प्राणि जगत वर्गीकरण का आधार | Base of Animal Kingdom Classification - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

प्राणि जगत वर्गीकरण का आधार | Base of Animal Kingdom Classification

  

प्राणि जगत 

अब तक लगभग दस लाख से अधिक प्राणियों का वर्णन किया जा चुका हैअतः वर्गीकरण का महत्व अधिक हो जाता है। 

 प्राणि जगत वर्गीकरण का आधार 

प्राणि जगत वर्गीकरण का आधार | Base of Animal Kingdom Classification

वर्गीकरण का आधार 

  • प्राणियों की संरचना एवं आकार में भिन्नता होते हुए भी उनकी कोशिका व्यवस्थाशारीरिक सममितिप्रगुहा की प्रकृतिपाचन तंत्रपरिसंचरण-तंत्र व जनन तंत्र की रचना में कुछ आधारभूत समानताएं पाई जाती हैं। इन विशेषताओं को वर्गीकरण के आधार के रूप में प्रयुक्त किया गया है। इनमें से कुछ का वर्णन यहाँ किया गया है।

 

1 संगठन के स्तर 

  • यद्यपि प्राणि जगत के सभी सदस्य बहुकोशिक हैंलेकिन सभी एक ही प्रकार की कोशिका के संगठन को प्रदर्शित नहीं करते हैं। उदाहरण के लिएस्पंज में कोशिका बिखरे हुए समूहों में हैं। अर्थात् वे कोशिकीय स्तर का संगठन दर्शाती हैं। कोशिकाओं के बीच श्रम का कुछ विभाजन होता है। 
  • सिलेंटरेट कोशिकाओं की व्यवस्था अधिक होती हैं। उसमें कोशिकाएं अपना कार्य संगठित होकर ऊतक के रूप में करती हैं। इसलिए इसे ऊतक स्तर का संगठन कहा जाता है। 
  • इससे उच्च स्तर का संगठन जो प्लेटीहेल्मिंथीज के सदस्य तथा अन्य उच्च संघों में पाया जाता है जिसमें ऊतक संगठित होकर अंग का निर्माण करता है और प्रत्येक अंग एक विशेष कार्य करता है। प्राणी में जैसेऐनेलिडआर्थोपोडमोलस्कएकाइनोडर्म तथा रज्जुकी के अंग मिलकर तंत्र के रूप में शारीरिक कार्य करते हैं। प्रत्येक तंत्र एक विशिष्ट कार्य करता है। इस तरह की संरचना अंगतंत्र के स्तर का संगठन कहा जाता है। 
  • विभिन्न प्राणि समूहों में अंगतंत्र विभिन्न प्रकार की जटिलताएं प्रदर्शित करते हैं। उदाहरण के लिए पाचन भी अपूर्ण व पूर्ण होता है। अपूर्ण पाचन तंत्र में एक ही बाह्य द्वार होता हैजो मुख तथा गुदा दोनों का कार्य करता हैजैसे प्लेटीहेल्मिंथीज। पूर्ण पाचन तंत्र में दो बाह्य द्वार होते हैं मुख तथा गुदा। 

 

इसी प्रकार परिसंचरण-तंत्र भी दो प्रकार का है खुला तथा बंद

  • (i) खुले परिसंचरण-तंत्र में रक्त का बहाव हृदय से सीधे बाहर भेजा जाता है तथा कोशिका एवं ऊतक इसमें डूबे रहते हैं। 
  • (ii) बंद परिसंचरण-तंत्र- रक्त का संचार हृदय से भिन्न-भिन्न व्यास की वाहिकाओं के द्वारा होता है। (उदाहरण - धमनीशिरा तथा कोशिकाएं)

 

2 सममिति 

  • प्राणी को सममिति के आधार पर भी श्रेणीबद्ध किया जा सकता है। स्पंज मुख्यतः असममिति होते हैंअर्थात् किसी भी केंद्रीय अक्ष से गुजरने वाली रेखा इन्हें दो बराबर भागों विभाजित नहीं करती। 
  • जब किसी भी केंद्रीय अक्ष से गुजरने वाली रेखा प्राणि के शरीर को दो समरूप भागों में विभाजित करती है तो इसे अरीय सममिति कहते हैं। सीलेंटरेटटीनोफोरतथा एकाइनोडर्म में इसी प्रकार की सममिति होती है. 
  • किंतु ऐनेलिडआर्थोपोडआदि में एक ही अक्ष से गुजरने वाली रेखा द्वारा शरीर दो समरूप दाएं व बाएं भाग में बाँटा जा सकता है। इसे द्विपार्श्व सममिति कहते हैं। 

 

3 द्विकोरिक तथा त्रिकोरकी संगठन 

  • जिन प्राणियों में कोशिकाएं दो भ्रूणीय स्तरों में व्यवस्थित होती हैं यथा बाह्य एक्टोडर्म (बाह्य त्वचा) तथा आंतरिक एंडोडर्म (अंतः त्वचा) वे द्विकोरिक कहलाते हैं। जैसे सिलेन्टरेट 
  • वे प्राणी जिनके विकसित भ्रूण में तृतीय भ्रूणीय स्तर मीजोडर्म होता हैत्रिकोरकी कहलाते हैं (जैसे प्लेटीहेल्मिंथीज से रज्जुकी तक .

 

4 प्रगुहा (सीलोम ) 

  • शरीर भित्ति तथा आहार नाल के बीच में गुहा की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति वर्गीकरण का महत्वपूर्ण आधार है। मीजोडर्म (मध्य त्वचा) से आच्छादित शरीर गुहा को देहगुहा (प्रगुहा) कहते हैं। तथा इससे युक्त प्राणी को प्रगुही प्राणी कहते हैं। उदाहरण- ऐनेलिडमोलस्कआर्थोपोडएकाइनोडर्महेमीकॉर्डेट तथा कॉर्डेट। 
  • कुछ प्राणियों में यह गुहा मीसोडर्म से आच्छादित नहीं होतीबल्कि मध्य त्वचा (मीसोडर्म) बाह्य त्वचा एवं अंतः त्वचा के बीच बिखरी हुई थैली के रूप में पाई जाती हैउन्हें कूटगुहिक कहते हैं जैसे- ऐस्केल्मिंथीज। 
  • जिन प्राणियों में शरीर गुहा नहीं पाई जाती है उन्हें अगुहीय कहते हैंजैसे- प्लेटीहेल्मिंथीज 

 

5 खंडीभवन (सैगमेंटेशन) 

  • कुछ प्राणियों में शरीर बाह्य तथा आंतरिक दोनों ओर श्रेणीबद्ध खंडों में विभाजित रहता हैजिनमें कुछेक अंगों की क्रमिक पुनरावृति होती है। उस प्रक्रिया को खंडीभवन कहते हैं। 
  • उदाहरण के लिए के केंचुए में शरीर का विखंडी खंडीभवन होता है और यह विखंडावस्था कहलाती है।

 6 पृष्ठरज्जु 

  • शलाका रूपी पृष्ठरज्जु (नोटोकोर्ड) मध्यत्वचा (मीसोडर्म) से उत्पन्न होती है जो भ्रूणीय परिवर्धन विकास के समय पृष्ठ सतह में बनती होती है। पृष्ठरज्जु युक्त प्राणी को रज्जुकी (कॉर्डेट) कहते हैं तथा पृष्ठरज्जु रहित प्राणी को अरज्जुकी (नोनकॉर्डेट) कहते हैं।