केन्द्रीय श्रम मंत्रालय ने श्रम संहिताओं के बारे में आशंकाओं को गलत बताया है
मंत्रालय का कहना है कि
श्रम संहिताओं का उद्देश्य न केवल मौजूदा लाभार्थियों बल्कि असंगठित क्षेत्र के
40 से अधिक कामगारों तक श्रम कल्याण उपायों का विस्तार करना है
श्रम एवं रोजगार मंत्रालय में संसद में कुछ दिन पहले पारित किए गए ऐतिहासिक परिवर्तनकारी सुधारों के बारे में व्याप्त चिंताओं और शंकाओं का निवारण कर दिया है। केन्द्रीय श्रम मंत्री ने कहा कि जितनी भी आलोचना की जा रही हैं वह सब गलत हैं। कामबंदी के लिए लघु इकाइयों में कर्मचारियों की न्यूनतम सीमा को 300 किए जाने के संबंध में स्पष्टीकरण देते हुए मंत्रालय ने यह रेखांकित किया है कि संसदीय स्थायी समिति से संबंधित
विभाग ने छंटनी, कामबंदी तथा बंदी के लिए कामगारों की अवसीमा को 100 से बढ़ाकर 300 करने की सिफारिश की थी। यह समुचित सरकार से पूर्वानुमति लेने का एकमात्र पहलु है जिसे अब दूर कर दिया गया है और अन्य लाभ तथा कामगारों के अधिकारों को संरक्षित किया गया है।
कामगारों के अधिकार तथा छंटनी से पूर्व नोटिस, सेवा के प्रत्येक
पूरे किए गए वर्ष के लिए 15 दिनों के वेतन
की दर से प्रतिपूर्ति तथा नोटिस अवधि के बदले में वेतन देने के बारे में कोई
समझौता नहीं किया गया है। इसके अलावा, औद्योगिक संबंध संहिता में नवसृजित पुनर्कौशल निधि के
अंतर्गत 15 दिनों के वेतन
के समान अतिरिक्त आर्थिक लाभ की संकल्पना की गई है। ऐसा कोई व्यावहारिक दृष्टांत नहीं
है जो यह दर्शाए कि उच्चतम अवसीमा हायर एवं फायर का संवर्धन करती है।
उन्होंने यह भी कहा कि
औद्योगिक संबंध संहिता के पारित होने से पूर्व राजस्थान के उदाहरण का अनुसरण करते
हुए राजस्थान सहित 16 राज्यों ने
औद्योगिक विवाद अधिनियम के अंतर्गत अवसीमा में 100 कामगार से 300 कामगारों की वृद्धि कर दी है। इन राज्यों में
आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मेघालय, ओडिशा शामिल हैं
जिन्होंने छंटनी अथवा कामबंदी से पूर्व अनुमति लेने की अपेक्षा को यह मानते हुए
समाप्त कर दिया है कि इससे कोई विशेष प्रयोजन हल नहीं होता परंतु इससे कई प्रकार
की हानियां होती हैं और कंपनी के दायित्व बढ़ जाते हैं और वह बंदी की कगार पर आ
जाती है।
यहां तक कि मौजूदा
औद्योगिक विवाद अधिनियम,
1947 में अनुमति की अपेक्षा केवल कारखाना, खान तथा बागान के संबंध में ही होती थी। पूर्वानुमति लेने
की यह जरूरत किसी अन्य क्षेत्र में लागू नहीं होती है।
नियत अवधि के नियोजन के
साथ हायर और फायर के शुरू होने की अफवाहों को दरकिनार करते हुए मंत्रालय ने कहा है
कि नियत अवधि का नियोजन केन्द्र सरकार तथा 14 अन्य राज्यों द्वारा पहले ही अधिसूचित कर दिया गया
है। इन राज्यों में असम, बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड (परिधान
एवं मेड-अप), कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश
(वस्त्र एवं ईओयू) तथा उत्तराखण्ड शामिल हैं।
नियत अविध के नियोजन की
अनुपलब्धता का आशय यह है कि नियोक्ता के पास यह विकल्प होता था कि वह कामगार को
नियमित आधार पर अथवा ठेका आधार पर नियोजित कर सकता था। ठेका आधार पर कामगारों के
नियोजन का अर्थ है - नियोक्ता की उच्चतर लागत, ठेका श्रमिकों के स्थायित्व में कमी, अप्रशिक्षित तथा
अकुशल श्रमिक। इसके कारण वास्तव में दो नियोक्ता दिखते थे - पहला ठेकेदार तथा
