वस्तु एवं सेवा कर: महत्त्वपूर्ण राजकोषीय सुधार |Goods and Services Tax- GST - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

वस्तु एवं सेवा कर: महत्त्वपूर्ण राजकोषीय सुधार |Goods and Services Tax- GST

 


हितों की विविधता (Diversity of Interests) संघवाद का प्रतीक है। पिछले कुछ महीनों में, वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) से जुड़े मुद्दों पर केंद्र और राज्यों के मध्य एक प्रकार का गतिरोध देखा गया है जिसके परिणामस्वरूप केंद्र-राज्य संबंधों में गिरावट आई है। हालाँकि केंद्र और राज्यों के बीच यह गतिरोध असामान्य नहीं है तथा सभी संघीय व्यवस्थाओं में किसी न किसी प्रकार का गतिरोध होता रहता है।

वस्तु एवं सेवा कर: महत्त्वपूर्ण राजकोषीय सुधार

§  आज़ादी के बाद के सबसे महत्त्वपूर्ण राजकोषीय सुधार के तहत कई केंद्रीय एवं राज्य करों को जीएसटीके रूप में सम्मिलित करके एकल कर में परिवर्तित कर दिया गया।

o    जीएसटी के अंतर्गत, जहाँ एक ओर केंद्रीय स्तर पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, सेवा कर, काउंटरवेलिंग ड्यूटी जैसे अप्रत्यक्ष कर शामिल किये गए तो वहीं दूसरी ओर राज्यों में लगाए जाने वाले मूल्यवर्द्धन कर, मनोरंजन कर, चुंगी तथा प्रवेश कर, विलासिता कर आदि भी सम्मिलित किये गए हैं।

§  ऐतिहासिक वस्तु एवं सेवा कर 1 जुलाई, 2017 को लागू हुआ था। यह एक अप्रत्यक्ष कर है जिसे भारत को एकीकृत साझा बाज़ार बनाने के उद्देश्य से लागू किया गया है। यह निर्माता से लेकर उपभोक्ताओं तक वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति पर लगने वाला एकल कर है।

§  GST से संबंधित संवैधानिक संशोधन ने केंद्र-राज्य संबंधों का कायापलट कर दिया जिसमें राज्यों ने कर लगाने के लिये अपनी सभी शक्तियाँ छोड़ दीं। जिसके बदले में जीएसटी के कारण होने वाले सभी नुकसानों के लिये केंद्र ने राज्यों को पाँच वर्ष के लिये पूर्ण मुआवज़े का आश्वासन दिया।

o    GST अधिनियम के अनुसार, वर्ष 2022 यानी GST कार्यान्वयन शुरू होने के बाद पहले पाँच वर्षों तक GST कर संग्रह में 14% से कम वृद्धि (आधार वर्ष 2015-16) दर्शाने वाले राज्यों के लिये क्षतिपूर्ति की गारंटी दी गई है। केंद्र द्वारा राज्यों को प्रत्येक दो महीने में क्षतिपूर्ति का भुगतान किया जाता है। क्षतिपूर्ति उपकर, ऐसा उपकर है जिसे 1 जुलाई, 2022 तक चुनिंदा वस्तुओं और सेवाओं या दोनों की आपूर्ति पर संग्रहीत किया जाएगा जिसे केंद्र सरकार राज्यों को वितरित करती है।

GST परिषद:

§  यह वस्तु एवं सेवा कर से संबंधित मुद्दों पर केंद्र और राज्य सरकार को सिफारिश करने के लिये एक संवैधानिक निकाय है, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री करते हैं।

§  101वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान के अनुच्छेद 279A(1) में GST परिषद का प्रावधान किया गया है।

§  इसे एक संघीय निकाय के रूप में माना जाता है जहाँ केंद्र और राज्यों दोनों को उचित प्रतिनिधित्व मिलता है। इसके सदस्यों के रूप में सभी 28 राज्यों एवं तीन संघ शासित क्षेत्रों (दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर) के वित्त मंत्री या राज्य सरकार द्वारा निर्वाचित कोई अन्य मंत्री अर्थात् कुल मिलाकर 31 सदस्य होते हैं।

आर्थिक सुस्ती और COVID-19 महामारी:

§  आर्थिक सुस्ती और COVID-19 महामारी के कारण इस वर्ष संघीय सौदेबाजी (केंद्र-राज्यों के मध्य मुआवजे को लेकर वार्ताएँ) के गंभीर परिणाम देखने को मिले हैं। इसका मुख्य कारण है कि कर संग्रहण में गिरावट होने से राजस्व में भारी कमी आई है।

o    साथ ही क्षतिपूर्ति निधि में उपलब्ध संसाधनों को भी घटा दिया गया। जगह-जगह पर राजस्व जुटाने की सीमित क्षमताओं के साथ केंद्र ने कड़ा रुख अपना रखा है।

o    ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र GST समझौते के तहत किये गए कुछ प्रावधानों को परिवर्तित करना चाहता है जो उसके प्रतिकूल हैं। परिणामतः संघीय ढाँचे में तनाव उत्पन्न हो रहा है।

GST मुआवजा एवं गतिरोध:

§  GST लागू होने के बाद अधिकांश करों के रूप में राज्यों के पास बहुत सीमित कर अधिकार हैं।

§  सर्वप्रथम GST से पिछली कर व्यवस्था के समान अधिक राजस्व उत्पन्न होने का अनुमान व्यक्त किया गया था। हालाँकि नई कर व्यवस्था में उपभोग पर कर लगाया जाता है न कि विनिर्माण पर।

§  इसका अर्थ यह है कि उत्पादन के स्थान पर कर नहीं लगाया जाएगा, जिसका अर्थ यह भी है कि विनिर्माण क्षेत्र कर संग्रहण से वंचित रह जाएंगे, यही कारण है कि कई राज्यों ने GST के विचार का कड़ा विरोध किया।

§  GST परिषद की 41वीं बैठक में केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि केंद्र राज्यों को मुआवजा नहीं दे सकेगा। केंद्र सरकार इस बात पर विशेष बल दे रही है कि इस वर्ष COVID-19 महामारी के कारण GST संग्रहण में तेज़ी से कमी आई है।

§  इस वर्ष GST मुआवज़े के लिये अनुमानत: लगभग 3 लाख करोड़ रुपए की आवश्यकता है, जबकि उपकर संग्रह लगभग 65,000 करोड़ रुपए रहने का अनुमान है। इस प्रकार 2.35 लाख करोड़ रुपए के अनुमानित मुआवज़े की कमी है।

§  केंद्र सरकार का तर्क: राज्यों को इस स्थिति के उपाय के तौर पर दो विकल्प दिये गए हैं और दोनों में बाज़ार से उधार लेने की आवश्यकता है। केंद्र का तर्क है कि GST के कार्यान्वयन में केवल 97,000 करोड़ रुपए के राजस्व की कमी है, जबकि 1.38 लाख करोड़ रुपए का नुकसान एक्ट ऑफ गॉड’ (COVID-19 महामारी) द्वारा उत्पन्न असाधारण परिस्थितियों के कारण हुआ है। राज्य या तो 97,000 करोड़ रुपए का उधार ले सकते हैं, इसे अपने ऋण और मूलधन और भविष्य में उपकर संग्रह से ब्याज के भुगतान को जोड़े बिना ऐसा किया जा सकता है या पूर्ण 2.35 लाख करोड़ रुपए उधार ले सकते हैं, लेकिन इस स्थिति में उन्हें ब्याज का भुगतान स्वयं करना पड़ेगा। वित्त मंत्रालय ने तर्क दिया है कि केंद्र द्वारा अधिक उधार लेने से ब्याज दरों में वृद्धि होगी और भारत के राजकोषीय मापदंडों को पूरा किया जा सकेगा।

एक्ट ऑफ गॉड:

