18 Feb 2021 Daily Current Affair in Hindi - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

18 Feb 2021 Daily Current Affair in Hindi

 18 Feb Daily Current Affair in Hindi

18 Feb 2021 Daily Current Affair in Hindi



कोयला दहन से प्रदूषण: IEACCC


  • इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी क्लीन कोल सेंटर’ (International Energy Agency’s Clean Coal Centre- IEACCC) के एक अध्ययन में कहा गया है कि कोयला दहन भारत में होने वाले अत्यधिक वायु प्रदूषण के लिये ज़िम्मेदार है। 
  • हाल ही में दिल्ली स्थित एक थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट’ (Centre for Science and Environment- CSE) ने भारत के कोयला आधारित विद्युत क्षेत्र के कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) फुटप्रिंट को कम करने के उपायों पर भी चर्चा की है और केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) को देश में कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों हेतु उत्सर्जन मानदंडों को पूरा करने की समयसीमा बढ़ाने के खिलाफ चेतावनी दी है।

प्रमुख बिंदु:

 

कोयला आधारित ताप विद्युत स्टेशनों से प्रदूषण:

  • कोयला आधारित ताप विद्युत स्टेशन कुल सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) के आधे के लिये, कुल नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) के 30% के लिये और कुल पार्टिकुलेट मैटर (PM) के लगभग 20% उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं।
  • ताप विद्युत स्टेशनों में लगातार कोयला दहन और नवीनतम कार्बन कैप्चर स्टोरेजतकनीक के कार्यान्वयन में देरी, भारत में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं।

अन्य क्षेत्रों से होने वाला प्रदूषण:

  • वायु प्रदूषण के लिये ज़िम्मेदार क्षेत्रों में परिवहन और अन्य औद्योगिक क्षेत्र कोयला आधारित ताप विद्युत स्टेशनों के बाद दूसरे स्थान पर हैं।

सुझाव:

पुराने ताप विद्युत स्टेशनों की सेवानिवृत्ति:

  • स्वच्छ कोयला तकनीक अपनाकर प्रदूषण को सीमित करना और वर्तमान ताप विद्युत स्टेशनों की दक्षता में सुधार करना।

स्वच्छ और उन्नत प्रौद्योगिकी में निवेश:

  • भारत में नए उन्नत प्रौद्योगिकी संयंत्र - जैसे गुजरात में मुंद्रा और सासन आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि स्वच्छ और उन्नत तकनीक में निवेश करने के लिये  हितधारकों में आत्मविश्वास नहीं होता है।

अधिक महत्त्वाकांक्षी योजनाएँ प्रारंभ करना:

  • मौजूदा ऊर्जा दक्षता योजनाएँ जिनमें परफॉर्मेंस अचीव एंड ट्रेडयोजनाएँ, दक्षता मानक योजनाएँ और कार्बन मूल्य निर्धारण योजनाएँ शामिल हैं, महत्त्वपूर्ण सुधार लाने के लिये पर्याप्त रूप से महत्त्वाकांक्षी नहीं हैं।

कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS) को अपनाना:

  • यह उत्सर्जन कम करने के बराबर ही महत्त्वपूर्ण है। भारत को अपनी जलवायु प्रतिबद्धता के एक हिस्से के रूप में इसे शामिल करने का सुझाव दिया गया है।
  • CCUS अपशिष्ट CO2 को एकत्रित कर इसे एक भंडारण स्थल पर ले जाने और वहाँ जमा करने की प्रक्रिया है, जिससे यह वायुमंडल में प्रवेश नहीं कर सकेगी।

कोयला दहन एवं प्रदूषण:

कोयले का निर्माण:

  •  ये अत्यधिक ताप और दबाव के कारण हज़ारों वर्षों में निर्मित भूमिगत कोयले की कार्बन युक्त काली चट्टानें हैं जो जलने पर ऊर्जा का उत्पादन करती हैं।

वायु प्रदूषण:

  • जब कोयले को जलाया जाता है, तो यह कई वायुवाहित विषाक्त पदार्थों और प्रदूषकों का उत्सर्जन करता है।
  • इनमें पारा, सीसा, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, पार्टिकुलेट और अन्य विभिन्न भारी धातुएँ शामिल हैं।
  • इन सभी प्रदूषकों के कारण होने वाले वायु प्रदूषण से अनेक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ जैसे- अस्थमा, साँस लेने में कठिनाई, मस्तिष्क क्षति, हृदय संबंधी समस्याएँ, कैंसर, तंत्रिका संबंधी विकार और समय से पहले मृत्यु तक हो सकती है।

जल प्रदूषण:

  • कोयला आधारित विद्युत संयंत्र हर वर्ष लगभग 100 मिलियन टन से अधिक कोल एशका उत्पादन करते हैं।
  • इस कचरे का आधा से अधिक हिस्सा तालाबों, झीलों, लैंडफिल और अन्य स्थलों में निर्गत होता है, जहाँ समय के साथ यह जलमार्ग और पेयजल आपूर्ति को दूषित कर सकता है।
  • जल प्रदूषण के लिये ज़िम्मेदार अन्य कारकों में कोयला खदानों से एसिड रॉक जल निकासी, ‘माउंटेन स्टॉप माइनिंगद्वारा पहाड़ों और घाटियों का विनाश एवं कोयला संयंत्रों के स्थानीय जल आपूर्ति पर बहुत अधिक निर्भर होने के कारण पेयजल संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

जलवायु परिवर्तन:

  •  ग्लोबल वार्मिंग के लिये कोयला एक बड़ा उत्तरदायी कारक है।
  • विद्युत संयंत्रों से उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिये पहल:

 

CCUS का क्रियान्वयन:

  • भारत अपनी क्षमता का प्रयोग कर रहा है, क्योंकि तमिलनाडु के तूतीकोरिन में एक औद्योगिक बंदरगाह पर एक संयंत्र ने अपने स्वयं के कोयले से चलने वाले बॉयलर से CO2 को एकत्रित करना शुरू कर दिया है और इसका उपयोग बेकिंग सोडा बनाने के लिये किया जा रहा है।

उत्सर्जन मानक:

  • भारत ने ताप विद्युत संयंत्र द्वारा उत्सर्जित ज़हरीले सल्फर डाइऑक्साइड में कटौती करने वाली फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन’ (Flue Gas Desulphurization- FGD) इकाइयों को स्थापित करने के लिये उत्सर्जन मानकों का पालन करने के आदेश जारी किये हैं।

ग्रेडेड एक्शन प्लान:

  • विद्युत मंत्रालय ने एक ग्रेडेड एक्शन प्लानप्रस्तावित किया है, जिसमें ऐसे क्षेत्र शामिल हैं जहाँ संयंत्रों को प्रदूषण की गंभीरता के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा, इसमें क्षेत्र-1 में गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों का विवरण है और क्षेत्र-5 सबसे कम प्रदूषित है।

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी क्लीन कोल सेंटर

क्लीन कोल सेंटर के विषय में:

 

  • यह एक प्रौद्योगिकी सहयोग कार्यक्रम है, जिसका आयोजन अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency) के तहत किया जाता है।

सदस्य:

 

  • इस सेंटर में कुल 17 सदस्य होते हैं, जिनका चुनाव कॉन्ट्रैक्टिंग पार्टियों (Contracting Party) और प्रायोजक संगठनों (Sponsoring Organisation) में से होता है।
  • इसका प्रायोजक भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL) है।

अवस्थिति:

 

यह इंजीनियरों, वैज्ञानिकों और अन्य विशेषज्ञों की एक टीम के साथ लंदन में स्थित है।

सहयोग: इसका वित्तपोषण राष्ट्रीय सरकारों (कॉन्ट्रैक्टिंग पार्टियों) और कॉर्पोरेट औद्योगिक संगठनों द्वारा किया जाता है।

कार्य:

 

  • कोयले को संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों (United Nations Sustainable Development Goal) के अनुकूल ऊर्जा का स्वच्छ स्रोत बनाने पर स्वतंत्र जानकारी और विश्लेषण प्रदान करना।
  • ऊर्जा में कोयले की भूमिका और आपूर्ति, सामर्थ्य तथा पर्यावरणीय मुद्दों की सुरक्षा को संतुलित करने की आवश्यकता पर ध्यान देना।
  • कोयले के उपयोग से CO2 और अन्य प्रदूषकों के उत्सर्जन को उच्च दक्षता - कम उत्सर्जन (High Efficiency - Low Emission) प्रौद्योगिकियों के माध्यम से कम करने पर ध्यान केंद्रित करना।

प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण


हाल ही में प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (Securities Appellate Tribu­nal) ने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India) द्वारा पारित उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसके अंतर्गत प्रतिभूति बाज़ार में खुदरा कंपनी के अध्यक्ष और कुछ अन्य प्रमोटरों पर एक साल का प्रतिबंध लगाया गया था।

 

प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण के विषय में:

 

प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।

अवस्थिति:

 इसका मुख्यालय मुंबई में स्थित है।

संरचना:

  •  प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण में एक पीठासीन अधिकारी और दो अन्य सदस्य होते हैं।
  • केंद्र सरकार द्वारा प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण के पीठासीन अधिकारी को भारत का मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) या उसके द्वारा नामित किसी अन्य व्यक्ति के परामर्श से नियुक्त किया जाता है।

शक्तियाँ:

  •  प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण के पास सिविल कोर्ट के समान शक्तियाँ होती हैं। इसके निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में अपील की जा सकती है।

कार्य:

  • यह सेबी अधिनियम (SEBI Act), 1992 के तहत एक सहायक अधिकारी द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपील की सुनवाई कर सकता है
  • यह पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (Pension Fund Regulatory and Development Authority- PFRDA) द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपील की सुनवाई व उसका निपटारा कर सकता है।
  • भारतीय बीमा विनियामक विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory Development Authority of India- IRDAI) द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपीलों की सुनवाई और उनका निपटारा कर सकता है।

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड

सेबी के विषय में:

  •  भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI), भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम (Securities and Exchange Board of India Act), 1992 के प्रावधानों के तहत 12 अप्रैल, 1992 को स्थापित एक वैधानिक निकाय (Statutory Body) है।
  • प्रारंभ में SEBI एक गैर-वैधानिक निकाय था। सेबी का गठन अप्रैल 1988 में भारत सरकार के एक प्रस्ताव के तहत भारत में पूंजी बाज़ार (Capital Market) के नियामक के रूप में किया गया।
  • पूंजी बाज़ार शब्द से तात्पर्य उन सुविधाओं और संस्थागत व्यवस्थाओं से है जिनके माध्यम से दीर्घावधि के फंड, ऋण और इक्विटी दोनों में वृद्धि और निवेश किया जाता है।

मुख्यालय:

 

सेबी का मुख्यालय मुंबई में तथा क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में स्थित हैं।

संरचना:

  •  सेबी के सभी निर्णय सामूहिक रूप से उसके बोर्ड द्वारा लिये जाते हैं, जिसमें एक अध्यक्ष और आठ अन्य सदस्य होते हैं।
  • यह समयनुसार तत्कालीन महत्त्वपूर्ण मुद्दों की जाँच हेतु विभिन्न समितियाँ भी नियुक्त करता है।

कार्य:

  •  इसका प्रमुख कार्य प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों की रक्षा, प्रतिभूति बाज़ार को बढ़ावा देना और विनियमित करना है।
  • प्रतिभूति, सार्वजनिक और निजी बाज़ार से पूंजी जुटाने हेतु इस्तेमाल होने वाला पारंपरिक वित्तीय साधन है।
  • मुख्यतः तीन प्रकार की प्रतिभूतियाँ होती हैं: इक्विटी - जो धारकों को मालिकाना हक प्रदान करती है; ऋण - अनिवार्य भुगतान के साथ समय-समय पर चुकाया गया ऋण; और हाइब्रिड - ऐसी प्रतिभूति जिसमें ऋण और इक्विटी दोनों का गुण होता है।
  • प्रतिभूति बाज़ारों से जुड़े स्टॉक ब्रोकर, मर्चेंट बैंकर, पोर्टफोलियो मैनेजर, निवेश सलाहकार आदि बिचौलियों के कामकाज़ का पंजीकरण और विनियमन करना।
  • सेबी एक अर्द्ध-विधायी, अर्द्ध-न्यायिक और अर्द्ध-कार्यकारी निकाय है।
  • यह विनियमों का मसौदा तैयार कर सकता है, पूछताछ कर सकता है, नियम पारित कर सकता है और जुर्माना लगा सकता है।

विश्व व्यापार संगठन (WTO)


नाइजीरिया की एन्गोज़ी ओकोंजो-इवेला (Ngozi Okonjo-Iweala) को विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation- WTO) का महानिदेशक नियुक्त किया गया है।

एन्गोज़ी ओकोंजो-इवेला पहली अफ्रीकी अधिकारी होने के साथ-साथ  विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक पद पर नियुक्त होने वाली पहली महिला भी है।

प्रमुख बिंदु:

विश्व व्यापार संगठन का गठन:

  • WTO को वर्ष 1947 में संपन्न हुए प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौते (General Agreement on Tariffs and Trade- GATT) के स्थान पर अपनाया गया।
  • WTO के निर्माण की पृष्ठभूमि गैट के उरुग्वे दौर (वर्ष1986-94) की वार्ता में तैयार हुई तथा 1 जनवरी, 1995 को WTO द्वारा कार्य शुरू किया गया।
  •   जिस समझौते के तहत WTO की स्थापना की गई उसे "मारकेश समझौते" के रूप में जाना जाता है। इसके लिये वर्ष 1994 में मोरक्को के मारकेश में हस्ताक्षर किये गए।
  • WTO के बारे में:
  • WTO एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो देशों के मध्य व्यापार के नियमों को  विनियमित करता है।
  • GATT और WTO में मुख्य अंतर यह है  कि GATT जहाँ ज़्यादातर वस्तुओं के व्यापार को विनियमित करता था, वहीँ WTO और इसके समझौतों में न केवल वस्तुओं को बल्कि सेवाओं और अन्य बौद्धिक संपदाओं जैसे- व्यापार चिन्हों, डिज़ाइनों और आविष्कारों से संबंधित व्यापार को भी शामिल किया जाता है।
  • WTO का मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में स्थित है।

सदस्य:

  • WTO में यूरोपीय संघ सहित 164 सदस्य देश शामिल हैं तथा ईरान, इराक, भूटान, लीबिया आदि 23 देशों को पर्यवेक्षक  का दर्जा प्राप्त है।
  • भारत वर्ष 1947 में GATT तथा WTO का संस्थापक सदस्य देश बना।

मंत्रिस्तरीय सम्मेलन:

  • WTO की संरचना में मंत्री सम्मेलन सर्वोच्च प्राधिकरण है जिसका गठन   WTO के सभी सदस्यों देशों से मिलकर होता है, इसके सभी सदस्यों को कम-से-कम हर दो वर्ष में मिलना आवश्यक है। मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के सदस्य बहुपक्षीय व्यापार समझौतों के तहत सभी मामलों पर निर्णय लेने में सक्षम होते हैं।

सामान्य परिषद:

  • इसका गठन WTO के सभी सदस्य देशों से मिलकर होता है जो मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के प्रति उत्तरदायी है।
  • विवाद समाधान निकाय और व्यापार नीति समीक्षा निकाय:
  • सामान्य परिषद का आयोजन मुख्यत: दो विषयों को ध्यान में रखकर किया गया है:
  • विवाद समाधान निकाय: इसके माध्यम से विवादों के समाधान हेतु अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं का संचालन किया जाता है।
  • व्यापार नीति समीक्षा निकाय: इसके द्वारा WTO के प्रत्येक सदस्य की व्यापार नीतियों की नियमित समीक्षा की जाती है।

उद्देश्य:

  •  अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हेतु नियमों को निर्धारित करना और लागू करना।
  • व्यापार उदारीकरण के विस्तार के लिये बातचीत और निगरानी हेतु एक मंच प्रदान करना।
  • व्यापार विवादों का समाधान करना।
  • निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता को बढ़ाना।
  • वैश्विक आर्थिक प्रबंधन में शामिल अन्य प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों के साथ सहयोग स्थापित करना।
  • विकासशील देशों को वैश्विक व्यापार प्रणाली से पूरी तरह से लाभान्वित होने में सहयोग करना।

WTO की उपलब्धियांँ:

 व्यापार की वैश्विक सुविधा:

  • WTO वस्तुओं और सेवाओं के वैश्विक व्यापार हेतु बाध्यकारी नियमों का निर्माण और सीमा पार व्यापार गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु सुविधा प्रदान करता है।
  •  WTO ने न केवल व्यापार मूल्यों को बढ़ाया है, बल्कि व्यापार और गैर-व्यापार बाधाओं को समाप्त करने में भी मदद की है।

बेहतर आर्थिक विकास :

  • वर्ष 1995 के बाद से विश्व व्यापार मूल्यों में लगभग चार गुना वृद्धि हुई  है, जबकि विश्व व्यापार में वास्तविक वृद्धि  2.7 गुना तक हुई है।
  • घरेलू सुधारों और खुले बाज़ार की प्रतिबद्धताओं के परिणामस्वरूप देशों की राष्ट्रीय आय में स्थायी वृद्धि हुई है।

वैश्विक मूल्य शृंखला में वृद्धि:

  • WTO के अनुमानित बाज़ार को वैश्विक मूल्य शृंखला के साथ बढ़ावा देने हेतु बेहतर संचार व्यवस्था के साथ जोड़ा गया है। वर्तमान में कुल व्यापार का लगभग 70% इन मूल्य शृंखलाओं के अंतर्गत आता है।

गरीब देशों का उत्थान:

  • WTO में कम विकसित देशों पर अतिरिक्त ध्यान दिया जाता है। WTO के सभी समझौतों में इस बात का ध्यान रखा गया है कि कम विकसित देशों को अधिक रियायत दी जानी चाहिये और जो सदस्य देश बेहतर स्थिति में हैं उन्हें कम विकसित देशों के निर्यात पर प्रतिबंधों को कम करने हेतु अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।

वर्तमान चुनौतियाँ:

 

चीन का राज्य पूंजीवाद:

  • मुक्त बाज़ार वैश्विक व्यापार प्रणाली के समक्ष चीन के राज्य-स्वामित्व (China’s State-Owned) वाले उद्यम एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं और WTO की नियम पुस्तिका इन चुनौतियों से निपटने हेतु अपर्याप्त है।
  • इसका कारण अमेरिका और चीन के मध्य व्यापार युद्ध है।

संस्थागत मुद्दे:

  • अपीलीय निकाय का संचालन दिसंबर 2019 से प्रभावी रूप से निलंबित है क्योंकि तभी से अमेरिका द्वारा अपीलीय निकाय में नियुक्तियों पर रोक लगाई जा रही है, जिसके कारण निकाय में सुनवाई करने के लिये आवश्यक कोरम पूरा नहीं हो रहा है।
  • विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटान तंत्र की विफलता इसके बातचीत/परक्रामण (Negotiation) तंत्र की विफलता से काफी हद तक जुड़ी हुई है।

पारदर्शिता का अभाव:

  •  WTO की वार्ताओं के संदर्भ में एक समस्या यह है कि WTO में शामिल विकसित या विकासशील देशों के संगठन की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है।
  • वर्तमान में सदस्य देशों द्वारा WTO से विशेष रियायत प्राप्त करने के उद्देश्य से स्वयं को विकासशील देशों के रूप में पदांकित किया जा रहा है।

ई-कॉमर्स और डिजिटल ट्रेड:

  • पिछले 25 वर्षों में वैश्विक व्यापार परिदृश्य में काफी बदलाव आया है  बावजूद इसके WTO के नियमों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।
  • 1998 में यह महसूस करते हुए कि ई-कॉमर्स वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, WTO के सदस्यों ने वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स से संबंधित सभी व्यापार-संबंधी मुद्दों की जांँच करने के लिये WTO ई-कॉमर्स स्थगन (WTO E-Commerce Moratorium) की स्थापना की।
  • लेकिन शुल्क स्थगन/ऋण स्थगन के राजस्व एकत्रित करने जैसे निहितार्थ के चलते हाल ही में विकासशील देशों ने इस पर प्रश्न उठाए।


कृषि और विकास:

भारत जैसे विकासशील देशों को खाद्य सुरक्षा और विकास आवश्यकताओं के कारण कृषि पर समझौते का सामना करना पड़ रहा है।

आगे की राह:

  •  WTO के आधुनिकीकरण हेतु डिजिटल व्यापार और ई-कॉमर्स के लिये नियमों के नए सेट विकसित करने की आवश्यकता होगी।
  • WTO के सदस्य देशों को चीन की व्यापार नीतियों और प्रथाओं के साथ अधिक प्रभावी ढंग से निपटना होगा, ताकि राज्य स्वामित्व वाले उद्यमों और औद्योगिक सब्सिडी को बेहतर तरीके से व्यवस्थित किया जा सके।
  • जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों को ध्यान में रखते हुए व्यापार और पर्यावरणीय स्थिरता को संरेखित करने के प्रयासों में वृद्धि करके  जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने तथा WTO को फिर से मज़बूत करने में मदद मिल सकती है।

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती

हाल ही में 809वें उर्स के अवसर पर सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की अजमेर शरीफ दरगाह पर प्रधानमंत्री की ओर से एक 'चादर' भेंट की गई। 

उर्स त्योहार राजस्थान के अजमेर में आयोजित किया जाने वाला एक वार्षिक उत्सव है जो सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती की पुण्यतिथि पर में मनाया जाता है।


सूफीवाद का संक्षिप्त परिचय

  • यह इस्लामी रहस्यवाद का एक रूप है जो वैराग्य पर ज़ोर देता है।
  • इसमें ईश्वर के प्रति समर्पण और भौतिकता से दूर रहने  पर बल दिया गया है।
  • सूफीवाद में बोध की भावना द्वारा ईश्वर की प्राप्ति के लिये आत्म अनुशासन को एक आवश्यक शर्त माना जाता है।
  • रूढ़िवादी मुसलमानों के विपरीत जो कि बाहरी आचरण पर ज़ोर देते हैं, सूफियों ने आंतरिक शुद्धता पर ज़ोर दिया।
  • सूफी मानते हैं कि मानवता की सेवा करना ईश्वर की सेवा के समान है।

शब्द व्युत्पत्ति:

'सूफी' शब्द संभवतः अरबी के 'सूफ' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है 'वह जो ऊन से बने कपड़े पहनता है'। इसका एक कारण यह है कि ऊनी कपड़ों को आमतौर पर फकीरों से जोड़कर देखा जाता था। इस शब्द का एक अन्य संभावित मूल 'सफा' है जिसका अरबी में अर्थ 'शुद्धता' है।

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती: 

  • मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का जन्म वर्ष 1141-42 ई. में ईरान के सिज़िस्तान (वर्तमान सिस्तान) में हुआ था।
  • ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने वर्ष 1192 ई. में अजमेर में रहने के साथ ही उस समय उपदेश देना शुरू किया, जब  मुहम्मद गोरी (मुईज़ुद्दीन मुहम्मद बिन साम) ने तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हराकर दिल्ली में अपना शासन स्थापित कर लिया था।
  • आध्यात्मिक ज्ञान से भरपूर उनके शिक्षाप्रद प्रवचनों ने शीघ्र ही स्थानीय आबादी के साथ-साथ सुदूर इलाकों में राजाओं, रईसों, किसानों और गरीबों को आकर्षित किया।
  • अजमेर में उनकी दरगाह पर मुहम्मद बिन तुगलक, शेरशाह सूरी, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ, दारा शिकोह और औरंगज़ेब जैसे शासकों ने जियारत की।  

चिश्ती  सिलसिला (चिश्तिया):

  • भारत में चिश्ती सिलसिले की स्थापना ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती द्वारा की गई थी।
  • इसने ईश्वर के साथ एकात्मकता (वहदत अल-वुजुद) के सिद्धांत पर ज़ोर दिया और इस सिलसिले के सदस्य शांतिप्रिय थे।
  • उन्होंने सभी भौतिक वस्तुओं को ईश्वर के चिंतन से भटकाव/विकर्षण के साधन के रूप में खारिज कर दिया।
  • उन्होंने धर्मनिरपेक्ष राज्य के साथ संबंधों से दूरी बनाए रखने पर ज़ोर दिया।
  • उन्होंने ईश्वर के नाम को ज़ोर से बोलकर और मौन रहकर (dhikr jahrī, dhikr khafī) जपने, दोनों द्वारा चिश्ती सिलसिले की आधारशिला स्थापित की।
  • ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के शिष्यों जैसे- ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी, फरीदउद्दीन गंज-ए-शकर, निज़ामुद्दीन औलिया और नसीरुद्दीन चराग आदि ने चिश्ती की शिक्षाओं को लोकप्रिय बनाने तथा इसे आगे बढ़ाने का कार्य किया।

अन्य प्रमुख सूफी सिलसिले:

 

सुहरावर्दी सिलसिला (Suhrawardi Order): 

  • इसकी स्थापना शेख शहाबुद्दीन सुहरावार्दी मकतूल द्वारा की गई थी।
  • चिश्ती सिलसिले के विपरीत सुहरावर्दी सिलसिले को मानने वालों ने सुल्तानों/राज्य के संरक्षण/अनुदान को स्वीकार किया।

नक्शबंदी सिलसिला:

  • इसकी स्थापना ख्वाजा बहा-उल-दीन नक्सबंद द्वारा की गई थी। 
  • भारत में इस सिलसिले की स्थापना ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी ने की थी।
  • शुरुआत से ही इस सिलसिले के फकीरों ने शरियत के पालन पर ज़ोर दिया।

क़दिरिया सिलसिला:

  • यह पंजाब में लोकप्रिय था।
  • इसकी स्थापना शेख अब्दुल कादिर गिलानी द्वारा 14वीं शताब्दी में की गई थी ।
  • वे अकबर के अधीन मुगलों के समर्थक थे। 

संदेश:गवर्नमेंट इंस्टेंट मैसेजिंग सिस्टम

  • राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) ने व्हाट्सएपकी तर्ज पर संदेश’ (Sandes) नामक एक इंस्टेंट मैसेजिंग प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है। 
  • राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC), इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तत्त्वावधान में यह केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन को नेटवर्क और ई-गवर्नेंस में सहायता प्रदान करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है।
  • यह एक गवर्नमेंट इंस्टेंट मैसेजिंग सिस्टम’ (GIMS) है, जिसे किसी भी सरकारी कर्मचारी या सार्वजनिक उपयोगकर्त्ता द्वारा वैध मोबाइल नंबर/ई-मेल आईडी के माध्यम से आधिकारिक या आकस्मिक स्थिति में इस्तेमाल किया जा सकता है।

विशेषता

  • इस एप में ग्रुप बनाने, संदेश भेजने, मैसेज फॉरवर्ड करने और इमोजीज़ जैसी तमाम सुविधाएँ मौजूद हैं।
  • हालाँकि दो प्लेटफॉर्म्स के बीच चैट हिस्ट्री को स्थानांतरित करने का कोई विकल्प नहीं है, किंतु संदेशएप पर किये गए चैट का बैकअप उपयोगकर्त्ताओं के ईमेल पर लिया जा सकता है।
  • यदि उपयोगकर्त्ता एप पर अपने पंजीकृत ईमेल आईडी या फोन नंबर को बदलना चाहते हैं तो उन्हें नए उपयोगकर्त्ता के तौर पर पुनः पंजीकरण करना होगा।
  • इस एप के तहत उपयोगकर्त्ता को किसी भी संदेश को गोपनीयसंदेश के रूप में चिह्नित करने की अनुमति दी गई है, जिससे प्राप्तकर्त्ता उस संदेश को किसी दूसरे व्यक्ति के साथ साझा करने में सक्षम नहीं होगा।

महत्त्व

 

सुरक्षित संचार

बीते वर्ष अप्रैल माह में कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (Cert-In) और गृह मंत्रालय ने सुरक्षा और गोपनीयता चिंताओं को देखते हुए सभी सरकारी कर्मचारियों हेतु आधिकारिक संचार के लिये ज़ूम (Zoom) जैसे प्लेटफार्मों का उपयोग करने से बचने के लिये एक सलाह जारी की थी।

स्वदेशी उत्पाद

यह एप भारत निर्मित सॉफ्टवेयर के उपयोग को बढ़ावा देने की सरकार की रणनीति का हिस्सा है, ताकि स्वदेशी रूप से विकसित उत्पादों का एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाया जा सके।

महाराजा सुहेलदेव


हाल ही में प्रधानमंत्री ने महाराजा सुहेलदेव स्मारक और उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले में चित्तौरा झील के विकास कार्य का शिलान्यास किया है।

 

महाराजा सुहेलदेव के बारे में

  •  वे बहराइच ज़िले (उत्तर प्रदेश) के श्रावस्ती के पूर्व शासक थे, जिन्होंने 11वीं शताब्दी में शासन किया था।उन्हें इतिहास में महमूद गज़नवी की विशाल सेना के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध की शुरुआत करने के लिये जाना जाता है।
  • महाराजा सुहेलदेव, सोमनाथ मंदिर में महमूद गज़नवी द्वारा की गई लूट और हिंसा से काफी व्यथित थे, जिसके बाद उन्होंने गज़नवी के आक्रमण को रोकने के लिये थारू और बंजारा जैसे विभिन्न समुदायों के प्रमुखों और अन्य छोटे-छोटे राजाओं को एकत्रित करने का प्रयास किया।
  • उनकी संयुक्त सेना ने बहराइच में महमूद गज़नवी के भतीजे सैयद सालार मसूद गाजी को मार गिराया था।
  • महाराजा सुहेलदेव का उल्लेख मिरात-ए-मसूदीमें भी है, जो कि 17वीं शताब्दी का फारसी-भाषा का एक ऐतिहासिक वृत्तांत है।
  • मिरात-ए-मसूदीसालार मसूद गाजी की जीवनी है, जिसे मुगल सम्राट जहाँगीर के शासनकाल के दौरान अब्द-उर-रहमान चिश्तीने लिखा था।

चित्तौरा झील


  • चित्तौरा झील, उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले में चित्तौड़ गाँव के पास स्थित है।
  • झील से निकलने वाली तेरी नदी’ (Teri Nadi) नामक छोटी से नदी कई प्रवासी पक्षियों का निवास स्थान मानी जाती है।
  • हिंदू तीर्थ स्थल होने के नाते, कार्तिक पूर्णिमा और वसंत पंचमी के दिन इस झील के पास कई मेले लगते हैं।
  • यहाँ एक आश्रम भी है, जहाँ मुनि अष्टावक्र निवास करते थे और यह स्थल वर्ष 1033 में सालार मसूद गाजी और राजा सुहेलदेव के बीच हुए युद्ध का भी साक्षी है।
  • यहाँ राजा सुहेलदेव की प्रतिमा वाला एक मंदिर है और देवी दुर्गा को समर्पित मंदिर भी है।

सीउलैकैंथ

  • हाल ही में शोधकर्त्ताओं के एक समूह ने कोलैकैंथ/सीउलैकैंथ’ (Coelacanth) नामक विशाल मछली के जीवाश्मों की खोज की है, जिसे जीवित जीवाश्मका एक प्रमुख उदाहरण माना जाता है।
  •  माना जाता है कि कोलैकैंथ/सीउलैकैंथ तकरीबन 66 मिलियन वर्ष पुरानी है और क्रेटेशियस युग से संबंधित है।

