Makar Sankranti 2021 Date
Makar Sankranti:
शास्त्रों में तीर्थ स्नान, जप, पूजा-पाठ, दान, तर्पण व श्राद्ध इत्यादि का काम मकर
संक्रांति पर करना काफी उत्तम माना गया है।
Makar Sankranti 2021 Date, Time (Muhurat) –
मकर
संक्रांति 2021
तिथि, शुभ
मुहूर्त – Makar Sankranti kab hai
Makar Sankranti 2021 Date (मकर संक्रांति 2021 तिथि) 14
जनवरी, 2021 (गुरुवार)
पुण्य काल मुहूर्त: 08:03:07 से
12:30:00 तक
अवधि: 4 घंटे 26 मिनट
महापुण्य काल मुहूर्त: 08:03:07 से
08:27:07 तक
अवधि: 0 घंटे 24 मिनट
संक्रांति पल: 08:03:07
मकर संक्रांति पर 10 लाइन
- सूर्य जब जब अपनी राशि बदलते हैं तब तब संक्रांति मनाई जाती है। सूर्य हर माह में अपना राशि परिवर्तन करते हैं। इस तरह साल में कुल 12 संक्रांति मनाई जाती है।
- शास्त्रों में तीर्थ स्नान, जप, पूजा-पाठ, दान, तर्पण व श्राद्ध इत्यादि का काम मकर संक्रांति पर करना काफी उत्तम माना गया है।
- आमतौर पर मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी को मनाया जाता है
- मकर संक्रांति को लेकर ये है मान्यता: पौराणिक मान्यतानुसार मकर संक्रांति के दिन से ही दिव्य लोकों में विराजमान देवताओं के दिन का प्रारंभ भी होता है। क्योंकि उत्तरायण के काल को देवताओं का दिन तो दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि।
- नई फसल और नई ऋतु के आगमन के तौर पर भी मकर संक्रांति धूमधाम से मनाई जाती है। पंजाब, यूपी, बिहार समेत तमिलनाडु में यह वक्त नई फसल काटने का होता है, इसलिए किसान मकर संक्रांति को आभार दिवस के रूप में मनाते हैं।
- तमिलनाडु में मकर संक्रांति ’पोंगल’ के तौर पर मनाई जाती है।
- उत्तर प्रदेश और बिहार में ’खिचड़ी’ के नाम से मकर संक्रांति मनाई जाती है। मकर संक्रांति पर कहीं खिचड़ी बनाई जाती है तो कहीं दही चूड़ा और तिल के लड्डू बनाये जाते हैं।
- हिंदू धर्म में इस दिन स्नान दान करने की परंपरा है।
- पंजाब और जम्मू-कश्मीर में मकर संक्रांति को ’लोहड़ी’ के नाम से मनाया जाता है।
- महाभारत काल के दौरान भीष्म पितामह जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्होंने भी मकर संक्रांति के दिन शरीर का त्याग किया था।
मकर संक्रांति कब मनाई जाती है
सूर्य जब जब अपनी राशि बदलते हैं तब तब
संक्रांति मनाई जाती है। सूर्य हर माह में अपना राशि परिवर्तन करते हैं। इस तरह
साल में कुल 12 संक्रांति
मनाई जाती है। लेकिन सभी संक्रांतियों में मकर संक्रांति के दिन का खास महत्व होता
है। हिंदू धर्म में इस दिन स्नान दान करने की परंपरा है। लेकिन इस बार संक्रांति
की तिथि को लेकर कुछ कन्फ्यूजन बना हुआ है। कुछ लोग 14 जनवरी तो कुछ 15 जनवरी को संक्रांति मनाने की बात कह
रहे हैं। आमतौर पर मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी को मनाया जाता है लेकिन इस बार
सूर्य का राशि परिवर्तन 15 जनवरी को होने के कारण इसी दिन मकर संक्रांति मनाई जायेगी।
क्या है मकर संक्रांति
शास्त्रों में तीर्थ स्नान, जप, पूजा-पाठ, दान, तर्पण व श्राद्ध इत्यादि का काम मकर संक्रांति पर करना काफी उत्तम
माना गया है। इतना ही नहीं गोदान, भूदान
व स्वर्णदान के लिए भी यह दिन सर्वोत्तम है। ज्योतिषीय आधार व धार्मिक
मान्यतानुसार मकर संक्रांति के दिन ही भगवान सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में
प्रवेश करते हैं। इस कारण अनेक जगहों पर मकर संक्रांति को ‘उदय पर्व’ या ‘उत्तरायणी’ भी कहा जाता है।
मकर संक्रांति पर क्या करें
मकर संक्रांति पर पूर्वजों के लिए
श्राद्ध-तर्पण का कार्य करना चाहिए इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। इस
दिन तिलों का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है। इस बारे में शास्त्रों में वर्णन
मिलता है कि मकर संक्रांति के दिन जो व्यक्ति तिल का प्रयोग छह प्रकार से करता है, वह अनंत सुख पाता है। तिल मिश्रित जल
से नहाना, तिल का तेल शरीर पर लगाना, पितरों का तिलयुक्त जल से तर्पण करना, अग्नि में तिलों का हवन करना, ब्राह्मण या बहन-बेटी को तिलों से बने
पदार्थों का दान देना और तिल खाना।
मकर संक्रांति मान्यता
मकर संक्रांति को लेकर ये है मान्यता: पौराणिक मान्यतानुसार मकर संक्रांति के दिन से ही दिव्य लोकों में विराजमान देवताओं के दिन का प्रारंभ भी होता है। क्योंकि उत्तरायण के काल को देवताओं का दिन तो दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि। धार्मिक मान्यतानुसार देवताओं का एक दिन हमारे छह महीनों के बराबर होता है, इसलिए मकर संक्रांति को देवताओं के दिन का ‘प्रभात काले’ कहा गया है। इसलिए देवताओं का प्रभात काल होने से ही मकर संक्रांति के दिन किया जाने वाला ‘दान’ सौ गुना हो जाता है।