दूसरा प्रधान नियोक्ता, जिससे कामगारों
तथा ठेका श्रमिकों के बीच संबंधों में प्रतिबद्धता तथा स्थायी संबंधों में कमी
दिखाई पड़ती थी।
मंत्रालय ने जोर देकर
कहा कि नियत कालिक नियोजन कामगार-समर्थक है। इससे नियोजक के लिए ठेकेदार के माध्यम
से जाने के बजाय कामगार या कर्मचारी के साथ सीधे नियत कालिक ठेका करना संभव होगा।
ऐसे आरोप लगाए गए हैं कि ठेकेदार न्यूनतम मजदूरी और अन्य पात्र लाभों जैसे ईपीएफ, ईएसआईसी के संबंध
में पूरी राशि वसूल करते हैं लेकिन इसे ठेका श्रमिकों को नहीं पहुँचाते हैं।
केन्द्रीय श्रम मंत्रालय
ने यह भी कहा कि नियत कालिक कर्मचारी को नियमित कर्मचारी के समतुल्य सभी लाभों और
सेवा शर्तों का कानूनन पात्र बनाया गया है। वास्तव में औद्योगिक संबंध संहिता
एफटीई ठेके के लिए भी उपदान का प्रो-राटा आधार पर लाभ प्रदान करती है जो नियमित
कर्मचारी के मामले में पांच वर्ष है।
अंतर- राज्यीय प्रवासी कामगार
अंतर-राज्यीय प्रवासी
कामगार की परिभाषा के बारे में जानकारी देते हुए बताया गया कि अंतर-राज्यीय
प्रवासी कामगार अधिनियम,
1979 को ओएसएच कोड में शामिल कर लिया गया है। पूर्ववर्ती अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों
को ओएसएच कोड में और अधिक सशक्त किया गया है।
अंतर-राज्यीय प्रवासी
कामगार अधिनियम, 1979 में
अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगार की परिभाषा बहुत प्रतिबंधक है। इसमें प्रावधान है कि
एक व्यक्ति जिसे एक राज्य में ठेकेदार के माध्यम से दूसरे राज्य में रोजगार के लिए
भर्ती किया जाता है, वह ‘अंतर- राज्यीय
प्रवासी कामगार’ कहलाता है। ओएसएच
कोड उन कामगारों को शामिल करने को शामिल करने के
लिए प्रवासी कामगार की परिभाषा का विस्तार करती है जिन्हें ठेकेदार के
अलावा सीधे नियोजक द्वारा नियोजित किया जाएगा। इसके अलावा, यह भी संभव बनाया
गया है कि गंतव्य राज्य में स्वयं अपनी इच्छा से आने वाला प्रवासी आधार के साथ
स्व-घोषणा के पर इलेक्ट्रॉनिक पोर्टल पर पंजीकरण कराकर स्वयं को प्रवासी कामगार
घोषित कर सकता है। पोर्टल पर पंजीकरण को सरल बनाया गया है तथा आधार के अलावा किसी
अन्य दस्तावेज की कोई आवश्यकता नहीं है।
इस संबंध में, मंत्रालय ने
प्रवासियों सहित असंगठित कामगारों का नामांकन करने के लिए राष्ट्रीय डेटाबेस
विकसित करने के भी उपाय किए हैं, जो अन्य बातों के साथ-साथ परस्पर प्रवासी कामगारों को
नौकरी दिलाने, उनका कौशल मैप
करने और अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभ दिलाने में सहायक होगा। यह सामान्य रूप से
असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए बेहतर नीति निर्माण में भी सहायक होगा।
प्रवासी कामगारों के लिए
हेल्पलाइन हेतु सांविधिक प्रावधान भी किया गया है।
प्रवासी कामगार राशन के
संबंध में सुवाह्यता का लाभ तथा भवन एवं अन्य निर्माण उपकर के लाभ भी उठा सकेंगे।
उन्हें ईएसआईसी, ईपीएफओ और
वार्षिक चिकित्सा जांच आदि के अन्य सभी लाभ भी प्राप्त होंगे।
महिलाओं के लिए रात की
पालियों की अनुमति के प्रावधान की आलोचना के बारे में, केन्द्रीय श्रम
मंत्री ने कहा है कि यह स्पष्ट रूप से गलत है क्योंकि ओएसएच कोड नए भारत में
लैंगिक समानता का पात्र बनाता है। इस कोड में यह परिकल्पना कि गई है कि महिलाएं
सभी प्रकार के कार्यों के लिए सभी प्रतिष्ठानों में नियोजित किए जाने की पात्र
