प्रमुख ग्रंधि और उनसे निकालने वाले हार्मोन | Endocrine Glands and Hormone in Hindi - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

प्रमुख ग्रंधि और उनसे निकालने वाले हार्मोन | Endocrine Glands and Hormone in Hindi

 

प्रमुख ग्रंधि और उनसे निकालने वाले हार्मोन  

प्रमुख ग्रंधि और उनसे निकालने वाले हार्मोन  | Endocrine Glands and Hormone in Hindi


पिनियल ग्रंथि 

  • पिनियल ग्रंथि अग्र मस्तिष्क के पृष्ठीय (ऊपरी) भाग में स्थित होती है। 
  • पिनियल ग्रंथि मेलेटोनिन हार्मोन स्रावित करती है। 
  • मेलेटोनिन हमारे शरीर की दैनिक लय (24 घंटे) के नियमन का एक महत्वपूर्ण कार्य करता है। 
  • उदाहरण के लिए यह सोने-जागने के चक्र एवं शरीर के तापक्रम को नियंत्रित करता है।
  • इन सबके अतिरिक्त मेलेटोनिन उपापचयवर्णकतामासिक (आर्तव) चक्र॰ प्रतिरक्षा क्षमता को भी प्रभावित करता है।

 

थाइरॉइड ग्रंथि से निकालने वाले हार्मोन 

  • थाइरॉइड ग्रंथि श्वास नली के दोनों ओर स्थित दो पालियों से बनी होती है 
  • दोनों पालियाँ संयोजीऊतक के पतली पल्लीनुमा इस्थमस से जुड़ी होती हैं। 
  • प्रत्येक थाइरॉइड ग्रंथि पुटकों और भरण ऊतकों की बनी होती हैं। 
  • प्रत्येक थाइरॉइड पुटक एक गुहा को घेरे पुटक कोशिकाओं से निर्मित होता है। ये पुटक कोशिकाएं दो हार्मोनटेट्रा आयडो थाइरोनीनस (T4) अथवा थायरोक्सीन तथा ट्राईआइडोथायरोनीन (T3) का संश्लेषण करती हैं। 
  • थाइरॉइड हार्मोन के सामान्य दर से संश्लेषण के लिए आयोडीन आवश्यक है। हमारे भोजन में आयोडीन की कमी से अवथाइरॉइडता एवं थाइरॉइड ग्रंथि की वृद्धि हो जाती हैजिसे साधारणतया गलगंड कहते हैं। 
  • गर्भावस्था के समय अवथाइरॉइडता के कारण गर्भ में विकसित हो रहे बालक की वृद्धि विकृत हो जाती है। इससे बच्चे की अवरोधित वृद्धि (क्रिटेनिज्म) या वामनता तथा मंदबुद्धित्वचा असामान्यतामूक बधिरता आदि हो जाती हैं। 
  • वयस्क स्त्रियों में अवथाइराइडता मासिक चक्र को अनियमित कर देता है। थाइरॉइड ग्रंथि के कैंसर अथवा इसमें गाँठों की वृद्धि से थाइरॉइड हारर्मोन के संश्लेषण की दर असामान्य रूप से अधिक हो जाती है। इस स्थिति को थाइरॉइड अतिक्रियता कहते हैंजो शरीर की कार्यिकी पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। 
  • थाइरॉइड हार्मोन आधारीय उपापचयी दर के नियमन में मुख्य भूमिका निभाते हैं। 
  • थाइरॉइड हार्मोन लाल रक्त कणिकाओं के निर्माण की प्रक्रिया में भी सहायता करते हैं।
  • थाइरॉइड हार्मोन कार्बोहाइड्रेट्प्रोटीन और वसा के उपापचय (संश्लेषण और विखंडन) को भी नियंत्रित करते हैं। 
  • जल और विद्युत उपघट्यों का नियमन भी थाइरॉइड हार्मोन प्रभावित करते हैं। 
  • थाइरॉइड ग्रंथि से एक प्रोटीन हार्मोनथाइरोकैल्सिटोनिन (TCT) का भी स्त्राव होता है जो रक्त में कैल्सियम स्तर को नियंत्रण करता है। 
  • नेत्रोत्सेधी गलगण्ड (एक्सऑप्थैलमिक ग्वायटर) थाइरॉइड अतिक्रियता का एक रूप है।
  • थाइरॉइड ग्रंथि में वृद्धिनेत्र गोलकों का बाहर की ओर उभर आनाआधारी उपापचय दर में वृद्धि एवं भार में हास इसके अभिलक्षण हैं। इसे ग्रेवस् रोग भी कहते हैं।

 

पैराथाइरॉइड ग्रंथि

  • मानव में चार पैराथाइरॉइड ग्रंथियाँथाइरॉइड ग्रंथि की पश्च सतह पर स्थित होती है।
  • थाइरॉइड ग्रंथि की दो पालियों पर प्रत्येक में एक जोड़ी पैराथाइरॉइड ग्रंथियाँ पाई जाती हैं जो पैराथाइरॉइड हार्मोन (PTH) नामक एक पेप्टाइड हार्मोन का स्त्राव करती हैं। 
  • पीटीएच का स्राव रक्त के साथ परिसंचारित कैल्सियम आयन के द्वारा नियमित होता है। 
  • पैराथाइरॉइड हार्मोन रक्त में Ca2+ के स्तर को बढ़ाता है। 
  • पी टी एच अस्थियों पर कार्य कर अस्थि अवशोषण (विघटन/विखनिजन) प्रक्रम में सहायता करता है। 
  • पी टी एच वृक्क नलिकाओं से Ca2+ के पुनरावशोषण तथा पचित भोजन से Ca2+ के अवशोषण को भी प्रेरित करता है। अतः यह स्पष्ट है कि पी टी एच एक अतिकैल्सियम रक्तता हार्मोन (hypercalemic hormone) हैक्योंकि यह रक्त में Ca2+ स्तर को बढ़ाता है।
  • यह थाइरोकैल्सिटोनिन के साथ मिलकरयह शरीर में Ca2+ स्तर को बढ़ाता है। टी सी टी के ऊतक के पतली पल्लीनुमा इस्थमस से जुड़ी होती हैं।  
  • टी सी टी के साथ मिलकरयह शरीर में Ca2+ का संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

 

थाइमस ग्रंथि 

थाइमस ग्रंथि


  • थाइमस ग्रंथि महाधमनी के उदर पक्ष पर उरोस्थि के पीछे फेफड़ों के बीच स्थित एक पालीयुक्त संरचना है। 
  • थाइमस ग्रंथि प्रतिरक्षा तंत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • यह ग्रंथि थाइमोसिन नामक पेप्टाइड हार्मोन का स्त्राव करती है। 
  • थाइमोसिन टी-लिंफोसाइट्स के विभेदीकरण में मुख्य भूमिका निभाते हैं जो कोशिका माध्य प्रतिरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त थाइमोसिन तरल प्रतिरक्षा (humoral immunity) के लिए प्रतिजैविक के उत्पादन को भी प्रेरित करते हैं। 
  • बढ़ती उम्र के साथ थाइमस का अपघटन होने लगता हैफलस्वरूप थाइमोसिन का उत्पादन घट जाता है। इसी के परिणामस्वरूप वृद्धों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कमजोर पड़ जाती है। 


अधिवृक्क ग्रंथि

 

अधिवृक्क ग्रंथि

  • हमारे शरीर में प्रत्येक वृक्क के अग्र भाग में एक स्थित एक जोड़ी अधिवृक्क ग्रंथियां होती हैं। 
  • ग्रंथियां दो प्रकार के ऊतकों से निर्मित होती हैं। 
  • ग्रंथि के बीच में स्थित ऊतक अधिवृक्क मध्यांश और बाहरी ओर स्थित ऊतक अधिवृक्क वल्कुट कहलाता है। 
  • अधिवृक्क मध्यांश दो प्रकार के हार्मोन का स्राव करता है जिन्हें एड्रिनलीन या एपिनेफ्रीन और नॉरएंड्रिनलीन या नारएपिनेफ्रीन कहते हैं। इन्हें सम्मिलित रूप में कैटेकॉलमीनस कहते हैं। 
  • एड्रिनलीन और नॉरएड्रिनलीन किसी भी प्रकार के दबाव या आपातकालीन स्थिति में अधिकता में तेजी से स्रावित होते हैंइसी कारण ये आपातकालीन हार्मोन या युद्ध हार्मोन या फ्लाइट हार्मोन कहलाते हैं। ये हार्मोन सक्रियता (तेजी)आँखों की पुतलियों के फैलावरोंगटे खड़े होनापसीना आदि को बढ़ाते हैं। दोनों हार्मोन हृदय की धड़कनहृदय संकुचन की क्षमता और श्वसन दर को बढ़ाते हैं। 
  • कैटेकोलएमीनग्लाइकोजन के विखंडन को भी प्रेरित करते हैंजिसके परिणामस्वरूप रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। साथ ही ये लिपिड और प्रोटीन के विखंडन को भी प्रेरित करते हैं। 
  • अधिवृक्क वल्कुट को तीन परतों में विभाजित किया जा सकता है- जोना रेटिक्यूलेरिस (आंतरिक परत)जोना फेसिक्यूलेटा (मध्य परत) और जोना ग्लोमेरूलोसा (बाहरी परत)।
  • अधिवृक्क वल्कुट कई हार्मोन का स्राव करता है- जिन्हें सम्मिलित रूप से कोर्टिकोस्टीरॉइड हार्मोन या कोर्टिकॉइड कहते हैं। 
  • कॉर्टिकोस्टीरॉइड कार्बोहाइड्रेट के उपापचय में संलग्न होते हैं ग्लूकोकार्टिकॉइड कहलाते हैं। हमारे शरीर मेंकॉर्टिसॉल मुख्य ग्लूकोकॉर्टिकॉइड है। 
  • जल और विद्युत अपघट्यों का संतुलन करने वाले कॉर्टिकॉस्टीराइडमिनरलोकॉर्टिकॉइड्स कहलाते हैं। 
  • हमारे शरीर में एल्डोस्टीरॉन मुख्य मिनरलोकॉर्टिकाइड है। 
  • ग्लूकोकॉर्टिकोइड ग्लाइकोजन संश्लेषणग्लूकोनियोजिनेसिसवसा अपघटन और प्रोटीन अपघटन को प्रेरित करते हैं तथा एमीनो अम्लों के कोशिकीय ग्रहण और उपयोग को अवरोधित करते हैं। 
  • कॉर्टिसॉलहृदय संवहनी तंत्र के रखरखाव तथा वृक्क की क्रियाओं में भी संलग्न होता है। 
  • ग्लूकोकॉर्टिकोइड एवं विशेष रूप से कॉर्टिसाल प्रतिशोथ प्रतिक्रियाओं को प्रेरित करता है तथा प्रतिरक्षा तंत्र की प्रतिक्रिया को अवरोधित करता है। 
  • कॉर्टिसाल लाल रुधिर कणिकाओं के उत्पादन को प्रेरित करता है। 
  • एल्डोस्टीरॉन मुख्यतः वृक्क नलिकाओं पर कार्य करता है और Na+ एवं जल के पुनरावशोषण तथा K+ व फॉस्फेट आयन के उत्सर्जन को प्रेरित करता है। 
  • एल्डोस्टीरॉनवैद्युत अपघट्योंशरीर द्रव के आयतनपरासरणी दाब और रक्त दाब को बनाए रखने में सहायक होता है। 
  • एड्रीनल वल्कुट द्वारा कुछ मात्रा में एंड्रोजेनिक स्टीराइड का भी स्राव होता है जो यौवनारंभ के समय अक्षीय रोमजघन रोमतथा मुख (आनन) रोम की वृद्धि में भूमिका अदा करते हैं।
  • एड्रिनल वल्कुट द्वारा हार्मोन के अल्प स्रावण के कारण कार्बोहाइड्रेट उपापचय पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जिसके कारण अत्यंत दुर्बलता एवं थकावट का अनुभव होता है तथा एडीसन रोग हो जाता है।

 

अग्नाशय 

अग्नाशय


  • अग्नाशय एक संयुक्त ग्रंथि है जो अंत: स्रावी और बहिःस्रावी दोनों के रूप में कार्य करती है । 
  • अंत: स्रावी अग्नाशय 'लैंगरहँस द्वीपोंसे निर्मित होता है। साधारण मनुष्य के अग्नाशय में लगभग 10 से 20 लाख लैंगरहँस द्वीप होते हैं जो अग्नाशयी ऊतकों का 1 से 2 प्रतिशत होता है। 
  • प्रत्येक लैंगरहैंस द्वीप में मुख्य रूप से दो प्रकार की कोशिकाएं होती हैं जिन्हें વ और β कोशिकाएं कहते हैं। વ कोशिकाएं का ग्लूकगॉन तथा β कोशिकाएं इंसुलिन हार्मोन का स्त्राव करती हैं। 
  • ग्लूकागॉन एक पेप्टाइड हार्मोन है जो सामान्य रक्त शर्करा स्तर के नियमन में मुख्य भूमिका निभाता है। 
  • ग्लूकागॉन मुख्य रूप से यकृत कोशिकाओं पर कार्य कर ग्लाइकोजेन अपघटन को प्रेरित करता है जिसके फलस्वरूप रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त पेट ग्लूकोनियोजिनेसिस की प्रक्रिया को भी प्रेरित करता है जिससे कि हाइपरग्लाइसिमिया (अति ग्लूकोज रक्तता) होती है। 
  • ग्लूकागॉन कोशिकीय शर्करा के अभिग्रहण और उपयोग को कम करता है। अतः ग्लूकोगॉन हाइपरग्लाइसिमिक हार्मोन है। 
  • इंसुलिन भी एक प्रोटीन हार्मोन है जो ग्लूकोज समस्थापन के नियमन में मुख्य भूमिका निभाता है। इंसुलिन मुख्यतः हिपेटोसाइट और एडीपोसाइट पर कार्य करता है और कोशिकीय ग्लूकोज अभिग्रहण और उपयोग को बढ़ाता है। इसके फलस्वरूप ग्लूकोज तीव्रता से रक्त हिपेटोसाइट और एडीपोसाइट में जाता है और तथा रक्त शर्करा का स्तर कम (हाइपोग्लासीमिया) हो जाता है। 
  • इंसुलिन लक्ष्य कोशिकाओं में ग्लूकोज से ग्लाइकोजेन बनने की प्रक्रिया को भी प्रेरित करता है। रक्त में ग्लूकोज समस्थापन का नियमन सम्मिलित रूप से दो हार्मोन इंसुलिन और ग्लूकागॉन द्वारा होता है। 
  • लंबी अवधि तक हाइपरग्लाइसीमिया (अति ग्लूकोज रक्तता) होने पर डायबिटीज मेलीटस (मधुमेह) बीमारी हो जाती है जो मूत्र के साथ शर्करा का हास और हानिकारक पदार्थों जैसे कीटोन बॉडीज के निर्माण से जुड़ी है। मधुमेह के मरीजों का इंसुलिन द्वारा सफलतापूर्वक उपचार किया जा सकता है।

 

वृषण 

वृषण


  • नर में उदर गुहा (पेडू) के बाहर वृषण कोष में एक जोड़ी वृषण स्थित होता हैं । 
  • वृषण प्राथमिक लैंगिक अंग के साथ ही अंतःस्रावी ग्रंथि के रूप में भी कार्य करता है। वृषण शुक्रजनक नलिका और भरण या अंतराली ऊतक का बना होता है। 
  • लेइडिग कोशिकाएं या अंतराली कोशिकाएं अंतरनलिकीय स्थानों में उपस्थित होती हैं और एंड्रोजेन या नर हार्मोन तथा टेस्टोस्टेरॉन प्रमुख हार्मोन का स्राव करती हैं। 
  • एंड्रोजेन नर के सहायक जनन अंगों जैसे कि एपीडिडाईमसशुक्रवाहिकासेमिनल वेसीकलप्रोस्टेट ग्रंथियूरिथ्रा आदि के परिवर्धनपरिपक्वन और क्रियाओं का नियमन करते हैं। 
  • ये हार्मोन पेशीय वृद्धिमुख और अक्षीय रोम की वृद्धिक्रोधात्मकतानिम्न स्वरमान या आवाज इत्यादि को उत्तेजित करते हैं। 
  • एंड्रोजेन शुक्राणु निर्माण की प्रक्रिया में प्रेरक भूमिका निभाते हैं। 
  • एंड्रोजेन केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर कार्य कर नर लैंगिक व्यवहार (लिबिडो) को प्रभावित करता है। 
  • ये हार्मोन प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट उपापचय पर उपाचयी प्रभाव डालते हैं।

 

अंडाशय 

अंडाशय


  • मादाओं के उदर में अंडाशय का एक युग्म (जोड़ा) होता है । 
  • अंडाशय एक प्राथमिक मादा लैंगिक अंग है जो प्रत्येक मासिक चक्र में एक अंडे को उत्पादित करते हैं। 
  • अंडाशय दो प्रकार के स्टीरॉइड हार्मोन समूहों का भी उत्पादन करते हैंजिन्हें एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन कहते हैं। 
  • अंडाशय अंडपुटक और भरण ऊतक का बना होता है। 
  • एस्ट्रोजेन का संश्लेषण एवं स्राव प्रमुख रूप से परिवर्धित हो रहे अंडाशयी पुटकों द्वारा होता है। 
  • अंडोत्सर्ग के पश्चात विखंडित पुटिकाकॉर्पसल्यूटियम में बदल जाता है जो कि मुख्यतया प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन का स्राव करता है। 
  • एस्ट्रोजेन स्त्रियों में द्वितीयक लैंगिक अंगों की वृद्धि तथा क्रियाओं का प्रेरण, अंडाशयी पुटिकाओं का परिवर्धनद्वितीयक लैंगिक लक्षणों का प्रकटन (जैसे उच्च आवाज की स्वरमान) स्तन ग्रंथियों का परिवर्धन इत्यादि अनेक क्रियाएं करते हैं। एस्ट्रोजेन स्त्रियों के लैंगिक व्यवहार का नियामक भी है। 
  • प्रोजेस्टेरॉन प्रसवता में सहायक होते हैं। 
  • प्रोजेस्टेरॉन दुग्ध ग्रंथियों पर भी कार्य कर के दुग्ध संग्रह कूपिकाओं के निर्माण और दुग्ध के स्राव में सहायता करते हैं।

 

