द्वैताद्वैत दर्शन सारांश | Summary of Dwaitadwait Darshan - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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मंगलवार, 23 अप्रैल 2024

द्वैताद्वैत दर्शन सारांश | Summary of Dwaitadwait Darshan

 द्वैताद्वैत दर्शन सारांश

द्वैताद्वैत दर्शन सारांश | Summary of Dwaitadwait Darshan


द्वैताद्वैत दर्शन सारांश

  • निम्बार्क दर्शन के प्रतिष्ठापक आचार्य निम्बार्क का वास्तविक नाम नियमानन्द था। ये दक्षिण भारत के तैलंग ब्राह्मण थे। निम्बार्क सम्प्रदाय को वैष्णव मत का सनक-सम्प्रदाय तथा द्वैताद्वैतवाद के रूप में जाना जाता है। निम्बार्क का ब्रह्मसूत्र पर पूर्णप्रज्ञभाष्य या वेदान्तपारिजातसौरभ है। इनकी प्रमुख रचनाएँ वेदान्तपारिजातसौरभसिद्धान्तरत्नदशश्लोकीश्रीकृष्णस्तवराज हैं। यथार्थ ज्ञान या प्रमा बुद्धिवृद्धि के नहीं जीव के आश्रित होती है। ज्ञान आत्मा में गुण और गुणी के सम्बन्ध से नित्य जुड़ा हुआ रहता है। 
  • गुण और गुणी में भेदाभेद सम्बन्ध होता हैनिम्बार्क प्रत्यक्षअनुमान और शब्दतीन प्रमाणों को मानते हैं। प्रत्यक्ष-इन्द्रिय और विषय के सन्निकर्ष से जन्य ज्ञान प्रत्यक्ष है जो बाह्य और आन्तर दो प्रकार का होता है। बाह्य पदार्थे प्रत्यक्ष इन्द्रियज है तथा सुख-दुःख आदि आन्तरिक विषयों का इन्द्रिय-निरपेक्ष आन्तर। अनुमान-व्याप्ति पर निर्भर ज्ञान अनुमान है। शब्द-इन दो ज्ञानों से अतिरिक्त एवं सर्वाधिक प्रामाणिक ज्ञान श्रुतिमूलक होता है। निम्बार्क रामानुज के समान सत्ख्यातिवादी हैं। अनिर्वचनीय ख्यातिअख्यातिअन्यथाख्याति जैसे सिद्धान्तों का खण्डन करते हुये सत्ख्यातिवादी निम्बार्क का कथन है कि प्रमाण का बल पर भ्रान्त ज्ञान का बाध उसी प्रकार होता है जिस प्रकार पुण्य से पाप का या औषधि से रोग का। 
  • द्वैताद्वैतवाद - रामानुज के समान निम्बार्क भी चित्अचित् और ईश्वर- इन तीन तत्त्वों को स्वीकार करते हैं। इनके मत में चित् (जीव) अचित् (जगत्) से भिन्न होते हुये भी ज्ञाता और ज्ञान का आश्रय हैजिस प्रकार सूर्य प्रकाशमय है और प्रकाश का आश्रय भी हैउसी प्रकार चित् भी एक ही काल में ज्ञानस्वरूप भी है और ज्ञान का आश्रय भी है। ब्रह्म जीव और जड़ युक्त जगत् से एक साथ भिन्न और अभिन्न है। जिस प्रकार मकड़ी अपने में से जाला बनाने पर भी उससे स्वतंत्र रहती है इसी प्रार ब्रह्म भी असंख्य जीव और जड़ में विभक्त होता हुआ भी अपनी पूर्णता एवं शुद्धता बनाए रखता है। इस प्रकार चित् का अवस्थाभेद से ब्रह्म से भिन्न तथा चैतन्यरूप से अभिन्न होने के कारण इनका मत 'द्वैताद्वैतवादनाम से प्रसिद्ध है।

 

  • चित् जीव निम्बार्क मत में जीव ज्ञानस्वरूपस्वयंप्रकाशज्ञानाश्रय और अणुरूप है। वह विभुनित्य एवं कर्मफल का भोक्ता है। जीव दो प्रकार के हैं बद्ध और मुक्त । अचित्-अर्थात् चेतना विहीन पदार्थ। अचित् तत्त्व तीन प्रकार का होता है- प्राकृतअप्राकृत और काल। ईश्वर - निम्बार्क मत में ईश्वर सर्वशक्तिमानसर्वज्ञअचिन्त्यसर्वनियन्तास्वतन्त्र अमित ऐश्वर्य से युक्त है। यह अविद्या आदि पाँच क्लेशों से मुक्त है। ईश्वर जगत् का उपादान कारण भी है और निमित्त कारण भी है। ईश्वर विश्वकल्याण के लिये अवतार धारण करता है। इस प्रकार जगत् ब्रह्म से भिन्न भी है और अभिन्न भीस्वरूपतः ब्रह्म से इसका अभेद है और कार्य रूप से अभेद भी है। जिस प्रकार दूध से दही का परिणाम होता हैउसी प्रकार ब्रह्म से जगत् का उसकी असाधारण शक्ति से। 
  • जीवात्मा और परमात्मा के बीच भेदाभेद सम्बन्ध स्थापित है। परमात्मा नित्य आविर्भूत ज्ञान स्वरूप है जबकि जीव अनुकरण है। परमात्मा निर्लेप हैजीवात्मा भोक्ता है। जीवात्मा अनेक है तथा परमात्मा एक और विभु है। जीवात्मा परमात्मा का अंश हैजीव ही बन्ध मोक्ष को प्राप्त करता है परमात्मा नहीं। बन्धन और मोक्ष अविद्या या कर्म की निवृत्ति तथा आत्मा और ब्रह्म का स्वरूप ज्ञान मोक्ष है। निष्काम कर्मजो ज्ञानश्रद्धाध्यानऔर ईश्वर समर्पण बुद्धि से किया जाता है मोक्ष प्राप्ति में सहायक होते हैं। निम्बार्क के अनुसार मोक्ष प्राप्ति का साधन प्रपत्ति (शरणागति) है। ज्ञानकर्मभक्तिप्रपत्ति तथा गुरूपसिन्नधि ये पाँचों समन्वित रूप में सर्वोत्तम मोक्ष के साधन हैं। उनके अनुसार जीवनमुक्ति नहीं होतीविदेहमुक्ति ही होती है। 
  • निम्बार्काचार्य ज्ञानयोगभक्तियोगकर्मयोग में ही समन्वय स्थापित नहीं करतेअपितु भेदपरक तथा अभेदपरक श्रुति वचनों में तथा चेतन और अचेतन के द्वैत को ब्रह्मचर्य बताकर द्वैतवादी और अद्वैतवादी दर्शनों में भी एक साथ समन्वय ला देते हैं। उनका भेदाभेदवाद नाम ही समन्वयात्मक पद्धति का द्योतक है। विरोधी बातों में संगति और सामंजस्य स्थापित करना उनका मुख्य उद्देश्य प्रतीत होता है।