शुक्राचार्य की नीति | शुक्र नीति |शुक्राचार्य कौन थे | Shukra Neeti - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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रविवार, 21 मार्च 2021

शुक्राचार्य की नीति | शुक्र नीति |शुक्राचार्य कौन थे | Shukra Neeti


शुक्राचार्य की नीति | शुक्र नीति


Shukra Neeti

शुक्राचार्य की नीति | शुक्र नीति  शुक्राचार्य कौन थे

शुक्राचार्य कौन थे 


  • परमपिता ब्रह्माजी के मानस पुत्रों में भृगु का नाम प्रमुख है, इन्हीं भृगु के पुत्र असुरगुरू महर्षि शुक्राचार्य हुए । 
  • योगविद्या के प्रकाण्ड आचार्य शुक्राचार्य की शुक्र नीति विश्व प्रसिद्ध है ।
  • यद्यपि ये असुरों के गुरू थे किन्तु मन से ये भगवान् के अनन्य भक्त थे ।
  • इनमें तपस्या, योगसाधना, अध्यात्मज्ञान तथा नीति का बहुत बल था, इन्होंने अपने योग बल के द्वारा असम्भव कार्य भी सम्भव किये। 


शुक्राचार्य की नीति

शुक्राचार्य के नीति सम्बन्धी उपदेश बहुत ही उपयोगी तथा अनुपालनीय हैं,इनके नीतिमय उपदेश महाभारत तथा पुराणों में यत्र - तत्र विद्यमान है । आधुनिक समय में आचार्य शुक्र के नाम से एक शुक्र नीति नामक ग्रंथ उपलब्ध है ।


शुक्रनीति में कितने अध्याय हैं

शुक्र नीति श्लोक


  • सम्पूर्ण शुक्र नीति में पाँच अध्याय तथा 2200 श्लोक हैं, इसमें लोक व्यवहार का ज्ञान, राजा के कर्तव्य, राजधर्म, दण्डविधान, मंत्री परिषद् आदि के लक्ष्यों का समावेश है। इसके साथ ही साथ स्त्री धर्म, प्रतिमाओं का स्वरूप, विवाद, संधि तथा युद्ध नीति आदि का वर्णन है ।
  • लघु होने के कारण शुक्रनीति का अत्यधिक महत्त्व है यह प्रामाणिक भी अधिक है शुक्राचार्यजी का कहना है कि समाज के सभी लोगों के लिए उपकारक तथा समाज को सुरक्षित रखने वाला नीतिशास्त्र ही है ।


'न कवेः सदृशी नीतिस्त्रिषु लोकेषु विद्यते


नीति शास्त्र के सम्बन्ध में स्वयं शुक्राचार्य ने कहा है कि कवि शुक्राचार्य की नीति के समान अन्य कोई दूसरी नीति तीनों लोकों में नहीं है। 

 शुक्र के अनुसार राजा प्रजा का क्या होता है

  • आचार्य शुक्राचार्य ने कहा कि राजा के लिये नीति शास्त्र का ज्ञान आवश्यक है । क्योंकि प्रजा का सम्पूर्ण दायित्व राजा के ऊपर ही रहता है, प्रजा का पालन करना व दुष्ट प्राणियों का दमन करना ये दोनों ही राजा के लिये परम आवश्यक है । कहने का तात्पर्य यह है कि एक राजा को नीतिज्ञानी होना चाहिए नीतिज्ञान से रहित होना ही उसका सबसे बड़ा दोष माना जाता है। नीति और बल ये दोनों जिस राजा को प्राप्त होते हैं उसके पास लक्ष्मी का आगमन होता है अर्थात् वह कभी दरिद्र नहीं होता

 

यत्र नीतिबले चोभे तत्र श्री: सर्वतोमुखी ।। (शुक्रनीति 1/17) 


विरत प्रजा का भली प्रकार पालक, शत्रुओं पर विजय प्राप्त, दानवीर, क्षमावान् तथा वैराग्यवान् होता है ऐसा राजा ही मोक्ष को प्राप्त करता है


 

'स हि नृपोऽन्ते मोक्षमन्वियात् ' (शुक्रनीति 1/31)

 

शुक्राचार्य जी ने सुन्दर नीति वचनों के माध्यम से राजा के लिए ही नहीं बल्कि एक सामान्य व्यक्ति के लिए भी उपयोगी बातें कहीं हैं। मनुष्य को दूरदर्शी होना चाहिए। अपने प्रत्येक कार्य को विचार कर अविवेक व आलस्य का पूर्ण रूप से त्याग कर देना चाहिए


 

शुक्र नीति में एक महत्त्व पूर्ण बात बतलायी गयी है कि- आयु, धन,(लक्ष्मी) गृह के दोष, मंत्रमैथुन, औषधि, दान, मान तथा अपमान इन नौ विषयों को अत्यन्त गुप्त रखना चाहिए, किसी से कुछ भी नहीं कहना चाहिए- दानमानापमानं च नवैतानि सुगोपयेत् ।।आयुर्वित्तं गृहच्छिद्रं मन्त्रमैथुनभेषजम् ।

 

शुक्राचार्य जी ने अपने नीति वचनों में बताया कि दुर्जनों की संगति नहीं करनी चाहिए, दुर्जनों  की संगति का परित्याग कर देना चाहिए-  'त्यजेद् दुर्जनसंगतम्।

 

 किसी के साथ कभी भी कपटपूर्ण व्यवहार और कभी किसी की धन सम्बन्धी हानि नहीं करनी चाहिए, इसके अतिरिक्त मन से भी कभी किसी का अहित नहीं सोचना चाहिए करने की तो बात बहुत दूर है। राजधर्म और नीति के संदर्भों को बतलाकर अन्त में शुक्राचार्य जी ने श्री राम को ही सर्वोपरि नीतिमान् कहा। उनका कहना था कि भगवान् राम के समान इस पृथ्वी पर कोई नीतिमान् राजा नहीं हुआ।


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