प्रमुख बिंदु

  •  कोलैकैंथ/सीउलैकैंथसमुद्र की सतह से 2,300 फीट नीचे गहराई में निवास करने वाला एक जीव है।
  • माना जाता है कि 65 मिलियन वर्ष पहले ये डायनासोर के साथ विलुप्त हो गए थे। वर्ष 1938 में इसकी खोज के साथ इस बात को लेकर बहस शुरू हो गई थी कि ये लोब-फिन मछलियाँ किस प्रकार स्थलीय जानवरों के विकास के क्रम में उपयुक्त पाई जाती हैं।

दो प्रजातियाँ:

 

कोलैकैंथ/सीउलैकैंथकी अब तक केवल दो ज्ञात प्रजातियाँ मौजूद हैं: पहली प्रजाति अफ्रीका के पूर्वी तट के कोमोरोस द्वीप समूह के पास और दूसरी इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप में पाई जाती है।

जीवित जीवाश्म:

 

  • जीवित जीवाश्म ऐसे जीव होते हैं, जो प्रारंभिक भूगर्भीय काल से अपरिवर्तित रहे हैं और जिनके करीबी संबंधी जीव प्रायः विलुप्त हो चुके हैं। कोलैकैंथ/सीउलैकैंथ के अलावा हॉर्सशू क्रैब और जिन्कगो वृक्ष भी जीवित जीवाश्म के उदाहरण हैं।
  • हालाँकि एक नए अध्ययन में शोधकर्त्ताओं ने पाया है कि कोलैकैंथ/सीउलैकैंथ ने 10 मिलियन वर्ष पूर्व अन्य प्रजातियों के साथ मिलकर 62 नए जीन प्राप्त किये थे।
  • इससे पता चलता है कि वे वास्तव में विकास कर रहे हैं, हालाँकि विकास की प्रक्रिया तुलनात्मक रूप से धीमी है।

संरक्षण स्थिति

 

  • IUCN स्थिति: गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered)
  • सुलावेसी कोलैकैंथ/सीउलैकैंथ को सुभेद्यके रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • CITES स्थिति: परिशिष्ट I

न्यूयॉर्क कन्वेंशन (New York Convention)

  • हाल ही में केयर्न एनर्जी ने अमेरिका की एक ज़िला अदालत में न्यूयॉर्क कन्वेंशन के तहत भारत के विरुद्ध 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के एक मध्यस्थता निर्णय को लागू करने के लिये मामला दायर किया है।
  • कन्वेंशन ऑन रिकाॅगनिशन एंड एन्फोर्समेंट ऑफ फॉरेन आर्बिट्रल अवार्ड्सजिसे न्यूयॉर्क आर्बिट्रेशन कन्वेंशनअथवा न्यूयॉर्क कन्वेंशनके नाम से भी जाना जाता है, अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के प्रमुख उपकरणों में से एक है।
  • मध्यस्थता का आशय एक ऐसी प्रकिया से है, जिसके तहत समझौते के माध्यम से कोई विवाद एक या एक से अधिक मध्यस्थों (एक स्वतंत्र व्यक्ति/निकाय) के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, जिस पर मध्यस्थ बाध्यकारी निर्णय लेते हैं।
  • इस कन्वेंशन को संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा मई और जून 1958 में न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित एक राजनयिक सम्मेलन के बाद अपनाया गया था और यह 7 जून, 1959 को लागू हुआ था।
  • वर्तमान में इस कन्वेंशन में कुल 166 देश शामिल हैं।
  • भारत भी इस कन्वेंशन का हिस्सा है।

उद्देश्य

  • कन्वेंशन का प्राथमिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विदेशी और गैर-घरेलू मध्यस्थता संबंधी निर्णयों को लागू करने में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाना चाहिये।
  • कन्वेंशन सदस्य देशों को यह सुनिश्चित करने के लिये बाध्य करता है कि वे मध्यस्थता संबंधी सभी विदेशी निर्णयों को मान्यता दें और अपने अधिकार क्षेत्र में घरेलू निर्णयों की तरह ही विदेशी निर्णयों को भी लागू करें।
  • यह सदस्य देशों को वैध मध्यस्थता समझौतों को बनाए रखने और जिन मामलों को  अनुबंध के तहत मध्यस्थता से हल करने को लेकर पक्षों ने सहमति व्यक्ति की है, उन पर अदालती कार्यवाही न शुरू करने को अनिवार्य बनाता है।
  • कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने वाले सभी देश इस बात पर सहमत होते हैं कि वहाँ की अदालतें सभी पक्षों द्वारा मध्यस्थता के लिये किये गए समझौतों का सम्मान करेंगी और उन्हें लागू करेंगी, साथ ही वे देश अपने अधिकार क्षेत्र में मध्यस्थता से संबंधित किसी भी निर्णय को मान्यता देंगे और उसे लागू करेंगे।

माँकैंटीन

  • हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 5 रुपए की मामूली लागत पर गरीबों और निराश्रितों के लिये रियायती पका हुआ भोजन उपलब्ध कराने के लिये माँकैंटीन का शुभारंभ किया है। इस नई योजना के तहत राज्य सरकार कैंटीन में प्रति व्यक्ति भोजन के लिये 15 रुपए की सब्सिडी देगी, जबकि लोगों को 5 रुपए का भुगतान करना होगा। इस माह की शुरुआत में मुख्यमंत्री द्वारा प्रस्तुत किये गए बजट में इस योजना के लिये 100 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं। माँकैंटीन को शहरी विकास और नगरपालिका मामलों के विभाग की मदद से राज्य के स्वयं सहायता समूहों द्वारा संचालित किया जाएगा। ध्यातव्य है कि महामारी के बाद से भारत समेत संपूर्ण विश्व में खाद्य सुरक्षा को लेकर चिंता और भी गंभीर हो गई है, ऐसे में पश्चिम बंगाल सरकार की यह योजना राज्य के गरीब और अपेक्षाकृत संवेदनशील लोगों के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है।

 

मारियो द्रागी

  • हाल ही में यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ECB) के पूर्व प्रमुख मारियो द्रागी ने इटली के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है। मारियो द्रागी को इटली की सिविल सेवाओं और बैंकिंग क्षेत्र दोनों का ही लंबा अनुभव है। उन्होंने 2010 के दशक में उत्पन्न ऋण संकट से निपटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। ध्यातव्य है कि इससे पूर्व जनवरी माह में कोरोना वायरस महामारी से निपटने को लेकर हुई आलोचना के चलते इटली के प्रधानमंत्री गुईसेपे कोंटे ने इस्तीफा दे दिया, जिससे इटली में प्रधानमंत्री का पद रिक्त हो गया था। इटली आपेननीनी (Apennine) प्रायद्वीप पर दक्षिणी यूरोप में स्थित है। विदित हो कि मारियो द्रागी ऐसे समय में पदभार संभाल रहे हैं, जब इटली महामारी के कारण गंभीर दबाव का सामना कर रहा है, कोरोना महामारी के प्रकोप के बाद से इटली में लगभग 93,000 से अधिक लोगों की मौत हुई है, साथ ही महामारी का इटली की अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। इसके कारण इटली में उच्च बेरोज़गारी और सार्वजनिक ऋण जैसी स्थिति देखी जा रही है। ऑस्ट्रिया, फ्रांँस, वेटिकन सिटी, सैन मैरिनो, स्लोवेनिया और स्विट्ज़रलैंड के साथ इटली अंतर्राष्ट्रीय सीमा साझा करता है। भूमध्यसागर में मौजूद सबसे बड़े द्वीपों में से दो द्वीप यथा- सिसीली और सार्डिनिया इटली से संबद्ध हैं।

 

वाणिज्यिक पटसन बीज वितरण योजना

  • कपड़ा मंत्री स्मृीति ईरानी ने हाल ही में वाणिज्यिक पटसन बीज वितरण योजनाकी शुरुआत की है। भारतीय पटसन निगम (JCI) ने वर्ष 2021-22 के लिये एक हज़ार मीट्रिक टन प्रमाणित पटसन बीजों के वाणिज्यिक वितरण के लिये बीते वर्ष राष्ट्रीय बीज निगम (NSC) के साथ समझौते पर हस्ता क्षर किये थे। देश भर में पटसन किसानों की सहायता करने के लिये कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, जिसमें पटसन के न्यूसनतम समर्थन मूल्यत (MSP) में वृद्धि किया जाना भी शामिल है। जहाँ एक ओर वर्ष 2014-15 में पटसन का न्यूकनतम समर्थन मूल्य  2400 रुपए प्रति क्विंटल था, वहीं वर्ष 2020-21 में यह बढ़कर 4225 रुपए तक पहुँच गया है। वर्ष 1971 में गठित भारतीय पटसन निगम का प्राथमिक उद्देश्य देश भर में पटसन की खेती में लगे लगभग 4.00 मिलियन परिवारों के हितों की रक्षा करना है। वहीं राष्ट्रीय बीज निगम लिमिटेड (NSC) कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में सरकार की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है, जिसकी स्थापना वर्ष 1963 में की गई थी। वर्तमान में यह अपने फार्मों एवं पंजीकृत बीज उत्पादकों के माध्यम से लगभग 60 फसलों की 600 किस्मों के प्रमाणित बीजों का उत्पादन कर रही है, जिसमें मोटे अनाज, दलहन, तिलहन, चारा, रेशा, हरी खाद एवं सब्ज़ियाँ आदि शामिल हैं।

 

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन

  • अजय माथुर को अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) का नया महानिदेशक नियुक्त किया गया है। अजय माथुर उपेंद्र त्रिपाठी का स्थान लेंगे, जो वर्ष 2017 से महानिदेशक के तौर पर अपनी सेवाएँ दे रहे थे। अजय माथुर वर्तमान में ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (TERI) के महानिदेशक और जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री की परिषद के सदस्य के तौर पर अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। इसके अलावा वे वर्ष 2006 से वर्ष 2016 तक भारत सरकार में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) के महानिदेशक के तौर पर भी कार्य कर चुके हैं। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) भारत और फ्राँस द्वारा वर्ष 2015 में शुरू की गई एक संयुक्त पहल है, जिसका उद्देश्य वित्तीय लागत एवं प्रौद्योगिकी लागत को कम करने के लिये आवश्यक संयुक्त प्रयास करना, बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा उत्पाद के लिये आवश्यक निवेश जुटाना तथा भविष्य की प्रौद्योगिकी के लिये उचित मार्ग तैयार करना है।