§  एक्ट ऑफ गॉड’ (Act of God) या प्राकृतिक आपदा’ (Force Majeure) से संबंधित प्रावधानों को नेपोलियन कोड (Napoleonic Code) से लिया गया है।

§  एक्ट ऑफ गॉडप्रावधानों को अधिकांशतः वाणिज्यिक अनुबंधों में शामिल किया जाता है तथा यह संकटकालीन परिस्थिति से निपटने के लिये सावधानीपूर्वक तैयार की गई कानूनी व्यवस्था है।

§  सामान्यतः, ‘एक्ट ऑफ गॉडके तहत केवल प्राकृतिक अप्रत्याशित परिस्थितियों को सम्मिलित किया जाता है, जबकि प्राकृतिक आपदा’ (force majeure) का दायरा काफी विस्तृत होता है, और इसमें प्राकृतिक रूप से होने वाली घटनाओं तथा

§  मानव-जनित घटनाओं को भी सम्मिलित किया जाता है।

§  इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स (ICC) ने मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय प्रणालियों को सम्मिलित करते हुए प्राकृतिक आपदाप्रावधान पर आदर्श संहिता विकसित की है।

§  इस कोड में कहा गया है कि प्राकृतिक आपदाप्रावधान को लागू करने के लिये, परिस्थितियों को याचिकाकर्त्ता के उचित नियंत्रण से बाहर होना चाहिये तथा अनुबंध की शुरुआत के समय इन परिस्थितियों का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता हो।

§  राज्यों की चिंताएँ: केरल, पंजाब, पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी और दिल्ली जैसे पाँच राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने केंद्र के प्रस्तावों पर अपनी चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि राज्यों की वित्तीय स्थिति गंभीर दबाव में है, जिसके परिणामस्वरूप वेतन-भुगतान में देरी और महामारी के कारण लॉकडाउन के बीच पूंजीगत व्यय में भारी कटौती हुई है। इन परिस्थितियों के मद्देनज़र कई राज्यों ने दोनों विकल्पों को खारिज कर दिया है और केंद्र से पुनर्विचार करने का आग्रह किया है।

o    बाज़ार से उधार लेने जैसे केंद्र के प्रस्ताव पर वे राज्य जहाँ विशेष रूप से विभिन्न दलों की सरकार हैं, इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं थे। एक राज्य ने इस मुद्दे पर न्यायालय जाने की धमकी तक दी और साथ ही सहकारी संघवाद के केंद्र के दावे के खोखलेपन को भी उजागर किया।

§  विश्लेषक मानते हैं कि जीएसटी परिषद की कई बैठकों में केंद्र ने अविश्वास को कम करने और गतिरोध को समाप्त करने में कोई मदद नहीं की बल्कि इसे बढ़ावा ही दिया है।

o    उदाहरण के लिये केरल के वित्त मंत्री ने शिकायत की कि GST परिषद में महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं लिये जाते हैं किंतु बाद में प्रेस की बैठकों में उनके बारे में घोषणा की जाती है।

सहकारी संघवाद बनाम राजनीतिक पार्टी गठजोड़:

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि राजनीतिक पार्टियों की प्रणाली एवं प्रकृति केंद्र-राज्य संबंधों का निर्धारण करती है।

A.भारतीय राजनीति में एकदलीय प्रभुत्व का दौर और केंद्र-राज्य संबंध:

§  भारतीय राजनीति में काॅन्ग्रेस के प्रभुत्त्व के दौरान राज्यों के पास ऐसे कुछ मुद्दे थे जिसके तहत आर्थिक प्रबंधन (Economic Management) को विकास के नाम पर केंद्रीकृत किया गया था। उनकी चिंताओं एवं शिकायतों (यदि कोई हो) को इंट्रा-पार्टी चैनलोंके माध्यम से निपटाया जाता था।

o    राज्य स्तर के बजाय केंद्र स्तर पर पावर ऑफ सेंटरहोने के कारण किसी भी मुद्दे पर काॅन्ग्रेस शासित राज्य केंद्र सरकार के साथ खड़े दिखाई देते थे।

o    किंतु जब भारतीय राजनीति में गैर-काॅन्ग्रेसी दलों की स्थिति मज़बूत हुई तब केंद्रीकरण के खिलाफ असंतोष प्रकट होने लगा।

§  राजनीतिक रूप से अपने प्रतिद्वंद्वियों को नियंत्रित करने के लिये काॅन्ग्रेस द्वारा सभी संभावित साधनों जैसे- अनुच्छेद 356 (राज्यपाल की भूमिका)विवेकाधीन केंद्रीय अनुदान का उपयोग एवं दुरुपयोग किया गया।

B. भारतीय राजनीति में गठबंधन का दौर और केंद्र-राज्य संबंध:

§  भारतीय राजनीति में एकदलीय प्रभुत्वशाली दौर के विपरीत, गठबंधन युग ने पारस्परिक हितों की मान्यता के आधार पर केंद्र-राज्य संबंधों में अपेक्षाकृत अधिक सौहार्दपूर्ण दौर की शुरुआत हुई।

o    संघीय गठबंधन में, राज्यों और उनके हितों को इसलिये प्रमुखता दी गई थी जिससे उनको यह महसूस हो सके कि राष्ट्रीय स्तर पर उनका प्रतिनिधित्त्व किया जा रहा है।

o    विडंबना यह है कि इस अवधि के दौरान जब राज्य-आधारित या क्षेत्र आधारित पार्टियों का विस्तार होने लगा तब बहुत से अधिकारों का प्रवासन होना शुरू हो गया।

o    इस दौर में निर्णय प्रक्रिया ने राज्यों को सुधारों का स्वामित्व एवं विश्वास दोनों प्रदान किया और नए संस्थानों को जगह दी।

o    राज्य-आधारित दलों ने शायद यह मान लिया था कि वे नए संस्थानों के माध्यम से या गठबंधन के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर के निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करते रहेंगे।

o    इस प्रकार यदि केंद्र द्वारा उनके हितों का ध्यान रखा जाता है तो केंद्र की तरफ अधिकारों के प्रवासन से राज्य आधारित पार्टियों को कोई फर्क नहीं पड़ता।

o    विभिन्न स्तरों पर राजनीतिक पार्टी गठजोड़ राज्य स्तर के नेताओं को अधिक प्रमुखता देते हैं। एक विनम्र-विस्तृत अनुशासित पार्टी में, केंद्र सरकार की मांगों पर खरा उतरने से राज्य स्तर के नेताओं के कैरियर की संभावनाएँ सुरक्षित हो सकती हैं।

§  इसी तरह राज्य आधारित पार्टियों के लिये संघीय गठबंधन के माध्यम से संसाधनों तक पहुँच और राष्ट्रीय स्तर के निर्णयों को प्रभावित करने की संभावना है।

‘’दल आधारित केंद्रीकरण की डिग्री जितनी अधिक होगी, संघीय केंद्रीकरण की संभावना उतनी ही अधिक होगी।’’

§  सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच राजनीतिक पार्टी संबंध/गठजोड़ संघीय समझौतों के निर्माण एवं रखरखाव दोनों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

निष्कर्ष:

§  केंद्र और राज्यों के मध्य जीएसटी समझौता राजनीतिक वार्ताओं की जटिलता को भी दर्शाता है। अतः COVID-19 और आर्थिक सुस्ती के मद्देनज़र यह लगभग असंभव है कि वर्ष 2020 के अंत तक इसका कोई संतुलित समाधान निकल सके।

§  वर्तमान में संघीय व्यवस्था के अंतर्गत राज्य अपनी चिंताएँ एक वैध ढाँचे के तहत प्रस्तुत कर रहे हैं जबकि केंद्र की कार्रवाई संघीय व्यवस्था को कमज़ोर करती है। यदि यह समय के साथ लगातार होता रहा तो राज्यों के पास ऐसा कोई उपकरण नहीं है जिससे इसे रोका जा सके।