निष्पक्ष पत्रकारिता की अनुपस्थिति एक समाज में सत्य की झूठी प्रस्तुति को जन्म देती है जो लोगों की धारणा और विचारों को प्रभावित करती है।
स्वतंत्र मीडिया विचारों की मुक्त चर्चा को बढ़ावा देता है जो व्यक्तियों को राजनीतिक जीवन में पूरी तरह से भाग लेने, निर्णय लेने की अनुमति देता है और परिणामस्वरूप समाज को सशक्त करता है - विशेष रूप से भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में।
लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिये विचारों का स्वतंत्र आदान-प्रदान, सूचना और ज्ञान का आदान-प्रदान, बहस और विभिन्न दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति महत्त्वपूर्ण होती है। जनता की आवाज़ होने के आधार पर स्वतंत्र मीडिया, उन्हें राय व्यक्त करने के अधिकार के साथ सशक्त बनाता है। इस प्रकार, लोकतंत्र में स्वतंत्र मीडिया महत्त्वपूर्ण है।
स्वतंत्र मीडिया के साथ, लोग सरकार के निर्णयों पर प्रश्न करके अपने अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम होते हैं। ऐसा माहौल तभी बनाया जा सकता है जब प्रेस की स्वतंत्रता प्राप्त हो।
हाल ही में, उच्च न्यायपालिका ने एक आदेश पारित किया जो मीडिया के विनियमन से संबंधित है। एक आदेश में, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य के पूर्व महाधिवक्ता से जुड़े एक मामले के संबंध में कुछ भी उल्लेख करने से, मीडिया और यहाँ तक कि सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया। दूसरे मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश पारित किया जिसने एक समाचार चैनल के शेष एपिसोड के प्रसारण को रोक दिया, क्योंकि यह एक विशेष समुदाय को तिरस्कृत कर रहा था।
मीडिया में विश्वास बहाल करने के लिये मीडिया स्वतंत्रता को कम किये बिना मीडिया सामग्री से छेड़छाड़ और फेक न्यूज़ का सामना करने के लिये सार्वजनिक शिक्षा, नियमों को मज़बूत करने तथा प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा न्यूज़ क्यूरेशन हेतु उपयुक्त एल्गोरिदम बनाने के प्रयासों की आवश्यकता होगी।
फेक न्यूज़ पर अंकुश लगाने के भविष्य के किसी भी कानून को पूरी तस्वीर को ध्यान में रखना चाहिये और मीडिया को दोष नहीं देना चाहिये एवं बिना सोचे प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिये; नये मीडिया के इस युग में कोई भी अज्ञात लाभों के लिये खबर बना सकता है और प्रसारित कर सकता है।
यह महत्त्वपूर्ण है कि मीडिया सत्यता और सटीकता, पारदर्शिता, स्वतंत्रता, औचित्यता एवं निष्पक्षता,उत्तरदायिता जैसे मुख्य सिद्धांतों का पालन करती रहे।