हृदयवृक्क और जठर आंत्रीय पथ के हार्मोन 

  • हार्मोन का स्त्राव कुछ अन्य अंगों द्वारा भी होता है जो अंत: स्रावी ग्रंथियां नहीं हैं। 
  • दाहरण के लिए हृदय की अलिंद भित्ति द्वारा एक पेप्टाईड हार्मोन का स्त्राव होता हैजिसे एट्रियल नेट्रियुरेटिक कारक (एएनएफ) कहते हैं। यह रक्त दाब को कम करता है।
  • जब रक्त दाब बढ़ जाता हैतो एएनएफ के स्त्राव और इसकी क्रिया के फलस्वरूप रक्त वाहिकाएं विस्फारित हो जाती हैं तथा रक्त दाब कम हो जाता है। 
  • वृक्क की जक्स्टाग्लोमेरूलर कोशिकाएंइरिथ्रोपोइटिन नामक हार्मोन का उत्पादन करती हैं जो रक्ताणु उत्पत्ति (आरबीसी के निर्माण) को प्रेरित करता है। 
  • जठर आंत्रीय पथ के विभिन्न भागों में उपस्थित अंत: स्रावी कोशिकाएं चार मुख्य पेप्टाइड हार्मोन का स्राव करती हैंगैस्ट्रिनसेक्रेटिनकोलिसिस्टोकाइनिन और जठर अवरोधी पेप्टाइड (जी आई पी)।
  • गैस्ट्रिनजठर ग्रंथियों पर कार्य कर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल और पेप्सिनोजेन के स्त्राव को प्रेरित करता है। 
  • सेक्रेटिन बहिः स्त्रावी अग्नाशय पर कार्य करता है और जल तथा बाइकार्बोनेट आयनों के स्त्राव को प्रेरित करता है। 
  • कोलिसिस्टोकाइनिन अग्नाशय और पित्ताशय दोनों पर कार्य कर क्रमशः अग्नाशयी एंजाइम और पित्त रस के स्राव को प्रेरित करता है। 
  • जी आई पी जठर स्राव और उसकी गतिशीलता को अवरुद्ध करता है। 
  • अनेक अन्य ऊतकजो अंतःस्रावी नहीं हैकई हार्मोन का स्त्राव करते हैं जिन्हें वृद्धिकारक कहते हैं। ये वृद्धिकारकऊतकों की सामान्य वृद्धि और उनकी मरम्मत और पुनर्जनन के लिए आवश्यक हैं।

 

हार्मोन क्रिया की क्रियाविधि 

  • हार्मोन लक्ष्य ऊतकों पर उपस्थित हार्मोनग्राही विशिष्ट प्रोटीन से जुड़कर अपना प्रभाव डालते हैं। 
  • लक्ष्य कोशिका झिल्लियों पर उपस्थित हार्मोनग्राहीझिल्ली योजित ग्राहीऔर कोशिका के अंदर उपस्थित ग्राही अंतरा कोशिकीयग्राही कहलाते हैं, जिसमें से अधिकांश केंद्रकीय ग्राही (केंद्रक में उपस्थित) होते हैहार्मोनग्राहियों के साथ जुड़कर हार्मोनग्राही सम्मिश्र का निर्माण करते हैं .  
  • प्रत्येक ग्राही सिर्फ एक हार्मोन के लिए विशिष्ट होता हैअतः ग्राही विशिष्ट होते हैं। हार्मोनग्राही सम्मिश्र के बनने से लक्ष्य ऊतक में कुछ जैव रासायनिक परिवर्तन होते हैं। अतः लक्ष्य ऊतक में उपापचय एवं कार्यिकी का नियमन हार्मोन द्वारा होता है।


रासायनिक प्रकृति के आधार पर हार्मोन को समूहों में विभाजित किया जा सकता है:

 

(अ) पेप्टाइडपॉलीपेप्टाइडप्रोटीन हार्मोन (जैसे इंसुलिनग्लूकागॉनपीयूष ग्रंथि हार्मोनहाइपोथैलेमिक हार्मोन इत्यादि) 

(ब) स्टीरॉइड (उदाहरण के लिए कोटीसोलटेस्टोस्टेरोनएस्ट्राडायोल और प्रोजेस्टरॉन) 

(स) आयोडोथाइरोनिन (थायराइड हार्मोन) 

(द) अमीनो अम्लों के व्युत्पन्न (उदाहरण के लिए एपीनेफ्रीन)।

 