मकर संक्रांति का महत्व
धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण
भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक नजरिये से मकर संक्रांति का
बड़ा ही महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव
अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। चूंकि शनि मकर व कुंभ राशि का स्वामी है। लिहाजा
यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है।
एक अन्य कथा के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर
पर भी मकर संक्रांति मनाई जाती है। बताया जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही
भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा
पर्वत पर गाड़ दिया था। तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के
तौर पर मनाया जाने लगा।
फसलों की कटाई का त्यौहार
नई फसल और नई ऋतु के आगमन के तौर पर भी मकर संक्रांति धूमधाम
से मनाई जाती है। पंजाब, यूपी, बिहार समेत तमिलनाडु में यह वक्त नई फसल काटने का होता है, इसलिए किसान मकर संक्रांति को आभार दिवस
के रूप में मनाते हैं। खेतों में गेहूं और धान की लहलहाती फसल किसानों की मेहनत का
परिणाम होती है लेकिन यह सब ईश्वर और प्रकृति के आशीर्वाद से संभव होता है। पंजाब
और जम्मू-कश्मीर में मकर संक्रांति को ’लोहड़ी’ के नाम से मनाया जाता है। तमिलनाडु में
मकर संक्रांति ’पोंगल’ के तौर पर मनाई जाती है, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार में ’खिचड़ी’ के नाम से मकर संक्रांति मनाई जाती है।
मकर संक्रांति पर कहीं खिचड़ी बनाई जाती है तो कहीं दही चूड़ा और तिल के लड्डू
बनाये जाते हैं।
लौकिक महत्व
ऐसी मान्यता है कि जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर चलता है, इस दौरान सूर्य की किरणों को खराब माना
गया है, लेकिन
जब सूर्य पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है, तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती
हैं। इस वजह से साधु-संत और वे लोग जो आध्यात्मिक क्रियाओं से जुड़े हैं उन्हें
शांति और सिद्धि प्राप्त होती है। अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो पूर्व के कड़वे
अनुभवों को भुलकर मनुष्य आगे की ओर बढ़ता है। स्वयं भगवान कृष्ण ने गीता में कहा
है कि, उत्तरायण
के 6 माह
के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं, तब पृथ्वी प्रकाशमय होती है, अत: इस प्रकाश में शरीर का त्याग करने
से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है और वह ब्रह्मा को प्राप्त होता है। महाभारत
काल के दौरान भीष्म पितामह जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्होंने भी
मकर संक्रांति के दिन शरीर का त्याग किया था।
भारत में मकर संक्रांति के विभिन्न नाम
- मकरसंक्रान्ति: छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल, और जम्मू
- लोहड़ी: हरियाणा, पंजाब, हिमाचल
- ताईपोंगल, उझवर तिरुनल तमिलनाडु
- उत्तरायण: गुजरात, दीव दमण, उत्तराखण्ड
- संक्रांत_मक्रात: बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश
- माघी: हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब
- भोगाली_माघबिहु: असम
- शिशुर_सेंक्रात: कश्मीर घाटी
- खिचड़ी: उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार
- पौष_संक्रान्ति: पश्चिम बंगाल, उत्तरपूर्व भारत, बांग्लादेश
- मकर_संक्रमण: कर्नाटक
- मकरचुला: ओडिशा
- सुग्गी: कर्णाटक
- माघसाजी: हिमाचल प्रदेश
- घुघूटी: कुमाऊँ
भारत के बाहर मकर संक्रांति के विभिन्न नाम
- बांग्लादेश: Shakrain/ पौष संक्रान्ति
- नेपाल: माघे संक्रान्ति या ‘माघी
संक्रान्ति’
‘खिचड़ी
संक्रान्ति’
- थाईलैण्ड: सोंगकरन
- लाओस: पि मा लाओ
- म्यांमार: थिंयान
- कम्बोडिया: मोहा संगक्रान
- श्री लंका: पोंगल, उझवर तिरुनल
मकर संक्रांति और लोहड़ी में फर्क क्या है
- हमारे देश में मकर संक्रांति के पर्व को
कई नामों से जाना जाता है। पंजाब और जम्मू-कश्मीर
के लोग में इसे लोहड़ी के नाम से बड़े पैमाने पर मनाते हैं।
- लोहड़ी का त्यौहार मकर संक्रांति
के एक दिन पहले मनाया जाता है।
- जब सूरज ढल जाता है तब घरों के बाहर
बड़े-बड़े अलाव जलाए जाते हैं और स्त्री-पुरुष
सज-धजकर नए-नए वस्त्र पहनकर एकत्रित होकर उस जलते हुए अलाव के चारों ओर भांगड़ा नृत्य करते
हैं और अग्नि को मेवा,
तिल, गजक, चिवड़ा आदि की आहुति भी देते हैं।
- सभी एक-दूसरे को लोहड़ी की
शुभकामनाएं देते हुए आपस में भेंट बांटते हैं और प्रसाद वितरण भी करते हैं।
- प्रसाद में मुख्य पांच वस्तुएं
होती हैं जिसमें तिल,
गुड़, मूंगफली, मक्का और गजक होती हैं।