चाणक्य नीति संस्कृत दोहे और उनका अर्थ
निर्धनं पुरुषं वेश्या प्रजा भग्नं नृपं त्यजेत् ।
खगा वीताफलं वृक्षं भुक्त्वा चाऽभ्यागता गृहम्॥
वारांगना धनरहित मनुष्य को, प्रजा पराजित अथवा शक्तिहीन राजा को त्याग देती है। पक्षीगण फलरहित वृक्ष को और अतिथि लोग भोजन करके घर को त्याग देते हैं।
भावार्थ-
वेश्या निर्धन मनुष्य को, प्रजा पराजित राजा को, पक्षी फलरहित वृक्ष को और अतिथि भोजन करके घर को छोड़ देते हैं।
विमर्श-
चाणक्य नीति के अनुसार जीवन में सफलता कौन प्राप्त करता है
सुसम्पन्न व्यक्ति ही जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं ।