शिक्षादायक कहानीसुखी व्यक्ति के घर से का एक मुट्ठी अनाज
अपनी योग्यता पर भरोसा रखें और उसी के अनुसार काम करें। यही सुखी रहने का सूत्र है
शिष्य ने संत से कहा कि गुरुजी कृपया दुखों को
दूर करने का कोई रास्ता बताएं, मैं
परेशानियों से हार गया हूं,
गुरु कहा कि
पहले सबसे सुखी व्यक्ति के घर से एक मुट्ठी अनाज लेकर आओ, फिर मैं रास्ता बताता हूं
सभी के जीवन में अलग-अलग परेशानियां रहती हैं। जो लोग धैर्य के साथ इनका सामना करते हुए आगे बढ़ते रहते हैं, वे जीवन में सुख-शांति प्राप्त कर लेते हैं। जो लोग धैर्य खो देते हैं, उनके सामने और ज्यादा समस्याएं बढ़ने लगती हैं।
एक लोक कथा के अनुसार पुराने समय में एक
शिष्य परेशानियों की वजह से बहुत निराश हो गया था। उसने अपने गुरु से कहा कि कृपया
मुझे दुखों को दूर करने का कोई उपाय बताएं।
संत बहुत ही विद्वान थे। वे अपने शिष्य को
अच्छी तरह जानते थे। उन्होंने कहा कि मैं तुम्हें उपाय तो बता दूंगा, लेकिन पहले गांव में जो सबसे सुखी
व्यक्ति हो, उसके घर से मुट्ठीभर अनाज लेकर आओ।
शिष्य गुरु की आज्ञा पाकर गांव में सबसे सुखी
व्यक्ति खोजने निकल पड़ा। उसे एक व्यक्ति दिखाई दिया जो अपने घर के बाहर शांति से
बैठा हुआ था। शिष्य ने सोचा कि ये सबसे सुखी होगा, इसीलिए आराम से बैठा है।
शिष्य ने उस आदमी को अपने गुरु की आज्ञा बताई
और कहा कि आप मुझे गांव में सबसे ज्यादा सुखी व्यक्ति लग रहे हैं। कृपया मुझे अपने
घर से मुट्ठीभर अनाज दे दें। ये सुनकर वह व्यक्ति क्रोधित हो गया। उसने कहा कि आज
सुबह-सुबह ही मेरा पत्नी के साथ झगड़ा हो गया है। पत्नी की वजह से रोज नई-नई
समस्याएं सामने आ जाती हैं। वह मेरी कोई बात नहीं मानती, हर काम अपनी मर्जी से करती है। समझ
नहीं आ रहा है, उसे कैसे ठीक करूं?
शिष्य वहां से आगे निकल गया। कुछ देर बाद उसे
फिर एक व्यक्ति दिखाई दिया। शिष्य ने उसे अपने गुरु की आज्ञा बताई। उस व्यक्ति ने
कहा कि भाई मेरा पड़ोसी बहुत धनवान है। उसके पास सभी चीजें हैं, मेरे पास तो कुछ नहीं है। मैं तो बहुत
गरीब हूं।
पूरे गांव में घूमने के बाद भी शिष्य को कोई
सबसे सुखी इंसान नहीं मिला। वह गुरु के पास लौट आया। गुरु को पूरी बात बता दी।
गुरु ने कहा कि सभी लोग खुद से ज्यादा दूसरों की वजह से दुखी हैं। लोग खुद पर
ध्यान नहीं देते हैं। यही दुखों का मूल कारण है।
अगर हम सुखी रहना चाहते हैं तो हमें दूसरों पर
नहीं, खुद पर ध्यान देना चाहिए। अपनी
बुराइयों को दूर करें। कभी भी किसी दूसरे व्यक्ति से प्रतिस्पर्धा न करें।
प्रतिस्पर्धा करनी ही है तो स्वयं के किए हुए पुराने कामों से करें। कभी भी दूसरों
पर भरोसा रखकर कोई काम न करें। अपनी योग्यता पर भरोसा रखें और उसी के अनुसार काम
करें। यही सुखी रहने का सूत्र है