23 मार्च: शहीद दिवस, आज ही के दिन भारत माता के सपूत भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने देश के लिए अपना बलिदान दिया था. - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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मंगलवार, 23 मार्च 2021

23 मार्च: शहीद दिवस, आज ही के दिन भारत माता के सपूत भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने देश के लिए अपना बलिदान दिया था.

23 मार्च: शहीद दिवस, आज ही के दिन भारत माता के सपूत भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने देश के लिए अपना बलिदान दिया था. 



आज से 90 साल पहले 23 मार्च 1931 को  देश की आजादी के दीवानों क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी।  भारत माता  को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए इन वीर सपूतों में हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया था, इसलिए इस दिन को शहीद दिवस कहा जाता है। भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को फांसी दिया जाना हमारे देश इतिहास की बड़ी एवं महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है।


भारत के इन महान सपूतों को ब्रिटिश हुकूमत ने लाहौर जेल में फांसी पर लटकाया था। इन स्वंतत्रता सेनानियों के बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। अंग्रेजों ने इन तीनों को तय तारीख से पहले ही फांसी दे दी थी। तीनों को 24 मार्च को फांसी दी जानी था। मगर देश में जनाक्रोश को देखते हुए गुप-चुप तरीके से एक दिन पहले ही फांसी पर लटका दिया गया। पूरी फांसी की प्रक्रिया को गुप्त रखा गया था। 


लाला लाजपत राय की शहादत का लिया था बदला


27 सितंबर 1907 को अविभाजित पंजाब के लायलपुर (अब पाकिस्तान) में जन्मे भगत सिंह बहुत छोटी उम्र से ही आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए और उनकी लोकप्रियता से भयभीत ब्रिटिश सरकार ने 23 मार्च 1931 को 23 बरस के भगत को फांसी पर लटका दिया। उनका अंतिम संस्कार सतलज नदी के तट पर किया गया था। 1928 में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या करने के लिए उन्हें फांसी की सजा दी गई थी। उन्होंने गलती से उसे ब्रिटिश पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट समझ लिया था। स्कॉट ने उस लाठीचार्ज का आदेश दिया था, जिसमें लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई थी। 

 

भगतसिंग के क्रान्तिकारी विचार युवाओं को देते है प्रेरणा 


भगत सिंग अपने साहसी कारनामों के कारण युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए। उन्होंने 8 अप्रैल 1929 को अपने साथियों के साथ इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए केंद्रीय विधानसभा में बम फेंके। सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट करके उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ खुले विद्रोह को बुलंदी प्रदान की। इन्होंने असेंबली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। भगत सिंह करीब 2 साल जेल में रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रान्तिकारी विचार व्यक्त करते रहते थे। जेल में रहते हुए भी उनका अध्ययन लगातार जारी रहा। फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए