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बुधवार, 26 जून 2024

वेदान्त दर्शन | Vedant Philosophy

वेदान्त दर्शन  (Vedant Philosophy )

वेदान्त दर्शन | Vedant Philosophy




वेदान्त दर्शन 

  • वेदान्त ज्ञानयोग की एक शाखा है जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है। इसका मुख्य स्त्रोत उपनिषद है जो वेद ग्रंथो और अरण्यक ग्रंथों का सार समझे जाते हैं। वेदान्त की तीन शाखाएँ जो सबसे ज्यादा जानी जाती हैं वे हैं: अद्वैत वेदांतविशिष्ट अद्वैत और द्वैत। आदि शंकराचार्यरामानुज और श्री मध्वाचार्य जिनको क्रमशः इन तीनो शाखाओं का प्रवर्तक माना जाता हैइनके अलावा भी ज्ञानयोग की अन्य शाखाएँ हैं। ये शाखाएँ अपने प्रवर्तकों के नाम से जानी जाती हैं जिनमें भास्करवल्लभचैतन्यनिम्बारकवाचस्पति मिश्रसुरेश्वरऔर विज्ञान भिक्षु. आधुनिक काल में जो प्रमुख वेदांती हुये हैं उनमें रामकृष्ण परमहंसस्वामी विवेकानंदअरविंद घोषस्वामी शिवानंद और रमण महर्षि उल्लेखनीय हैं. ये आधुनिक विचारक अद्वैत वेदांत शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरे वेदांतो के प्रवर्तकों ने भी अपने विचारों को भारत में भलिभाँति प्रचारित किया है परन्तु भारत के बाहर उन्हें बहुत कम जाना जाता। 
  • आचार्य शंकर का सिद्वान्त अद्वैतवाद के नाम से प्रसिद्ध है। सत्ताओं के पृथक् महत्व को अस्वीकार करना ही अद्वैतवाद है। आचार्य के अद्वैत का मूल- मन्त्र है, " ब्रहमा सत्यं जगन्मिथ्या ।" ब्रहमा के अतिरिक्त अन्य समस्त वस्तुओं को मिथ्या की सिद्वि हेतु उन्होंने मायावाद की स्थापना की । विद्वानों का कथन है कि शंकर का मायावाद गौड. पादाचार्य के मायावाद से प्रभावित है। आचार्य शंकर ने माया शब्द का प्रयोग अविद्याअज्ञानभ्रममृगतृष्णिका आदि अर्थो में किया है। मायावाद शंकर का वह अमोघ मन्त्र है जिसके द्वारा ब्रहमा और जगत् के सम्बन्ध की पहेली को सुलझा सके है। जगत् ब्रहमा का विवर्तमात्र है जैसे रज्जू में सर्प । 

 

पारिभाषिक शब्दावली 

  • आगम - शास्त्रों को आगम कहा जाता है  
  • उपनिषद् – गतिविशरण और अवसादन 
  • विवर्त – भ्रम 
  • कारिका - श्लोक रूप 
  • भौतिक - लोक संसार 
  • श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्