वितीय युद्ध में गौरी बदला लेने में सफल हुआ। अजमेर और दिल्ली दोनों ही तुर्कों के हाथ लगे। चाहमान सत्ता को नष्ट होने में देर नहीं लगी।