हनुमान स्तवन क्या है | हनुमान स्तवन अर्थ साहित
हनुमान स्तवन के क्या लाभ हैं
स्तवन का अर्थ है “प्रसन्न”, हनुमत स्तवन का पाठ
श्री हनुमान जी के आह्वान और प्रसन्न करने हेतु किया जाता है। इसका पाठ करने से
हनुमान जी का आशीर्वाद आपके उपर बना रहता है, ओर आपकी सारी परेशानी
दूर होती है।
लेकिन इसकी रचना किसने
की इसका निश्चित पता नही है कि तुलसी दास जी की या किसी और ने। यह पूर्णतया
संस्कृत में लिखी गई है,
श्री हनुमत् स्तवन (śrī hanumat stavana)
प्रनवऊं पवन कुमार खल
बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदय आगार बसहिं
राम सर चाप धर ॥
मैं उन पवन पुत्र श्री
हनुमान जी को प्रणाम करता हूं, जो दुष्ट रूपी वन में
अर्थात राक्षस रूपी वन में अग्नि के समान ज्ञान से परिपूर्ण हैं। जिनके हृदय रूपी
घर में धनुषधारी श्री राम निवास करते हैं।
अतुलित बलधामं
हेमशैलाभदेहं,
दनुजवनकृशानुं
ज्ञानिनामअग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं
वानराणामधीशं,
रघुपतिप्रियं भक्तं
वातंजातं नमामि ॥
अतुलीय बल के निवास, हेमकूट पर्वत के समान शरीर वाले राक्षस रूपी वन के
लिए अग्नि के समान, ज्ञानियों के अग्रणी
रहने वाले, समस्त गुणों के भंडार, वानरों के स्वामी, श्री राम के प्रिय
भक्त वायुपुत्र श्री हनुमान जी को नमस्कार करता हूं।
गोष्पदीकृत वारिशं
मशकीकृत राक्षसम्।
रामायण महामालारत्नं
वन्दे नीलात्मजं ॥
समुद्र को गाय के खुर
के समान संक्षिप्त बना देने वाले, राक्षसों को मच्छर
जैसा बनाने वाले, रामायण रूपी महती माला
का रत्न वायुनंदन हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूं।
अंजनानंदनंवीरं
जानकीशोकनाशनं।
कपीशमक्षहन्तारं वन्दे
लंकाभयंकरम् ॥
माता अंजनी को प्रसन्न
रखने वाले , माता सीता जी के शोक को नष्ट करने वाले, अक्ष को मारने वाले, लंका के लिए भंयकर रूप
वाले वानरों के स्वामी को मैं प्रणाम करता हूं।
उलंघ्यसिन्धों: सलिलं
सलिलं य: शोकवह्नींजनकात्मजाया:।
तादाय तैनेव ददाहलंका
नमामि तं प्राञ्जलिंराञ्नेयम ॥
जिन्होंने समुद्र के
जल को लीला पूर्वक( खेल-खेल में) लांघ कर माता सीता जी की शोकरूपी अग्नि को लेकर
उस अग्नि से ही लंका दहन कर दिया, उन अंजनी पुत्र को मैं
हाथ जोड़ कर नमस्कार करता हूं।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं
वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥
मन के समान गति वाले, वायु के समान वेग वाले, इंद्रियों के जीतने वाले, बुद्धिमानों में श्रेष्ठ, वायुपुत्र, वानरों के समूह के
प्रमुख, श्री राम के दूत की शरण प्राप्त करता हूं।
आञ्जनेयमतिपाटलाननं
काञ्चनाद्रिकमनीय विग्रहम्।
पारिजाततरूमूल वासिनं
भावयामि पवमाननंदनम्॥
अंजना के पुत्र, गुलाब के समान मुख वाले, हेमकुट पर्वत समान सुंदर शरीर वाले, कल्पवृक्ष की जड़ पर रहने वाले, पवन पुत्र श्री हनुमान जी को मैं याद करता हूं।
यत्र यत्र
रघुनाथकीर्तनं तत्र तत्र कृत मस्तकाञ्जिंलम।
वाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं
मारुतिं राक्षसान्तकाम् ॥
जहां- जहां श्री
रामचंद्र जी का कीर्तन होता है वहां-वहां मस्तक पर अंजलि बांधे हुए आनंदाश्रु से
पूरित नेत्रों वाले, राक्षसों के काल
वायुपुत्र (श्री हनुमान जी) को नमस्कार करें।