सोशल मीडिया पर अश्लील साहित्य तथा बच्चों और समग्र समाज पर इसके प्रभाव :तटर्थ समिति द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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शनिवार, 5 दिसंबर 2020

सोशल मीडिया पर अश्लील साहित्य तथा बच्चों और समग्र समाज पर इसके प्रभाव :तटर्थ समिति द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन

 सोशल मीडिया पर अश्लील साहित्य तथा बच्चों और समग्र समाज पर इसके प्रभाव

सोशल मीडिया पर अश्लील साहित्य तथा बच्चों और समग्र समाज पर इसके प्रभाव के चिंताजनक मुद्दे के अध्ययन हेतु राज्य सभा की तटर्थ समिति द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन के प्रमुख बिंदु- 

12 दिसंबर 2019 को राज्यसभा के सभापित ने सोशल मीडिया पर अशलील साहित्य तथा बच्चों और समग्र समाज पर इसके प्रभाव के चिंताजनक मुद्दे के अध्ययन हेतु राज्य सभा की तदर्थ समिति के गठन की घोषण की।

सोशल मीडिया पर अश्लील साहित्य तथा बच्चों ओर समग्र समाज पर इसके प्रभाव के संबंध में समिति का गठन श्री जयराम रमेश की अध्यक्षता में किया गया ।



समिति ने 3 फरवरी 2020 को राज्यसभा के पटल पर प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। 25 जनवरी 2020 को राज्य सभा सभापति को प्रस्तुत किया गया था।

समिति ने अलग अलग समय पर बैठक आयोजित कर टिकटॉक (बाईट डंास), फेसबुक , टृविटर, गूगल,शेयरचेट और हर्ड फाउंडेशन (स्वास्थ्य शिक्षा और ग्रामीण उत्थान विकास)   के प्रतिनिधियों के विचार सुने।

समिति के समक्ष दो मुख्य मुद्दे थे

1. सोशल मीडिया पर अश्लील सामगी तक बच्चों की पहुंच और

2. सोशल मीडिया पर ऐसी अश्लील सामग्री का प्रसार जिसमें बच्चों के साथ दुर्व्यवहार किया गया हो।

 

समिति ने निम्नलिखित के संबंध में सिफारिशें की हैं-

  1. विधायी उपाय
  2. प्रौद्योगिकी उपाय
  3. संस्थागत उपाय
  4. सामाजिक और शैक्षणिक उपाय
  5. राज्य-स्तरीय पहलें

1- विधायी उपाय

  • समिति के अनुसार पोक्सो अधिनियम 2012 और आई अधिनियम 2000 में महत्वपूर्ण संशोधन किए जाने की आवश्यकता है। इसके समनुयपी परिवर्तन भारतीय दंड संहिता में भी किए जाने होंगे।
  • बालक अश्लील चित्रण (चाइल्ड पोर्नोग्राफी ) की परिभाषा में विस्तार किया जाए।
  • साइबर ग्रूमिंग संबंधी उपबंध शामिल करें जायें- अर्थात जानबुझकर प्रलोभन देना एवं अन्य बातें। 

ग्रूमिंग की परिभाषा

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने लैंगिक शोषण और लैंगिक शोषण से बच्चों की सुरक्षा के ग्रूमिंग को इस प्रकार पारिभाषित किया है-

‘‘ स्वयं व्यक्त्गित रूप से या इंटरनेट अथवा अन्य डिजिटल तकनीकों द्वारा किसी बच्चे के साथ संबंध स्थापित करने/ बनाने की प्रक्रिया ताकि उस व्यक्ति के साथ ऑनलाइन या आफलाइन लैंगिंक संपर्क सुकर बनाया जा सके।‘‘ भारत इस परिभाषा को अपनाकर यह सुनिश्चित कर सकता है कि देश की ग्रूमिंक की समझ अंतर्राष्ट्रीय मानको के अनुरूप है।

 

  • सेक्सटिंग और सेल्फी में लगे नाबालिगों के लिए सरुक्षोपाय
  • बाल यौन दुर्व्यवहार (सीएसएएम) की सचूना देने वाले व्यक्ति की सुरक्षा
  • पोक्सो अधिनियम 2012 में रिपोर्टिंग अपेक्षाओं के अंतर्गत राष्ट्रीय पोर्टल भी शामिल किया जाए।
  • कड़ाई से अनुपालना हेतु सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के लिए आचार संहिता तैयार की जाए।
  • बाल यौन दुर्व्यवहार सामग्री से संबंधित खामियों को दूर करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में संशोधन किय जाए।
  • मध्यवर्तियों द्वारा न केवल विदेशी प्राधिकरणों को बल्कि भारतीय प्राधिकरणों को भी रिपोर्टिग के लिए आवश्यक होना चाहिए।
  • डार्क-वेब अन्वेषण के लिए कार्यक्षेत्र और शक्तियों में वृद्धि करना।
  • इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के लिए बाल यौन दुर्व्यवहार सामग्री की अग्रसक्रियता पूर्वक निगरानी करना और इसे हटाना आवश्यक किया जाए।
  • अश्लील सामग्री वाले भ्रामक डोमेन नामों पर प्रतिबंध लगाया जाए।

प्रौद्योगिकी संबंधी उपाय

  • इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के लिए बाल यौन दुर्व्यवहार सामग्री की अग्रसक्रियतापूर्वक निगरानी करना और इसे हटाना आवश्यक बनाया जाए।
  • बालकों संबंधी अश्लील साहित्य के वितरकों का पता लगाने के लिए एंड-टू-एंड एनक्रिप्शन तोड़ने की अनुमति दी जाए।
  • डार्क वेब अन्वेषण में एआई उपकरणों के लिए उद्योग जगत के साथ समझौता ज्ञापन निष्पादित करना।
  • क्रिप्टो मुद्रा लेनदेन को ट्रैक करने के लिए ब्लॉकचेन कंपनियों के साथ भागीदारी करना।
  • अभिभावक द्वारा नियंत्रण के लिए फिल्टर उपलब्ध कराये जाएं।
  • इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के लिए ऑनलाईन सुरक्षा विषयों के बारे में अभिभावकों को जानकारी देना अपेक्षित किया जाए।
  • सोशल मीडिया प्लेटफार्मो के लिए यह अपेक्षित किया जाए कि वे साइन अपन के चरण पर कम उम्र में उपयोग के विरूद्ध चेतावनी जारी करें। 
  • सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के लिए यह अपेक्षित बनाया जाए कि वे सामग्री को विनियमित करने और इसे हटाने में एकसमान मानक परिपाटियों का पालन करें।
  • सामान्य मंचों मे सीएसएएम के प्रसार को रोका जाए।

संस्थागत उपाय

  • सोाशल मीडिया में बाल अश्लीलता पर नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय नोड़ल एजेंसी का गठन किया जाए।
  • जागरूकता सामग्री और रिपोर्टिंग तंत्र के लिए वन-स्टॉप विंडो बनाया जाये।
  • विदेशी अधिकार क्षेत्रों में सामग्री हटाने के लिए प्रक्रिया को सरल बनाना।
  • बाल पोर्नोग्राफी पर अंकुश लगाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाएं।
  • अनुसंधान संस्थानों और शिक्षाविदों के साथ संबंध बनाना।
  • आंकडा संग्रहण और रिपोर्टिंग को मजबूत करना।

सामाजिक और शैक्षणिक उपाय

  • अभिभावक जागरूकता के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान।
  • आनलाईन लत संबंधी दिशानिर्देश - पोर्नोग्राफी के हानिकार प्रभावों से निपटने के लिए स्कूलों को परामर्श देना। आदि
  • बच्चों में आंनलाईन सरुक्षा संबंधी जागरूकता बढ़ाना।
  • विनियमों के शैक्षिक संस्थानों में राष्ट्रव्यापी अभियान।

राज्य स्तरीय कार्यान्वन

  • प्रत्येक राज्य सरकार द्वारा संस्थापित कार्यान्वयन तंत्रों का राज्य स्तरीय तुलनात्मक विश्लेषण।
  • राज्य बाल संरक्षण अधिकार आयोग (एससीपीसीआर) में ई-सुरक्षा आयुक्त अवश्य होना चाहिए।
  • आस्ट्रेलियाई प्रणाली के अनुरूप राज्य-स्तरीय ई- सुरक्षा आयुक्त