रक्त समूह (ब्लड ग्रुप) एवं Rh समूह | Blood Group and Rh factor in Hindi - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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शुक्रवार, 28 मार्च 2025

रक्त समूह (ब्लड ग्रुप) एवं Rh समूह | Blood Group and Rh factor in Hindi

 

Blood Group and Rh factor in Hindi

Blood Group and Rh factor inHindi

रक्त समूह (ब्लड ग्रुप) 

  • जैसा कि आप जानते हैं कि मनुष्य का रक्त एक जैसा दिखते हुए भी कुछ अर्थों में भिन्न होता है। रक्त का कई तरीके से समूहीकरण किया गया है। इनमें से दो मुख्य समूह ABO तथा Rh का उपयोग पूरे विश्व में होता है।

 

ABO समूह 

  • ABO समूह मुख्यतः लाल रुधिर कणिकाओं की सतह पर दो प्रतिजन/एंटीजन की उपस्थिति या अनुपस्थित पर निर्भर होता है। ये ऐंटीजन और हैं जो प्रतिरक्षा अनुक्रिया को प्रेरित करते हैं। इसी प्रकार विभिन्न व्यक्तियों में दो प्रकार के प्राकृतिक प्रतिरक्षी/एंटीबोडी (शरीर प्रतिरोधी) मिलते हैं। प्रतिरक्षी वे प्रोटीन पदार्थ हैं जो प्रतिजन के विरुद्ध पैदा होते हैं। चार रक्त समूहों, A, B, AB, और में प्रतिजन तथा प्रतिरक्षी की स्थिति को देखते हैं. 
ABO समूह


 

दाता एवं ग्राही/आदाता के रक्त समूहों का रक्त चढाने से पहले सावधानीपूर्वक मिलान कर लेना चाहिए जिससे रक्त स्कंदन एवं RBC के नष्ट होने जैसी गंभीर परेशानियां न हों। दाता संयोज्यता (डोनर कंपेटिबिलिटी) 

डोनर कंपेटिबिलिटी

 

उपरोक्त तालिका से यह स्पष्ट है कि रक्त समूह एक सर्वदाता है जो सभी समूहों को रक्त प्रदान कर सकता है। रक्त समूह AB सर्व आदाता (ग्राही) है जो सभी प्रकार के रक्त समूहों से रक्त ले सकता है।

 

Rh समूह 

एक अन्य प्रतिजन/एंटीजन Rh है जो लगभग 80 प्रतिशत मनुष्यों में पाया जाता है तथा यह Rh एंटीजेन रीसेस बंदर में पाए जाने वाले एंटीजेन के समान है। ऐसे व्यक्ति को जिसमें Rh एंटीजेन होता हैको Rh सहित (Rh+ve) और जिसमें यह नहीं होता उसे Rh हीन (Rh-ve) कहते हैं। 

इरिथ्रोब्लास्टोसिस फिटैलिस (गर्भ रक्ताणु कोरकता)

  • यदि Rh रहित (Rh-ve) के व्यक्ति के रक्त को आर एच सहित (Rh+ve) पॉजिटिव के साथ मिलाया जाता है तो व्यक्ति मे Rh प्रतिजन Rh-ve के विरूद्ध विशेष प्रतिरक्षी बन जाती हैंअतः रक्त आदान-प्रदान के पहले Rh समूह को मिलना भी आवश्यक है। एक विशेष प्रकार की Rh अयोग्यता को एक गर्भवती (Rh-ve) माता एवं उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण के Rh+ve के बीच पाई जाती है। अपरा द्वारा पृथक रहने के कारण भ्रूण का Rh एंटीजेन सगर्भता में माता के Rh-ve को प्रभावित नहीं कर पातालेकिन फिर भी पहले प्रसव के समय माता के Rh-ve रक्त से शिशु के Rh+ve रक्त के संपर्क में आने की संभावना रहती है। ऐसी दशा में माता के रक्त में Rh प्रतिरक्षी बनना प्रारंभ हो जाता है। ये प्रतिरोध में एंटीबोडीज बनाना शुरू कर देती है। यदि परवर्ती गर्भावस्था होती है तो रक्त से (Rh-ve) भ्रूण के रक्त (Rh+ve) में Rh प्रतिरक्षी का रिसाव हो सकता है और इससे भ्रूण की लाल रुधिर कणिकाएं नष्ट हो सकती हैं। यह भ्रूण के लिए जानलेवा हो सकती हैं या उसे रक्ताल्पता (खून की कमी) और पीलिया हो सकता है। ऐसी दशा को इरिथ्रोब्लास्टोसिस फिटैलिस (गर्भ रक्ताणु कोरकता) कहते हैं। इस स्थिति से बचने के लिए माता को प्रसव के तुरंत बाद Rh प्रतिरक्षी का उपयोग करना चाहिए।

 

रक्त-स्कंदन (रक्त का जमाव ) 

  • किसी चोट या घात की प्रतिक्रिया स्वरूप रक्त स्कंदन होता है। यह क्रिया शरीर से बाहर अत्यधिक रक्त को बहने से रोकती है। क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों होता हैआपने किसी चोट घात या घाव पर कुछ समय बाद गहरे लाल व भूरे रंग का झाग सा अवश्य देखा होगा। यह रक्त का स्कंदन या थक्का हैजो मुख्यतः फाइब्रिन धागे के जाल से बनता है। इस जाल में मरे तथा क्षतिग्रस्त संगठित पदार्थ भी उलझे हुए होते हैं। फाइब्रिन रक्त प्लैज्मा में उपस्थित एंजाइम थ्रोम्बिन की सहायता से फाइब्रिनोजन से बनती है। थ्रोम्बिन की रचना प्लाज्मा में उपस्थित निष्क्रिय प्रोथोबिंन से होती है। इसके लिए थ्रोंबोकाइनेज एंजाइम समूह की आवश्यकता होती है। यह एंजाइम समूह रक्त प्लैज्मा में उपस्थित अनेक निष्क्रिय कारकों की सहायता से एक के बाद एक अनेक एंजाइमी प्रतिक्रिया की श्रृंखला (सोपानी प्रक्रम) से बनता है। एक चोट या घात रक्त में उपस्थित प्लेटलेट्स को विशेष कारकों को मुक्त करने के लिए प्रेरित करती है जिनसे स्कंदन की प्रक्रिया शुरू होती है। क्षतिग्रस्त ऊतकों द्वारा भी चोट की जगह पर कुछ कारक मुक्त होते हैं जो स्कंदन को प्रारंभ कर सकते हैं। इस प्रतिक्रिया में कैल्सियम आयन की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है।

 

लसीका (ऊतक द्रव) 

  • रक्त जब ऊतक की कोशिकाओं से होकर गुजरता है तब बड़े प्रोटीन अणु एवं संगठित पदार्थों को छोड़कर रक्त से जल एवं जल में घुलनशील पदार्थ कोशिकाओं से बाहर निकल जाते हैं। इस तरल को अंतराली द्रव या ऊतक द्रव कहते हैं। इसमें प्लैज्मा के समान ही खनिज लवण पाए जाते हैं। रक्त तथा कोशिकाओं के बीच पोषक पदार्थ एवं गैसों का आदान प्रदान इसी द्रव से होता है। वाहिकाओं का विस्तृत जाल जो लसीका तंत्र (लिंफैटिक सिस्टम) कहलाता है इस द्रव को एकत्र कर बड़ी शिराओं में वापस छोड़ता है। लसीका तंत्र में उपस्थित यह द्रव/तरल को लसीका कहते हैं
लिंफैटिक सिस्टम)


 

  • लसीका एक रंगहीन द्रव है जिसमें विशिष्ट लिंफोसाइट मिलते हैं। लिंफोसाइट शरीर की प्रतिरक्षा अनुक्रिया के लिए उत्तरदायी है। लसीका पोषक पदार्थहार्मोन आदि के संवाहन के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। आंत्र अकुंर में उपस्थित लैक्टियल वसा को लसीका द्वारा अवशोषित करते हैं।