  • जो हार्मोन झिल्ली योजित ग्राहियों से क्रिया करते हैं वे साधारणतया लक्ष्य कोशिकाओं में प्रवेश नहीं कर पाते हैंलेकिन द्वितीयक संदेशवाहकों का उत्पादन कर (जैसे कि चक्रीय ए एम पीआई पी3, Ca2+ आदि) अंततः कोशिकीय उपापचय का नियमन करते हैं । 
  • अंतरकोशिकीय ग्राहियों से क्रिया करने वाले हार्मोन (जैसे स्टीरॉइड हार्मोनआयोडोथाइरोनिन आदि) हार्मोनग्राही सम्मिश्र एवं जीनोम के पारस्परिक क्रिया से जीन की अभिव्यक्ति अथवा गुणसूत्र क्रिया का नियमन करते हैं। संयुक्त जैव-रासायनिक क्रियाएं शरीर की कार्यिकी तथा वृद्धि को प्रभावित करती हैं 

 

हार्मोन महत्वपूर्ण तथ्य  

  • कुछ विशेष प्रकार के रसायन हार्मोन की तरह कार्य कर मानव शरीर में रासायनिक समन्वयएकीकरण और नियमन प्रदान करते हैं। ये हार्मोन कुछ विशेष कोशिकाओं अंत:स्त्रावी ग्रंथियों तथा हमारे अंगों की वृद्धि उपापचय एवं विकास को नियमित करते हैं। 
  • अंत: स्रावी तंत्र का निर्माण हाइपोथैलेमसपीयूषपीनियलथायरॉइडअधिवृक्कअग्नाशयपैराथायरॉइडथाइमस और जनन (वृषण एवं अंडाशय) द्वारा होता है। इनके साथ ही कुछ अन्य अंग जैसे जठर आंत्रीय पथवृक्क हाइपोथैलेमसहृदय आदि भी हार्मोन का उत्पादन करते हैं। हाइपोथैलेमस द्वारा 7 मुक्तकारी हार्मोन और 3 निरोधी हार्मोन का उत्पादन होता है जो पीयूष ग्रंथि पर कार्य कर उससे उत्सर्जित होने वाले हार्मोन के संश्लेषण और स्रवण का नियंत्रण करते हैं। पीयूष ग्रंथि तीन मुख्य भागों में विभक्त होती है- पार्स डिस्टेलिसपार्स इंटरमीडियापार्स नर्वोसा। पार्स डिस्टेलिस द्वारा 6 ट्रॉफिक हार्मोन का स्रवण होता है। पार्स इंटरमीडिया केवल एक हार्मोन का स्राव करता हैजबकि पार्स नर्वोसा दो हार्मोन का स्राव करता है। पीयूष ग्रंथि से स्रवित हार्मोन कायिक ऊतकों की वृद्धिपरिवर्धन एवं परिधीय अंत: स्त्रावी ग्रंथियों की क्रियाओं का नियंत्रण करते हैं। 
  • पिनियल ग्रंथि मेलाटोनिन का स्त्राव करती है जो कि हमारे शरीर की 24 घंटे की लय को नियंत्रित करता है, (जैसे कि सोने व जागने की लयशरीर का तापक्रम आदि)। थाइरॉइड ग्रंथि से स्रवित होने वाले हार्मोन थाइरॉक्सीन आधारीय उपापचयी दरकेंद्रीय तंत्रिका तंत्र के परिवर्धन और परिपक्वनरक्ताणु उत्पत्ति कार्बोहाइड्रेटप्रोटीनवसा के उपापचयमासिक चक्र आदि का नियंत्रण करता है। 
  • अन्य थायरॉइड हार्मोन थाइरोकैल्स्टिोनिन हमारे रक्त में कैल्सियम की मात्रा को कम करके उसका नियंत्रण करता है। पैराथायरॉइड ग्रंथियों द्वारा स्रवित पैराथायरॉइड हार्मोन (PTH) Ca2+ के स्तर को बढ़ाकर, Ca2+ के समस्थापन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • थाइमस ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित थाइमोसिन हार्मोन टी-लिम्फोसाइट्स के विभेदीकरण में मुख्य भूमिका निभाता हैजो कोशिका केंद्रित असंक्राम्यता (प्रतिरक्षा) प्रदान करते हैं। साथ ही थाइमोसिन एंटीबॉडी का उत्पादन भी बढ़ाते हैं जो शरीर को तरल असंक्राम्यता (प्रतिरक्षा) प्रदान करते हैं। अधिवृक्क ग्रंथि मध्य में उपस्थित अधिवृक्क मध्यांश और बाहरी अधिवृक्क वल्कुट की बनी होती है। 
  • अधिवृक्क मध्यांश एपीनेफ्रीन और नॉरएपीनेफ्रीन हार्मोन का स्त्राव करता है। 
  • ये हार्मोन सतर्कतापुतलियों का फैलनारोंगटे खड़े करनापसीना आनाहृदय की धड़कनहृदय संकुचन की क्षमताश्वसन की दरग्लाइकोजेन अपघटन वसा अपघटन को बढ़ाते हैं। अधिवृक्क वल्कुट ग्लूकोकॉर्टिकाइड्स (कॉर्टिसॉन) और मिनरेलोकॉर्टिकाइड्स (एल्डोस्टीरॉन) का स्त्राव करता है। ग्लूकोकॉर्टिकॉइड्स ग्लाइकोजन संश्लेषणग्लूकोनियोजिनेसिसवसा अपघटनप्रोटीन अपघटनरक्ताणु उत्पत्तिरक्त दाब और ग्लोमेरूलर निस्पंदन को बढ़ाते हैं तथा प्रतिरोधक क्षमता को दबा कर शोथ प्रतिक्रियाओं को रोकता है। खनिज कोर्टिकॉइडस शरीर में जल एवं वैद्युत अपघट्यों का नियमन करते हैं। 
  • अंत: स्रावी अग्नाशय ग्लूकागॉन एवं इंसुलिन हार्मोन का स्त्राव करता है। ग्लूकागॉन कोशिका में ग्लाइकीजेनोलिसिस तथा ग्लूकोनियोजेनेसिस को प्रेरित करता हैजिससे रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है। इसे हाइपरग्लासीमिया (अति ग्लूकोज रक्तता) कहते हैं। इंसुलिन शर्करा के अभिग्रहण और उपयोग को प्रेरित करती है और ग्लाइकोजिनेसिस के फलस्वरूप हाइपोग्लासिमिया हो जाता है। इंसुलिन की कमी से डायबिटीज मेलीटस (मधुमेह) नामक रोग हो जाता है। 
  • वृषण एंड्रोजन हार्मोन का स्त्राव करता है जो नर के आवश्यक लैंगिक अंगों के परिवर्धनपरिपक्वन और क्रियाओं कोद्वितीयक लैंगिक लक्षणों का प्रकट होनाशुक्राणु जनननर लैंगिक व्यवहारउपचयी पथक्रम और रक्ताणु उत्पत्ति को प्रेरित करता है। 
  • अंडाशय द्वारा एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन का स्त्राव होता है। एस्ट्रोजेन स्त्रियों में आवश्यक लैंगिक अंगों की वृद्धि व परिवर्धन और द्वितीयक लैंगिक लक्षणों के प्रकट होने को प्रेरित करता है। प्रोजेस्टेरॉन गर्भावस्था की देखभाल के साथ ही दुग्ध ग्रंथियों के परिवर्धन और दुग्धस्राव को बढ़ाता है। 
  • हृदय की अलिंद भित्ति एंट्रियल नेट्रियूरेटिक कारक का उत्पादन करता हैजो रक्त दाब कम करता है। वृक्क में एरीथ्रोपोइटिन का उत्पादन होता है जो रक्ताणु उत्पत्ति को प्रेरित करता है। जठर आंत्रीय पथ के द्वारा गैस्ट्रिन सेक्रेटिनकोलीसिस्टोकाइनिन-पैंक्रियोजाइमिन और जठर अवरोधी पेप्टाइड का स्त्राव होता है। ये हार्मोन पाचक रसों के स्त्राव और पाचन में सहायता करते हैं।