राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोत |Archaeological sources of history of Rajasthan in Hindi - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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गुरुवार, 17 जून 2021

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोत |Archaeological sources of history of Rajasthan in Hindi

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोत

 

पुरातत्व सम्बन्धी सामग्री का राजस्थान के इतिहास के निर्माण में एक बड़ा स्थान है। इसके अन्तर्गत खोजों और उत्खनन से मिलने वाली ऐतिहासिक सामग्री है। 


गोपीनाथ शर्मा ने लिखा है,

 "यह ठीक है कि ऐसी सामग्री का राजनीतिक इतिहास से सहज और सीधा सम्बन्ध नहीं हैपरन्तु इमारतें भवनकिलेराजप्रसादघरबस्तियाँभग्नावशेष मुद्राएँउत्कीर्ण लेखमूर्तियाँस्मारक आदि से हम ऐतिहासिक काल क्रम का निर्धारण तथा वास्तु और शिल्प-शैलियों का वर्गीकरण कर सकते हैं । जन-जीवन की पूरी झांकी पुरानी बस्तियों तथा अन्य प्रतीकों से प्रस्तुत की जा सकती है। स्मारकों के अध्ययन से न केवल स्थापत्य और मूर्तिकला ही जानी जाती हैअपितु उनसे उस समय के धार्मिक विश्वासपूजा पद्धति और सामाजिक जीवन पर भी प्रकाश पड़ता है। प्रागैतिहासिक काल से मध्यकाल के अनेक भग्नावशेष तत्कालीन अवस्था का चित्र हमारे सम्मुख उपस्थित करते हैं। इसी प्रकार सिक्केशिलालेख एवं दान-पत्र भी अपने समय की ऐतिहासिक घटनाओं एवं स्थिति के साक्षी है। पुरातात्विक सामग्री का अध्ययन हम निम्न भागों में कर सकते हैं ।

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोत

  • उत्खनित पुरावशेष
  • शिलालेख


राजस्थान के इतिहास के उत्खनित पुरावशेष

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोत |Archaeological sources of history of Rajasthan in Hindi


 

  • इतिहास लेखन को नए आधार पर खड़ा करने हेतु इतिहासकारों का ध्यान लम्बे समय से राजस्थान के पुरातत्व की ओर है। प्राक् ऐतिहासिक एवं ऐतिहासिक राजस्थान के इतिहास को जान के लिए पुरातात्विक साक्ष्य राजस्थान में बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं। पुरातात्विक स्रोतों में उत्खनि पुरावशेषमुद्राण्डऔजार एवं उपकरणशैलचित्रशिलालेखसिक्केस्मारक (दुर्गमन्दिरस्तूपस्तम्भ)मूर्तियाँ आदि प्रमुख हैं। 


  • राजस्थान में पुरातात्विक सर्वेक्षण कार्य सर्वप्रथम (1871 ई.) प्रारम्भ करने का श्रेय ए. सी. एल. कार्लाइल को जाता है। कालान्तर में राजस्थान में व्यापक स्तर पर उत्खनन कार्य प्रारम्भ किया गया। इसका श्रेय एस. आर. रावडी. आर. भण्डारकरदयाराम साहनीएच.डी. सांकलियाबी. एन. मिश्रआर.सी. अग्रवालबी.बी. लालएस. एन. राजगुरूडी.पी. अग्रवालविजय कुमारललित पाण्डेजीवन खरकवाल जैसे विद्वानों को जाता है। 


  • इन विद्वानों द्वारा किये गये उत्खननों से यह प्रमाणित हुआ कि यहाँ पाषाणयुगीन एवं ताम्रपाषाण कालीन संस्कृतियाँ अवस्थित थी उत्खननों द्वारा जो पुरावशेष प्राप्त हुए हैं वे वस्तुत इतिहास लेखन के लिए सामग्री उपलब्ध करवा हैं । इन पुरातत्ववेत्ताओं की बागौर कालीबंगा नगरीबैराठ आहडगिलुण्डतिलवाडागणेश्वर रंगमहलरेढ़ सांभरमण्डोर डीडवाना सुनारीनोहजोधपुरा बालाथल आदि के उत्खनन कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका रही।


  • इन स्थानों से प्राप्त सामग्री के आधार पर राजस्थान की कई नवीन संस्मृतियों का ज्ञान होता है यहाँ से प्राप्त पाषाण उपकरणमृद्भाण्डधातु उपकरणआभूषण तथा दैनिक जीवन में काम आने वाली अनेकानेक वस्तुएँ आदि की सहायता से संस्तृतियों के विकासक्रम को समझने में सहायता मिलती है।

 

  • राजस्थान की अरावली पर्वत श्रृंखला में तथा चम्बल नदी की घाटी में ऐसे शैलाश्रय प्राप्त हुए हैंजिनसे प्रागैतिहासिक काल के मानव द्वारा प्रयोग में लाये गये पाषाण उपकरणअस्थि अवशेष एवं अन्य पुरा सामग्री प्राप्त हुई है। इन शैलाश्रयों की छत भित्ति आदि पर प्राचीन मानव द्वारा उकेरे गये शैलचित्र तत्कालीन मानव जीवन की झलक देते हैं। इनमें सर्वाधिक आखेट दृष्य उपलब्ध होते हैं । 


  • बूँदी में छाजा नदी तथा कोटा में चम्बल नदी क्षेत्र उल्लेखनीय है । इनके अतिरिक्त विराटनगर (जयपुर)सोहनपुरा (सीकर) तथा हरसौरा (अलवर) आदि स्थलों से चित्रित शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं।