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सोमवार, 8 मार्च 2021

Daily Current Affair 08 March 2021 | Daily Current Affair in Hindi

 Daily Current Affair 08 March 2021 
 Daily Current Affair in Hindi

Daily Current Affair 08 March 2021   Daily Current Affair in Hindi


मैत्री सेतु

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 9 मार्च, 2021 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भारत और बांग्लादेश के बीच 'मैत्री सेतु' का उद्घाटन करेंगे। 'मैत्री सेतु' पुल फेनी नदी पर बनाया गया है। ये नदी त्रिपुरा और बांग्लादेश में भारतीय सीमा के बीच बहती है। 'मैत्री सेतु' भारत और बांग्लादेश के बीच बढ़ते द्विपक्षीय एवं मैत्रीपूर्ण संबंधों का प्रतीक है। इस पुल का निर्माण राष्ट्रीय राजमार्ग एवं अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (NHIDCL) ने 133 करोड़ रुपए की लागत से किया गया है। 1.9 किलोमीटर लंबा पुल भारत के सबरूमको बांग्लादेश के रामगढ़से जोड़ता है। यह भारत और बांग्लादेश के बीच आम लोगों की आवाजाही और द्विपक्षीय व्यापार में एक नया अध्याय जोड़ेगा। इसके साथ ही त्रिपुरा 'गेटवे ऑफ नॉर्थ ईस्ट' बन जाएगा क्योंकि सबरूम से चटगाँव की दूरी मात्र 80 किलोमीटर है। इसके अलावा प्रधानमंत्री कई अन्य परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास भी करेंगे, जिसमें सबरूममें एक एकीकृत चेक पोस्ट की स्थापना, राज्य सरकार द्वारा विकसित राज्य राजमार्गों और अन्य ज़िला सड़कों का उद्घाटन और प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत 40978 घरों का उद्घाटन आदि शामिल हैं।

 

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

  • संपूर्ण मानव जाति के विकास में महिलाओं की भूमिका को रेखांकित करने हेतु प्रत्येक वर्ष 08 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन किया जाता है। यह दिवस लोगों को यह जानने का अवसर प्रदान करता है कि मानव जाति के विकास में अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है और महिलाओं की समान भागीदारी के बिना यह प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2021 की थीम है- वीमेन इन लीडरशिप: अचीविंग एन इक्वल फ्यूचर इन कोविड-19। विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के उद्देश्य से इस दिवस को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। दरअसल वर्ष 1908 के आसपास महिलाओं के बीच उनके उत्पीड़न और असमानता के विषय को लेकर गंभीर बहस शुरू हुई और बदलाव की मुहिम तब और मुखर होने लगी जब 15000 से अधिक महिलाओं ने काम की कम अवधि, बेहतर भुगतान और मतदान के अधिकार को लेकर न्यूयॉर्क शहर से मार्च किया। 28 फरवरी, 1909 को संयुक्त राज्य अमेरिका में पहला राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। वर्ष 1910 में, कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया और इसी सम्मेलन के दौरान जर्मनी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की महिला नेत्री  क्लारा ज़ेटकिन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के आयोजन का सुझाव प्रस्तुत किया गया था। संयुक्त राष्ट्र द्वारा पहली बार अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन वर्ष 1975 में किया गया था।

 

स्पेस हरिकेन

  • हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने अंतरिक्ष में पहली बार स्पेस हरिकेनकी खोज की है। इस स्पेस हरिकेनसे संबंधित सभी सूचना वर्ष 2014 में एकत्र किये गए डेटा के पूर्वव्यापी विश्लेषण से प्राप्त हुई है। इलेक्ट्रॉन की वर्षा वाले इस हरिकेन को पहली बार उत्तरी ध्रुव के ऊपरी वातावरण में रिकॉर्ड किया गया था। वैज्ञानिकों द्वारा खोजा गया यह स्पेस हरिकेनतकरीबन 8 घंटे तक वामावर्त दिशा में घूमता रहा। इस स्पेस हरिकेनका व्यास तकरीबन 1,000 किलोमीटर (621 मील) था। इस खोज से यह ज्ञात होता है कि स्पेस हरिकेनएक सामान्य ग्रहीय घटना हो सकती है। अन्य हरिकेन के विपरीत, ‘स्पेस हरिकेनमें इलेक्ट्रॉनों की वर्षा होती है, जिससे हरिकेन के निचले हिस्से में एक विशाल और चमकदार हरे रंग के ऑरोरा’ (Aurora) का निर्माण होता है। स्पेस हरिकेनका अध्ययन वैज्ञानिकों को महत्त्वपूर्ण अंतरिक्ष मौसम प्रभावों को समझने में मदद करेगा। ज्ञात हो कि अंतरिक्ष में, खगोलविदों ने मंगल, शनि और बृहस्पति ग्रह पर भी हरिकेनदर्ज किये हैं।

 

दिल्ली बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन

  • हाल ही में दिल्ली मंत्रिमंडल ने दिल्ली बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन’ (DBSE) के गठन को मंज़ूरी दे दी है। नए बोर्ड की घोषणा करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा कि यह नई व्यवस्था दिल्ली की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव लाएगी। प्रारंभिक चरण में राष्ट्रीय के लगभग 20 विद्यालयों को आगामी शैक्षणिक सत्र 2021-2022 में नए बोर्ड से संबद्ध किया जाएगा। नए बोर्ड के संचालक मंडल का नेतृत्त्व दिल्ली के शिक्षामंत्री द्वारा किया जाएगा। दिल्ली बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन का मुख्य उद्देश्य दिल्ली के विद्यालयों में कुछ सर्वोत्तम शिक्षा पद्धतियों को लागू करना है। वर्तमान में दिल्ली में लगभग 1,700 निजी स्कूल और लगभग 1,000 सरकारी स्कूल हैं, जिनमें से अधिकांश केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) से संबद्ध हैं। नए बोर्ड में शिक्षा के प्रति अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया जाएगा और इसमें सीखने पर अधिक ज़ोर दिया जाएगा।

 

CSIR का फ्लोरीकल्चर मिशन

हाल ही में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research-CSIR) के फ्लोरीकल्चर मिशन” (Floriculture Mission) को भारत के 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लागू करने की मंज़ूरी दी गई है। 

इसके अतिरिक्त एंड्रायड ऐप के साथ CSIR सामाजिक पोर्टल (CSIR’s Societal Portal ) भी जारी किया गया।


फ्लोरीकल्चर मिशन 

 

फ्लोरीकल्चर, बागवानी (Horticulture) विज्ञान की एक शाखा है जो छोटे या बड़े क्षेत्रों में सजावटी पौधों की खेती, प्रसंस्करण और विपणन से संबंधित है। यह आसपास के  वातावरण को सुहावना बनाने तथा बगीचों व उद्यानों के रखरखाव में सहायक है।

इस मिशन के तहत  मधुमक्खी पालन हेतु वाणिज्यिक फूलों की खेती, मौसमी/वर्ष भर होने वाले  फूलों की खेती, जंगली फूलों की खेती  पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

कुछ लोकप्रिय फूलों की खेती में ग्लैडियोलस (Gladiolus), कन्ना (Canna), कार्नेशन (Carnation), गुलदाउदी (Chrysanthemum), जरबेरा (Gerber), लिलियम (Lilium), गेंदा (Marigold), गुलाब (Rose), ट्यूबरोज (Tuberose) आदि शामिल हैं।

इस मिशन में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के संस्थानों में उपलब्ध जानकारियों का उपयोग किया जाएगा जो देश के किसानों तथा  उद्योगों की  निर्यात ज़रूरतों  को पूरा करने में सहायक होगी ।

वर्ष 2018 में भारतीय फूलों की खेती का बाज़ार मूल्य 15700 करोड़ रुपए का था। जिसके वर्ष 2019-24 के दौरान  47200 करोड़ रुपए तक होने का अनुमान है।

इस मिशन के कार्यान्वयन में CSIR के साथ निम्नलिखित अन्य एजेंसियाँ ​​शामिल हैं:

  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)
  • खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC)
  • एपीडा और ट्राइफेड
  • खुशबू और स्वाद विकास केंद्र, कन्नौज
  • वाणिज्य मंत्रालय और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME)


अभियान का महत्त्व:

आय में वृद्धि: फ्लोरीकल्चर में नर्सरी लगाने, फूलों की खेती तथा उत्पादों के व्यापार हेतु उद्यमिता विकास, मूल्य संवर्द्धन और निर्यात के माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों को रोज़गार प्रदान करने की क्षमता है।


कृषि जलवायु विविधता: विविध कृषि-जलवायु और इडेफिक परिस्थितियों (मिट्टी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुण) तथा पौधों की समृद्ध विविधता जैसे कारक विद्यमान होने के बावजूद भी वैश्विक पुष्प कृषि बाज़ार में भारत का केवल 0.6% ही योगदान है।


आयात प्रतिस्थापन: विभिन्न देशों से हर वर्ष कम से कम 1200 मिलियन अमेरिकी डाॅलर के पुष्प उत्पाद का आयात किया जा रहा है।

अभियान में उल्लेखित  एपीकल्चर (मधुमक्खी पालन) को फ्लोरीकल्चर को सम्मिलित करने पर अधिक लाभ प्राप्त होगा।


अन्य संबंधित पहल (एकीकृत बागवानी विकास मिशन):

 

एकीकृत बागवानी विकास मिशन (Mission for Integrated Development of Horticulture- MIDH) बागवानी क्षेत्र को कवर करने के उद्देश्य से एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसके अंतर्गत फलों, सब्जियों, जड़ और कंद फसलों, मशरूम, मसाले, फूल, सुगंधित पौधों, नारियल, काजू, कोको और बाँस को शामिल  किया जाता है।


 CSIR’s के सामाजिक पोर्टल के बारे में:

 

  • इस पोर्टल को CSIR द्वारा द्वारा MyGov की मदद से विकसित किया गया है।
  • यह पोर्टल के माध्यम से सामाजिक समस्याओं का समाधान वैज्ञानिक और तकनीकी हस्तक्षेपों के माध्यम से किया जाएगा।  
  • यह समाज में विभिन्न हितधारकों के समक्ष उपलब्ध चुनौतियों और समस्याओं पर इनपुट से संबंधित पहला प्रयास है।


वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद:

  • भारत सरकार द्वारा इसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत सितंबर 1942 में एक स्वायत्त निकाय के रूप में स्थापित किया गया था।
  • इसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों में अत्याधुनिक अनुसंधान एवं विकास के लिये जाना जाता है।
  • CSIR को नेचर रैंकिंग रैंकिंग -2020 में पहले स्थान पर रखा गया है।
  • नेचर इंडेक्स संस्थागत, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर उच्च-गुणवत्ता वाले शोध परिणामों एवं सहयोग के संदर्भ वास्तविक समय परिपत्र प्रदान करता है।

 

जीव विज्ञान और पर्यावरण

जलवायु परिवर्तन और हिमनदों का क्षरण


जलवायु परिवर्तन:

हिमालयी क्षेत्र में बाढ़: 

हिमालय क्षेत्र में लगभग 15,000 ग्लेशियर हैं, जो प्रति दशक 100 से 200 फीट की दर से पिघल रहे हैं।

हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने के कारण उत्तराखंड के चमोली ज़िले में आई बाढ़ और भूस्खलन को ग्लोबल वार्मिंग से जोड़कर देखा जा रहा है।

वर्ष 2013 में केदारनाथ में मानसून के महीनों के दौरान ग्लेशियल फ्लड (Glacial Flood) के कारण 6,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई।


अन्य घटनाएँ: 

वर्ष 2003 में तापमान में अत्यधिक वृद्धि और लू के कारण यूरोप में 70,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई।

वर्ष 2015-19 वैश्विक स्तर पर अब तक रिकॉर्ड किये गए सबसे गर्म वर्ष रहे हैं।

वर्ष 2019 में अमेज़न के वनों में लगी आग और वर्ष 2019-20 में ऑस्ट्रेलिया में वनाग्नि की घटना जलवायु परिवर्तन के सबसे खतरनाक प्रभावों के प्रमुख उदाहरणों में शामिल हैं।


वैश्विक उत्सर्जन:

 संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा जारी उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट (Emission Gap Report) 2020  दर्शाती है कि वर्ष 2020 ने मौसम संबंधी चरम घटनाओं की वृद्धि के संदर्भ में नए रिकॉर्ड स्थापित किये हैं, जिसमें वनाग्नि और तूफान, दोनों ध्रुवों पर ग्लेशियरों तथा बर्फ का पिघलना शामिल है।

रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में थोड़ी गिरावट के बावजूद विश्व अभी भी इस सदी में 3°C से अधिक तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रहा है, जो वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के लक्ष्यों से अधिक है।


टेक्सास का उदाहरण:

  • हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका का टेक्सास राज्य कड़ाके की ठंड और तेज़ वायुवीय तूफान की चपेट में आ गया है।
  • इस विंटर स्टॉर्म के कारण 21 लोगों की मृत्यु हो गई और लगभग 4.4 मिलियन लोगों को  विद्युत आपूर्ति नहीं की जा सकी।
  • इस दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका के एक बड़े भाग में कड़ाके की ठंड देखने को मिली है, इसने COVID-19 टीकाकरण केंद्रों को भी प्रभावित किया है जिससे वैक्सीन की आपूर्ति बाधित हुई है।
  • दहाई के आँकड़ों तक पहुँच चुके इस नकारात्मक तापमान (तापमान -14 डिग्री सेल्सियस तक कम हो गया है) को आर्कटिक-प्रायद्वीप के तापमान में हो रही वृद्धि से जोड़कर देखा जा रहा है।
  • आमतौर पर आर्कटिक के चारों ओर उपस्थित हवाएँ, जिन्हें ध्रुवीय भंवर/पोलर वोर्टेक्स (Polar Vortex) के नाम से जाना जाता है, इस प्रकार की ठंड को सुदूर उत्तर तक ही सीमित रखती हैं।
  • परंतु ग्लोबल वार्मिंग ने इन हवाओं के सुरक्षात्मक घेरे में अंतराल पैदा कर दिया है, जो ठंडी हवाओं को दक्षिण की ओर बहने में सक्षम बनाता है और ऐसी घटनाओं में तेज़ी देखी जा रही है।


भारत और जलवायु परिवर्तन:

  • सबसे बड़े उत्सर्जकों में से एक: गौरतलब है कि चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है, अतः इसके लिये अत्यधिक प्रदूषणकारी कोयला और पेट्रोलियम जैसे इंधनों को स्वच्छ तथा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से स्थानांतरित करने हेतु एक निर्णायक बदलाव लाने की आवश्यकता है।
  • चीन ने वर्ष 2060 तक कार्बन तटस्थता बनने की घोषणा की है, जबकि जापान और दक्षिण कोरिया ने वर्ष 2050 तक इस लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है, परंतु भारत अभी तक इस संदर्भ में कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाया है।
  • वैश्विक रैंकिंग और अनुमान: एचएसबीसी (वर्ष 2018) द्वारा जलवायु सुभेद्यता के मामले में भारत को 67 देशों में शीर्ष पर रखा गया है।
  • जर्मनवाच (वर्ष 2020) द्वारा जलवायु जोखिम के मामले में भारत को 181 देशों में पाँचवें स्थान पर रखा गया है।
  • विश्व बैंक ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन दक्षिण एशिया में 800 मिलियन लोगों के लिये रहने की स्थिति को तेज़ी से प्रभावित कर सकता है।
  • उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट (Emission Gap Report) 2020  के अनुसार चीन, अमेरिका, ईयू समूह के देश, यूके और भारत ने पिछले एक दशक में हुए कुल जीएचजी उत्सर्जन में संयुक्त रूप से 55% का योगदान दिया है।


चुनौतियाँ और संबंधित मुद्दे:

एक कठोर नीति का अभाव: 

एक बड़ी चिंता का विषय यह है कि वर्तमान में राज्य और केंद्र सरकारें जलविद्युत तथा सड़क परियोजनाओं के लिये जलवायु सुरक्षा उपायों एवं इससे जुड़े नियमों को सख्त करने की बजाय इन्हें और आसान बना रही हैं।

कई अध्ययनों में हिमालय क्षेत्र में तेज़ी से पिघल रहे हिमनदों के जोखिम को रेखांकित किया गया है जो इसके जलग्रहण क्षेत्र में रह रही आबादी के लिये खतरों को बढ़ता है परंतु इस दिशा में किसी भी मज़बूत और तीव्र नीतिगत प्रतिक्रिया का अभाव दिखाई देता है।

उचित प्रशिक्षण कार्यक्रमों का अभाव: हाल ही में उत्तराखंड में आई बाढ़ के मामले में सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन के बारे में लोगों के लिये किसी जागरूकता या प्रशिक्षण कार्यक्रम की व्यवस्था नहीं की गई थी।


सरकार की लापरवाही:

वर्ष 2012 में सरकार द्वारा नियुक्त एक विशेषज्ञ समूह ने ऋषि गंगा और अलकनंदा-भागीरथी बेसिन में बाँधों के निर्माण का विरोध किया गया था, परंतु सरकार द्वारा इस सिफारिश की अनदेखी की गई। 

इसी तरह केरल सरकार द्वारा पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में खनन, उत्खनन और बाँध निर्माण के विनियमन के मामलों की अनदेखी वर्ष 2018 और वर्ष 2019 में बड़े पैमाने पर बाढ़ तथा भूस्खलन का कारण बनी।

अप्रभावी उपग्रह निगरानी:

संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र (या किसी भी बड़े आपदा-प्रवण क्षेत्र) की भौतिक रूप से निगरानी करना संभव नहीं है। हालाँकि उपग्रह निगरानी संभव है और यह नुकसान को कम करने में सहायता कर सकती है।

व्यापक उपग्रह क्षमताओं के बावजूद भारत अभी भी अग्रिम चेतावनी के लिये ऐसी तकनीकों का प्रभावी रूप से उपयोग नहीं कर पाया है।