होंगी तथा उन्हें रात के दौरान भी नियोजित किया जा सकता है। तथापि, रात में महिलाओं
के नियोजन के लिए पर्याप्त रक्षा उपाय उपलब्ध कराए गए हैं। रात में महिलाओं को
नियोजन के लिए उनकी सहमति को अनिवार्य बनाया गया है। इसके अलावा, समुचित सरकार
महिलाओं को रात में काम करने की अनुमति देने से पहले सुरक्षा, अवकाश और कार्य
के घंटों की शर्तें निर्धारित करेगी।
मंत्रालय ने यह भी कहा
कि श्रमजीवी पत्रकारों के प्रावधान इन्हें सशक्त करने के लिए बनाए गए हैं। इनमें
इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया में कार्यरत पत्रकारों को शामिल करने के लिए
श्रमजीवी पत्रकारों की परिभाषा का विस्तार करना तथा “श्रमजीवी
पत्रकारों” के लिए सेवा अवधि
के कम-से-कम एक/ग्यारह पूर्ण वेतन के समतुल्य अर्जित छुट्टी की अनुमति देना शामिल
है। इन छुट्टियों का संचय किया जा सकता है और संचित छुट्टियों का नकदी मुआवजा लिया
जा सकता है या ये छुट्टियां ली जा सकती हैं।
इसमें आगे कहा गया कि
श्रमजीवी पत्रकारों के कल्याण हेतु मौजूदा प्रावधानों को कायम रखा गया है। सामाजिक
सुरक्षा संहिता और ओएसएच कोड में अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगारों की परिभाषा समान
है। मजदूरी संबंधी संहिता के अंतर्गत बनाए गए प्रारूप नियमों में श्रमजीवी पत्रकार
एवं अन्य समाचार-पत्र कर्मी (सेवा शर्तें) और विविध प्रावधान अधिनियम, 1955 की धारा 2 के खण्ड (एफ)
में यथा परिभाषित श्रमजीवी पत्रकार के लिए संहिता के अंतर्गत न्यूनतम मजदूरी
निर्धारित करने के लिए श्रमजीवी पत्रकार की तकनीकी समिति के गठन का प्रावधान है।
इसके अलावा, सामाजिक सुरक्षा
संहिता के अंतर्गत, श्रमजीवी पत्रकार
के लिए ग्रेच्युटी की पात्रता बनाकर नहीं रखी गई है लेकिन पात्रता की अवधि में
सुधार करके अन्यों के लिए पांच वर्षों के बजाय सेवा की अवधि तीन वर्ष तक कर दी गई
है।
मंत्रालय ने यह भी कहा
कि ओएसएच संहिता के तहत नए कल्याणकारी प्रावधान पेश किए गए हैं –
- (1)जोखिमपूर्ण और खतरनाक व्यवसाय चलाने वाले प्रतिष्ठान के लिए, सरकार अवसीमा से कम कामगार रखने वाले प्रतिष्ठानों पर भी कवरेज को अधिसूचित कर सकती है।
- (2) ईएसआईसी का विस्तार बागान कामगारों तक कर दिया गया है।
- (3) नियुक्ति पत्र अनिवार्य कर दिया गया है।
- (4) नि:शुल्क वार्षिक स्वास्थ्य चेकअप आरम्भ किया गया है।
- (5) जोखिमकारी फैक्ट्रियों के स्थान पर फैक्ट्री, खानों और बागानों में प्रतिष्ठानों के लिए द्विपक्षीय सुरक्षा समिति शुरू की गई है
- (6)कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे बागान कामगारों की गतिविधियों को जोखिमकारी गतिविधियों में शामिल किया गया है
- (7)अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगार से संबंधित प्रावधानों को सुदृढ़ बनाना और गृह नगर जाने हेतु वार्षिक यात्रा भत्ता के प्रावधान को शामिल करना।
मंत्रालय ने यह भी कहा है
कि विकेंद्रीकृत पंजीकरण प्रक्रिया आरम्भ करने से ट्रेड यूनियनों की स्थिति मजबूत
हुई है। मंत्रालय ने 14 दिन की नोटिस
अवधि के विषय से संबंधित अफवाहों को गलत करार दिया है। यह भी कहा गया है कि हड़ताल
पर जाने से पूर्व यह श्रमिक की शिकायत का समाधान करने का एक और अवसर प्रदान करते
हैं ताकि प्रतिष्ठान अनिवार्य रूप से मुद्दों का समाधान ढूंढ़ पाए।